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Akshay kumar as a Padman
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खिलाड़ी कुमार यानी अक्षय ना सिर्फ़ अपनी समाजिक फ़िल्मों के लिए सराहे जाते हैं बल्कि मुश्किल समय में हमेशा देश का साथ देने के लिए भी जाने जाते हैं.
पैडमैन जैसी फ़िल्म में लोगों को अक्षय कुमार ने मेंस्ट्रुअल हाइजीन के बारे में जागरूक किया था और अब लॉकडाउन के इस मुश्किल दौर में भी वो रियल लाइफ में पैडमैन का काम ही कर रहे हैं, जी हां, वो दिहाड़ी मज़दूर महिलाओं के लिए सैनिटरी पैड्स की व्यवस्था के कैंपेन को सहयोग करके इस नेक काम में जुटे हैं. अक्षय ने अपने ट्वीटर हैंडल पे इसका उल्लेख किया है और इस मुहिम को सहायोग देने के लिए लिखा है कि एक नेक काम में आपके सहयोग की ज़रूरत है. कोरोना में पीरियड्स नहीं रुक जाते इसलिए मुंबई की ज़रूरतमंद महिलाओं को पैड्स उपलब्ध कराने में सहयोग करें. हर डोनेशन मायने रखता है.
दरअसल यह कैंपेन समर्पण नाम की संस्था की ओर से चल रहा है जिसे आगे बढ़ाने व अधिक से अधिक मदद के लिए अक्षय कुमार आगे आए और इस कैंपेन के साथ जुड़ गए.
A great cause needs your support. Covid doesn’t stop periods, help provide sanitary pads to underprivileged women across Mumbai. Every donation counts : https://t.co/gty1PeX3CT https://t.co/CDgPkoGH82
— Akshay Kumar (@akshaykumar) May 21, 2020

‘टॉयलेट- एक प्रेम कथा’ में अपनी जबरदस्त अदायगी से दर्शकों के दिलों में अपनी गहरी छाप छोड़नेवाले अक्षय कुमार (Akshay Kumar) की फिल्म ‘पैडमैन’ (Padman) सिनेमाघरों में रिलीज़ हो गई है. अक्षय की यह फिल्म महिलाओं के मासिक धर्म के मुद्दे पर आधारित है जिसपर बात करने में आज भी अधिकांश महिलाएं शर्म से पानी-पानी हो जाती हैं. ख़ासकर भारत के मध्यम वर्गीय और गरीब परिवारों की महिलाओं के लिए शर्मों-हया ही उनका सबसे बड़ा धर्म है. समाज के ऐसे तबकों की महिलाएं आज भी मासिक धर्म यानि पीरियड्स के बारे में खुलकर कुछ भी बोलने से शर्माती हैं.
देश की अधिकांश महिलाओं को पीरियड्स के पांच दिनों तक कठोर नियमों का पालन करना पड़ता है. पीरियड्स आते ही उन्हें घर के किसी कोने में ढ़केल दिया जाता है और उन्हें गंदगी में रहने को कहा जाता है जबकि सबसे ज्यादा केयर और साफ-सफाई की ज़रूरत महिलाओं को पीरियड्स के दौरान ही होती है.
पीरियड्स को लेकर बदल जाएगी आपकी सोच
लड़कियों और महिलाओं को पीरियड्स के दौरान किन-किन परेशानियों से गुज़रना पड़ता है और इस समस्या को फिल्म ‘पैडमैन’ में बेहद ही खूबसूरत अंदाज में दिखाने की कोशिश की गई है. हालांकि इस बात से हर कोई वाकिफ़ है कि निर्देशक आर बाल्की की फिल्म पैडमैन की कहानी तमिलनाडु के रहनेवाले अरुणाचलम मुरुगनाथम की ज़िंदगी से प्रेरित है, जिन्हें महिलाओं को सस्ते सैनिटरी पैड मुहैया कराने के लिए काफी ज़द्दोज़हद करनी पड़ी थी.
इस फिल्म में अक्षय कुमार अरुणाचलम मुरुगनाथम की भूमिका अदा कर रहे हैं लेकिन फिल्म में अक्षय का नाम लक्ष्मीकांत चौहान है और उनकी पत्नी गायत्री का किरदार राधिका आप्टे ने निभाया है. मध्यप्रदेश की पृष्टठभूमि पर बसी इस फिल्म में बताया गया है कि आज भी देश की महज़ 12 फीसदी महिलाएं ही सैनिटरी पैड का इस्तेमाल करती हैं, जबकि अधिकांश महिलाएं आज भी पीरियड्स के दौरान गंदा कपड़ा, राख, छाल जैसी चीजों का इस्तेमाल करती हैं जिसकी वजह से उन्हें कई बीमारियों का खतरा रहता है.
अपनी पत्नी की इस परेशानी को देख लक्ष्मीकांत अपने परिवार और समाज से लड़ता है. इतना ही नहीं काफी मशक्कत के बाद वो एक ऐसी मशीन बनाता है जिससे महिलाओं को सस्ते पैड दिए जा सकें. महिलाओं को सस्ते पैड मुहैया कराने की इस मुहिम में दिल्ली की एमबीए स्टूडेंट परी यानि सोनम कपूर उनका साथ देती हैं.
फिल्म के कई सीन और कई डायलॉग झकझोरने वाले हैं. फिल्म में समाज की कुरीतियां, शर्म, पीरियड्स को लेकर गंदी सोच और संवेदनाओं को भर- भर कर दिखाया गया है. समाज को अलग हटकर फिल्म देनेवाले आर बाल्की ने महिलाओं के मासिक धर्म के मुद्दे को खूब भुनाने की कोशिश की है. बेशक मासिक धर्म के प्रति लोगों की धारणाओं को बदलने के लिए आज के दौर की सबसे ज़रूरी फिल्म है पैडमैन. इस फिल्म में सोनम कपूर और राधिका आप्टे की एक्टिंग भी काफी सराहनीय है.
बात करें फिल्म की ख़़ामियों की तो फिल्म की लंबाई थोड़ी ज्यादा है खासकर फिल्म का पहला हिस्सा थोड़ा लंबा लगता है और लक्ष्मीकांत यानि अक्षय को समाज से जो गालियां मिलती हैं उसे भी कुछ ज्यादा ही दिखाया गया है. आपको बता दें कि पैडमैन मासिक धर्म पर बनी पहली फिल्म नहीं है इससे पहले दो और फिल्में बन चुकी हैं. पहली फिल्म का नाम ‘फुल्लू’ है जिसमें एक पति अपनी पत्नी के लिए पैड बनाने निकला था. दूसरी फिल्म पैडमैन से करीब ढाई साल पहले ‘आईपैड’ नाम से बन चुकी है लेकिन किसी कारण से वो रिलीज़ नहीं हो पाई.
बहरहाल सच्ची कहानी पर आधारित फिल्म पैडमैन के जरिए निर्देशक आर. बाल्की और अक्षय कुमार ने पीरियड्स के दौरान साफ-सफाई के प्रति लोगों को जागरूक करने की दमदार पहल की है और यह कहना गलत नहीं होगा कि पीरियड्स को गंदी चीज़ कहनेवालों की सोच को बदलने में यह फिल्म काफी मददगार साबित हो सकती है.
रेटिंग- 3.5/5
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