रीमा की बातों ने केतकीजी को झकझोर कर रख दिया. वाक़ई वे मंजू के लिए बहन के घर से कैसा काल्पनिक परिधान तैयार कर ले आई थीं, जो पूरे परिवार के लिए कितना बड़ा अभिशाप बन सकता था. अपनी ग़लती समझकर उसकी आंखों से आंसू छलक आए और उन आंसुओं ने भ्रमित अपेक्षाओं का परिधान तार-तार कर दिया. बहुत दिनों के बाद केतकीजी को पहले की तरह ही सब कुछ सहज लग रहा था.“अच्छा-अच्छा ठीक है. फिर से नहीं तैयार करूंगी कोई सूट, पर ये तो बता अब इस अनारकली का क्या होगा?...” केतकीजी ने माहौल को हल्का करने की कोशिश की.
उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि आख़िर रीमा ऐसी ज़िद क्यों कर रही है. उसने आज तक कभी सूट नहीं पहना. वो भी इतनी फैशनेबल स्टाइल का सूट तो वे पहन ही नहीं सकतीं. लेकिन इसे कैसे समझाएं. ये तो जैसे बालहठ लेकर बैठ गई है. केतकीजी ने उस सूट की कमर देखी, “लेकिन बेटा ये तो बहुत टाइट फिटिंग का है, मैं तो इसमें फिट ही नहीं हो पाऊंगी.”
“ओह! अच्छा.” रीमा ने सूट को उलट-पुलटकर देखा, सूट केतकीजी के हिसाब से वाक़ई टाइट फिटिंग का था. वह वापस से मनुहार करने लगी. “मेरी प्यारी ममा, यह सूट थोड़ा ही तो टाइट है. आप ऐसा कीजिए कल से थोड़ी डायटिंग, वॉक वगैरह शुरू कर दीजिए. फिर देखिए महीनेभर में कैसे यह आपको पूरा फिट आ जाएगा.” इस बार केतकीजी बुरी तरह से झल्ला गईं.
“ये क्या मज़ाक है रीमा. मुझे नहीं पहनना कोई अनारकली-वनारकली.” केतकीजी को आख़िरकार ग़ुस्सा आ गया.
“ममा, क्या आप मुझसे प्यार नहीं करतीं? क्या आप मेरे लिए इतना भी नहीं कर सकतीं?” रीमा ने बच्चों की तरह मुंह फुला लिया.
“मैं तुम्हें प्यार करती हूं बेटा. बहुत प्यार, पर तुम्हारी ये मांग बिल्कुल बचकानी है कि तुम्हारे लिए मैं जबरन इस सूट में फिट होकर इसे पहनने लगूं, जबकि मैं ऐसे कपड़े पहनने की न तो आदी हूं, न ही कंफर्टेबल हूं.”
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“तो ममा, फिर आप मंजू भाभी के लिए मौसी के यहां की लता स्टाइल सूट क्यों बनाकर ले आई हैं. और चाहती हैं कि वे उसमें फिट हो जाएं, जबकि वो सूट उनकी प्रकृति व स्वभाव से बिलकुल मेल नहीं खाता.” रीमा ने केतकीजी की तरफ़ ठहरी हुई नज़रों से देखते हुए कहा.
“ये क्या कह रही हो? मैं तो कोई सूट नहीं लाई हूं उसके लिए.” केतकीजी को रीमा की कही बात कुछ समझ नहीं आई.
“लाई हो ममा, लता जैसी बहू बनने की अपेक्षा का सूट लाई हो और भाभी को जबरन उसमें फिट करने की कोशिश कर रही हो. वो नहीं हो रही हैं, तो आपको उनसे शिकायत होने लगी है, वरना अब से पहले तो आपको उनसे कभी कोई शिकायत नहीं हुई. उल्टा आप उनकी तारीफ़ ही किया करती थीं कि कैसे उन्होंने अपनी पारिवारिक ज़िम्मेदारियों के आगे करियर को महत्व नहीं दिया. कैसे धीरे-धीरे आपसे घर की ज़िम्मेदारियों को अपने कंधों पर ले लिया.
अब वह सब भूलकर आपको ये सब नज़र आने लगा कि वे लता जैसी सुबह नहीं उठतीं, पूजा-पाठ नहीं करतीं. आपके पैर नहीं दबातीं. बहुओं की तरह पहन-ओढ़कर नहीं रहतीं. और मान लिया जाए कि वो ये सब करने भी लग जाएं, तो आपका क्या भरोसा फिर किसी और की बहू को देख लेंगी और उनके लिए फिर से अपेक्षाओं का नया परिधान तैयार कर देंगी और चाहेंगी कि वे उसमें भी फिट हो जाएं. ऐसी अपेक्षाओं का तो कोई अंत नहीं है ममा.” केतकीजी चुपचाप रीमा की बात सुन रही थीं.
“एक बात और ममा, भाभी हंसमुख हैं, अभी तक आपकी बातों को सहजता से ले रही हैं. यह तो मैंने आज ख़ुद देख लिया. लेकिन अगर आपका यही रवैया रहा, तो वह दिन दूर नहीं, जब वे आपको पलटकर, कठोरता से जवाब भी देने लगेंगी. ठीक ऐसे ही जैसे अभी आपने मुझे दिया था. और फिर इस घर की शांति भंग होते देर नहीं लगेगी.”
रीमा की बातों ने केतकीजी को झकझोर कर रख दिया. वाक़ई वे मंजू के लिए बहन के घर से कैसा काल्पनिक परिधान तैयार कर ले आई थीं, जो पूरे परिवार के लिए कितना बड़ा अभिशाप बन सकता था. अपनी ग़लती समझकर उसकी आंखों से आंसू छलक आए और उन आंसुओं ने भ्रमित अपेक्षाओं का परिधान तार-तार कर दिया. बहुत दिनों के बाद केतकीजी को पहले की तरह ही सब कुछ सहज लग रहा था.
“अच्छा-अच्छा ठीक है. फिर से नहीं तैयार करूंगी कोई सूट, पर ये तो बता अब इस अनारकली का क्या होगा?...” केतकीजी ने माहौल को हल्का करने की कोशिश की.
“इसका क्या होना है. इसे तो वही पहनेगा जिसके लिए यह बना है.”
“किसके लिए?” केतकीजी ने रीमा को शक की नज़रों से देखा.
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“मेरे लिए और किसके लिए.” कहकर रीमा खिलखिलाकर हंस पड़ी, उसकी हंसी में केतकीजी का हास्य स्वर भी शामिल हो गया.
दीप्ति मित्तल
“सब बढ़िया चल रहा है ममा. आप सुनाइए, आप मौसी के यहां शादी में गई थीं, कैसी रही शादी? कैसी है उनकी नई बहू?” रीमा ने जैसे केतकीजी की दुखती रग पर हाथ रख दिया. रीमा अपनी मां के बहुत क़रीब थी, इसलिए केतकी ने अपने दिल का गुबार बेटी के सामने निकाल दिया. मां का हताशाभरा यह रूप देखकर रीमा अवाक् रह गई. उसे समझ ही नहीं आया कि क्या कहे.दोपहर में मंजू हॉल में बच्चों को पढ़ा रही थी कि तभी केतकीजी ने उसे ख़बर दी, “मंजू, आज रीमा घर पर आ रही है, साथ में उसके सास-ससुर भी आ रहे हैं. वे तो आज ही चले जाएंगे, पर रीमा कुछ दिन रहेगी.”
“वाह! बुआ आ रही है, फिर तो बड़ा मज़ा आएगा. ख़ूब मस्ती करेंगे.” बच्चे अपनी इकलौती बुआ के आगमन की बात सुनकर खिल उठे. बुआ से उनकी बहुत पटती जो थी और कोई न कोई गिफ्ट भी ज़रूर मिलता था.
सूचना देकर केतकीजी जाने लगीं, तभी उनकी नज़र मंजू के कपड़ों पर पड़ी. मंजू स़फेद टॉप और ब्लू जींस में बैठी थी, बालों को ऊपर से लपेटकर क्लिप लगाया हुआ था. बहुओंवाला कोई बनाव-शृंगार नहीं था. केतकीजी की आंखों के सामने साड़ी में लिपटी सजी-धजी लता की मोहक छवि तैर आई. मन एक बार फिर खिन्न हो गया. “सुनो मंजू, रीमा के सास-ससुर के सामने ऐसे मत रहना. ज़रा बन-संवर के आना, हो सके तो साड़ी पहन लेना.”
“मम्मीजी, मुझसे ये साड़ी-वाड़ी नहीं संभलती. अगर पहन भी ली, तो फिर मुझसे कोई काम नहीं हो सकेगा. साड़ी संभालूंगी या उनकी मेज़बानी करूंगी. ऐसा कीजिए साड़ी आप पहन लेना और काम मैं संभाल लूंगी.” कहकर मंजू अपने चिर-परिचित अंदाज़ में खिलखिलाकर हंस पड़ी, लेकिन केतकीजी को उसका यूं हंसना बिल्कुल अच्छा नहीं लगा. मंजू का ऐसा ही स्वभाव था. बात-बात पर हंसना-खिलखिलाना, जो दिल में है झट से कह देना. अभी तक केतकीजी को मंजू की यह बात बहुत पसंद थी, पर आज उसे यह ज़ुबान लड़ाना लग रही थी.
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रीमा अपने सास-ससुर के साथ आ गई थी. मंजू ने सबकी गरम-गरम नाश्ते के साथ, ख़ूब हंस-बोलकर आवभगत की. सब कुछ अच्छा चल रहा था, पर केतकीजी कुछ बुझी-सी थीं, जिसे रीमा ने भी महसूस किया था. जिस तरह से केतकीजी मंजू को देख रही थीं, रीमा ने भांप लिया कि ज़रूर भाभी और मां में कुछ शीत युद्ध चल रहा है. हालांकि वो आश्चर्यचकित थी, क्योंकि पिछले आठ सालों में ऐसा कभी नहीं हुआ था.
अपने समधियों को विदा कर केतकीजी रीमा के साथ बतियाने बैठ गईं. “और सुना, क्या हालचाल हैं तेरे? हमारे दामादजी का क्या हाल है?”
“सब बढ़िया चल रहा है ममा. आप सुनाइए, आप मौसी के यहां शादी में गई थीं, कैसी रही शादी? कैसी है उनकी नई बहू?” रीमा ने जैसे केतकीजी की दुखती रग पर हाथ रख दिया. रीमा अपनी मां के बहुत क़रीब थी, इसलिए केतकी ने अपने दिल का गुबार बेटी के सामने निकाल दिया. मां का हताशाभरा यह रूप देखकर रीमा अवाक् रह गई. उसे समझ ही नहीं आया कि क्या कहे.
“अच्छा चलो छोड़ो ममा, मुझे अपने हाथ की एक कप गरम-गरम अदरकवाली चाय पिलाओ ना...” कहकर रीमा ने बातों की धारा बदली.
“हां-हां, क्यों नहीं, अभी बनाकर लाई.” केतकीजी ख़ुशी-ख़ुशी चाय बनाने चली गईं. वहीं दूसरी ओर रीमा सोच में पड़ गई कि यह बैठे बिठाए मां को क्या हो गया.
केतकीजी चाय बनाकर लाईं, तो रीमा अपने बैग से कुछ निकाल रही थी. “ममा, पिछले महीने बैंगलुरू गई थी ना, तुम्हारे लिए कुछ लेकर आई हूं. देखो, लेने से मना मत करना, वरना मुझे बहुत दुख होगा.” रीमा ने झूठा ग़ुस्सा दिखाते हुए कहा.
“अरे, क्यों मना करूंगी भला. वैसे भी तू मेरे टेस्ट को अच्छे से जानती है. तेरी लाई हुई सभी चीज़ें मुझे बहुत पसंद आती हैं.” रीमा ने ख़ुश होते हुए बैग से एक सुंदर-सा अनारकली सूट निकालकर केतकीजी की ओर बढ़ा दिया.
सूट देखकर केतकीजी अचरज में पड़ गईं, पर रीमा की भावनाओं का ख़्याल रखते हुए थोड़ा संयत हुईर्ं, “रीमा, क्या ये अनारकली तू मेरे लिए लाई है? लेकिन तुझे तो पता है ना, मैं ये सब नहीं पहनती. बस, साड़ी ही पहनती हूं.”
“मैं जानती हूं ममा, तुम नहीं पहनती, पर जब मैंने इसे देखा तो बस तुम्हारी ही याद आई, मेरे दिल ने कहा तुम इसमें कितनी ख़ूबसूरत और यंग लगोगी.”
“पर रीमा...”
“पर-वर कुछ नहीं ममा, क्या तुम मेरी ख़ुशी के लिए इतना भी नहीं कर सकती. ये अनारकली तो तुम्हें पहनना ही पड़ेगा.” रीमा केतकीजी के गले में बांहें डालते हुए एक बच्चे की तरह ज़िद करने लगी.
“ममा, क्या तुम्हें यह पसंद नहीं?” रीमा का स्वर रुआंसा हो चला.
“पसंद तो है, बहुत सुंदर सूट है. ऐसा कर, तू इसे अपनी भाभी को दे दे, उस पर यह ख़ूब सूट करेगा.”
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“नहीं ममा, मंजू भाभी के लिए नहीं, यह मैंने बड़े चाव से आपके लिए ही ख़रीदा है और मेरी यह ज़िद है कि आप ही इसे पहनेंगी. चलिए, अब जल्दी से इसे पहनकर दिखाइए.”
केतकीजी की तो जैसे जान ही सकते में आ गई.
दीप्ति मित्तल
“चली जाऊंगी मम्मीजी, आख़िर इतनी जल्दी भी क्या है... सुबह से काम कर-करके थोड़ा थक गई हूं और बोर भी लग रहा है. इस तरह से गप्पा ब्रेक लेने से हमारा रूटीन बोरिंग काम करते हुए बना मेंटल ब्लॉक रिलीज़ हो जाता है. हम रिफ्रेश हो जाते हैं. मैं तो कहती हूं आप भी दिन में ऐसे 2-3 ब्रेक ले ही लिया करो. आपका भी मूड फ्रेश रहेगा.” कहकर मंजू हंसने लगी. उसकी हंसी से केतकीजी की चिढ़ और बढ़ गई.
मंजू ने रसोई का स्लैब साफ़ कर नल बंद किया और गहरी सांस लेते हुए सोफे पर निढाल होकर बैठ गई. उसकी गहरी सांस बता रही थी कि उसकी पहली पारी के घरेलू काम ख़त्म हो चुके हैं और एक कप चाय पीते हुए तसल्ली से बैठने का समय आ गया है. उसने चाय बनाई और टीवी के आगे पसर गई. चैनल उलट-पुलट कर देखे. कहीं कुछ ढंग का प्रोग्राम नहीं आ रहा था, तो फोन उठाया और लगी सहेली से बतियाने.
यह मंजू का रोज़ का रूटीन था. सुबह 6 बजे से उठकर 11 बजे तक घर के सब काम निपटाती, लंच की तैयारी कर लेती और फिर आधा-एक घंटा टीवी देखते हुए सुस्ताती, किसी न किसी सहेली को पकड़ फोन पर गप्पे मारती और फिर नहाने जाती, नहाकर दूसरी पारी के काम निपटाने को मुस्तैद हो जाती.
मंजू बेफ़िक्र बतिया रही थी व उसकी सासू मां केतकीजी उसे दूर से ही घूरकर मुंह बना रही थीं. जब उनसे रहा ना गया, तो बोल ही उठीं, “बेटा बातें बाद में कर लेना, ज़रा उठकर नहा-धो लो, कुछ घड़ी पूजा-पाठ...” इस पर मंजू ने उन्हें ऐसे घूरा जैसे किसी अपरिचित को देखकर समझने की कोशिश कर रही हो कि आख़िर यह है कौन साहिबा, जो मुझसे ऐसे बात कर रही हैं.
“चली जाऊंगी मम्मीजी, आख़िर इतनी जल्दी भी क्या है... सुबह से काम कर-करके थोड़ा थक गई हूं और बोर भी लग रहा है. इस तरह से गप्पा ब्रेक लेने से हमारा रूटीन बोरिंग काम करते हुए बना मेंटल ब्लॉक रिलीज़ हो जाता है. हम रिफ्रेश हो जाते हैं. मैं तो कहती हूं आप भी दिन में ऐसे 2-3 ब्रेक ले ही लिया करो. आपका भी मूड फ्रेश रहेगा.” कहकर मंजू हंसने लगी. उसकी हंसी से केतकीजी की चिढ़ और बढ़ गई.
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“बस-बस, मेरे पास ऐसे ब्रेक लेने का फालतू समय नहीं है और ना ही मुझे घर के काम बोरिंग लगते हैं. तुम ही लो अपना गप्पा ब्रेक.” चिढ़े स्वर से कहकर केतकीजी बुरा-सा मुंह बनाकर चली गईं.
कुछ दिनों से ऐसे ही चल रहा था. केतकीजी बात-बात पर मंजू को टोकने लगी थीं. उसके लिए केतकीजी के चेहरे के भाव बदलने लगे थे. मंजू भी हैरान थी कि अचानक मम्मीजी को हो क्या गया है. पहले तो उन्होंने कभी ऐसा व्यवहार नहीं किया.
8 साल हो गए मंजू को इस घर की बहू बनकर आए. सबसे ज़्यादा उसे केतकीजी का ही सपोर्ट मिला. अनुज से लव मैरिज हुई थी उसकी. मंजू के घरवाले इस शादी के विरुद्ध थे, पर अनुज के घरवालों ने उसे बड़े प्यार से अपनाया. मंजू उसी कंस्ट्रक्शन कंपनी में आर्किटेक्ट थी, जहां अनुज सिविल इंजीनियर था. वहीं दोनों की मुलाक़ात हुई, जो धीरे-धीरे प्यार में बदल गई. आज दोनों अपने दो प्यारे बच्चों के साथ ख़ुशहाल शादीशुदा ज़िंदगी गुज़ार रहे थे.
मंजू एक करियर ओरिएंटेड लड़की थी. शादी से पहले उसने कभी रसोईघर का रुख भी नहीं किया था. घर-गृहस्थी को संभालने की बात तो दूर, उसे चाय तक बनाना नहीं आता था. लेकिन केतकीजी की ममताभरी छत्रछाया में व अनुज के प्यार भरे सहयोग से उसने धीरे-धीरे सब सीख लिया था. बच्चों के होने के बाद उसने जॉब भी छोड़ दी.
घर में मेड थी, काफ़ी कुछ काम वही कर जाती थी. इसके अलावा बच्चों को पढ़ाना, उन्हें एक्टिविटी क्लासेस ले जाना, बाज़ार से ज़रूरी सामान लाना- ये सब काम मंजू संभाल रही थी. केतकीजी भी कुछ न कुछ काम करती रहतीं, पर उनकी भूमिका हेल्पर की ही रहती. इस तरह से सब कुछ बढ़िया चल रहा था. किसी को किसी से कोई शिकायत नहीं थी, पर कुछ दिनों से केतकीजी का व्यवहार बदल गया था. उन्हें मंजू में मीनमेख नज़र आने लगे थे.
कुछ दिनों से नहीं, बल्कि ठीक उसी दिन से जब वह अपनी बड़ी बहन कामिनी के घर से अपने भांजे की शादी अटेंड करके वापस लौटी थीं. कामिनीजी की बड़ी बहू लता से वे बेहद प्रभावित हुई थीं. हर समय मम्मीजी-मम्मीजी कहकर सास की सेवा में खड़ी रहनेवाली लता. सुबह जल्दी उठकर, नहाकर पूजा-पाठ करनेवाली, पाककला में निपुण लता, और तो और, सोने से पहले सास के पैरों में तेल लगानेवाली लता. केतकीजी आश्चर्यचकित रह गईं कि आज के दौर में भी ऐसी बहुएं होती हैं.
पहली बार केतकीजी को मंजू में असंख्य कमियां नज़र आने लगीं. उन्हें एहसास होने लगा कि बहू के चुनाव में उनसे ग़लती हो गई है, क्योंकि उन्होंने अपने बेटे की बात झट से मान ली, वरना खोजने पर शायद लता जैसी बहू मिल ही जाती. कैसी गुणी है, सास के कपड़े अपने हाथों से प्रेस करना, पैर दबाना, तेल लगाना... केतकीजी का मन अपनी ही बहन के लिए ईर्ष्या से भर उठता.
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लता से मिलते ही केतकीजी को अपने जीवन में बड़ी भारी कमी का एहसास होने लगा और वही एहसास जब-तब मंजू के सामने छलकने लगा था.
दीप्ति मित्तल