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पिछले कुछ दिनों से एक वीडीयो तेज़ी से वायरल हो रहा था जिसमें 30 साल की एक ज़िंदादिल लड़की कोरोना से ग्रसित होने के बाद भी लव यू ज़िंदगी गाने पर झूमती नज़र आई. उस वीडीयो ने बहुत से लोगों को प्रेरित किया, सभी को हौसला दिया. विदीयो के साफ़ देखा जा सकता था कि किस तरह ऑक्सीजन मास्क पहने वो लड़की ज़िंदगी के प्रति सकारात्मक है. वो हाथ हिलाकर सबको हौसला दे रही थी और खुद भी बेहद पॉज़िटिव नज़र आ रही थी. वो वीडीयो उसका इलाज कर रहे डॉक्टर ने ही ट्विटर पर शेयर किया था जिसमें उस लड़की के जज़्बे को सबने सलाम किया था, लेकिन दुखद खबर ये है कि ज़िंदगी से प्यार करनेवाली वो लड़की खुद कोरोना से हार गई!
उसका इलाज कर रही डॉ. मोनिका लांगेह ने वो वीडीयो शेयर किया था. डॉक्टर ने जानकारी दी थी कि वीडियो में दिख रही इस लड़की को अस्पताल में आईसीयू बेड नहीं मिल पाया था, इसलिए वो कोविड इमर्जेन्सी वॉर्ड में एडमिट थी. डॉ. मोनिका ने वीडीयो शेयर करते समय ट्वीट किया था- यह लड़की सिर्फ 30 साल की है. मगर इसे आईसीयू बेड नहीं मिल पाया, तो हम पिछले 10 दिनों से कोविड इमरजेंसी में ही इसका इलाज कर रहे हैं. ये एनआईवी सपोर्ट पर है. उसे रेमडेसिविर और प्लाज्मा थेरेपी भी दी है. ये एक बेहद मज़बूत लड़की है जिसकी इच्छाशक्ति भी बेहद मजबूत है, इसने कोई म्यूज़िक चलाने के लिए पूछा तो मैंने इजाज़त दे दी.
सीख: “उम्मीद का दामन कभी नहीं छोड़ना चाहिए’
She is just 30yrs old & She didn't get icu bed we managing her in the Covid emergency since last 10days.She is on NIVsupport,received remedesvir,plasmatherapy etc.She is a strong girl with strong will power asked me to play some music & I allowed her.
— Dr.Monika Langeh🇮🇳 (@drmonika_langeh) May 8, 2021
Lesson:"Never lose the Hope" pic.twitter.com/A3rMU7BjnG
लेकिन ज़िंदगी से इतना प्यार करनेवाली इस लड़की ने ज़िंदगी को अलविदा कह दिया. गुरुवार को इसकी सांसें थम गई जिसकी जानकारी डॉ. मोनिका ने ट्वीट करके दी- बेहद दुखद है… हमने इस बहादुर आत्मा को खो दिया. ॐ शांति… कृपया उसके परिवार और बच्चों के लिए प्रार्थना कीजिए कि वो इस दुख को सह सकें. डॉक्टर ने ट्विटर पर इससे पहले 10 मई को जानकारी दी थी कि इस ज़िंदादिल लड़की को ICU बेड मिल गया है, मगर उसकी हालत स्थिर नहीं थी और आखिरकार बाद में वह लड़की दुनिया छोड़ चली. कृपया इस बहादुर लड़की के लिए प्रार्थना करें. कभी कभी मैं खुद को इतना असहाय महसूस करती हूं. लेकिन ये सब ऊपरवाले के हाथ में है. हम क्या सोचते हैं और क्या प्लान करते हैं वो हमारे हाथ में नहीं है. छोटा बच्चा उसका घर में इंतज़ार कर रहा है, प्लीज़ प्रे करें!
I am very sorry..we lost the brave soul..
— Dr.Monika Langeh🇮🇳 (@drmonika_langeh) May 13, 2021
ॐ शांति .. please pray for the family and the kid to bear this loss🙏😭 https://t.co/dTYAuGFVxk
ये वीडीयो इतना ट्रेंड हुआ था कि उस लड़की के जज़्बे को सेलेब्स तक सलाम कर रहे थे. उसकी मौत की दुखद खबर से वो भी आहत हैं, सोनू सूद जो खुद कोरोना मरीज़ों की सेवा में दिन रात लगे हुए हैं उन्होंने ट्वीट किया- बेहद दुखद… उसने कभी नहीं सोचा था कि वो फिर से अपने परिवार को नहीं देख पाएगी. ज़िंदगी अन्याय से भरी है. कितनी जिंदगियां थीं जो जीने के लायक थीं, लेकिन वो खो गईं. अब कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि हमारी जिंदगी कितनी भी सामान्य क्यों ना हो जाए, लेकिन हम इस दौर से बाहर कभी नहीं निकल पाएंगे.
So so sad, never ever she would have imagined that she won't be able to see her family again. Life is so unfair. So many lives which deserved to live are lost. No matter how normal our life becomes but we will never be able to come out of this phase. https://t.co/jZBQtiTD2l
— sonu sood (@SonuSood) May 13, 2021
Photo Courtesy: Twitter

हमें बहुत-सी शिकायतें रहती हैं… अपनी ज़िंदगी से, अपने आसपास के लोगों से और ऊपरवाले से भी… न हम किसी चीज़ से संतुष्ट होते हैं और न ही शिकायतें करते-करते कभी थकते हैं… लेकिन इन शिकायतों के बीच क्या कभी उन मासूम बच्चियों पर नज़र पड़ती है, जिनके तन पर एक कपड़ा तक नहीं होता, क्या कभी भूख से तरसते वो रूखे चेहरे नहीं दिखते हमें, जिनके लिए सूखी रोटी भी अमृत का काम करती है… कभी उन ग़रीब-मजबूर लोगों को नहीं देख पाती हमारी आंखें, जो दिनभर मेहनत करके भी अपने परिवार के लिए छोटी-सी ख़ुशी भी नहीं जुटा पाते… शायद नहीं, हम तो अपनी शिकायतों में ही इतने व्यस्त रहते हैं कि हम यह सोच भी नहीं पाते कि इस समाज के प्रति भी हमारे कुछ कर्त्तव्य हैं…
लेकिन कुछ लोग होते हैं, जो हमसे अलग सोचते हैं, उनके जीने का उद्देश्य ही होता है दूसरों के लिए कुछ कर गुज़रना… ऐसी ही एक शख़्सियत हैं भारती त्रिवेदी. उनकी मुहिम ही अब उनके जीवन का उद्देश्य है, क्योंकि उनका कहना है कि ङ्गहम योगी तो नहीं हो सकते, लेकिन समाज के लिए उपयोगी तो हो ही सकते हैं…फ जिनकी सोच इतनी पाक हो, उनकी मुहिम कितनी सशक्त और सार्थक होगी, यह समझा ही जा सकता है. क्या कहती हैं भारतीजी ‘कवच’ के बारे में और अपने ट्रस्ट नर्चरिंग माइंड्स के विषय में, आइए जानें.
“सबसे पहले तो मैं यह चाहती हूं कि लोग थोड़े संवेदनशील बनें, ख़ासतौर से हमारी बच्चियों के विषय में. हमारे ट्रस्ट द्वारा चलाई जा रही मुहिम ‘कवच’ इसी संवेदनशीलता से उपजी है, क्योंकि इसका मुख्य उद्देश्य है बच्चियों को सेक्सुअल डिसीज़, रिप्रोडक्टिव डिसीज़, मानसिक प्रताड़ना और शारीरिक शोषण से बचाना.
- हम बच्चियों को साफ़-सफ़ाई, सेक्सुअल हाइजीन, प्राइवेट पार्ट्स की केयर और सेक्स एजुकेशन की जानकारी देते हैं, ताकि वो अपनी सेफ्टी और हाइजीन के महत्व को पहचान सकें.
- हम मुंबई व आसपास के इलाकों में कई वर्कशॉप्स कर चुके हैं, जहां हम बच्चों को और ख़ासतौर से लड़कियों को हाइजीन और सेफ्टी के तौर-तरी़के सिखाते-समझाते हैं. हालांकि हम जानते हैं कि यह काम सागर में बूंद समान है, क्योंकि यदि हम चाहते हैं कि समाज के हर तबके के बच्चे एक बेहतर ज़िंदगी जी सकें, तो अभी बहुत कुछ करना बाकी है.”
क्यों ज़रूरत पड़ी कवच की?
“मैं आपको एक बेहद मार्मिक तथ्य बताने जा रही हूं. सुनकर शायद आप विश्वास भी नहीं कर पाएंगे, क्योंकि जब मेरे सामने यह घटना हुई, तो मैं अंदर तक हिल गई थी. - आप यह तो समझ ही सकते हैं कि अंडरगार्मेंट्स हमारी ज़िंदगी का महत्वपूर्ण व ज़रूरी भाग हैं, लेकिन आर्थिक तंगी के चलते इस ज़रूरत को पूरा न किया जा सकना और इसी वजह से आगे भी कई तरह की द़िक्क़तों का सामना करना बेहद चौंकानेवाली बात थी. हाल ही में मैं एक म्यूनिसिपल स्कूल में गई थी, वहां मैंने सुना कि एक बच्ची प्रिंसिपल को अपनी परेशानी बयां कर रही थी कि उसे पीरियड्स हो गया है और वो घर जाना चाहती है. स्कूल की ओर से जब उसे सैनिटरी नैपकिन देने की बात कही गई, तो उसने बताया कि वो इसका इस्तेमाल नहीं कर सकती, क्योंकि वो आमतौर पर अंडरवेयर नहीं पहनती.
- अंडरगार्मेंट न स़िर्फ आपको बीमारियों, इंफेक्शन्स से बचाता है, बल्कि वो बैड टच और शोषण की संभावना को भी कुछ हद तक कम करने में सहायक है. लेकिन बहुत-सी बच्चियां हैं, जो आर्थिक तंगी के चलते पैंटी नहीं पहनतीं. यहां तक कि कुछ लड़कियां तो घर में पैंटीज़ शेयर करती हैं, उनकी मम्मी भी पति के अंडरवेयर से काम चलाती है और फिर समय व ज़रूरत के हिसाब से उसी का इस्तेमाल बच्चियां भी करती हैं.
- लेकिन इस तरफ़ किसी का ध्यान तक नहीं जाता और न ही इस विषय पर इतनी बात की जाती है. मुझे इस घटना ने इतना हिला दिया था कि मैंने यह निर्णय लिया कि मैं इन बच्चियों को पैंटीज़ प्रोवाइड करूंगी. समस्या यह थी कि मेरे पास भी इतने पैसे नहीं थे, लेकिन जब आपके इरादे पुख़्ता हों, तो रास्ते बन ही जाते हैं. मुझे कई लोगों से मदद मिली. मैंने अंडरवेयर का इंतज़ाम किया, लेकिन फिर सवाल उठा कि अंडरगार्मेंट्स तो ठीक है, सैनिटरी नैपकिन्स भी तो ज़रूरी हैं, क्योंकि इन्हीं बेसिक चीज़ों की कमी से इंफेक्शन्स जैसी समस्या उभरती है. उसके बाद अपरोक्ष रूप से शोषण व प्रताड़ना भी बढ़ती है. सैनिटरी नैपकिन के लिए भी मैं चाहती तो थी कि कोई स्पॉन्सर मिल जाए, लेकिन बात अब तक नहीं बनी, फिर भी हमारे प्रयास रंग लाए और उनका भी इंतज़ाम हो गया. फिर लगा कि नहीं, स़िर्फ इन दो चीज़ों से काम नहीं चलेगा, तो हमने एक सोप और टॉवेल भी इसमें रख दिया… इस तरह धीरे-धीरे हमारे कवच का किट तैयार हुआ.
यह भी पढ़ें: नेशनल गर्ल चाइल्ड डे: बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ!
- कुछ लोगों को लगा कि लड़कों के लिए भी तो किट ज़रूरी है, क्योंकि वो भी उसी आर्थिक तबके से आते हैं, तो हमने उनके लिए भी अलग से एक किट तैयार किया, जिसमें साबुन, टॉवेल और इसी तरह की बेसिक चीज़ें हैं, जो बेसिक हाइजीन के लिए ज़रूरी होती हैं.”
पैरेंट्स को भी एजुकेट करना उतना ही ज़रूरी है!
“हमारे समाज में सेक्स शब्द पर ही सबको आपत्ति है, तो यहां सेक्स एजुकेशन के महत्व को समझाना बहुत ही मुश्किल काम है. लेकिन हमें तो यह करना ही है, वरना इसी तरह हमारे बच्चे शोषित होते रहेंगे, तो हम बच्चों के साथ-साथ पैरेंट्स की भी काउंसलिंग करवाते हैं, उन्हें एजुकेट करने की कोशिश करते हैं कि सेक्स एजुकेशन और पर्सनल हाइजीन का मतलब यह नहीं कि बच्चे सेक्सुअली एक्टिव हो जाएंगे, बल्कि वो सतर्क हो सकेंगे और अपने ख़िलाफ़ हो रही ग़लत चीज़ों पर आवाज़ उठाने से नहीं झिझकेंगे. - हम बच्चों को बताते हैं कि जैसे आपका मोबाइल फोन या आपकी कोई भी पर्सनल चीज़ को कोई हाथ लगाता है, तो कितना बुरा लगता है, उसी तरह यह शरीर आपका है, अगर आपको किसी का टच बुरा लग रहा है, तो बोलो और डरो मत, चाहे वो कोई भी हो. ऐसे भी अनेक केसेज़ हमने देखे हैं, जहां पिता ही बच्चियों का शोषण कर रहा होता है, कहीं किसी स्कूल का कोई कर्मचारी इसमें लिप्त होता है, तो ऐसी घटनाओं को रिपोर्ट करवाना बेहद मुश्किल होता है. लोग इसे इज़्ज़त व समाज से जोड़कर देखने लगते हैं, लेकिन हम अपने स्तर पर प्रयास करते हैं कि हमारे बच्चे जितना संभव हो सुरक्षित हो सकें.
- एक समय था, जब मैं अध्यात्म की ओर बढ़ना चाहती थी, लेकिन सांसारिक दुनिया में आने के बाद योगी नहीं बन सकी, पर मैंने सोचा समाज के लिए उपयोगी तो बना ही जा सकता है. यही मेरी साधना है. यह भी एक ज़रिया है ईश्वर को, समाज को कुछ वापस देने का. मैं चाहती हूं और भी लोग हमारी मुहिम से जुड़ें और हम अपने इस काम को और आगे तक ले जा सकें, ताकि हमारा समाज एक ऐसी दुनिया इन बच्चों को दे सकें, जहां वो हर तरह से और हर स्तर पर मह़फूज़ हों!”
- अधिक जानकारी के लिए यहां संपर्क करें:
- फोन: 9930910388
- ईमेल: [email protected]
– ब्रम्हानंद शर्मा

नेशनल गर्ल चाइल्ड डे: बेटी है, तो अरमान है… बेटियों से रोशन ये जहान है…
- नेशनल गर्ल चाइल्ड डे (National Girl child Day) 24 जनवरी को मनाया जाता है.
- इस मौ़के पर सोशल मीडिया पर सभी दिग्गज हस्तियां अपने विचार रख रही हैं और तमाम लोग जन जागृति के प्रयास में भी जुटे हैं.
क्यों मनाया जाता है राष्ट्रीय बालिका दिवस?
- भारत में लड़कियों के साथ जिस तरह का भेदभाव होता रहा है, चाहे वो उनके खान-पान से संबंधित हो या फिर पढ़ाई-लिखाई व आगे बढ़ने के अवसरों से संबंधित हो, उसके प्रति लोगों को जगाने व बेटियों को समान अवसर दिलाने की कोशिश में यह मनाया जाता है.
- सरकार की तरफ़ से इस दिन कई तरह के अभियान चलाए जाते हैं. बेटियों को आगे बढ़ाने के कई अवसरों के बारे में लोगों को बताया जाता है.
- बेटियों को सम्मान व समान अवसर की दिशा में भी कई तरह के प्रयास किए जाते हैं.
- टीवी के माध्यम से, सोशल मीडिया के ज़रिए या फिर प्रशासनिक व व्यक्तिगत स्तर पर भी जन जागृति की जाती है, ताकि बेटे व बेटी के बीच के फ़र्क़ को मिटाया जा सके और बेटियों को भी वही प्यार व सम्मान मिले, जिसकी वो हक़दार हैं.
- कन्या भ्रूण हत्या जैसी बुराइयां इस समाज से मिट सकें व बेटियों को बेहतर अवसर मिल सकें, यही इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य है.
- ट्विटर पर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर अन्य तमाम बड़ी हस्तियों ने नेशनल गर्ल चाइल्ड डे पर अपने विचार इस तरह से रखे-
National Girl Child Day is a day to celebrate the exceptional achievements of the girl child, whose excellence in many fields makes us proud
— Narendra Modi (@narendramodi) January 24, 2017
It is imperative to reject discrimination against the girl child and ensure equal opportunities for the girl child.
— Narendra Modi (@narendramodi) January 24, 2017
Let us reaffirm our commitment to challenging stereotypes based on gender & promote gender sensitisation as well as gender equality.
— Narendra Modi (@narendramodi) January 24, 2017
#NationalGirlChildDay राष्ट्रीय बालिका दिवस' के अवसर पर सभी बालिकाओं को उनके सुनहरे भविष्य के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाएं. pic.twitter.com/oo8paJhshV
— Babita Phogat (@BabitaPhogat) January 24, 2017
– गीता शर्मा

ये दिल बड़ी अजीब चीज़ होती है, किसी से लगा लो, तो रातों की नींद उड़ जाती है और जब कोई इसे तोड़ दे, तो ज़िंदगी का सुकून कहीं खो जाता है और जब प्यार एकतरफ़ा हो तो समझिए कि ये आपकी ज़िंदगी की सबसे बड़ी भूल है. एकतरफ़ा प्यार में पागल प्रेमी के कारनामों के तो आपने बहुत से किस्से सुने होंगे, लेकिन एकतरफ़ा प्यार में पागल इस लड़की के साथ जो हुआ वो सुनकर आपके भी होश उड़ जाएंगे.
ये वाक़या मुंबई का है, जहां एक 22 साल की लड़की एकतरफ़ा प्यार में मिली नाकामी के बाद डिप्रेशन का शिकार हो गई और इस डिप्रेशन में उसने इतना खाया कि कुछ ही महीनों में उसका वज़न 100 किलों के पार हो गया. फिलहाल उसका मुंबई के केईएम हॉस्पिटल में इलाज चल रहा है. वहां उसके बार-बार खाने की आदत में भी कमी आई है. इलाज के साथ ही उसकी काउंसलिंग भी की जा रही है. फिलहाल उसका वज़न घटकर 80 किलो हो गया है.
ये है कहानी
क़रीब एक साल पहले इस लड़की ने वेट कम करने के लिए जिम जॉइन किया. वहां इसका दिल एक लड़के पर आ गया और वो उससे एकतरफ़ा प्यार करने लगी. कुछ दिनों बाद लड़के ने किसी और से शादी कर ली. इससे लड़की का दिल टूट गया और वो डिप्रेशन में चली गई. वह दुखी होकर हमेशा पुरानी बातें याद करती रहती और ख़ूब खाती. जब भी उसे अकेलापन महसूस होता, वो खाने को अपना साथी बना लेती, मगर उसकी ये आदत धीरे-धीरे बीमारी में तब्दील हो गई.
ईटिंग डिसऑर्डर
डिप्रेशन में कई लोग चॉकलेट या अपनी कोई पसंदीदा चीज़ खाने लगते हैं, जिससे ईटिंग डिसऑर्डर की समस्या हो जाती है. इस लड़की के साथ भी वही हुआ. अपना ग़म भुलाने के लिए खाने की उसकी आदत ने उसका वज़न इतना बढ़ा दिया कि उसे हॉस्पिटलाइज़ करना पड़ा. एक्सपर्ट्स का मानना है कि मानसिक बीमारियों में 1-2 प्रतिशत मरीज ईटिंग डिसऑर्डर का शिकार हो जाते हैं. कुछ एक्सपर्ट्स का कहना है कि ये बीमारी अक्सर लड़कियों में देखने को मिलती है. दरअसल, लड़कियां खुद को ग़म से उबारने के लिए खाने और शॉपिंग का सहारा लेती हैं.
मोटापा है बीमारियों का घर
बढ़ा हुआ वज़न अपने आप में एक बीमारी तो है ही, ये कई और बीमारियों को भी जन्म देता है. मोटापे से हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज और हार्ट डिसीज़ का ख़तरा बढ़ जाता है.
तो अब किसी से भी दिल लगाने से पहले अलर्ट रहें और ख़ुद को इतना मज़बूत रखें कि दिल टूटने पर आपको खाने का सहारा न लेना पड़े.
– कंचन सिंह

सदियां बदल रही हैं, लेकिन बेटियों को लेकर हमारी सोच अब तक नहीं बदली. तकनीकी विकास हुआ और उस विकास का प्रयोग (दुरुपयोग) भी हमने गर्भ में पल रही बेटी की हत्या के लिए ही करना बेहतर समझा. अगर नारी विहीन समाज की चाह है, तो परिवार व शादी जैसी प्रथाएं बंद ही कर दें. मात्र बेटे की चाह तो इसी ओर इशारा करती है.
एबॉर्शन सेंटर्स के बाहर इस तरह के विज्ञापन चौंका देते हैं- 500 ख़र्च करो और 50,000 बचाओ… जिसका अर्थ है कि गर्भ में कन्या है, तो 500 में गर्भपात करवा लो और उसके दहेज के 50,000 बचा लो.
* जहां तक गर्भपात की बात है, तो गर्भपात ग़ैरक़ानूनी नहीं है, लेकिन सेक्स सिलेक्टिव एबॉर्शन अपराध है.
* मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1971 में बनाया गया और 2003 में यह सोचकर इसमें संशोधन किया गया कि महिलाओं की सेहत पर नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा और अनसेफ एबॉर्शन्स की संख्या भी कम होगी. लेकिन आज भी हक़ीक़त यही है कि अनसेफ एबॉर्शन्स की संख्या घट नहीं रही.
* हैरानी की बात यह है कि कन्या भ्रूण हत्या उन राज्यों और शहरों के उन हिस्सों में सबसे अधिक होती है, जहां आर्थिक रूप से अधिक संपन्न व सो कॉल्ड पढ़े-लिखे लोग यानी एलीट क्लास के लोग रहते हैं.
* इंडियन पीनल कोड के अंतर्गत एबॉर्शन करवाना, यहां तक कि ख़ुद महिला द्वारा अपनी मर्ज़ी से भी एबॉर्शन करवाना अपराध है, यदि वो महिला की जान को बचाने के लिए न किया गया हो.
* इसमें तीन साल तक की कैद या जुर्माना या फिर दोनों ही हो सकता है.
* इसी तरह गर्भस्थ शिशु का लिंग परीक्षण भी अपराध है, जब तक कि डॉक्टर निश्चित न हो कि महिला के शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य के मद्देनज़र गर्भपात ज़रूरी है.
कहां है रौशनी की किरण?
* लोगों को जागरूक करने के लिए सरकार द्वारा ङ्गबेटी बचाओफ अभियान चलाया गया, जिसमें पेंटिंग्स, विज्ञापनों, पोस्टर्स, एनिमेशन और वीडियोज़ द्वारा कोशिशें की गईं. इस अभियान को इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के साथ-साथ कई मेडिकल संस्थाओं ने समर्थन व सहयोग दिया.
* इस अभियान का असर कहीं-कहीं नज़र भी आया. गुजरात में वर्ष 2009 में 1000 लड़कों के मुक़ाबले लड़कियों की जन्म संख्या 802 से बढ़कर 882 हो गई थी.
* इन सबके बावजूद हालात ये हैं कि जब महिलाओं से इस विषय में पूछा जाता है, तो वो झल्लाकर यही कहती हैं कि कैसा क़ानून और किस तरह का समाज… सच्चाई तो यह है कि जब हम बेटियों को जन्म देती हैं, तो यही समाज हमें हिकारत की नज़रों से देखकर ताने देता है. हमें हर जगह कमतर बताया जाता है. रिश्तेदारों से लेकर पति तक तानों से छलनी कर देते हैं. फिर हम क्यों बेटियों को जन्म दें, ताकि वो भी हमारी ही जैसी ज़िंदगी जीने को मजबूर हों?
* महिलाओं द्वारा उठाए ये तमाम सवाल दरअसल हमारे सामाजिक ढांचे पर तमाचा हैं, जिसमें महिलाओं को दोयम दर्जे का ही माना जाता है. अगर बीवी कमाती है, तो उसे एक्स्ट्रा इन्कम माना जाता है, पढ़ी-लिखी लड़कियां इसलिए डिमांड में हैं कि वो पति के स्टेटस को मैच करने के साथ-साथ बच्चों की परवरिश बेहतर कर पाएंगी, उनका होमवर्क करवा पाएंगी आदि.
* दूसरी तरफ़ पढ़ी-लिखी लड़कियों के साथ यह भी समस्या आती है कि दहेज अधिक देना पड़ता है, क्योंकि उनके लिए लड़के भी अधिक पढ़े-लिखे ढूंढ़ने होते हैं.
* अख़बारों के मैट्रिमोनियल कॉलम में भी आसानी से ऐसी दोहरी मानसिकता के दर्शन हो सकते हैं, जिसमें लिखा होता है- चाहिए गोरी, सुंदर, लंबी, पढ़ी-लिखी, घरेलू व संस्कारी लड़की. यानी घरेलू व संस्कारी लड़की वो, जो घर के सारे काम भी करे और अपने अधिकारों के लिए आवाज़ भी न उठाए.
* जब इस तरह की मानसिकता वाले समाज में हम जी रहे हैं, तो पैरेंट्स को यही लगता है कि लड़की का जन्म यानी ढेर सारा ख़र्च और मुसीबत.
* इन समस्त समीकरणों के बीच ख़ुद लड़कियों को ही अपनी रक्षा का बीड़ा उठाना होगा. अपने लक्ष्य बदलने होंगे और उसी से समाज की दशा व दिशा भी बदलेगी.
* शादी, परिवार और समाज की घिसी-पिटी परंपराओं से ऊपर उठकर अपने अस्तित्व को देखना होगा और सबसे ज़रूरी है कि आवाज़ उठानी होगी.
* कोई ज़बर्दस्ती गर्भपात करवाता है, तो आवाज़ उठाएं, फिर सामने भले ही सास-ससुर, मां-बाप या अपना पति ही क्यों न खड़ा हो. क़ानून बने हैं, उनका उपयोग नहीं करेंगे, तो व्यवस्था नहीं बदलेगी.
कहां से मिल सकती है मदद?
* इंडियन वुमन वेलफेयर फाउंडेशन (IWWF) वेबसाइट:
www.womenwelfare.org
यहां आपको लीगल असिस्टेंस भी मिलेगा और आप ऑनलाइन अपनी शिकायत भी दर्ज करवा सकती हैं.
* जागृति नामक संस्था भी वुमन एंपावरमेंट के लिए काम करती है. संस्था द्वारा कन्या भ्रूण हत्या के ख़िलाफ़ भी काफ़ी अभियान किए गए हैं.
फोन: 0836-2461722
वेबसाइट: www.jagruti.org
* नेशनल कमिशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स (NCPCR), नई दिल्ली- फोन: 011-23478200
फैक्स: 011-23724026
कंप्लेन के लिए: 011-23724030
ईमेल: [email protected],
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