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Geeta Dutt
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गुरु दत्त की जिंदगी पर जब भी बात की जाएगी उसमें उनकी पत्नी गीता रॉय का नाम जरूर आएगा. जितनी महत्वपूर्ण और बेसब्र करने वाली कहानी गुरु दत्त की है, उतनी ही गीता दत्त की भी. उनके जीवन की हाइलाइट्स भी ऐसी ही रहीं. आज गीता दत्त की पुण्यतिथि पर बात उन्हीं की.
रेशमी आवाज़ की मलिका
जादुई आवाज़ की मलिका गीता दत्त ने बहुत कम उम्र में शोहरत की उस बुलंदी को छू लिया था, जहां लोग पूरा जीवन साधना करने के बाद भी नहीं पहुंच पाते. यही वजह है कि छह दशक बाद आज भी संगीत प्रेमी उनके गाने दिल से गुनगुनाते हैं. सबसे बड़ी बात गीता दत्त ने प्लेबैक सिंगिंग में उस दौर में अपना स्थान बनाया जब लता मंगेशकर शिखर पर पहुंच चुकी थीं और सुरैया, शमशाद बेग़म और नूरजहां जैसी गायिकाओं की भी तूती बोलती थी.
कैफ़ी आज़मी ने कहा था, गीता की आवाज़ में बंगाल का नमक और दर्द
गीता दत्त की आवाज़ गीतकारों-संगीतकारों को कितनी भाती थी, इसका उदाहरण यह है कि उनके लिए ‘वक़्त ने किया क्या हसीं सितम’ लिखनेवाले मशहूर शायर कैफी आज़मी ने कहा था कि उनके आवाज में बंगाल का नमक और दर्द दोनों है. इसी तरह ओपी नैय्यर भी मानते थे कि गीता की आवाज़ में शहद की मिठास है तो मधुमक्खी के डंक का दर्द भी है.
कैसे बनी गायिका?
गीता घोष रॉयचौधरी अमीर बंगाली जमींदार परिवार से ताल्लुक रखती थीं. उन्हें बचपन से ही गायन का शौक था. वह घर में काम करते हुए गुनगुनाती रहती थीं. एक दिन उनके म्यूज़िक कंपोज़र हनुमान प्रसाद गीता दत्त के घर के पास से गुजर रहे थे, तो उन्होंने गीता राय को कोई गाना गाते हुए सुना. गीता की आवाज़ में उन्हें एक अलग सा जादू लगा. बस उन्होंने उनके पिताजी से बात करके उन्हें गायन में प्रशिक्षित किया और महज 16 साल की उम्र में उन्हें अपनी फिल्म ‘भक्त प्रह्लाद’ (1946) में गाने का अवसर दिया. इसके बाद गीता दत्त ने कुछ और फिल्मों में गाना गाया, लेकिन उनको पहचान मिली फिल्म ‘दो भाई’ में जब एसडी बर्मन ने उनसे ‘मेरा सुंदर सपना टूट गया’ गाया गवाया. यह गाना फिल्म से पहले ही सुपरहिट हो गया. इस गीत की सफलता गीता दत्त की पहचान बन गई। उसके बाद तो गीता ने पीछे मुड़कर ही नहीं देखा. इसके बाद उन्होंने हिंदी सिनेमा के लिए कई यादगार गाने गाए.
गुरुदत्त से पहली मुलाकात, प्यार और शादी
गुरु दत्त की बतौर डायरेक्टर पहली फिल्म ‘बाज़ी’ (1951) के एक गाने की रिकॉर्डिंग हो रही थी. गाना था “तदबीर से बिगड़ी हुई तक़दीर बना ले’. गायिका थीं गीता दत्त. गीता तब तक इतनी ऊंचाई पर पहुंच चुकी थीं कि गुरु दत उनके सामने कुछ भी नहीं थीं. गीता स्टार सिंगर थीं. तब तक वे कई भाषाओं में 400-500 या ज्यादा गाने गा चुकी थीं. भव्य लिमोज़ीन में घूमती थीं. समृद्ध जमींदार परिवार से ताल्लुक रखती थीं और गुरु दत्त का बड़ा सा परिवार और छोटा सा घर… आधे से ज़्यादा समय तो उनका फाकामस्ती में ही गुजरता, लेकिन फिर भी दोनों में प्यार हो गया था… जोरदार प्यार. इस प्यार का सिलसिला 3 सालों तक चला और फिर दोनों ने बंगाली रीत रिवाजों से शादी कर ली. इसके बाद खार, मुम्बई के इलाके में एक किराये के फ्लैट में गीता-गुरु दत्त रहने लगे. कुछ दिन तो सब ठीक ठाक रहा, लेकिन फिर उन दोनों में अक्सर झगड़े होने लगे. इस बीच दोनों के तीन बच्चे भी हुए.
गीता-गुरुदत्त में अक्सर झगड़े होने लगे
गीता के साथ दिक्कत ये थी कि वो गुरु दत्त को लेकर बहुत पज़ेसिव थी. किसी भी वैवाहिक जीवन में ये बहुत खराब स्थिति होती है. डायरेक्टर और एक्टर जैसे क्रिएटिव लोग कई एक्ट्रेस के साथ काम करते हैं. उन्हें परदे पर प्यार करते दिखना होता है और उसे असली प्यार जैसे दिखाना होता है. गीता को गुरु दत्त के साथ काम करने वाली हर एक्ट्रेस पर शक़ होने लगा था. वो उन पर हर वक्त नजर रखती थीं. दोनों के बीच लगातार झगड़े होते रहते थे. और जब भी झगड़ा होता, वो बच्चों को लेकर अपनी मां के घर चली जाती थी. गुरुदत्त हाथ पैर जोड़ते कि घर लौट आओ तब वो घर लौटतीं. और अगर गीता न मानतीं तो गुरु दत्त डिप्रेशन में चले जाते थे. ऐसा कई बार हुआ और अक्सर ही होता था.
पाबंदियां गुरुदत्त ने भी लगाईं
कहा जाता है कि शादी के बाद गुरु दत्त ने भी गीता पर पाबंदियां लगा दी थीं. वह चाहते थे गीता केवल उनकी फ़िल्म में ही गाए, लिहाज़ा, उनके दूसरे बैनर्स के लिए गाना गाने पर रोक लगा दिया. रिकॉर्डिंग स्टूडियो से घर आने का समय मुकर्रर कर दिया. काम के प्रति समर्पित गीता पहले तो इसके लिए राजी नहीं हुईं, लेकिन बाद में किस्मत से समझौता करना ही बेहतर समझा. पारिवारिक जीवन को बेहतर बनाने के लिए उन्होंने गायन को दूसरी वरीयता पर रख दिया. कहा जाता है इस कारण गीता डिप्रेशन में रहने लगीं. लिहाज़ा, धीरे-धीरे संगीतकारों ने उनसे किनारा करना शुरू कर दिया. इतना सब करने के बावजूद वे गुरु दत्त के साथ अपनी गृहस्थी संभालने में नाकाम रहीं.
सुंदर सपना टूट गया…
इधर गुरु दत्त और वहीदा रहमान एक के बाद एक फिल्म में साथ काम कर रहे थे और उनके अफेयर के चर्चे होने लगे थे. गीता घर पर बेकार बैठी थीं. उनकी भी महत्वाकांक्षाएं थीं. उन्होंने सिंगिंग के अलावा एक्टिंग में भी आगे बढ़ने की इच्छा जताई, तो गुरु दत्त ने उन्हें लेक्ट ‘गौरी’ फिल्म शुरू की, लेकिन गुरु दत्त ने दो दिन में ही शूटिंग बंद कर दी. कारण बताया कि गीता का बर्ताव ठीक नहीं है और वे रिहर्सल पर नहीं आती हैं.
गीता दत्त ने खुद को नशे में डुबो लिया
गुरु दत्त का नाम वहीदा से जुड़ने का सदमा गीता झेल नहीं सकीं और शराब पीने लगीं. इस तरह शादी और शराब ने गीता के कैरियर को ग्रहण लगा दिया. उनके विवाहित ज़िंदगी मे दरार आ गई. वहीदा के साथ गुरु दत्त के रोमांस की ख़बरों को गीता सहन न कर सकीं और उनसे अलग रहने का निर्णय कर लिया. इसके बाद वहीदा ने भी गुरुदत्त से दूरी बना ली. गीता और वहीदा दोनों के जीवन से दूर हो जाने से गुरुदत्त टूट से गए और 1964 में मौत को गले लगा लिया. गुरुदत्त की मौत से गीता दत्त को गहरा सदमा पहुंचा और उन्होंने भी अपने आप को नशे में डुबो दिया और जिसके बाद वे बीमार रहने लगीं.
प्यार और शराब ने ली जान
सिर्फ़ 42 साल की उम्र जीने वाली गीता दत्त ने अपनी जिंदगी में स्टारडम, शोहरत और अकेलापन सब देखा. कहा जाता है कि वहीदा रहमान के साथ गुरु दत्त के अफेयर की ख़बरों ने गीता दत्त को तोड़ दिया था. गुरु दत्त की मौत से वह पूरी तरह टूट गईं. घर चलाने के लिए उनको फिर से काम करना पड़ा. 1964 से 1967 के बीच उन्होंने बमुश्किल दो दर्जन गाने गाए होंगे, वह भी लो बजट की फिल्मों के थे. उनसे हर किसी ने मुंह मोड़ लिया. आजीविका चलाने के लिए उन्हें स्टेज शो और रेडियो जिंगल्स करने पड़े. यह उस प्लेबैक सिंगर की दास्तां थी, जो कभी हर फिल्मकार और संगीतकार की चहेती हुआ करती थी. गीता दत्त ये बर्दाश्त नहीं कर सकीं और बहुत अधिक शराब पीने लगीं. 1971 में सिर्फ 42 साल की उम्र में गीता ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया.
गीता दत्त ने फिल्म जगत में न तो बहुत अधिक वक़्त बिताया और न ही बहुत ज़्यादा गाने गाए. मतलब स्वर सामग्री लता मंगेशकर और आशा भोसले की तुलना में तो उनके गायन का सफर बहुत छोटा रहा. इसके बावजूद इस छोटे से सफर में ही गीता दत्त ने अपनी आवाज़ से संगीत प्रेमियों पर प्रभाव छोड़ा, उसने उन्हें उनके दिलों में अमर बना दिया.
गीता दत्त के कुछ सुपरहिट गाने
1. वक्त ने किया क्या हसीं सितम
तुम रहे न तुम हम रहे न हम
2. मेरा सुंदर सपना बीत गया
3. मेरी जां मुझे जां न कहो मेरी जां
4. तदबीर से बिगड़ी हुई तक़दीर बना ले
5. जा जा जा जा बेवफा
6. पिया ऐसो जिया में समाय गयो रे
कि मैं तन मन की सुध बुध गवा बैठी
7. ठंडी हवा काली घटा आ ही गई झूम के
8. जाने क्या तूने कही, जाने क्या मैंने सुनी
9. ये लो मैं हारी पिया हुई तेरी जीत रे
काहे का झगड़ा बालम नई नई प्रीत रे
10. काली घटा छाए मोरा जिया तरसाए
11. न जाओ सैयां छुड़ा के बैयां
12. हम आप की आंखों में इस दिल को बसा दें तो
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कुछ लोग एक अजीब सी बेचैनी में जीते हैं और इन्हीं बेचैनियों में पागलपन भरा कदम उठा लेते हैं. वे जिंदगी भर जैसे किसी तलाश में भटकते रहते हैं. कोई भी चीज उन्हें सुकून नहीं देती. कई बार यह बेचैनी उनके साथ ही जाती है और कई बार उन्हें अपने साथ लेकर ही.
गुरु दत्त भी जीवनभर ऐसी ही बेचैनी के साथ जीते रहे और इसी बेचैनी के साथ इस दुनिया को अलविदा भी कह दिया, जिसने 39 साल की उम्र में ही उनकी जान ले ली. जिसके बारे में आज तक ठीक से कहना मुश्किल है कि वह सचमुच आत्महत्या ही था या कुछ और.
उनकी खामोश नज़रों में दर्द ही नज़र आता
महलों ये तख्तों ये ताजों की दुनिया, ये दौलत के भूखे रवाजों की दुनिया, ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है… आज तक ये गाना हर किसी की ज़ुबान पर गाहे बगाहे आ ही जाता है. इतने दर्द भरे गीत के पीछे एक आदमी का दर्द था, जिसे बॉलीवुड ने अपनी आंखों से देखा और महसूस किया था. वो था गुरुदत्त का दर्द. शायद यही कारण था कि गुरुदत्त ने दो बार सुसाइड की असफल कोशिशें की, लेकिन फिर एक बार तीसरी बार में वो कामयाब हो गए. दर्द में डूबे गुरुदत्त ने अपना जीवन, शराब के नशे में डुबो लिया था. नींद की गोलियां, उनकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी का बेशुमार हिस्सा बन गई थीं.
जब उन्हें गीता रॉय से प्यार हुआ
जब गुरुदत्त ‘बाज़ी’ बना रहे थे, तो फ़िल्म के ही सेट पर उनकी मुलाकात गायिका गीता रॉय से हुई और उन्हें उनसे प्यार हो गया. उस समय गीता रॉय एक गायिका के रूप में मशहूर हो चुकी थीं और अक्सर गुरुदत्त से मिलने उनके माटुंगा वाले फ़्लैट पर आया करती थीं. सरल इतनी थीं कि रसोई में सब्ज़ी काटने बैठ जाती थीं.
उस दौरान राज खोसला गुरुदत्त के असिस्टेंट हुआ करते थे. उन्हें गाने का बहुत शौक था. गुरुदत्त के यहां होने वाली बैठकों में राज खोसला और गीता रॉय डुएट गाया करते थे और पूरा दत्त परिवार बैठ कर उनके गाने सुनता था. दोनों एक दूसरे को प्रेमपत्र भी लिखा करते थे, जिन्हें गुरुदत्त की छोटी बहन ललिता लाजमी एक दूसरे तक पहुंचाती थीं. तीन साल तक प्यार करने के बाद आखिरकार 1953 में गुरुदत्त और गीता रॉय विवाह बंधन में बंध गए.
पजेसिव गुरुदत्त ने गीता दत्त पर कई पाबंदियां लगा दीं
कहा जाता है कि गुरुदत्त इमोशनल होने के साथ साथ ओवर पजेसिव भी थे, जिन्हें न सुनना कतई पसंद नहीं था. कहते हैं शादी के बाद गुरुदत्त ने गीता पर बाहर की फिल्मों पर गाने पर पाबंदी लगा दी, इसके बावजूद चोरी चोरी गीता दूसरे बैनर्स के लिए गाती रहीं. फिर भी दोनों में सब ठीक ठाक चलता रहा और उनके तीन बच्चे भी हुए, जिनसे गुरुदत्त बेशुमार प्यार करते थे. दोनों की जिंदगी में दिक्कतें तब आने लगीं जब मशहूर एक्ट्रेस वहीदा रहमान की एंट्री हुई. ‘प्यासा’ फिल्म के दौरान वहीदा रहमान से गुरुदत्त का नाम जुड़ने लगा, जिसके चलते दोनों में दूरियां बढ़ने लगीं और विवाद इतना बढ़ा कि गीता अपने बच्चों को लेकर मायके चली गईं.
वहीदा रहमान से बढ़ीं नज़दीकियां
बेहद ही खूबसूरत शख्सियत के मालिक गुरुदत्त की लाइफ का एक कड़वा सच यह भी था कि वो वहीदा रहमान से बेइंतहा मोहब्बत भी करने लगे थे. ऐसा कहा जाता है कि वहीदा और गुरुदत्त एक-दूसरे से बहुत प्यार करते थे लेकिन गुरुदत्त शादीशुदा थे और वहीदा की वजह से दोनों के रिश्ते बिगड़ रहे थे, ये देखकर वहीदा परेशान रहने लगीं, वो नहीं चाहती थीं कि उनकी वजह से उनका परिवार टूटे. और जब वहिदा को पता चला कि गुरुदत्त अपनी पत्नी से अलग हो गए और इसका कारण उन्हें माना जा रहा है तो उन्होंने गुरुदत्त से दूरियां बना लीं. उनके ही एक करीबी दोस्त के अनुसार उन्होंने इसलिए अपने कदम पीछे खींच लिए थे कि उन्हें एहसास हो चुका था कि गुरुदत्त की जिन्दगी में गीता दत्त की जगह कोई नहीं ले सकता. उन्हें लगा कि वे पीछे लौट जाएंगी और सब सुधर जाएगा. पर ऐसा हो न सका.
गीता गुरुदत्त पर नज़र रखने लगीं
गुरुदत्त ज़्यादा समय स्टूडियो में बिताने लगे थे. गीता को उन पर शक हो गया था. वो उन पर नज़र रखतीं, उनका पीछा करतीं. एक बार तो गीता दत्त उनके करीबी दोस्त अबरार अल्वी के घर पहुंच गईं और उनसे वहीदा रहमान और गुरुदत्त के बारे में पूछताछ करने लगीं. वो नर्वस थीं, रो रही थीं. अल्वी साहब ने उन्हें समझाया कि गुरुदत्त सिर्फ़ फ़िल्म और काम से मुहब्बत करते हैं, बेफ़िक्र रहो. लेकिन गीता दत्त समझ ही नहीं पाईं.
जब वहीदा की चिट्ठी मिली कि मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती
इतना ही नहीं, दोनों के बीच शक़ इस हद तक बढ़ गया कि एक दिन गुरुदत्त को एक चिट्ठी मिली, जिसमें लिखा था कि, “मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती. अगर तुम मुझे चाहते हो तो आज शाम को साढ़े छह बजे मुझसे मिलने नरीमन प्वॉइंट आओ. तुम्हारी वहीदा.” जब गुरुदत्त ने ये चिट्ठी अपने दोस्त अबरार को दिखाई तो उन्होंने कहा कि मुझे नहीं लगता कि ये चिट्ठी वहीदा ने लिखी है. दोनों ने सच जानने की योजना बनाई. अबरार अपनी फ़िएट कार में नरीमन प्वॉइंट पहुंचे, तो देखा कि गीता दत्त अपनी एक दोस्त के साथ एक कार की पिछली सीट पर बैठी किसी को खोजने की कोशिश कर रही हैं. पास की बिल्डिंग से गुरुदत्त भी ये सारा नज़ारा देख रहे थे. घर पहुंच कर दोनों में इस बात पर ज़बरदस्त झगड़ा हुआ और दोनों के बीच बातचीत तक बंद हो गई.
दो बार आत्महत्या की कोशिश की
इधर पत्नी-बच्चे उन्हें छोड़कर जा चुके थे, उधर वहीदा ने भी उनका साथ छोड़ दिया. इस वजह से गुरुदत्त डिप्रेशन में रहने लगे… खुद को एकदम खामोश कर लिया उन्होंने. वह हमेशा आत्महत्या करने के बारे में सोचते रहते थे और दो बार आत्महत्या की कोशिश भी कर चुके थे. वे हमेशा गीता और अपने बच्चों को याद करते रहते थे. पहली बार आत्महत्या की कोशिश में तो गुरुदत्त बिल्कुल सुरक्षित बच गए, लेकिन जब दूसरी बार उन्होंने आत्महत्या करने की कोशिश की थी तो तीन दिन के लिए कोमा में चले गए थे. और वह जब कोमा से बाहर आए थे तो कहते हैं उन्होंने सबसे पहले जो नाम लिया था, वह ‘गीता’ था.
गुरु दत्त अक्सर मरने के तरीकों पर बातें करने लगे
अबरार अल्वी ने ही एक बार बताया था कि गुरुदत्त अक्सर मरने के तरीकों के बारे में बातें किया करते थे. एक बार गुरुदत्त ने उनसे कहा था, “नींद की गोलियों को उस तरह लेना चाहिए जैसे मां अपने बच्चे को गोलियां खिलाती है…पीस कर और फिर उसे पानी में घोल कर पी जाना चाहिए.” अबरार ने बताया कि उस समय उन्हें लगा वो मज़ाक में ये बातें कर रहे थे. उन्हें क्या पता था कि गुरुदत्त इस मज़ाक का अपने ही ऊपर परीक्षण कर लेंगे.
और आखिर हमेशा के लिए बिछड़ गए गुरुदत्त
एक तो गीता दत्त की वजह से वहीदा को वो प्रेमिका के रूप में अपना नहीं पाये और वहीदा रहमान के उनकी जिंदगी से निकल जाने के बाद भी गीता दत्त गुरु दत्त के घर वापस लौट आने की पुकार को अनसुना करती रहीं. ऐसे में गुरुदत्त डिप्रेशन में चले गए, बिल्कुल अकेले हो गए. गुरुदत्त के अकेले पड़ जाने का एक कारण यह भी था कि वे अति की सीमा तक ‘पजेसिव’ थे. अपनी बनाई कैद में लोगों को बांधकर रखते हुए वे यह भी भूल जाते थे कि सामने वाला भी उनकी ही तरह एक इंसान और कलाकार है. इसी दौरान उनकी फिल्म ‘कागज के फूल’ भी बुरी तरह फ्लॉप हो गयी. गुरूदत्त मन और धन दोनों से दिवालिया हो गये और बुरी तरह टूट गए और शराब व नींद की गोलियों को अपना साथी बना लिया.
ऐसा कहा जाता है कि जिस दिन गुरुदत्त ने दुनिया को अलविदा कहा उस दिन उन्होंने कुछ भी नहीं खाया था और शाम से ही शराब पी रहे थे. उन्होंने गीता को फोन किया और बच्चों से मिलने की इच्छा जताई, लेकिन गीता ने साफ इंकार कर दिया. गुरुदत्त ने गीता से कहा भी कि अगर आज बच्चों को नहीं भेजा तो मेरा मरा हुआ मुंह देखोगी, पर गीता ने उनकी बात नहीं मानी. कहते हैं उस रात गुरुदत्त सुबह पांच बजे तक शराब पीते रहे और सुबह अपने कमरे में मृत पाए गए. ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने पहले खूब शराब पी. उसके बाद ढेर सारी नींद की गोलियाँ खा लीं और यही उनकी मौत की वजह बनी.
इस तरह सामने वाले की आंखों के भावों को लगातार टोहता हुआ, छूता हुआ… उन्हें रुपहले परदे पर उतारता हुआ सिल्वर स्क्रीन का सबसे गोल्डन ख्व़ाब बहुत छोटी उम्र में हमेशा के लिए खामोश हो गया.