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स्टैच्यु ऑफ यूनिटी: दुनिया में सबसे ऊंचे सरदार! (Statue Of Unity: World’s Tallest Statue)

World's Tallest Statue
स्टैच्यु ऑफ यूनिटी: दुनिया में सबसे ऊंचे सरदार! (Statue Of Unity: World's Tallest Statue)
देश के पहले गृह मंत्री सरदार पटेल (Sardar Vallabhbhai Patel) के सम्मान में बनाई जा रही दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा (World's Tallest Statue) स्टैच्यु ऑफ यूनिटी (Statue Of Unity) अब तैयार है. उसका अनावरण भी 31 अक्टूबर 2018 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) के द्वारा किया जा चुका है. सरदार पटेल की जन्म तिथि के अवसर पर इस मूर्ति का अनावरण किया गया. यह प्रतिमा गुजरात के नर्मदा ज़िले में सरदार सरोवर बांध के पास एक टापू पर स्थापित की गई है. यह ऊंचाई 597 फीट यानी 182 मीटर ऊंची है. इसे 7 किलोमीटर की दूरी से भी देखा जा सकता है. इससे पहले चीन में बनी भगवान बुद्ध की दुनिया की सबसे उंची मूर्ति लोगों के आकर्षण का केंद्र थी, लेकिन अब दुनिया में हैं सबसे ऊंचे सरदार! इस मूर्ति के बनने से जहां पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा, वहीं दुनिया में सबसे ऊंची प्रतिमा बनाने का श्रेय व गौरव भी भारत को मिलेगा. इसके आसपास ख़ूबसूरत गार्डन बनाया गया है. हालांकि कुछ लोगों ने सरदार पटेल की प्रतिमा पर आई लागत की बात कहते हुए इसका विरोध भी किया था, लेकिन वही लोग जब चीन या अमेरिका जाते हैं, तो स्प्रिंग टेंबल ऑफ बुद्धा या स्टैच्यु ऑफ लिबर्टी के सामने फोटो क्लिक करवाकर बड़ी शान से सोशल मीडिया पर डालते हैं. इन तमाम विवादों के बीच भी यह मूर्ति अब बनकर तैयार है और लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी हुई है. यह भी पढ़ें: गरीबों का मसीहा- मेडिसिन बाबा (The Incredible Story Of ‘Medicine Baba’) स्टैच्यु ऑफ यूनिटी से जुड़ी ख़ास बातें... - सरदार पटेल कॉम्प्लेक्स में सरकार ने तीन सितारा होटल, शॉपिंग सेंटर और रिसर्च सेंटर भी बनाया है. - हाई स्पीड एलीवेटर्स आपको 400 फीट की ऊंचाई पर लेकर जाएंगे, जहां से आपको आसपास का पैनोरैमिक व्यू मिलेगा. - सेल्फी के शौक़ीनों का भी ख़ास ध्यान रखा गया है और उनके लिए बनाया गया है ख़ास सेल्फी पॉइंट. - एक म्यूज़ियम और ऑडियो-विज़ुअल गैलरी भी तैयार की गई है. - लेज़र लाइट शो का भी प्रबंध है. - 3 साल तक की उम्र के बच्चों के लिए फ्री एंट्री है. - उसके बाद 350 रूपए प्रति व्यक्ति टिकट है. - इसके अलावा सस्ता विकल्प भी मौजूद है.

- गीता शर्मा

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भारत में डोमेस्टिक वॉयलेंस से 40% अधिक मौतें… (Domestic Violence In India)

Domestic Violence
भारत में डोमेस्टिक वॉयलेंस से 40% अधिक मौतें... (Domestic Violence In India)
बेटी होना कोई गुनाह नहीं है, लेकिन हमारी सामाजिक सोच ने इसे भी किसी अपराध से कम नहीं बना रखा है... बेटियों को हर बात पर हिदायतें दी जाती हैं, हर पल उसे एहसास करवाया जाता है कि ये जो भी तुम पहन रही हो, खा रही हो, हंस रही हो, बोल रही हो... सब मेहरबानी है हमारी... घरों में इसी सोच के साथ उसका पालन-पोषण होता है कि एक दिन शादी हो जाएगी और ज़िम्मेदारी ख़त्म... ससुराल में यही जताया जाता है कि इज़्ज़त तभी मिलेगी, जब पैसा लाओगी या हमारे इशारों पर नाचोगी... इन सबके बीच एक औरत पिसती है, घुटती है और दम भी तोड़ देती है... भारत के घरेलू हिंसा व उससे जुड़े मृत्यु के आंकड़े इसी ओर इशारा करते हैं... वो कहते हैं तुम आज़ाद हो... तुम्हें बोलने की, मुस्कुराने की थोड़ी छूट दे दी है हमने... वो कहते हैं अब तो तुम ख़ुश हो न... तुम्हें आज सखियों के संग बाहर जाने की इजाज़त दे दी है... वो कहते हैं अपनी आज़ादी का नाजायज़ फ़ायदा मत उठाओ... कॉलेज से सीधे घर आ जाओ... वो कहते हैं शर्म औरत का गहना है, ज़ोर से मत हंसो... नज़रें झुकाकर चलो... वो कहते हैं तुमको पराये घर जाना है... जब चली जाओगी, तब वहां कर लेना अपनी मनमानी... ये कहते हैं, मां-बाप ने कुछ सिखाया नहीं, बस मुफ़्त में पल्ले बांध दिया... ये कहते हैं, इतना अनमोल लड़का था और एक दमड़ी इसके बाप ने नहीं दी... ये कहते हैं, यहां रहना है, तो सब कुछ सहना होगा, वरना अपने घर जा... वो कहते हैं, सब कुछ सहकर वहीं रहना होगा, वापस मत आ... ये कहते हैं पैसे ला या फिर मार खा... वो कहते हैं, अपना घर बसा, समाज में नाक मत कटा... और फिर एक दिन... मैं मौन हो गई... सबकी इज़्ज़त बच गई...!  
घरेलू हिंसा और भारत...
  • भारत में डोमेस्टिक वॉयलेंस व प्रताड़ना के बाद महिलाओं की मृत्यु की लगभग 40% अधिक आशंका रहती है, बजाय अमेरिका जैसे विकसित देश के... यह ख़तरनाक आंकड़ा एक सर्वे का है.
  • वॉशिंगटन में हुए इस सर्वे का ट्रॉमा डाटा बताता है कि भारत में महिलाओं को चोट लगने के तीन प्रमुख कारण हैं- गिरना, ट्रैफिक एक्सिडेंट्स और डोमेस्टिक वॉयलेंस.
  • 60% भारतीय पुरुष यह मानते हैं कि वो अपनी पत्नियों को प्रताड़ित करते हैं.
  • हाल ही में हुए एक सर्वे के अनुसार महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित देशों में भारत अब पहले स्थान पर पहुंच चुका है. हालांकि इस सर्वे और इसका सैंपल साइज़ विवादों के घेरे में है और अधिकांश भारतीय यह मानते हैं कि यह सही नहीं है...
  • 2011 में भी एक सर्वे हुआ था, जिसमें यूनाइटेड नेशन्स के सदस्य देशों को शामिल किया गया था, उसमें पहले स्थान पर अफगानिस्तान, दूसरे पर कांगो, तीसरे पर पाकिस्तान था और भारत चौथे स्थान पर था.
  • भारतीय सरकारी आंकड़े भी बताते हैं कि 2007 से लेकर 2016 के बीच महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराधों में 83% इज़ाफ़ा हुआ है.
  • हालांकि हम यहां बात घरेलू हिंसा की कर रहे हैं, लेकिन ये तमाम आंकड़े समाज की सोच और माइंड सेट को दर्शाते हैं.
  • नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक़, प्रोटेक्शन ऑफ वुमन फ्रॉम डोमेस्टिक वॉयलेंस एक्ट के पास होने के बाद से (2005) अब तक लगभग दस लाख से अधिक केसेस फाइल किए गए, जिनमें पति की क्रूरता और दहेज मुख्य कारण हैं.
मानसिकता है मुख्य वजह
  • हमारे समाज में पति को परमेश्‍वर मानने की सीख आज भी अधिकांश परिवारों में दी जाती है.
  • पति और उसकी लंबी उम्र से जुड़े तमाम व्रत-उपवास को इतनी गंभीरता से लिया जाता है कि यदि किसी घर में पत्नी इसे न करे, तो यही समझा जाता है कि उसे अपने पति की फ़िक़्र नहीं.
  • इतनी तकलीफ़ सहकर वो घर और दफ़्तर का रोज़मर्रा का काम भी करती हैं और घर आकर पति के आने का इंतज़ार भी करती हैं. उसकी पूजा करने के बाद ही पानी पीती हैं.
  • यहां कहीं भी यह नहीं सिखाया जाता कि शादी से पहले भी और शादी के बाद भी स्त्री-पुरुष का बराबरी का दर्जा है. दोनों का सम्मान ज़रूरी है.
  • किसी भी पुरुष को शायद ही आज तक घरों में यह सीख व शिक्षा दी जाती हो कि आपको हर महिला का सम्मान करना है और शादी से पहले कभी किसी भी दूल्हे को यह नहीं कहा जाता कि अपनी पत्नी का सम्मान करना.
  • ऐसा इसलिए होता है कि दोनों को समान नहीं समझा जाता. ख़ुद महिलाएं भी ऐसा ही सोचती हैं.
  • व्रत-उपवासवाले दिन वो दिनभर भूखी-प्यासी रहकर ख़ुद को गौरवान्वित महसूस करती हैं कि अब उनके पति की उम्र लंबी हो जाएगी.
  • इसे हमारी परंपरा से जोड़कर देखा जाता है, जबकि यह लिंग भेद का बहुत ही क्रूर स्वरूप है.
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कहीं न कहीं लिंग भेद से ही उपजती हैं ये समस्याएं...
  • महिलाओं के ख़िलाफ़ जितने भी अत्याचार होते हैं, चाहे दहेजप्रथा हो, भ्रूण हत्या हो, बलात्कार हो या घरेलू हिंसा... इनकी जड़ लिंग भेद ही है.
  • बेटा-बेटी समान नहीं हैं, यह सोच हमारे ख़ून में रच-बस चुकी है. इतनी अधिक कि जब पति अपनी पत्नी पर हाथ उठाता है, तो उसको यही कहा जाता है कि पति-पत्नी में इस तरह की अनबन सामान्य बात है.
  • यदि कोई स्त्री पलटवार करती है, तो उसे इतनी जल्दी समर्थन नहीं मिलता. उसे हिदायतें ही दी जाती हैं कि अपनी शादी को ख़तरे में न डाले.
  • शादी को ही एक स्त्री के जीवन का सबसे अंतिम लक्ष्य माना जाता है. शादी टूट गई, तो जैसे ज़िंदगी में कुछ बचेगा ही नहीं.
शादी एक सामान्य सामाजिक प्रक्रिया मात्र है...
  • यह सोच अब तक नहीं पनपी है कि शादी को हम सामान्य तरी़के से ले पाएं.
  • जिस तरह ज़िंदगी के अन्य निर्णयों में हमसे भूल हो सकती है, तो शादी में क्यों नहीं?
  • अगर ग़लत इंसान से शादी हो गई है और आपको यह बात समय रहते पता चल गई है, तो झिझक किस बात की?
  • अपने इस एक ग़लत निर्णय का बोझ उम्रभर ढोने से बेहतर है ग़लती को सुधार लिया जाए.
  • पैरेंट्स को भी चाहिए कि अगर शादी में बेटी घरेलू हिंसा का शिकार हो रही है या दहेज के लिए प्रताड़ित की जा रही है, तो जल्दी ही निर्णय लें, वरना बेटी से ही हाथ धोना पड़ेगा.
  • यही नहीं, यदि शादी के समय भी इस बात का आभास हो रहा हो कि आगे चलकर दहेज के लिए बेटी को परेशान किया जा सकता है, तो बारात लौटाने में कोई झिझक नहीं होनी चाहिए.
  • ग़लत लोगों में, ग़लत रिश्ते में बंधने से बेहतर है बिना रिश्ते के रहना. इतना साहस हर बेटी कर सके, यह पैरेंट्स को ही उन्हें सिखाना होगा.
सिर्फ प्रशासन व सरकार से ही अपेक्षा क्यों?
  • हमारी सबसे बड़ी समस्या यही है कि हम हर समस्या का समाधान सरकार से ही चाहते हैं.
  • अगर घर के बाहर कचरा है, तो सरकार ज़िम्मेदार, अगर घर में राशन कम है, तो भी सरकार ज़िम्मेदार है...
  • जिन समस्याओं के लिए हमारी परवरिश, हमारी मानसिकता व सामाजिक परिवेश ज़िम्मेदार हैं. उनके लिए हमें ही प्रयास करने होंगे. ऐसे में हर बात को क़ानून, प्रशासन व सरकार की ज़िम्मेदारी बताकर अपनी ज़िम्मेदारियों से मुंह मोड़ लेना जायज़ नहीं है.
  • हम अपने घरों में किस तरह से बच्चों का पालन-पोषण करते हैं, हम अपने अधिकारों व स्वाभिमान के लिए किस तरह से लड़ते हैं... ये तमाम बातें बच्चे देखते व सीखते हैं.
  • बेटियों को शादी के लिए तैयार करने व घरेलू काम में परफेक्ट करने के अलावा आर्थिक रूप से भी मज़बूत करने पर ज़ोर दें, ताकि वो अपने हित में फैसले ले सकें.
  • अक्सर लड़कियां आर्थिक आत्मनिर्भरता न होने की वजह से ही नाकाम शादियों में बनी रहती हैं. पति की मार व प्रताड़ना सहती रहती हैं. बेहतर होगा कि हम बेटियों को आत्मनिर्भर बनाएं और बेटों को सही बात सिखाएं.
  • पत्नी किसी की प्राइवेट प्रॉपर्टी नहीं है, सास-ससुर को भी यह समझना चाहिए कि अगर बेटा घरेलू हिंसा कर रहा है, तो बहू का साथ दें.
  • पर अक्सर दहेज की चाह में सास-ससुर ख़ुद उस हिंसा में शामिल हो जाते हैं, पर वो भूल जाते हैं कि उनकी बेटी भी दूसरे घर जाए और उसके साथ ऐसा व्यवहार हो, तो क्या वो बर्दाश्त करेंगे?
  • ख़ैर, किताबी बातों से कुछ नहीं होगा, जब तक कि समाज की सोच नहीं बदलेगी और समाज हमसे ही बनता है, तो सबसे पहले हमें अपनी सोच बदलनी होगी.
बेटों को दें शिक्षा...
  • अब वो समय आ चुका है, जब बेटों को हिदायतें और शिक्षा देनी ज़रूरी है.
  • पत्नी का अलग वजूद होता है, वो भी उतनी ही इंसान है, जितनी आप... तो किस हक से उस पर हाथ उठाते हैं?
  • शादी आपको पत्नी को पीटने का लायसेंस नहीं देती.
  • अगर सम्मान कर नहीं सकते, तो सम्मान की चाह क्यों?
  • शादी से पहले हर पैरेंट्स को अपने बेटों को ये बातें सिखानी चाहिए, लेकिन पैरेंट्स तो तभी सिखाएंगे, जब वो ख़ुद इस बात को समझेंगे व इससे सहमत होंगे.
  • पैरेंट्स की सोच ही नहीं बदलेगी, तो बच्चों की सोच किस तरह विकसित होगी?
  • हालांकि कुछ हद तक बदलाव ज़रूर आया, लेकिन आदर्श स्थिति बनने में अभी लंबा समय है, तब तक बेहतर होगा बेटियों को सक्षम बनाएं और बेटों को बेहतर इंसान बनाएं.

- गीता शर्मा

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Proud Moment: विनेश फोगाट ने रचा इतिहास… एशियाड में भारत का महिला कुश्ती वर्ग का पहला गोल्ड (Vinesh Phogat Creates History After Winning Gold At Asian Games)

Vinesh Phogat Proud Moment: विनेश फोगाट ने रचा इतिहास... एशियाड में भारत का महिला कुश्ती वर्ग का पहला गोल्ड (Vinesh Phogat Creates History After Winning Gold At Asian Games) एशियन गेम्स में स्वर्ण पदक जीतने पर ढेरों शुभकामनाएं... विदेश (Vinesh Phogat) ने इतिहास रच दिया, एशियाड में भारत का महिला कुश्ती वर्ग का पहला गोल्ड. पूरे देश को आप पर गर्व है! ग़ौरतलब है कि इन दिनों जकार्ता में चल रहे एशियन गेम्स में भारत का ये दूसरा गोल्ड है... रविवार को रेस्लर बजरंग पुनिया ने भी भारत की झोली में गोल्ड डाला था!

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गोल्डन गर्ल हिमा दास की कामयाबी ने प्रधानमंत्री मोदी को किया भावुक (Seeing Her Passionately Search For The Tricolour Touched Me Deeply: PM Narendra Modi)

  Athlete Hima Das
भारतीय ऐथ्लीट हिमा दास ने गुरुवार को आईएएएफ विश्व अंडर २० एथलेटिक्स चैम्पीयन्शिप की ४०० मीटर दौड़ में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया है. ये चैम्पीयन्शिप फ़िनलैंड के टेम्पेयर शहर में हुई थी. ऐसा करके अब हिमा ट्रैक स्पर्धा में गोल्ड मेडल जीतनेवाली पहली भारतीय खिलाड़ी बन गई हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने भी उनकी तारीफ़ करते हुए उन्हें बधाई दी... मोदी जी ने कहा...जीत के बाद तिरंगे के लिए जो प्यार हिमा के जज़्बे में दिखा और राष्ट्रगान के समय उनका भावुक होना मेरे मन को भीतर तक छू गया! यह देखने के बाद आख़िर किस भारतीय की आँखें नम ना होंगी! आप देखें प्रधानमंत्री मोदी ने जो वीडियो ट्विटर पर शेयर किया https://twitter.com/narendramodi/status/1017980225190334466 असम की रहनेवाली हिमा १८ साल की हैं और ग़रीब किसान की बेटी हैं... हम सबको उनपर गर्व है!

- गीता शर्मा

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प्रधानमंत्री मोदी ने स्वीकार की विराट कोहली की यह चुनौती… कहा- चैलेंज एक्सेप्टेड विराट! (Challenge Accepted Virat: Will B Sharing My Own #FitnessChallenge Video Soon-PM Modi)

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प्रधानमंत्री मोदी ने स्वीकार की विराट कोहली की यह चुनौती... कहा- चैलेंज एक्सेप्टेड विराट! (Challenge Accepted Virat: Will B Sharing My Own #FitnessChallenge Video Soon-PM Modi)
खेल मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने पिछले दिनों एक वीडियो सोशल मीडिया पर अपलोड किया था, जिसमें उन्होंने खेल और बॉलीवुड की हस्तियों को टैग किया था और उनसे अपील की थी कि देश में फिटनेस को लेकर जागरूकता अभियान में वे सबको प्रेरित करें. राठौड़ ने टीम इंडिया के कप्तान विराट कोहली को भी ये चैलेंज दिया था और विराट ने खेल इस चैलेंज को स्वीकार भी किया. विराट ने वीडियो शेयर करते हुए लिखा... मैंने राज्यवर्धन सर का फिटनेस चैलेंज स्वीकार कर लिया है. अब मैं अपनी पत्नी अनुष्का शर्मा, हमारे पीएम नरेंद्र मोदी जी और धोनी भाई को यह चैलेंज दे रहा हैं. दिलचस्प बात यह है कि विराट के इस चैलेंज को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वीकार कर लिया है. उन्होंने ट्वीट किया- चैलेंज स्वीकार है विराट. जल्द ही अपना फिटनेस चैलेंज वीडियो शेयर करूंगा. ग़ौरतलब है कि राठौड़ ने हम फिट तो इंडिया फिट हैशटैग से ट्विटर पर यह फिटनेस चैलेंज शुरू किया है. ट्विटर पर अपलोड वीडियो में राठौड़ ख़ुद अपने दफ्तर में ही व्यायाम करते नज़र आ रहे हैं. सोशल मीडिया पर लोग राठौड़ की इस मुहिम की काफ़ी प्रशंसा कर रहे हैं और इसे अच्छा-ख़ासा रेस्पॉन्स भी दे रहे हैं.
आप भी पढ़ें इन सभी के ट्टीट्स
https://twitter.com/narendramodi/status/999483037669879808   https://twitter.com/Ra_THORe/status/998800601243881472?ref_src=twsrc%5Etfw&ref_url=http%3A%2F%2Fzeenews.india.com%2Fhindi%2Findia%2Fpm-modi-accept-virat-kohli-fitness-challenge%2F403617&tfw_creator=ZeeNewsHindi&tfw_site=ZeeNewsHindi https://twitter.com/imVkohli/status/999297347032055808 यह भी पढ़ें: विराट कोहली चाहते हैं कि उनके बच्चे हों, लेकिन इस शर्त पर… 

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आज भी होते हैं लड़कियों के वर्जिनिटी टेस्ट्स…! (‘Stop the V-Ritual’: The Fight To End Virginity Test)

  • कोई इस तथ्य को माने या न माने, लेकिन सच यही है कि आज भी भारतीय समाज में शादी से पहले लड़की का वर्जिन (Virgin) होना एक अनिवार्य शर्त होती है.
  • लड़का वर्जिन है या नहीं, इससे किसी को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता, लेकिन लड़की पर सबकी नज़र रहती है.
  • दरअसल, वर्जिनिटी (Virginity) को घर की व लड़की की इज़्ज़त से जोड़कर देखा जाता है. आज भी यह सोच कायम है.
  • शादी से पहले सेक्स की बात तो दूर, प्रेम-संबंध तक भी हमारे समाज के बहुत बड़े तबके में स्वीकार्य नहीं है.
  • लड़की की वर्जिनिटी को उसके चरित्र के साथ जोड़ा जाता है, लड़कों के लिए तो यह मात्र उनकी उम्र का दोष होता है.
वर्जिनिटी का क्या अर्थ है?
लड़की के कुंआरेपन को वर्जिनिटी कहा जाता है यानी जिस लड़की ने पहले कभी सेक्स न किया हो, वो वर्जिन है. इसे जांचने-परखने के कई तरी़के भी हमारे समाज में इजाद किए गए हैं, जिनमें सबसे हास्यास्पद है- शादी की पहली रात को स़फेद चादर बिछाकर यह देखना कि सेक्स के बाद चादर पर ख़ून के धब्बे हैं या नहीं. दरअसल, वर्जिनिटी को लेकर इतनी ग़लतफ़हमियां हैं कि पढ़े-लिखे लोग भी इसे समझना नहीं चाहते.
वर्जिनिटी से जुड़े मिथ्स
  • पहली बार संबंध बनाने पर ख़ून निकलता है: यह सबसे बड़ा मिथ है. 90% मामलों में पहली बार सेक्स (Sex) करने पर भी ख़ून नहीं निकलता. यह हम नहीं, रिसर्च बताते हैं.
  • हाइमन पहली बार सेक्स से ही टूटता है: सबसे बड़ा तथ्य यह है कि कई लड़कियों में तो जन्म से ही हाइमन नहीं होता. वैसे भी आजकल शादी करने की उम्र बढ़ गई है. लड़कियां फिज़िकली भी एक्टिव हो गई हैं, जिसमें कभी खेल-कूद के दौरान, कभी साइकिलिंग, स्विमिंग, तो कभी अन्य एक्टिविटी के चलते लड़कियों की योनि की झिल्ली फट जाती है.
  • पहली बार सेक्स करने पर वर्जिन लड़कियों को दर्द होता है: यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है और शरीर से ज़्यादा यह मस्तिष्क से जुड़ा होता है. यदि लड़का-लड़की मानसिक रूप से सेक्स के लिए तैयार हैं, तो काफ़ी हद तक संभावना है कि दर्द नहीं होगा. दूसरी बात, यदि फोरप्ले बेहतर ढंग से किया गया हो, तब भी दर्द की संभावनाएं कम हो जाती हैं.
  • टु फिंगर टेस्ट: बहुत-से लोगों का मानना है कि यह सबसे सटीक तरीक़ा है लड़कियों की वर्जिनिटी का पता लगाने का, जबकि ऐसा कोई भी टेस्ट नहीं है, जिससे यह पता लगाया जा सके कि लड़की ने पहले सेक्स किया है या नहीं.
  • वर्जिन लड़की का वेजाइना छोटे आकार का होता है: सभी लड़कियों के वेजाइना का आकार उसके बॉडी शेप पर निर्भर करता है. वेजाइना का छोटा-बड़ा, टाइट या लूज़ होना वर्जिनिटी से संबंध नहीं रखता. इन सबके कई अन्य कारण भी हो सकते हैं.
  • बेहतर होगा अपने पार्टनर पर भरोसा रखा जाए और अपनी लव लाइफ को एक ख़ून के धब्बे के भरोसे न रखकर उसे एंजॉय किया जाए.
यहां आज भी पंचायत निर्धारित करती है लड़की की वर्जिनिटी
हम 21वीं सदी में हैं और हम में से अधिकांश लोग यही सोचते होंगे कि इस ज़माने में वर्जिनिटी टेस्ट की बातें बेकार हैं. आजकल लोग सुलझे हुए हैं. लेकिन ऐसा है नहीं. मात्र चंद लोग ही हैं, जिनके लिए लड़कियों की वर्जिनिटी के कोई मायने नहीं. महाराष्ट्र के पुणे के इलाके में ही कंजरभाट एक ऐसा समुदाय है, जहां पंचायत की देखरेख में शादी की पहली रात को वर्जिनिटी टेस्ट करवाया जाता है. स़फेद चादर बिछाकर यह देखा जाता है कि लड़की वर्जिन है या नहीं. शादी की रात दुल्हन के सारे गहने और चुभनेवाली तमाम चीज़ें निकलवा दी जाती हैं, ताकि उससे घायल होकर कहीं ख़ून के धब्बे न लग जाएं. इस टेस्ट में फेल होने पर दुल्हन को कई तरह की यातनाएं दी जाती हैं. पंचायत उसे सज़ा सुनाती है और यहां तक कि पहले इस तरह की घटनाएं भी हुई हैं, जहां शादी को रद्द तक कर दिया जाता था. लेकिन अब इसी समुदाय के एक युवा विवेक तमाइचिकर ने आगे आकर इस कुप्रथा को रोकने के लिए मोर्चा खोल दिया है. स्टॉप द वी रिचुअल नाम से विवेक और उनकी कज़िन प्रियंका तमाइचिकर ने व्हाट्सऐप ग्रुप बनाया है. उनकी ही तरह अन्य युवा भी इस ग्रुप का हिस्सा हैं. हालांकि इन युवाओं की राह इतनी आसान नहीं है, क्योंकि पंचायत का विरोध करने पर इन्हें मारा जाता है. ये पुलिस की मदद भी ले रहे हैं, लेकिन इस कुप्रथा को जड़ से मिटाना इतना आसान भी नहीं. यह भी पढ़ें: रोड सेफ्टी रूल्स
...मेरे लिए वर्जिनिटी एक अंधविश्‍वास है!
जी हां, यह कहना है विवेक का, जिन्होंने स्टॉप द वी रिचुअल की शुरुआत की. इसी संदर्भ में हमने ख़ुद विवेक से ख़ास बातचीत की. विवेक तमाइचिकर पत्नी ऐश्‍वर्या के साथ मैं 5वीं क्लास में था, जब मैंने घर पर एक तरह से हिंसा देखी. मैं अपनी कज़िन की शादी में गया था, अगले दिन उसी के साथ मारपीट हो रही थी. मेरे लिए असमंजस की स्थिति थी, क्योंकि उस उम्र में यह सब समझना बेहद मुश्किल था. मैं टयूशन गया, तो टीचर ने भी पूछा कैसी रही शादी? मैंने कह दिया कि लड़की ख़राब निकली... तो यह होता है, जब आप उसी चीज़ को देखकर पले-बढ़े होते हों. फिर टीनएज आते-आते मुझे समझ में आने लगा कि नहीं, कुछ तो ग़लत है. और उम्र बढ़ी, कॉलेज गया, तो और बातें समझ में आने लगीं और महसूस हुआ कि यह इंसानियत के ख़िलाफ़ है. फिर मेरी सगाई ऐश्‍वर्या से हुई, तो उसके सामने मैंने अपने विचार रखे और मैंने उससे पूछा, तो उसने भी मेरा साथ देना ठीक समझा. हालांकि हमें एक बेहद कंज़र्वेटिव कम्यूनिटी और समाज से लोहा लेना था, लेकिन यह ज़रूरी था, क्योंकि मेरे लिए वर्जिनिटी एक अंधविश्‍वास है. मेरी कज़िन प्रियंका भी बहुत ही डेडिकेटेड थी इस कैंपेन को लेकर. हमने व्हाट्सऐप ग्रुप बनाया, युवा हमारे साथ जुड़ने लगे. फेसबुक पर लिखना शुरू किया, तो और असर हुआ. कई लोगों का साथ मिला. अगस्त में राइट टु प्राइवेसी एक्ट और ट्रिपल तलाक़ नियमों के बाद मैंने फेसबुक पर अपने कैंपेन को थोड़ा एग्रेसिवली आगे बढ़ाया, जिससे बहुत-से युवाओं का मुझे अच्छा रेस्पॉन्स मिला. यह देखकर अच्छा लगा कि लोगों का माइंडसेट बदल रहा है. प्रियंका तमाइचिकर
फैमिली का क्या रेस्पॉन्स था?
परिवारवाले चूंकि उसी कंज़र्वेटिव समाज का हिस्सा थे, तो उनके मन में डर भी था और कंफ्यूज़न भी. उन्होंने विरोध ही किया मेरा. उनके मन में पंचायत का डर था. समाज से निकाले जाने का डर था, तो यह उनका माइंडसेट था, पर मुझे जो करना था, वो करना ही था. मैं ख़ासतौर से अपनी पत्नी ऐश्‍वर्या भट्ट और  बहन प्रियंका को सैल्यूट करना चाहूंगा कि दोनों ने मुझे बहुत सपोर्ट किया. दोनों लड़कियां हैं और उनसे बेहतर इस विषय की संवेदनशीलता को कौन समझ सकता है भला. उनका डेडिकेशन काबिले तारीफ़ है. इस कैंपेन में प्रियंका ने भी बहुत बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और मेरा साथ दिया. यह भी पढ़ें: महंगी दवाओं का बेहतर विकल्प- जेनेरिक मेडिसिन्स
कभी डर नहीं लगा?
नहीं, कभी भी नहीं, क्योंकि मेरे लिए कोई दूसरा रास्ता था ही नहीं. मुझे इसी रास्ते पर चलना था. यह अमानवीय कृत्य मेरी बर्दाश्त के बाहर था. कंजरभाट समाज में मेरा कोई स्थान नहीं है, लेकिन मेरी जीत इसी में है कि मुझे फोन पर कहा जाता है कि समाज के लोग ग़ुस्सा हैं, ये सब बंद क्यों नहीं कर देते, तो मैं यही कहता हूं कि समाज के लोग बदल क्यों नहीं जाते? मेरे कैंपेन का असर हो रहा है, इसीलिए तो मुझसे आप बात कर रहे हो? उन्हें लगता है कि मैंने वर्जिनिटी जैसे टैबू टॉपिक को खुलेआम चर्चा का विषय बना दिया. सोशल मीडिया व मीडिया में भी इस पर हम बात करते हैं, तो ज़ाहिर है लोगों का माइंडसेट ज़रूर बदलेगा. यहां तक कि समाज के भी कुछ लोग यह जानते और मानते हैं कि मैं सही हूं, पर उनमें समाज के विरुद्ध खड़े होने की हिम्मत नहीं. मुझमें है, मैं करूंगा.
आप लोगों पर हमले भी होते रहते हैं?
जी हां, सीधेतौर पर तो नहीं, पर परोक्ष रूप से कभी व्हाट्सऐप के ग्रुप बनाकर, तो कभी गुंडों से पिटवाकर हमें धमकाया जाता है. सामाजिक रूप से बहिष्कार करके भी हमारे जज़्बे को तोड़ने की कोशिशें होती हैं, लेकिन इससे हमारे हौसले कम नहीं होनेवाले.
कहीं कोई बदलाव नज़र आ रहा है?
जी हां, मैं आपको कुछ रोज़ पहले की ही घटना बताता हूं. हमें एक शादी में बुलाया गया. वो परिवार काफ़ी रसूख़दार था. उस शादी में पंचायत को वो अधिकार नहीं दिए गए, जो पारंपरिक रूप से दिए जाते रहे हैं अब तक. इसके अलावा हमें वहां ख़ासतौर से बुलाया गया, सम्मान दिया गया. जो शगुन की बातें होती हैं, जिनसे लिंग भेद न हो व समाज को नुक़सान न हो, उसका हमने भी विरोध नहीं किया, लेकिन वहां उस परंपरा को पूरी तरह से तोड़ दिया गया, जिसके लिए कंजरभाट समाज जाना जाता है. हमें बेहद ख़ुशी हुई. हालांकि जब हम बाहर आए, तो हमारी गाड़ी का कांच टूटा हुआ था, जो पंचायत के लोगों ने ही ग़ुस्से में किया था. पर यही तो हमारी जीत थी.
पंचायत किस तरह से करती है वर्जिनिटी टेस्ट?
यह इतना अमानवीय है कि आपको यक़ीन नहीं होगा कि इस युग में भी ये सब होता है. शादी के व़क्त पूरी पंचायत मौजूद रहती है. उनका सत्कार-सम्मान होता है. शादी के बाद दूल्हा-दुल्हन को बोला जाता है कि अब आपको वर्जिनिटी टेस्ट के लिए भेजा जा रहा है. परिवार के साथ मैरिड कपल को लॉज में भेजा जाता है. वहां दुल्हन को महिला सदस्य पूरी तरह नग्न करती है, ताकि शरीर पर ऐसा कुछ भी न रहे, जिससे चोट वगैरह लगकर ख़ून निकले. स़फेद चादर बिछाई जाती है और आधे घंटे का समय कपल को दिया जाता है परफॉर्म करके रिज़ल्ट देने का. यदि दूल्हा परफॉर्म नहीं कर पा रहा हो, तो कपल को ब्लू फिल्म दिखाई जाती है या दूल्हे को शराब की आदत हो, तो शराब पिलाई जाती है या उन्हें कोई और परफॉर्म करके दिखाता है. उसके बाद वो स़फेद चादर लड़केवाले अपने कब्ज़े में ले लेते हैं. अगले दिन सुबह पंचायत फाइनल सर्टिफिकेट देने के लिए बैठती है. कुल 100-200 लोग होते हैं. दूल्हे से पूछा जाता है- ‘तेरा माल कैसा था?’ दूल्हे को तीन बार बोलना पड़ता है- ‘मेरा माल अच्छा था या मेरा माल ख़राब था.’ तो आप सोचिए ये लिंग भेद का सबसे ख़तरनाक रूप कितना अमानवीय है. यदि लड़की इस टेस्ट में फेल हो जाती है, तो उस मारा-पीटा जाता है, कहा जाता है कि किस-किस के साथ तू क्या-क्या करके आई है... वगैरह.
प्रशासन का रवैया कैसा रहा अब तक?
मेरे ही गु्रप के एक लड़के ने एक शादी का वीडियो शूट करके पुलिस में कंप्लेन की थी. उस शादी में पंचायत बैठी थी और वहां पैसों का काफ़ी लेन-देन व कई ऐसी चीज़ें हो रही थीं, जो क़ानून के भी ख़िलाफ़ थीं. पर पुलिस ने एफआईआर तक नहीं लिखी. हमारे ही गु्रप की एक लड़की को भी समाज ने बायकॉट किया, हम पर भी अटैक्स होते हैं, पर समाज का दबाव इतना ज़्यादा है कि सीधेतौर पर कोई कार्रवाई इतनी जल्दी नहीं होती.
आज भी अधिकांश लड़के शादी के लिए ‘वर्जिन’ लड़की ही ढूंढ़ते हैं. क्या लगता है कि उनकी सोच बदलेगी?
यही तो चैलेंज है. दरअसल, हम जिस माहौल, समाज व परिवार में पलते-बढ़ते हैं, वो ही हमारी सोच को गढ़ती है. पारंपरिक तौर पर हम उसी का हिस्सा बन जाते हैं, तो ये एक माइंडसेट है, जिसे बदलना अपने आपमें चुनौती तो है, लेकिन हमें इस चुनौती को स्वीकारना होगा और जीत भी हासिल करनी होगी.
हाइमन रिकंस्ट्रक्शन सर्जरी का बढ़ता ट्रेंड
लड़के कितनी ही मॉडर्न सोच रखने का दावा क्यों न करते हों, पर उनका ध्यान भी लड़की की वर्जिनिटी पर ही रहता है. यही वजह है कि आजकल लड़कियां हाइमन रिकंस्ट्रक्शन सर्जरी करवाने में ही अपनी भलाई समझने लगी हैं. इसे हाइमनोप्लास्टी, हाइमन रिपेयर या री-वर्जिनेशन कहा जाता है. यह सर्जरी महंगी होती है, लेकिन आजकल सरकारी अस्पतालों में भी यह होने लगी है. यह कॉस्मेटिक सर्जरी होती है और सरकारी अस्पताल के आंकड़े बताते हैं कि दिन-ब-दिन इसमें बढ़ोत्तरी हो रही है. हर महीने कम से कम दो-तीन केसेस हाइमन रिपेयर के होते ही हैं. इन लड़कियों पर सामाजिक और पारिवारिक दबाव होता है. साथ ही यह डर भी कि कहीं उनका पार्टनर उन्हें छोड़ न दे. यहां तक कि कुछ मामलों में तो पैरेंट्स ही यह सर्जरी करवाने की सलाह देते हैं, जहां लड़कियों की दोबारा शादी करानी हो या इसी तरह के मामले हों, तो परिवार के दबाव में लड़की सर्जरी करवाती है. भारत में भी सेक्सुअल एक्टिवनेस बढ़ गई है, लेकिन इसके बावजूद अधिकांश सर्वे इस बात को पुख़्ता करते हैं कि लड़के आज भी शादी के लिए वर्जिन लड़की ही ढूंढ़ते हैं.

- गीता शर्मा

 

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Shaheed Diwas: शहीदों की शहादत को नमन (Shaeed Diwas Special)

Shaheed Diwas, शहीदों की शहादत को नमन, Shaeed Diwas Special

23 मार्च 1931 का वो दिन आज एक बार फिर से ताज़ा हो गया. यही वो दिन था जब हंसते-हंसते देश के हीरो ने धरती मां के लिए ख़ुद को कुर्बान कर दिया था. उनकी शहादत का वो दिन हर हिंदुस्तानी को गर्व से भर देता है. मन में एक अजीब सा साहस भर जाता है. उन हीरोज़ के लिए मस्तक अपने आप झुक जाता है. भारतीय इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों में 23 मार्च लिखा गया है. इस तारीख़ से हिंदुस्तान को अपना बीता हुआ कल और आज की झलक मिलती है.

  • क्रांतिकारी भगत सिंह तथा इनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु को आज ही के दिन 1931 में फांसी दे दी गई थी. भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को हुआ था.
  • भगत सिंह, शिवराम हरिनारायण राजगुरु और सुखदेव थापर में वतन परस्ती कूट-कूट कर भरी थी.
  • अंग्रेज़ों की नाक में दम करनेवाले इन हीरोज़ ने उऩकी चलती संसद में बम फेंककर हिंदुस्तान की आज़ादी की नींव को पुख़्ता किया था. इसके जुर्म में अंग्रेज़ों ने 3 हीरोज़ को सूली पर चढ़ाने का फैसला किया.
  • अंग्रेज़ों को लगा था कि ये छोटी उम्र के लड़के फांसी से डर जाएंगे और उनके क़दमों में सिर झुका देंगे, लेकिन वतन पर कुर्बान होनेवाले इन हीरोज़ ने वो कर दिखाया, जिसे करने के लिए बड़े-बड़े लोग कांप जाते हैं.
  • फांसी के तख्ते पर डरते हुए नहीं, बल्कि गाते हुए पहुंचे और फांसी के फंदे को चूमकर भारत माता की जय कहकर ख़ुद को माता की स्वतंत्रता के लिए कुर्बान कर दिया.
  • फांसी के फंदे को चूमकर उनके जीवन का तो अंत हो गया, लेकिन देश को एक नई सुबह मिल गई. एक ऐसी सुबह, जिसकी स्वतंत्र आबोहवा में आज हर हिंदुस्तानी खुलकर सांस ले रहा है.
  • शहीद दिवस के मौ़के पर शहीदों को मेरी सहेली (Meri Saheli) की ओर से शत-शत नमन!
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बर्थ एनिवर्सरी- बचपन से ही आसमान की सैर करना चाहती थीं कल्पना चावला (Birth Anniversary: Remembering Kalpana Chawla)