मेरी उम्र 22 साल है. मेरे शरीर पर बहुत बाल हैं, ख़ासतौर से चिन पर. मैंने हेयर रिमूवल क्रीम्स, वैक्सिंग, थ्रेडिंग सभी टेम्प्रेरी तरी़के अपनाए, पर कोई लाभ नहीं हुआ.
– शीतल झा,पुणे.
आपको हिरसूट़िज़्म यानी एक्सेसिव हेयर ग्रोथ की समस्या है, जिसमें शरीर पर पतले, कठोर और काले बाल होते हैं, जैसे पुरुषों के होते हैं. हार्मोंस में असंतुलन के कारण महिलाओं में यह समस्या होती है. आपको हार्मोनल टेस्ट करवाना चाहिए. यदि हार्मोंस में असंतुलन हो गया है या हार्मोंस ब्लॉक हो गए हैं, तो आपको ओरल कॉन्ट्रासेप्टिव पिल्स या एंटीएंड्रोजन की ज़रूरत होगी. बेहतर होगा कि आप गायनाकोलॉजिस्ट से संपर्क करें.
मेरी 65 वर्षीया सहेली को 10 वर्ष पहले मेनोपॉज़ हो चुका था. लेकिन कुछ दिनों पहले उसे थोड़ी ब्लीडिंग हुई. क्या मेनोपॉज़ के बाद ब्लीडिंग होना ठीक है? मुझे भी मेनोपॉज़ हो चुका है और मुझे डर है कि कहीं मेरे साथ भी ऐसा ही न हो?
– पूजा गौतम, पंजाब.
हो सकता है एट्रोफिक वेजिनाइटिस या वेजाइना के थिक होने के कारण आपकी सहेली के साथ ऐसा हुआ हो. लेकिन ऐसी स्थिति में लापरवाही बरतना ठीक नहीं. यह किसी बड़ी बीमारी का संकेत भी हो सकता है, जैसे- सर्विक्स कैंसर, ओवरी कैंसर, एंडोमेट्रियल पोलिप्स, यूरिनल ट्यूमर आदि. इसलिए मेनोपॉज के बाद ब्लीडिंग को हल्के से नहीं लेना चाहिए. जहां तक आपका सवाल है तो आपको चिंता करने की ज़रूरत नहीं. ज़रूरी नहीं कि आपकी सहेली के साथ जो हुआ है, वो आपके साथ भी हो.
मैं 23 वर्षीया नवविवाहिता हूं. पिछले कुछ ह़फ़्तों से मेरा जी मिचला रहा है और उल्टियां भी हो रही हैं. मुझे पीरियड्स भी नहीं आए. मैंने घर पर प्रेग्नेंसी टेस्ट किया, तो वह भी पॉज़ीटिव आया है. कृपया बताएं, मेरी वॉमिटिंग कब तक रुकेगी और ऐसी अवस्था में मुझे क्या करना चाहिए?
– आरती जोशी, देहरादून.
प्रेग्नेंसी के पहले 3 महीने में जी मिचलाना, उल्टियां होना, भूख न लगना आदि शिकायतें होती ही हैं. सबसे पहले आप गायनाकोलॉजिस्ट के पास जाकर अपना पूरा चेकअप कराएं. जांच करने के बाद प्रेग्नेंसी कंफर्म पर वो आपको कुछ मेडिसिन देंगे. इसके अलावा सुबह चाय के साथ बिस्किट या ड्राय टोस्ट लें. थोड़े-थोड़े अंतराल के बाद कुछ न कुछ खाते रहें. स्पाइसी और ऑयली खाने से बचें. ज़्यादा से ज़्यादा पानी व जूस पीएं. समय-समय पर डॉक्टर आपके सभी टेस्ट्स- ब्लड टेस्ट, यूरिन टेस्ट, सोनोग्राफी आदि भी कराएंगे. आप रिलैक्स रहें और अपनी प्रेग्नेंसी को एन्जॉय करें.
मेरी उम्र 26 साल है. पहले मेरे पीरियड्स रेग्युलर थे. कुछ ह़फ़्ते पहले मैंने अपने बॉय फ्रैंड के साथ शारीरिक संबंध बनाए थे और पूरी सावधानी भी बरती थी. उसके बाद मुझे अभी तक पीरियड्स नहीं आए. कहीं मैं प्रेग्नेंट तो नहीं हो गई?
– मोना सावंत, चंडीगढ़.
संबंध बनातेे समय आपने कंडोम का प्रयोग किया होगा. कई बार कंडोम सफल नहीं होता और गर्भ ठहर जाता है. इसके लिए आप घर पर होम प्रेग्नेंसी टेस्ट कर सकती हैं या गायनाकोलॉजिस्ट से संपर्क करें. टेस्ट से पीरियड्स न होने की वजह स्पष्ट हो जाएगी. कई बार हार्मोन्स में गड़बड़ी, ज़्यादा भागदौड़ के कारण भी पीरियड्स देर से आते हैं. अगर आप प्रेग्नेंट नहीं हैं, तो डॉक्टर पीरियड्स के लिए हार्मोन्स पिल्स देंगे.
हमारे शरीर में हार्मोंस महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. पुरुषों व महिलाओं में ऐसे कई हार्मोंस पाए जाते हैं, जिनका प्रभाव उनकी सेहत के साथ–साथ रिश्तों पर भी पड़ता है, इसलिए इसे कंट्रोल में रखना बेहद ज़रूरी है. आइए, इसके बारे में संक्षेप मेें जानते हैं. एस्ट्रोजेन, प्रोजेस्टेरॉन, टेस्टोस्टेरॉन, थायरॉइड, कार्टिसोल, इंसुलिन आदि हार्मोंस हमारे शरीर में मौजूद कोशिकाओं व ग्रन्थियों से निकलनेवाले केमिकल्स हैं, जो शरीर के दूसरे हिस्से में मौजूद कोशिकाओं या ग्रंथियों को प्रभावित करते हैं. हेल्थियंस की लाइफस्टाइल मैनेजमेंट कंसल्टेंट डॉ. स्नेहल सिंह ने इसके बारे में हमें विस्तृत जानकारी दी.
हमारे शरीर में कुल 230 तरह के हार्मोंस होते हैं, जो शरीर में अलग–अलग कार्यों को संतुलित करते हैं. ये एक केमिकल मैसेंजर की तरह एक कोशिका से दूसरी कोशिका तक सिग्नल पहुंचाते हैं, लेकिन एक ग़लत मैसेज हार्मोंस को असंतुलित कर सकता है, इसलिए इस पर ध्यान देना ज़रूरी है. इनका सीधा असर हमारे मेटाबॉलिज़्म, इम्यून सिस्टम, रिप्रोडक्टिव सिस्टम, शरीर के विकास, मूड आदि पर पड़ता है. डॉ. स्नेहल के अनुसार, हार्मोंस असंतुलन से रिश्तों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. आजकल की भागती–दौड़ती ज़िंदगी में विभिन्न बीमारियों ने हर किसी की ज़िंदगी को प्रभावित किया है. ऐसे में भागदौड़, तनाव, थकान व खानपान के साथ–साथ हार्मोंस भी रोज़मर्रा की दिनचर्या व रिश्तों को प्रभावित करते हैं.
हार्मोंस और रिश्ते
हार्मोंस की कार्यशैली या इसकी प्रणाली जटिल होती है. जब यह संतुलन में रहते हैं, तो सब कुछ अच्छा रहता है और चीज़ें जैसे चमत्कारी तौर पर काम करती हैं, लेकिन हार्मोंस असंतुलन उतना ही प्रतिकूल प्रभाव डालता है. असंतुलन से अजीब मूड स्विंग्स होते हैं. स़िर्फ स्त्रियों में ही नहीं, पुरुष भी हार्मोंस असंतुलन से प्रभावित होते हैं, जो सेक्सुअल लाइफ को भी प्रभावित करते हैं.
हार्मोनल संतुलन पीरियड के पहले के सिंड्रोम, बाद के डिप्रेशन, मेनोपॉज़ या एंड्रोपॉज़ को मैनेज करने के लिए ही नहीं, बल्कि बेहतर रिश्तों के लिए भी आवश्यक है. रिश्तों को प्रभावित करनेवाले मुख्य हार्मोंस में ऑक्सीटोसिन, टेस्टोस्टेरोन, एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरॉन शामिल हैं.
ऑक्सीटॉसिन
ऑक्सीटॉसिन, जिसे आमतौर पर लव हार्मोन कहा जाता है, आपको प्यार का एहसास देता है, जिसके चलते आप रिश्तों में बेहतर कनेक्टिविटी महसूस करते हैं. व्यक्ति को ख़ुशी और संतुष्टि का एहसास करानेवाला यह फील–गुड हार्मोन है. अपर्याप्त ऑक्सीटॉसिन नकारात्मक प्रभाव डालता है, जिसके चलते चिड़चिड़ापन, अलगाव की भावना, अनिद्रा और असंतुष्ट सेक्स लाइफ आदि समस्याएं होने लगती हैं. सामान्य ऑक्सीटॉसिन का स्तर रिश्तों में ख़ुशियां देता है, जो बेहतर रिश्तों के लिए अच्छा है.
टेस्टोस्टेरॉन
टेस्टोस्टेरॉन पुरुषों में मर्दानगी (मैस्कूलिनिटी की ज़रूरत पूरी करता है, जिससे वे रिलेशनशिप एंजॉय करते हैं. कम टेस्टोस्टेरॉन का स्तर मूड की समस्याएं, चिड़चिड़ापन और ईगो को जन्म देता है. ये नकारात्मक भावनाएं निजी संबंधों को प्रभावित करती हैं. बढ़ती उम्र, तनाव, पुरानी बीमारियां और हार्मोंस की समस्याएं पुरुषों में कम टेस्टोस्टेरॉन का कारण बन सकती हैं. यह सेक्सुअल रिलेशन और प्रजनन क्षमता को भी प्रभावित करते हैं.
एस्ट्रोजेन
युवावस्था में महिलाओं में एस्ट्रोजेन का स्तर बढ़ जाता है, जो उनके विकास, यौन गतिविधि और फर्टिलिटी को प्रभावित करता है, जबकि मेनोपॉज़ के दौरान इसका स्तर घटता है. एस्ट्रोजेन का स्तर सामान्य होने पर महिलाओं में सेक्स की इच्छा जागती है और वे अपने साथी के साथ अच्छे संबंधों का आनंद ले सकती हैं, लेकिन जब एस्ट्रोजेन का स्तर कम होता है, तो इससे योनि में सूखापन और सेक्स ड्राइव में कमी आती है. ऐसे में उनको चिड़चिड़ापन होता है. दूसरी तरफ़ कुछ महिलाओं में एस्ट्रोजेन का स्तर अधिक होता है, जिससे रिश्ते और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं, सिरदर्द, थकान आदि शिकायतें होती हैं, जिसका उनके रिश्तों पर ख़राब असर होता है.
प्रोजेस्टेरॉन
प्रोजेस्टेरॉन हार्मोन का स्तर गर्भावस्था और मातृत्व के शुरुआती दिनों में सबसे अच्छा होता है. यह गर्भवती महिलाओं में अन्य संबंधों की तुलना में बच्चे की देखभाल करने की इच्छा को अधिक बढ़ाता है. इसके कारण बच्चे के जन्म के आरंभिक कुछ वर्षों के दौरान कपल्स में यौन आकर्षण कम हो जाता है.
– ओमेगा 3 फैटी एसिड हार्मोंस को बैलेंस करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.
– ओमेगा 3 फैटी एसिड फिश, अलसी के बीज, अखरोट, सोयाबीन, टोफू, ऑलिव ऑयल आदि में मिलता है. यदि आप चाहें, तो डॉक्टर की सलाह पर ओमेगा 3 की गोलियां भी ले सकती हैं.
– विटामिन डी पिट्यूटरी ग्लैंड को प्रभावित करता है. इसकी कमी से पैराथायरॉइड हार्मोंस असंतुलित होने लगता है. रोज़ाना कम से कम 20 से 30 मिनट तक एक्सरसाइज़ करें, जिससे हार्मोंस को संतुलित होने में मदद मिलेगी.
– इसके अलावा नियमित रूप से योग, प्राणायाम, जॉगिंग, स्विमिंग भी कर सकती हैं.
– एक्स्ट्रा वर्जिन कोकोनट ऑयल नेचुरल तरी़के से हाइपोथायरॉइडिज़्म को संतुलित करता है. साथ ही ब्लड शुगर ठीक करने के साथ वज़न को भी संतुलित रखता है. इसे 2-3 टीस्पून नियमित रूप से लेना चाहिए.
– एक टीस्पून मेथीदाना एक कप गरम पानी में 20 मिनट के लिए भिगोकर रखें, फिर छानकर दिनभर में तीन बार पीएं. यदि मेथीदाना की तासीर गरम होने के कारण आपको सूट न करे, तो इसकी जगह सौंफ ले सकते हैं.
– तुलसी बॉडी के कार्टिसोल के लेवल को ठीक करता है. इसका लेवल बढ़ने पर थायरॉइड, ओवरीज़ व अग्नाशय प्रभावित होते हैं. इसके अलावा मूड भी स्विंग होता रहता है, जिसे संतुलित करने के लिए तुलसी की पत्तियों का सेवन सबसे बेहतरीन उपाय है.
– इसके अलावा आप तुलसी को उबालकर दिनभर में तीन कप पी सकते हैं.
– अश्वगंधा भी हार्मोंस को संतुलित करता है. साथ ही थकान व तनाव भी मिटाता है. डॉक्टर की सलाह पर ही इसे लें. वैसे कुछ दिनों तक 300 एमजी अश्वगंधा ले सकते हैं.
– हार्मोंस को संतुलित रखने का सबसे बेहतर उपाय यही है कि संतुलित भोजन करें, वज़न पर नियंत्रण रखें और बेवजह का तनाव न लें.
– अपने भोजन में फल, अंकुरित अनाज, हरी सब्ज़ियां, दालें आदि नियमित रूप से लें.
– भरपूर नींद लें. ख़ुश रहें. बेवजह किसी बात को दिल में न रखें. तन–मन जितना हल्का रहेगा, शरीर उतना ही संतुलित व फिट रहेगा.
– न्यूट्रीशियस फूड हार्मोंस को संतुलित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.
– जंक व ऑयली फूड, स्टेरॉयड व अधिक एंटीबायोटिक्स न लें.
– ज़्यादा चाय, कॉफी, अल्कोहल और चॉकलेट आदि कैफीन मिली हुई चीज़ें खाने से बचें.
– पनीर, दूध से बनी और मीट जैसी फैटवाली चीज़ें कम लें.
– दवाइयों के अलावा योग व प्राणायाम द्वारा भी हार्मोंस को नियंत्रण में रख सकते हैं. इसके लिए अनुलोम–विलोम प्राणायाम, उज्जयी प्राणायाम, भस्त्रिका प्राणायाम, शवासन, कपालभाति, कटिचक्रासन, पवनमुक्तासन, भुजंगासन, धनुरासन, मंडूकासन, पश्चिमोत्तान आसन आदि करें.
– पुरुष हार्मोंस को कंट्रोल करने के लिए अश्वगंधा चूर्ण 1 चम्मच रात में खाना खाने के आधा घंटे बाद दूध और मिश्री में ले सकते हैं.
– इसके अलावा वे सर्दियों में अश्वगंधारिष्ट और अमृतारिष्ट 3-3 चम्मच भोजन के बाद दिन में दो बार एक कप गुनगुने दूध के साथ ले सकते हैं.
– महिलाएं यदि अशोकारिष्ट 2-2 चम्मच दिन में दो बार लें, तो पीरियड नियमित रहते हैं.
– साल में तीन महीने अशोकारिष्ट व दशमूलारिष्ट 3-3 चम्मच पानी के साथ भोजन के दो घंटे बाद दिन में दो बार लें, पर ध्यान रहे, इसे प्रेग्नेंसी में न लें.
– ऊषा गुप्ता
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हमारे शरीर में अनेक प्रकार के हार्मोंस (Hormones) स्रावित होते हैं. किशोरावस्था से लेकर मेनोपॉज़ (Menospause) तक हार्मोंस के स्तर में बदलाव होता रहता है. यही बदलाव हमारे डेंटल हेल्थ (Dental Health) को भी प्रभावित करता है और हमें पता भी नहीं चलता. जीवन के इसी बदलाव की अन्य अवस्थाएं, जैसे- प्यूबर्टी (Puberty), पीरियड्स का आना (Periods), प्रेग्नेंसी (Pregnancy), ब्रेस्टफीडिंग (Breastfeeding) और मेनोपॉज़ डेंटल हेल्थ को किस तरह प्रभावित करते हैं, यह जानने के लिए हमने बात की डेंटिस्ट डॉ. नूपुर श्रीराव से.
प्यूबर्टी: इस अवस्था में प्रोजेस्टेरॉन और एस्ट्रोजन का स्तर अधिक बढ़ जाता है, जिसके कारण कई बार मसूड़ों में सूजन और ब्लीडिंग होने लगती है. इन समस्याओं को नज़रअंदाज़ करने पर ‘जिंजिवाइटिस’ नामक दांतों की बीमारी हो जाती है. इस उम्र में लड़कियां मीठा, जंक फूड, कोल्ड ड्रिंक बहुत अधिक पीती हैं, जिससे हार्मोंस असंतुलित होने लगते हैं और इनका बुरा असर डेंटल हेल्थ पर पड़ने लगता है.
समाधान
डॉक्टर से दांतों की क्लीनिंग कराएं, अन्यथा दांतों में सड़न हो सकती है.
हेल्दी दांतों के लिए हेल्दी फूड और नट्स खाएं.
रोज़ाना दिन में 2 बार ब्रश करें.
नारियल पानी और नींबू पानी पीएं.
पीरियड्स आना: अक्सर महिलाएं पीरियड्स आने के पहले दांतों की समस्याएं, जैसे- मसूड़ों का फूलना, उनमें दर्द होना आदि शिकायतें करती हैं. पीरियड्स के दौरान शरीर में प्रोजेस्टेरॉन हार्मोन के स्तर में बदलाव होता है, जिसके कारण यह समस्या होती है.
समाधान
अन्न के कण दांतों में फंसे रहने के कारण उनमें सड़न होने लगती है, इसलिए हर बार खाना खाने के बाद कुल्ला करना न भूलें.
पानी में कुछ बूंदें एंटीबैक्टीरियल ऑयल, जैसे- लौंग का तेल, दालचीनी का तेल और यूकेलिप्टस ऑयल की डालकर गरारे करें.
कच्चा प्याज़ और लहसुन को भोजन में शामिल करें, क्योंकि इनमें ऐसे एंटीबैक्टीरियल तत्व होते हैं, जो इस समस्या से निजात दिलाते हैं.
प्रेग्नेंसी: गर्भवती महिलाओं में हार्मोंस का स्तर अस्थिर होता है. यह कभी कम, तो कभी ज़्यादा होता है. इससे कई बार दांतों की समस्याएं हो जाती हैं, जैसे- मसूड़ों का लाल होना, उनमें सूजन और दर्द होना आदि.
समाधान
दिन में 2 बार ब्रश करने और दांतों को फ्लॉस करने की आदत डालें.
कुछ भी खाने के बाद तुरंत कुल्ला करें.
प्रेग्नेंसी के दौरान गर्भवती महिला को कैल्शियम, विटामिन डी और फोलिक एसिड की अधिक मात्रा में ज़रूरत होती है, इसलिए डॉक्टरी सलाहानुसार इन्हें अपने भोजन में ज़रूर शामिल करें.
स्तनपान: प्रेग्नेंसी के बाद स्ट्रेस और तनाव के साथ-साथ थकान भी बहुत बढ़ जाती है. हार्मोंस में भी बहुत परिवर्तन होते हैं, जिसके कारण दांतों में सड़न और मसूड़ों की बीमारियां हो सकती हैं.
मेनोपॉज़: मेनोपॉज़ के दौरान हार्मोंस असंतुलित होते रहते हैं, जिससे महिलाओं को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जैसे- मुंह का स्वाद ख़राब होना, मुंह में जलन होना, सेंसिटिविटी आदि. कई बार मसूड़ों और दांतों के रोग भी हो जाते हैं. मेनोपॉज़ में एस्ट्रोजन हार्मोन का स्तर कम होने लगता है, जिससे हड्डियां कमज़ोर होने लगती हैं.
समाधान
दांतों की सुरक्षा के लिए फ्लोरॉइड टूथपेस्ट का प्रयोग करें.
हड्डियों की मज़बूती के लिए डॉक्टर की सलाहानुसार अपनी डायट में कैल्शियम और विटामिन डी आवश्यक मात्रा में शामिल करें.
तली-भुनी, नमकीन, तीखी और दांतों में चिपकनेवाली चीज़ें न खाएं.
चाय, कॉफी, अल्कोहल और तंबाकू का सेवन कम करें.
गर्भ निरोधक गोलियां: गर्भ निरोधक गोलियों में प्रोजेस्टेरॉन हार्मोन होता है. अत: इनका अधिक सेवन करने से हार्मोन असंतुलित होने लगते हैं, जिससे मसूड़ों में सूजन और पेट की समस्याएं, जैसे- कब्ज़, पेट का फूलना आदि होती हैं. इन समस्याओं के कारण मुंह में बदबू आना और दांतों में सड़न भी हो सकती है.
समाधान
डॉक्टर की सलाह से प्रोबायोटिक टैबलेट और विटामिन बी कॉम्प्लेक्स की गोलियां लें.
स्वस्थ दांतों के लिए ईज़ी टिप्स
मीठा खाने की बजाय फल व सूखे मेवे खाएं.
कोल्ड ड्रिंक, कोल्ड कॉफी, फू्रट जूस के बदले नारियल पानी या नींबू पानी पीएं.
जिनके दांतों में बे्रसेस लगे हुए हैं, उन्हें दांतों की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि अन्न के कण दांतों में चिपक व फंस जाने के कारण दांतों में सड़न हो सकती है.
कुछ भी खाने-पीने के बाद अच्छी तरह से कुल्ला करें.
डॉक्टर की सलाह से रात को माउथवॉश से गरारे करके सोएं.
स्तनपान करानेवाली महिलाएं तिल व अलसी खाएं. इनमें कैल्शियम और ओमेगा 3 फैटी एसिड अधिक मात्रा में होता है, जो दांतों के लिए बहुत फ़ायदेमंद है.
8-10 ग्लास पानी पीएं.
दांतों की छोटी सी समस्या को नज़रअंदाज़ न करें. तुरंत डॉक्टर को दिखाएं.
ये रूह के रिश्ते क्यों स़िर्फ जिस्म तक ही सिमटते जा रहे हैं… और जिस्म से होते हुए सिसक-सिसक कर दम तोड़ते जा रहे हैं… दूरियां जो आ रही हैं दरमियान, मन का पंछी ढूंढ़ने लगा है एक नया आशियान… लेकिन मुहब्बत जो कभी हममें-तुममें थी… अब भी कह रही है कि बचे हैं उसके कुछ तो नामो-निशान… न कुसूर तुम्हारा था, न ख़ता हमारी थी… बस व़क्त के सितम हमें तन्हा करते चले गए… और क़रीब आने की हसरत में हम दूर होते चले गए…
जी हां, यह बात सच है कि मॉडर्न लाइफस्टाइल ने हमारे रूहानी रिश्तों को जिस्मानी बना दिया है. भावनाओं की जगह ज़रूरतों ने ले ली है और सपनों की जगह कठोर हक़ीक़तों ने अपना डेरा जमा लिया. यही वजह है कि सब कुछ बदल रहा है. हम बदल रहे हैं… हमारा खान-पान बदल रहा है… दिनचर्या बदल रही है… और इसका सीधा प्रभाव हमारी सेहत और हमारे रिश्तों की सेहत पर पड़ रहा है.
यह तो हम सभी जानते हैं कि हमारी तमाम गतिविधियों को हर्मोंस ही प्रभावित करते हैं. ऐसे में उनमें होनेवाले बदलाव हम में भी बहुत कुछ बदल देते हैं. हार्मोंस में यह बदलाव काफ़ी हद तक हमारी लाइफस्टाइल व डायट पर भी निर्भर करता है. यही वजह है कि आजकल तेज़ी से हमारा मूड और हमारे रिश्ते बदल रहे हैं, क्योंकि हर्मोंस बदल रहे हैं.
शोधों से यह बात साबित हो चुकी है कि आज के दौर में हम और ख़ासतौर से महिलाएं पहले की अपेक्षा अधिक हार्मोनल बदलाव से गुज़रती हैं. लेकिन अब यह बात भी लोग मानने लगे हैं कि हार्मोंस में होनेवाले यह बदलाव हमारे रिश्तों को भी प्रभावित करने लगे हैं.
हार्मोंस और मूड
हार्मोंस के बदलाव से बहुत कुछ बदलता है- हमारा मूड हो या शरीर में कोई परिवर्तन, हार्मोंस की उसमें अहम् भूमिका होती है.
बदलते हार्मोंस से बदलते हैं रिश्ते: जब कभी भी शरीर में हार्मोंस का असंतुलन होता है, आपकी सेक्स की इच्छा कम हो जाती है और मूड स्विंग्स बढ़ जाते हैं. ये दोनों ही चीज़ें रिश्ते को बुरी तरह प्रभावित करती हैं.
महिलाओं में सेक्सुअल डिज़ायर बनाए रखने के लिए प्रोजेस्टेरॉन और इस्ट्रोजेन में संतुलन बनाए रखना ज़रूरी है. लेकिन अधिकांश महिलाओं में इस्ट्रोजन की अधिकता होती है, जिससे सेक्स की इच्छा में कमी आती है.
प्रोजेस्टेरॉन शांत हार्मोन होता है, जो महिलाओं की सेक्सुअल हेल्थ व सामान्य सेहत को भी बेहतर बनाता है. इसी तरह से इस्ट्रोजेन का स्तर भी यदि सही व संतुलित रहेगा, तो सेक्स की इच्छा बढ़ेगी और सेक्स लाइफ बेहतर होगी. सेक्स लाइफ और रिलेशनशिप का बहुत गहरा संबंध होता है, यदि आपकी सेक्स लाइफ अच्छी है, तो आपका रिश्ता और बेहतर बनेगा और यदि सेक्स लाइफ सामान्य नहीं, तो रिश्ते पर इसका नकारात्मक प्रभाव साफ़तौर पर नज़र आएगा. यही वजह है कि हार्मोंस का संतुलन आपके रिश्ते के लिए बेहद ज़रूरी है.
सेल्फ इमेज पर प्रभाव:अगर अपने शरीर में कुछ परिवर्तन महसूस कर रहे हैं, तो इसका संबंध हार्मोंस से हो सकता है. हर्मोंस के असंतुलन से वज़न बढ़ना, थकान रहना, अचानक तेज़ गर्मी लगकर पसीना आना आदि समस्याएं हो सकती हैं. ये तमाम शारीरिक समस्याएं आपके ख़ुद को देखने के नज़रिए पर असर डालती हैं और इससे आपका रिश्ता भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहता.
प्रोजेस्टेरॉन, टेस्टॉसटेरॉन और इस्ट्रोजेन- इन तीनों हार्मोंस के असंतुलन का आपके मूड पर और सेल्फ एस्टीम (आत्मसम्मान) पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है.
इन हार्मोंस को संतुलित रखना बेहद जरूरी है, ताकि आप अपने बारे में अच्छा महसूस करें और यही सकारात्मक भाव आपके रिश्ते को भी सकारात्मक रखेगा.
आपके स्वभाव और व्यवहार भी होते हैं प्रभावित: इस्ट्रोजेन का बढ़ता स्तर आपको चिड़चिड़ा बना सकता है. साथ ही आपको अनिद्रा और मूड स्विंग्स जैसी समस्याएं भी दे सकता है. वहीं प्रोजेस्टेरॉन का घटता स्तर आपको स्वाभाव से चिंतित बना सकता है. ऐसे में यदि आप अपने स्वभाव को नियंत्रित नहीं कर पाते, तो दूसरों की नज़रों में आपकी इमेज प्रभावित हो सकती है. आपका पार्टनर भी आपको ग़लत समझ सकता है और आपके रिश्ते पर इसका बुरा असर हो सकता है.
प्रोजेस्टेरॉन के स्तर का सामान्य बनाए रखकर इस्ट्रोजेन के असर को कम किया जा सकता है, जिससे आपके स्वभाव व व्यवहार पर नकारात्मक प्रभाव न पड़े.
आपके दोस्तों व रिश्तेदारों पर भी असर हो सकता है: हर किसी की चाहत होती है कि अपने दोस्तों व क़रीबी लोगों के साथ वो अच्छा व़क्त गुज़ारे, लेकिन आपके हार्मोंस आपको बेवजह को स्ट्रेस देकर आपसे यह अच्छा व़क्त छीन सकते हैं.
किसी भी हार्मोंस के स्तर का बेहद बढ़ना या एकदम कम होना आपके स्वभाव में निराशा, चिड़चिड़ापन, चिंता, अवसाद जैसे नकारात्मक भाव को जन्म दे सकता है. इसके अलावा वज़न बढ़ना या नींद न आना जैसी शारीरिक समस्याएं भी हो सकती हैं. जिससे आपकी ख़ुशियां बहुत हद तक प्रभावित हो सकती हैं.
क्या करें?
– जब कभी भी आप ख़ुद में इस तरह के बदलाव देखें और जब ये चीज़ें आपके व्यवहार व रिश्तों पर असर डालने लगें, तो फ़ौरन एक्सपर्ट की मदद लें. ऐसा करके आप ख़ुद को भी ख़ुश रख सकते हैं और अपने रिश्तों को भी बचा सकते हैं.
– पीरियड्स से पहले व बाद में महिलाओं के हार्मोंस काफ़ी तेज़ी से बदलते हैं, यही वजह है कि उनका मूड इस दौरान काफ़ी बदलता रहता है, ऐसे में अन्य लोगों को थोड़ी समझदारी दिखानी चाहिए, ताकि इसका असर उनके रिश्ते पर न पड़े.
– हेल्दी डायट लें, क्योंकि अनहेल्दी लाइफस्टाइल से हर्मोंस असंतुलित होते हैं. चाय, कॉफी, अल्कोहल, कोल्ड ड्रिंक्स, जंक फूड जितना हो सके कम लें. इनकी जगह गाजर, ब्रोकोली, फूलगोभी, पत्तागोभी, फ्लैक्ससीड, ग्रीन टी, ड्राइ फ्रूट्स, ओट्स, दही, फ्रेश फ्रूट्स, हरी सब्ज़ियां, अदरक, लहसुन आदि अपने डायट में शामिल करें. यह तमाम चीज़ें शरीर को डिटॉक्सिफाइ करके हार्मोंस को संतुलित करती हैं.
– डार्क चॉकलेट्स भी मूड को बेहतर बनाकर डिप्रेशन दूर करता है.
– वेजीटेबल ऑयल्स की जगह ऑलिव ऑयल व कोकोनट ऑयल को शामिल करें.
– लाइट एक्सरसाइज़, योग व प्राणायाम से हार्मोंस संतुलित होते हैं.
हार्मोंस एंड बिहेवियर के नाम से हुए एक विस्तृत अध्ययन में यह पाया गया है कि किस तरह से महिलाओं के हार्मोंस, उनका अपने पार्टनर को देखने का नज़रिया और उनके रिश्ते में मज़बूत संबंध है.
दरअसल इन सबका संबंध महिलाओं के मासिक धर्म से है. अगर कोई महिला अपने पार्टनर को हॉट समझती है, तो जब उसका पीरियड क़रीब होता है, तो वो अधिक ख़ुश रहती है और अपने पार्टनर के और क़रीब आती है. जबकि यदि महिला अपने पार्टनर को बहुत हॉट नहीं समझती, तो ऑव्युलेशन के समय वो उसकी अधिक निंदा करने लगती है और उससे दूरी बनाए रखती है.
हैप्पी हार्मोंस
मात्र सेक्स ही वो शारीरिक क्रिया नहीं है, जो आपके तनाव को कम करके आपको हेल्दी रख सकती है. जी हां, यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ कैरोलिना में हुए एक अध्ययन में यह पाया गया कि गले मिलने के बाद महिलाओं और पुरुषों में ऑक्सिटोसिन का स्तर अधिक पाया गया और कार्टिसोल का स्तर कम पाया गया.
दरअसल, ऑक्सिटोसिन वो हार्मोन है, जो तनाव कम करके मूड को बेहतर बनाता है, जबकि कार्टिसोल एक स्ट्रेस हार्मोन है. ऐसे में नतीजा यह निकला कि हाथ पकड़ना, प्यार से छूना, दुलार करना आदि केयरिंग बिहेवियर भी आपको
तनावमुक्त रखककर हेल्दी बना सकता है.
हार्मोंस का बैलेंस स्वस्थ रहने के लिए बेहद ज़रूरी है. हमारी भूख, नींद, स्वाद और मूड से लेकर सेक्स लाइफ तक हार्मोंस द्वारा प्रभावित होती है. ऐसे में जब भी हार्मोंस का असंतुलन होता है, हमारा स्वास्थ्य बिगड़ता है. बहुत ज़रूरी है कि हार्मोंस का संतुलन बना रहे, ताकि हम हमेशा स्वस्थ और फिट रहें. (Home Remedies for Hormonal Imbalance)
अगर ड्राई स्किन, वज़न बढ़ना, नींद न आना या बहुत अधिक नींद आना, इंफर्टिलिटी आदि समस्याएं आपको घेर लें, तो काफ़ी हद तक संभव है कि इसकी वजह हार्मोंस का असंतुलन ही है. हार्मोंस क्या होते हैं?
ये शरीर के केमिकल मेसेंजर होते हैं. ये रक्तप्रवाह द्वारा टिश्यूज़ या अन्य अंगों तक पहुंचते हैं. ये धीरे-धीरे समय के साथ शरीर में काम करते हैं और बहुत-सी चीज़ों को प्रभावित करते हैं, जैसे-
– शरीर का विकास व निर्माण
– मेटाबॉलिज़्म- जो खाना हम खाते हैं, उससे कैसे शरीर को ऊर्जा मिलती है
– सेक्सुअल क्रिया
– रिप्रोडक्शन
– मूड आदि.
हार्मोंस के असंतुलन के सामान्य लक्षण ( Home Remedies for Hormonal Imbalance) वज़न बढ़ना: हेल्दी रहने के लिए हेल्दी लाइफस्टाइल ज़रूरी है, लेकिन हर किसी पर यह बात लागू नहीं होती. हार्मोंस के असंतुलन से हेल्दी लाइफस्टाइल के बावजूद वज़न बढ़ सकता है. ऐसे में बेहतर होगा कि प्रोसेस्ड फूड, शुगर व गेहूं को अवॉइड करें. पेट पर फैट्स का बढ़ना: जब एंडोक्राइन सिस्टम पर विपरीत प्रभाव पड़ता है, तो शरीर भविष्य के लिए फैट्स स्टोर करने लगता है, इस वजह से पेट पर फैट्स बढ़ जाता है, जबकि शरीर में थकान रहती है. सेक्स की इच्छा में कमी: इसकी शुरुआत नींद में कमी से होती है, क्योंकि क्वालिटी नींद के बिना सेक्स हार्मोंस का निर्माण कम होता है. यह एक महत्वपूर्ण लक्षण है हार्मोंस में असंतुलन का. थकान: हर व़क्त थकान महसूस करने का मतलब है हार्मोंस का संतुलन ठीक नहीं. आप डायट में बदलाव लाएं, जैसे- गेहूं व अनाज से दूर रहें. इससे बहुत फ़र्क़ पड़ेगा. चिंता, चिड़चिड़ापन और अवसाद: मूड में परिवर्तन यह बताता है कि आप बहुत ज़्यादा तनाव में हैं और अपना ध्यान नहीं रख रहे, जिस वजह से हार्मोंस असंतुलित हो रहे हैं. बेहतर होगा ख़ुद के लिए कुछ करें. हेल्दी डायट, एक्सरसाइज़, योगा को अपने रूटीन का हिस्सा बनाएं और रिलैक्स करें. अनिद्रा और डिस्टर्ब्ड स्लीप: हार्मोंस के असंतुलन से नींद बेहद प्रभावित होती है. पसीना अधिक आना: नाइट स्वेट्स और हॉट फ्लैशेज़ महिलाओं में हार्मोनल बदलाव की निशानी हैं. अचानक रात को तेज़ गर्मी व पसीना आने का मतलब है हार्मोंस में परिवर्तन हो रहा है. यह ख़ासतौर से मेनोपॉज़ के समय होता है, जब हार्मोंस काफ़ी तेज़ी से बदलते हैं. पाचन संबंधी समस्या: स्ट्रेस के कारण जो हार्मोंस में बदलाव होता है, उससे कई समस्याएं हो सकती हैं, जिनमें से पाचन से जुड़ी समस्या भी एक है. गैस, बदहज़मी या कब्ज़ की समस्या हार्मोंस में बदलाव का संकेत भी हो सकती है. इसके अलावा सिरदर्द, बदनदर्द, कई मानसिक समस्याएं भी हार्मोंस में बदलाव के कारण होती हैं. क्या करें कि बना रहे हार्मोंस का संतुलन?
– हाई ओमेगा 6 पॉलीअनसैचुरेटेड फैट्स को अवॉइड करें. हमारे शरीर को बहुत ही कम मात्रा में पॉलीअनसैचुरेटेड फैट्स की ज़रूरत होती है, लेकिन जब हम इन्हें अधिक मात्रा में लेने लगते हैं, तो शरीर इन्हें ही हार्मोंस के निर्माण के काम में प्रयोग करने लगता है, जिससे स्वास्थ्य को नुक़सान पहुंच सकता है. बेहतर होगा वेजीटेबल ऑयल्स, जैसे- पीनट, कनोला, सोयाबीन आदि का इस्तेमाल कम करके कोकोनट ऑयल, रियल बटर, ऑलिव ऑयल (बिना गर्म किए) और एनीमल फैट्स का प्रयोग करें.
– कैफीन की मात्रा कम करें. सीमित मात्रा में चाय-कॉफी ठीक है, लेकिन बहुत अधिक मात्रा में कैफीन से एंडोक्राइन सिस्टम पर विपरीत प्रभाव पड़ता है.
– टॉक्सिन्स शरीर में न जाने पाएं, इसका ख़्याल भी रखें. पेस्टिसाइड्स, प्लास्टिक्स व कोटेड बर्तनों का प्रयोग कम करें, क्योंकि इनमें ऐसे केमिकल्स होते हैं, जो शरीर को हार्मोंस निर्माण करनेवाले तत्वों का आभास देते हैं, जिससे शरीर इन्हीं तत्वों से हार्मोंस बनाने लगता है और शरीर में नेचुरल व हेल्दी हार्मोंस का निर्माण रुक सकता है. यदि आपके हार्मोंस असंतुलित हैं या आप कंसीव नहीं कर पा रहे, तो इन टॉक्सिन्स से दूर रहना बेहद ज़रूरी है. स्टील या कांच के बर्तनों का प्रयोग करें, नॉनस्टिक से दूर रहें और स्टोरेज के लिए भी प्लास्टिक का प्रयोग न करें.
– नारियल के तेल को अपने डायट में शामिल करें. यह हार्मोंस के संतुलन में मदद करता है. यह वज़न को भी नियंत्रित करता है.
हल्की-फुल्की एक्सरसाइज़ करें, क्योंकि बहुत हैवी एक्सरसाइज़ से समस्या बढ़ सकती है. बेहतर होगा योग व प्राणायाम करें. आप वॉकिंग और जॉगिंग भी कर सकते हैं.
– हेल्दी डायट लें. गाजर में अलग तरह का फाइबर होता है, जो अतिरिक्त एस्ट्रोजेन को शरीर से बाहर निकालकर डिटॉक्सीफिकेशन में मदद करता है. गाजर खाएं, ख़ासतौर से वो महिलाएं, जो पीएमएस (माहवारी से पहले होनेवाली समस्याएं) से परेशान हों.
ब्रोकोली, पत्तागोभी व फूलगोभी जैसी सब्ज़ियों में फाइटोन्यूट्रिएंट्स की भरमार होती है, जो टॉक्सिन्स को कंट्रोल करके हार्मोंस को बैलेंस रखते हैं और कैंसर जैसे रोगों से बचाव भी करते हैं.
– फ्लैक्ससीड भी बहुत हेल्दी है. अपने डेली डायट में 2-3 टीस्पून फ्लैक्ससीड को शामिल करें.
– ग्रीन टी मेटाबॉलिज़्म को बेहतर करके फैट्स भी बर्न करती है. इसमें मौजूद थियानाइन नामक नेचुरल कंपाउंड हार्मोंस का संतुलन बनाए रखने में कारगर है.
– एक्स्ट्रा वर्जिन ऑलिव ऑयल हेल्दी होता है और वेजीटेबल ऑयल की बजाय इसे डायट में शामिल करें.
– एवोकैडो में बीटा-साइटॉस्टेरॉल नाम का प्राकृतिक तत्व होता है, जो ब्लड कोलेस्ट्रॉल को कम करने के साथ-साथ स्ट्रेस हार्मोंस
(कोर्टिसॉल) को भी बैलेंस करता है. यह एड्रेनल ग्लैंड द्वारा बनाए जानेवाले हार्मोन (डीएचईए) के कम होते स्तर को बहाल करता है.
– ड्रायफ्रूट्स बहुत हेल्दी होते हैं. बादाम में प्रोटीन, फाइबर और कई तरह के पोषक तत्व होते हैं. अखरोट में मेलाटोनिन होता है. यह एक तरह का हार्मोन होता है, जो अच्छी नींद में सहायक होता है. इसमें भूख को नियंत्रण में रखनेवाले तत्व होते हैं. शोध में पाया गया है कि हफ़्ते में 5 दिन मुट्ठीभर अखरोट खाने से आवश्यक फैट्स शरीर को मिल जाता है, जो लैप्टिन (एक प्रकार का प्रोटीन) के निर्माण को बढ़ाता है. लैप्टिन ही वह तत्व है, जो भूख को नियंत्रित करता है.
– पानी उचित मात्रा में पीएं, क्योंकि डिहाइड्रेशन के कारण कुछ हार्मोंस का निर्माण अधिक होने लगता है. बेहतर होगा शरीर में पानी की कमी न होने दी जाए.
– दालचीनी भी हार्मोंस को संतुलित रखने में सहायक है. दालचीनी पाउडर को अपने डायट में शामिल करें. यह इंसुलिन को भी काफ़ी हद तक संतुलित रखता है.
– ओट्स न स़िर्फ ढेर सारे पोषक तत्वों से भरपूर होता है, ये ब्लड शुगर व इंसुलिन को भी संतुलित रखता है. ओट्स आपके हार्मोंस का बैलेंस बनाए रखता है और आपको हेल्दी भी बनाता है.
– दही बहुत हेल्दी होता है. ये शरीर में हेल्दी बैक्टीरिया के संतुलन को बनाए रखता है और बहुत-से हार्मोंस को भी संतुलित रखता है. इम्यूनिटी बढ़ाता है और शोधों से पता चला है कि आधा कप दही रोज़ खाने से सर्दी और फ्लू होने की फ्रिक्वेंसी कम होती है.
– अनार को ज़रूर डायट में शामिल करें. अध्ययन बताते हैं कि अनार कैंसर उत्पन्न करनेवाले हार्मोंस को नियंत्रित करके कैंसर से बचाव करता है.
– हल्दी न स़िर्फ खाने का स्वाद बढ़ाती है, बल्कि इसका हार्मोंस बैलेंसिंग इफेक्ट हमें हेल्दी भी रखता है.
– डार्क चॉकलेट मूड ठीक करके डिप्रेशन दूर करता है. यह एंडॉर्फिन हार्मोंस के स्तर को बढ़ाता है और इसमें मौजूद कई अन्य तत्व भी फील गुड के एहसास को बढ़ानेवाले हार्मोंस को बढ़ाकर डिप्रेशन दूर करते हैं. रोज़ डार्क चॉकलेट का 1 इंच का ब्लॉक खाएं.
– अदरक, लहसुन, कालीमिर्च, जीरा, करीपत्ता आदि में भी हार्मोंस को संतुलित रखने के गुण होते हैं. इन सभी को अपने डेली डायट में शामिल करें.