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पंचतंत्र की कहानियाँ short story
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पंचतंत्र की कहानी: खरगोश, तीतर और धूर्त बिल्ली (Panchtantra Story: The Hare, Partridge & Cunning Cat)
आज के हाईटेक युग में जब बच्चों को हर जानकारी कंप्यूटर/इंटरनेट पर ही मिल रही है, उनका पैरेंट्स से जुड़ाव कम हो रहा है. साथ ही उन्हें मोरल वैल्यूज़ (Moral Values) भी पता नहीं चल पाती, ऐसे में बेड टाइम स्टोरीज़ (Bed Time Stories) जैसे- पंचतंत्र (Panchtantra) की सीख देने वाली पॉप्युलर कहानियों के ज़रिए न स़िर्फ आपकी बच्चे से बॉन्डिंग स्ट्रॉन्ग होगी, बल्कि उन्हें अच्छी बातें भी पता चलती हैं.
एक नगर में बड़े से पेड़ पर एक तीतर का घोंसला था. वो बड़े मज़े से वहां रहता था. एक दिन वह अपना भोजन व दाना पानी ढूंढ़ने के चक्कर में दूसरी जगह किसी अच्छी फसलवाले खेत में पहुंच गया. वहां उसके खाने पीने की मौज हो गई. उस खुशी में वो उस दिन घर लैटना भी भूल गया और उसके बाद तो वो मज़े से वहीं रहने लगा. उसकी ज़िंदगी बहुत अच्छी कटने लगी.
यहां उसका घोसला खाली था, तो एक शाम को एक खरगोश उस पेड़ के पास आया. पेड़ ज़्यादा ऊंचा नहीं था. खरगोश ने उस घोसले में झांककर देखा तो पता चला कि यह घोसला खाली पड़ा है. खरगोश को वो बेहद पसंद आया और वो आराम से वहीं रहने लगा, क्योंकि वो घोसला काफ़ी बड़ा और आरामदायक था.
कुछ दिनों बाद वो तीतर भी नए गांव में खा-खाकर मोटा हो चुका था. अब उसे अपने घोसले की याद सताने लगी, तो उसने फैसला किया कि वो वापस लौट आएगा. आकर उसने देखा कि घोसले में तो खरगोश आराम से बैठा हुआ है. उसने ग़ुस्से से कहा, “चोर कहीं के, मैं नहीं था तो मेरे घर में घुस गए… निकलो मेरे घर से.”
खरगोश शान्ति से जवाब देने लगा, “ये तुम्हारा घर कैसे हुआ? यह तो मेरा घर है. तुम इसे छोड़कर चले गए थे और कुआं, तालाब या पेड़ एक बार छोड़कर कोई जाता है, तो अपना हक भी गवां देता है. अब ये घर मेरा है, मैंने इसे संवारा और आबाद किया.”
यह बात सुनकर तीतर कहने लगा, “हमें बहस करने से कुछ हासिल नहीं होने वाला, चलो किसी ज्ञानी पंडित के पास चलते हैं. वह जिसके हक में फैसला सुनायेगा उसे घर मिल जाएगा.”
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उस पेड़ के पास से एक नदी बहती थी. वहां एक बड़ी सी बिल्ली बैठी थी. वह कुछ धर्मपाठ करती नज़र आ रही थी. वैसे तो बिल्ली इन दोनों की जन्मजात शत्रु है, लेकिन वहां और कोई भी नहीं था, इसलिए उन दोनों ने उसके पास जाना और उससे न्याय लेना ही उचित समझा. सावधानी बरतते हुए बिल्ली के पास जाकर उन्होंने अपनी समस्या बताई, “हमने अपनी उलझन बता दी, अब आप ही इसका हल निकालो. जो भी सही होगा उसे वह घोसला मिल जाएगा और जो झूठा होगा उसे आप खा लेना.”
“अरे, यह कैसी बातें कर रहे हो, हिंसा जैसा पाप नहीं है कोई इस दुनिया में. दूसरों को मारनेवाला खुद नरक में जाता है. मैं तुम्हें न्याय देने में तो मदद करूंगी लेकिन झूठे को खाने की बात है तो वह मुझसे नहीं हो पाएगा. मैं एक बात तुम लोगों को कानों में कहना चाहती हूं, ज़रा मेरे करीब आओ तो.”
खरगोश और तीतर खुश हो गए कि अब फैसला होकर रहेगा और उसके बिलकुल करीब गए. बस फिर क्या था, करीब आए खरगोश को पंजे में पकड़कर मुंह से तीतर को भी उस चालाक बिल्ली बिल्ली ने नोंच लिया और दोनों का काम तमाम कर दिया.
सीख: अपने शत्रु को पहचानते हुए भी उस पर विश्वास करना बहुत बड़ी बेवक़फ़ी है. तीतर और खरगोश इसी विश्वास और बेवक़फ़ी के चलते को अपनी जान गवांनी पड़ी.
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पंचतंत्र की कहानी: तीन काम (Panchtantra Story:Three Tasks)
आज के हाईटेक युग में जब बच्चों को हर जानकारी कंप्यूटर/इंटरनेट पर ही मिल रही है, उनका पैरेंट्स से जुड़ाव कम हो रहा है. साथ ही उन्हें मोरल वैल्यूज़ (Moral Values) भी पता नहीं चल पाती, ऐसे में बेड टाइम स्टोरीज़ (Bed Time Stories) जैसे- पंचतंत्र (Panchtantra) की सीख देने वाली पॉप्युलर कहानियों के ज़रिए न स़िर्फ आपकी बच्चे से बॉन्डिंग स्ट्रॉन्ग होगी, बल्कि उन्हें अच्छी बातें भी पता चलती हैं.
एक बार दो गरीब दोस्त एक सेठ के पास काम मांगने जाते हैं. कंजूस सेठ उन्हें फ़ौरन काम पर रख लेता है और पूरे साल काम करने पर साल के अंत में दोनों को 12-12 स्वर्ण मुद्राएं देने का वचन देता है. साथ ही सेठ यह भी शर्त रखता है कि अगर उन्होंने काम ठीक से नहीं किया या किसी आदेश का पालन ठीक से नहीं किया, तो उस एक गलती के बदले 4 सुवर्ण मुद्राएं वो उनकी तनख्वाह से काट लेगा.
दोनों दोस्त सेठ की शर्त मान जाते हैं और पूरे साल कड़ी मेहनत करते हैं. दौड़-दौड़कर सारे काम करते और सेठ के हर आदेश का पालन करते. इस तरह पूरा साल बीत गया. दोनों सेठ के पास 12-12 स्वर्ण मुद्राएं मांगने जाते हैं, पर सेठ बोलता है कि अभी साल का आखरी दिन पूरा नहीं हुआ है और मुझे तुम दोनों से आज ही तीन और काम करवाने हैं. दोनों हैरान थे, पर क्या कर सकते थे. सेठ ने तीन काम बताने शुरू किए-
पहला काम: छोटी सुराही में बड़ी सुराही डालकर दिखाओ.
दूसरा काम: दुकान में पड़े गीले अनाज को बिना बाहर निकाले सुखाओ.
तीसरा काम: मेरे सर का सही-सही वज़न बताओ.
यह तो असंभव है… उन दोनों ने सेठ से कहा.
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सेठ की चालकी काम कर गई, उसने कहा कि ठीक है तो फिर यहां से चले जाओ. इन तीन कामों को ना कर पाने के कारण मैं हर एक काम के लिए 4 स्वर्ण मुद्राएं काट रहा हूं. मक्कार सेठ की इस धोखाधड़ी से उदास हो कर दोनों दोस्त बोझिल मन से जाने लगते हैं. उन्हें रास्ते में एक चतुर पंडित मिलता है. उनके ऐसे चेहरे देखकर पंडित उनसे उनकी उदासी का कारण पूछता है और पूरी बात समझने के बाद उन्हें वापस सेठ पास भेजता है.
दोनों सेठ के पास पहुंचकर बोलते हैं, सेठजी अभी आधा दिन बाकी है, हम आपके तीनों काम कर देते हैं.
सेठ हैरान था, पर सोचा कि उसका क्या बिगड़ेगा. वो तीनों दुकान में जाते हैं. दोनों दोस्त अपना काम शुरू कर देते हैं. वो बड़ी सुराही को तोड़-तोड़कर उसके टुकड़े कर देते हैं और उन्हें छोटी के अन्दर डाल देते हैं. सेठ मन मसोसकर रह जाता है, पर कुछ कर नहीं पाता है.
इसके बाद दोनों गीले अनाज को दुकान के अन्दर फैला देते हैं, तो सेठ बोल पड़ता है कि स़िर्फ फैलाने से ये कैसे सूखेगा? इसके लिए तो धूप और हवा चाहिए, सेठ मुस्कुराते हुए कहता है.
देखते जाइए, ऐसा कहते हुए दोनों मित्र हथौड़ा उठा आगे बढ़ जाते हैं और दुकान की दीवार और छत तोड़ डालते हैं, जिससे वहां हवा और धूप दोनों आने लगती है.
क्रोधित मित्रों को सेठ और उसके आदमी देखते रह जाते हैं, पर किसी की भी उन्हें रोकने की हिम्मत नहीं होती.
अब आख़िरी काम बचा होता है, दोनों मित्र तलवार लेकर सेठ के सामने खड़े हो जाते हैं और कहते हैं, मालिक आपके सिर का सही-सही वज़न तौलने के लिए इसे धड़ से अलग करना होगा. कृपया बिना हिले स्थिर खड़े रहें.
अब सेठ को समझ आ जाता है कि वह ग़रीबों का हक इस तरह से नहीं मार सकता और बिना आनाकानी के वह उन दोनों को 12-12 स्वर्ण मुद्राएं सौंप देता है.
सीख: बेईमानी का फल हमेशा बुरा ही होता है.
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पंचतंत्र की कहानी: प्यासी चींटी और कबूतर (Panchtantra Ki Kahani: Ant And Dove)
एक समय की बात है, गर्मियों के दिनों में एक चींटी बहुत प्यासी थी और वो अपनी प्यास बुझाने के लिए पानी की तलाश कर रही थी. कुछ देर आस –पास तलाश करने के बाद वह एक नदी के पास पहुंची.
सामने पानी था, लेकिन पानी पीने के लिए वह सीधे नदी में नहीं जा सकती थी, इसलिए वह एक छोटे से पत्थर के ऊपर चढ़ गई. लेकिन जैसे ही उसने पानी पीने की कोशिश की, वह गिर कर नदी में जा गिरी.
उसी नदी के किनारे एक पेड़ था, जिसकी टहनी पर एक कबूतर बैठा था. उसने चींटी को पानी में गिरते हुए देख लिया. कबूतर को उस पर तरस आया और उसने चींटी को बचाने की कोशिश की. कबूतर ने तेजी से पेड़ से एक पत्ता तोड़कर नदी में संघर्ष कर रही चींटी के पास फेंक दिया.
चींटी उस पत्ते के पास पहुंची और उस पत्ते में चढ़ गयी. थोड़ी देर बाद, पत्ता तैरता हुआ नदी किनारे सूखे आ गया.. चींटी ने पत्ते में से छलांग लगाई और नीचे उतर गई. चींटी ने पेड़ की तरफ देखा और कबूतर को उसकी जान बचाने के लिए धन्यवाद किया.
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इस घटना के कुछ दिनों बाद, एक दिन.. एक शिकारी उस नदी किनारे पहुंचा और उस कबूतर के घोंसले के नजदीक ही उसने जाल लगा दिया और उसमें दाना डाल दिया. वह थोड़ी ही दूर जाकर छुप गया और उम्मीद करने लगा कि वह कबूतर को पकड़ लेगा. कबूतर ने जैसे ही जमीन में दाना देखा वह उसे खाने के लिए नीचे आया और शिकारी के जाल में फंस गया.
वो चींटी वहीं पास में थी और उसने कबूतर को जाल में फंसा हुआ देख लिया. कबूतर उस जाल में से निकलने में असमर्थ था. शिकारी ने कबूतर का जाल पकड़ा और चलने लगा. तभी चींटी ने कबूतर की जान बचाने की सोची और उसने तेजी से जाकर शिकारी के पैर में जोर से काट लिया.
तेज दर्द के कारण शिकारी ने उस जाल को छोड़ दिया और अपने पैर को देखने लगा. कबूतर को जाल से निकलने का यह मौका मिल गया और वह तेजी से जाल से निकल कर उड़ गया.
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सीख: कर भला, हो भला. हम जब भी दूसरों का भला करते हैं, तो उसका फल हमें जरुर मिलता है. कबूतर ने चींटी की मदद की थी और उसी मदद के फलस्वरूप मुश्किल समय में चींटी ने कबूतर की जान बचाई. इसलिए कभी भी किसी की सहायता करने या अच्छा करने से पीछे न हटें। जब भी मौका मिले, दूसरो की बिना किसी स्वार्थ के मदद करें.
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मिथिला के जंगलों में बहुत समय पहले एक सियार रहता था. वह बहुत आलसी था. पेट भरने के लिए खरगोश व चूहों का पीछा करना व उनका शिकार करना उसे बड़ा भारी काम लगता था. शिकार करने में मेहनत तो करनी ही पड़ती है. सियार का दिमाग़ शैतानी था. वह यही तिकड़म लगाता रहता कि कैसे ऐसी जुगत लगाई जाए कि बिना हाथ-पैर हिलाए भोजन मिलता रहे, बस खाया और सो गए. एक दिन इसी सोच में डूबा वह सियार एक झाड़ी में दुबका बैठा था.
बाहर चूहों की टोली उछल-कूद व भाग-दौड करने में लगी थी. उनमें एक मोटा-सा चूहा था, जिसे दूसरे चूहे “सरदार” कहकर बुला रहे थे और उसका आदेश मान रहे थे. सियार उन्हें देखता रहा. उसके मुंह से लार टपकती रही. फिर उसके दिमाग़ में एक तरकीब आई.
जब चूहे वहां से गए तो उसने दबे पांव उनका पीछा किया. कुछ ही दूरी पर चूहों के बिल थे. सियार वापस लौटा. दूसरे दिन प्रातः ही वह उन चूहों के बिल के पास जाकर एक टांग पर खड़ा हो गया. उसका मुंह उगते सूरज की ओर था. आंखें बंद थी.
चूहे बिलों से निकले तो सियार को इस अनोखी मुद्रा में खड़े देखकर हैरान रह गए. एक चूहे ने ज़रा सियार के निकट जाकर पूछा, “सियार मामा, तुम इस प्रकार एक टांग पर क्यों खड़े हो?”
सियार ने एक आंख खोलकर बोला, “मूर्ख, तूने मेरे बारे में नहीं सुना कभी? मैं चारों टांगें नीचे टिका दूंगा तो धरती मेरा बोझ नहीं संभाल पाएगी. यह डोल जाएगी. साथ ही तुम सब नष्ट हो जाओगे. तुम्हारे ही कल्याण के लिए मुझे एक टांग पर खड़े रहना पड़ता है.”
चूहों में खुसर-पुसर हुई. वे सियार के निकट आकर खड़े हो गए. चूहों के सरदार ने कहा, “हे महान सियार, हमें अपने बारे में कुछ बताइए.”
सियार ने ढोंग रचा. “मैंने सैकड़ों वर्ष हिमालय पर्वत पर एक टांग पर खड़े होकर तपस्या की है. मेरी तपस्या समाप्त होने पर सभी देवताओं ने मुझ पर फूलों की वर्षा की. भगवान ने प्रकट होकर कहा कि मेरे तप से मेरा भार इतना हो गया हैं कि मैं चारों पैर धरती पर रखूं तो धरती गिरती हुई ब्रह्मांड को फोड़कर दूसरी ओर निकल जाएगी. धरती मेरी कृपा पर ही टिकी रहेगी. तबसे मैं एक टांग पर ही खड़ा हूं. मैं नहीं चाहता कि मेरे कारण दूसरे जीवों को कष्ट हो.”
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सारे चूहों का समूह महान तपस्वी सियार के सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो गया. एक चूहे ने पूछा, “तपस्वी मामा, आपने अपना मुंह सूरज की ओर क्यों कर रखा हैं?”
सियार ने उत्तर दिया, “सूर्य की पूजा के लिए.”
“और आपका मुंह क्यों खुला हैं?” दूसरे चूहे ने कहा.
“हवा खाने के लिए! मैं केवल हवा खाकर ज़िंदा रहता हूं. मुझे खाना खाने की ज़रूरत नहीं पड़ती. मेरे तप का बल हवा को ही पेट में भांति-भांति के पकवानों में बदल देता है.” सियार बोला.
उसकी इस बात को सुनकर चूहों पर ज़बर्दस्त प्रभाव पड़ा. अब सियार की ओर से उनका सारा भय जाता रहा. वे उसके और निकट आ गए. अपनी बात का असर चूहों पर होता देख मक्कार सियार दिल ही दिल में ख़ूब हंसा. अब चूहे महातपस्वी सियार के भक्त बन गए. सियार एक टांग पर खड़ा रहता और चूहे उसके चारों ओर बैठकर ढोलक, मंजीरे, खड़ताल और चिमटे लेकर उसके भजन गाते.
सियार सियारम् भजनम् भजनम.
भजन कीर्तन समाप्त होने के बाद चूहों की टोलियां भक्ति रस में डूबकर अपने बिलों में घुसने लगती तो सियार सबसे बाद के तीन-चार चूहों को दबोचकर खा जाता. फिर रात भर आराम करता, सोता और डकारें लेता.
सुबह होते ही फिर वह चूहों के बिलों के पास आकर एक टांग पर खड़ा हो जाता और अपना नाटक चालू रखता.
चूहों की संख्या कम होने लगी. चूहों के सरदार की नज़र से यह बात छिपी नहीं रही. एक दिन सरदार ने सियार से पूछ ही लिया, “हे महात्मा सियार, मेरी टोली के चूहे मुझे कम होते नज़र आ रहे हैं. ऐसा क्यों हो रहा है?”
सियार ने आर्शीवाद की मुद्रा में हाथ उठाया, “हे चतुर मूषक, यह तो होना ही था. जो सच्चे मन से मेरी भक्ति करेगा, वह सशरीर बैकुण्ठ को जाएगा. बहुत-से चूहे भक्ति का फल पा रहे हैं.”
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चूहों के सरदार ने देखा कि सियार मोटा हो गया है. कहीं उसका पेट ही तो वह बैकुण्ठ लोक नहीं हैं, जहां चूहे जा रहे हैं?
चूहों के सरदार ने बाकी बचे चूहों को चेताया और स्वयं उसने दूसरे दिन सबसे बाद में बिल में घुसने का निश्चय किया. भजन समाप्त होने के बाद चूहे बिलों में घुसे. सियार ने सबसे अंत के चूहे को दबोचना चाहा.
चूहों का सरदार पहले ही चौकन्ना था. वह दांव मारकर सियार का पंजा बचा गया. असलियत का पता चलते ही वह उछलकर सियार की गर्दन पर चढ़ गया और उसने बाकी चूहों को हमला करने के लिए कहा. साथ ही उसने अपने दांत सियार की गर्दन में गड़ा दिए. बाकी चूहे भी सियार पर झपटे और सबने कुछ ही देर में महात्मा सियार को कंकाल सियार बना दिया. केवल उसकी हड्डियों का पंजर बचा रह गया.
सीख- ढोंग कुछ ही दिन चलता है, फिर ढोंगी को अपनी करनी का फल मिलता ही है.