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Lockdown
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लॉकडाउन में सोनू सूद ने प्रवासी मज़दूरों के लिए काफ़ी काम किया था और आज भी वो लोगों की और ज़रूरतमंदों की मदद करते रहते हैं. सोनू को उनके काम के लिए काफ़ी सराहा भी जाता है और अब निर्वाचन आयोग ने भी सोनू को पंजाब का स्टेट आइकॉन बनाकर सम्मानित किया है.
पंजाब के मुख्य निर्वाचन अधिकारी एस करुणा राजू ने इस बारे में जानकारी दी कि उनके कार्यालय ने भारत निर्वाचन आयोग को इस संबंध में एक प्रस्ताव भेजा था, जिसे मंजूर कर लिया गया. सोनू अब पंजाब ने चुनाव संबंधी जागरूकता फैलाएंगे. वो एथिकल वोटिंग यानी नैतिक मतदान के लिए लोगों को प्रेरित करेंगे!
सोनू पंजाब के मोगा ज़िले के रहनेवाले हैं और यह सम्मान मिलने पर उन्होंने कहा कि मेरे राज्य को मुझ पर गर्व है यह जानकर काफ़ी सम्मानित महसूस कर रहा हूं, इमोशनली यह मेरे लिए बहुत मायने रखता है और मुझे आगे भी बेहतर काम करने के लिए प्रेरित करेगा.
सोनू अपनी आत्मकथा पर भी काम कर रहे हैं जिसका शीर्षक होगा मैं मसीहा नहीं हूं… इतना ही नहीं सोनू को उनके द्वारा किए गए सामाजिक कार्यों के लिए यूनाइटेड नेशन्स डेवलपमेंट प्रोग्राम (UNDP) द्वारा प्रतिष्ठित एसडीजी स्पेशल ह्यूमैनीटेरीयन एक्शन अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था और सोनू उनके साथ भी मिलकर काम करने की मंशा ज़ाहिर कर चुके हैं.
जैसाकि सभी जानते हैं कि सोनू ने प्रवासी मज़दूरों से लेकर विद्यार्थियों तक की काफ़ी मदद की थी, ना सिर्फ़ उन्हें घर पहुंचाया बल्कि उनके खाने- पीने, दवा और मोबाइल फ़ोन तक का इंतज़ाम सोनू ने किया था और अभी भी वो कभी किसी की पढ़ाई में मदद करते हैं तो कभी किसी के अस्पताल का बिल चुकाकर मदद करते ही रहते हैं. सोनू आम लोगों में काफ़ी लोकप्रिय हो चुके हैं और इसी के चलते अब उन्हें चुनाव में भी जागरूकता फैलाने का ज़िम्मा दिया गया है!

कोविड महामारी ने हमारे जीवन को काफ़ी बदल दिया है. भले ही लॉकडाउन के कई सकारात्मक पहलू हैं, जैसे- परिवारों को एक साथ समय बिताने का मौक़ा मिला और हम अपने दोस्तों, पड़ोसियों और रिश्तेदारों के साथ सामाजिक रूप से अधिक सक्रिय हुए. हमें प्रकृति का सबसे अच्छा दृश्य भी देखने मिला, हमने इनडोर शौक का भरपूर आनंद लिया. लेकिन दूसरी तरफ़ स्कूलों के बंद होने, क्लासमेट से आमने-सामने बातचीत न कर पाने, डिजिटल क्लासेस शुरू होने और नए वर्चुअल स्कूल के मापदंडों को अपनाने के भार की वजह से बच्चों की पढ़ाई का भी बेहद नुक़सान हुआ. यह बच्चों के लिए कई चुनौतियां लेकर आया, जिसकी वजह से कुछ बच्चों में अचानक एग्रेसिवनेस और ग़ुस्सा आना एक आम भावनात्मक प्रतिक्रिया यूं कहें समस्या सी बन गई. आइए, इस विषय पर डॉ. विक्रम गगनेजा, जो नई दिल्ली के एचसीएमसीटी मणिपाल हॉस्पिटल के सीनियर कंसल्टेंट पीडियाट्रिक्स हैं, से मिली महत्वपूर्ण जानकारियां द्वारा इसे समझें.
यह हम सभी जानते हैं कि कोविड-19 ने दुनियाभर में खलबली मचा दी है. साथ ही इसने बच्चों और परिवारों के जीवन को भी काफ़ी हद तक बदल दिया है. यदि बच्चों के माता-पिता घर से काम कर रहे हैं या वे आवश्यक सेवा या फ्रंटलाइन स्वास्थ्य कार्यकर्ता हैं, तो दोनों ही स्थितियों में वे ज़्यादातर समय अपने काम में व्यस्त रहते हैं. इससे बच्चे के जीवन में अधिक समस्याएं भी उत्पन्न हो रही हैं. बच्चों सहित हम सभी के लिए यह चिंताजनक स्थिति है, जिसका सामना हमने पहले कभी नहीं किया था.
घर पर बच्चों को मीडिया के माध्यम से सभी प्रकार की जानकारियां मिल रही हैं. बच्चों ने अपने दैनिक जीवन में वायरस के व्यापक असर को महसूस किया है. कोविड-19 से प्रेरित इस नई जीवनशैली में बच्चों का ग़ुस्सा होना स्वाभाविक है. लेकिन यह भी सच है कि ग़ुस्सा केवल स्वाभाविक नहीं, बल्कि स्वस्थ प्रतिक्रिया है, पर यह लंबे समय तक रहे और मन शांत न हो, तो यह एक गंभीर समस्या बन सकती है.
बच्चों के ग़ुस्से, चिड़चिड़ापन और आक्रामकता के कई कारण होते हैं…
निराशा एक प्रमुख कारण है. जब बच्चे को वह नहीं मिलता है, जो वह चाहता है, तो उसके व्यवहार में बदलाव आने लगता है.
एक अनुमान के अनुसार, जेनेटिक्स और अन्य जैविक कारक ग़ुस्से/आक्रामकता में अहम भूमिका निभाते हैं. इसमें माहौल का भी योगदान है.
बच्चों में ग़ुस्से की समस्याओं को संभालने के लिए माता-पिता को पहले ग़ुस्से की वजह को समझना होगा. इसके लिए उन्हें बच्चों को धैर्यपूर्वक सुनना बेहद ज़रूरी है.
बच्चे अपनी परेशानियों को कैसे व्यक्त करते हैं?
इस सन्दर्भ में प्रख्यात मनोचिकित्सक एलिसाबेथ कुब्लर-रॉस ने एक मॉडल विकसित किया है, जो बच्चों की मानसिक स्थिति को बेहतर ढंग से समझने में मदद कर सकता है. इसमें परेशानी या दुख के पांच सामान्य अवस्थाओं के बारे में बताया गया है. ये कोविड-19 के दरमियान हमारे लिए उपयोगी मार्गदर्शक का काम कर सकता है. इन्हें समझकर बच्चों की चिंता और क्रोध की समस्या का सामना करने में मदद मिल सकती है.
इंकार…
इसकी शुरुआत इन्कार के साथ होती है, जिसे नज़रअंदाज़ करने, भ्रम, सदमे और डर जैसी प्रतिक्रियाओं से समझा जा सकता है.
बच्चे स्कूल बंद होने और नई जीवनशैली में ऑनलाइन कक्षाओं के कारण परेशान और भ्रमित हो सकते हैं.
सोशल डिस्टैंसिंग उन्हें दोस्तों से मिलने और उनके साथ खेलने से वंचित करता है.
ऐसे में इस वायरस को दोष देकर बच्चों को मना लेना, पैरेंट्स के लिए मुश्किलभरा होता है.
ग़ुस्सा करना…
यह दूसरा चरण है. इसे निराशा और चिंता से समझा जा सकता है. इस अवस्था में अब तक दबी हुई भावनाएं बाहर आती हैं.
कोविड-19 के परिणामस्वरूप बच्चे अपने दोस्तों और शिक्षकों से उपेक्षित महसूस कर सकते हैं.
उन्हें अपनी ज़िंदगी में सुरक्षा और नियंत्रण का अभाव महसूस हो सकता है.
घर या परिवार में ठीक से समर्थन न मिलने से बच्चे कमज़ोर पड़ सकते है, क्योंकि वे स्कूलों और दोस्तों को अधिक सहायक पाते हैं.
बच्चों के पास बड़ों की तुलना में ज़िंदगी में कठिन परिस्थितियों से निपटने का अनुभव नहीं होता है, इसलिए वे अपने मानसिक तनाव को अक्सर अकड़न, बिस्तर गीला करने, सोने में कठिनाई, अंगूठा चूसने, ग़ुस्सा दिखाने, नखरे करने और ध्यान केंद्रित करने में व्यक्त करते हैं.
सौदेबाज़ी…
बच्चे इस नई परिस्थिति जिसने उनकी ज़िंदगी को कई तरीक़ों से प्रभावित करना शुरू कर दिया है को लेकर अपने माता-पिता से सौदेबाज़ी करने की कोशिश करते हैं.
उदाहरण के लिए वे ब्लैकमेल करते हैं कि यदि आप उन्हें अपने दोस्तों के साथ खेलने की अनुमति देते हैं, तो ही वे अपने हाथ सैनिटाइज़ करेंगे या अपने हाथों को बार-बार धोएंगे.
डिप्रेशन…
यह एक गंभीर स्थिति है और यह चौथी अवस्था है. यह बेबसी की भावना है.
हमें इस स्थिति पर काफ़ी कड़ी नज़र रखनी होगी. इस स्तिथि में बच्चा अपने माता-पिता या भाई-बहनों के साथ घुलने-मिलने से बचने की, मनोरंजन या खेल खेलने से बचने और हमेशा दूर भागने की कोशिश कर सकता है.
सुरक्षा…
पांचवीं स्थिति को सुरक्षा की भावना से समझा जा सकता है. इसके साथ बच्चों को नई दिनचर्या, सच्चाई और जीवन की स्थिति के महत्व का एहसास होता है.
पैरेंट्स के लिए गाइडलाइंस
- बच्चों को समझाएं कि ग़ुस्से पर काबू न कर पाने कारण उन्हें मानसिक और शारीरिक दोनों तरह से नुक़सान पहुंच सकता है.
- यदि ज़रूरत पड़े, तो बच्चों के साथ उनकी चिंता और नाराज़गी दूर करने के लिए प्लानिंग करें.
- माता-पिता को सहानुभूति भी विकसित करनी होगी, जिसका अर्थ है बच्चों के हालात समझने की क्षमता.
- तर्कसंगत सोच के साथ सहानुभूति, सहिष्णुता और धैर्य विकसित करें और साथ ही ग़ुस्से को नियंत्रित करके संयम के साथ यह स्वीकारें कि सभी समस्याओं को तुरंत हल नहीं किया जा सकता है.
- इससे पहले चरण में ग़ुस्से की बारंबारता और तीव्रता को कम करने में मदद मिलती है.
- उन चीज़ों की लिस्ट बनाएं, जिससे बच्चे को ग़ुस्सा आता है.
- फिर बच्चे को इसका रिकॉर्ड रखते हुए साप्ताहिक प्रदर्शन का विश्लेषण करने के लिए कहें.
- समय-समय पर बच्चे के प्रशंसनीय प्रदर्शन के लिए इनाम भी दें. इससे उनका प्रोत्साहन बना रहेगा.
- विभिन्न तरीक़ों से भी बच्चे को शांत किया जा सकता है, जैसे- अपने ग़ुस्से से ध्यान हटाकर रचनात्मक चीज़ों में ध्यान लगाना, शारीरिक गतिविधियां, योगाभ्यास, 10-100 तक की गिनती या अपने सकारात्मक पहलुओं के बारे में सोचना आदि.
- बच्चों को इस कोरोना महामारी और लोगों पर इसके हानिकारक प्रभावों के बारे में सही जानकारी दें. इससे उन्हें ग़लत सूचना और बढ़ती चिंताओं की वजह से होनेवाली समस्याओं से बचने में मदद मिलेगी.
- दरअसल, बच्चों की दैनिक दिनचर्या में अप्रत्याशित रूप से रुकावट आने से वे ख़ुद को ठगा-सा महसूस करते हैं. इसी मानसिकता के कारण उनके व्यवहार में बदलाव आता है.
- बच्चों को उनके कुछ रोज़मर्रा के कार्य ख़ुद करने दें. इससे उन्हें तनाव का सामना करने में भी मदद मिलेगी.
- बच्चों से बहुत ज़्यादा अपेक्षाएं न रखें.
- बच्चों का दिमाग़ बहुत फ्लेक्सिबल होता है और प्रियजन के समर्थन से वे किसी भी मुश्किल हालात और जीवन की कठिन परिस्थितियों का सामना आसानी से कर सकते हैं
- हमें उन्हें साथ देने और जब भी वे मदद मांगे, तो उनका मार्गदर्शन करने के लिए तैयार रहना है.
- उनके आसपास प्यार, केयर और सुखद माहौल बनाने की ज़रूरत है.
- उन्हें सुरक्षित महसूस कराना चाहिए.
- अगर हम उन्हें अपनी भावनाओं को सहजता से व्यक्त करने की सहूलियत देते हैं, तो उनका तनाव, चिंता और ग़ुस्सा दूर हो जाएगा.
- उन्हें रचनात्मक गतिविधियों, जैसे- ड्राॅइंग, पत्रिका में लिखना, गाने, डांस करने, क्राफ्ट या फोटोग्राफी के माध्यम से ख़ुद को व्यक्त करने की सुविधा दें.
माता-पिता सदा यह याद रखें कि आप मुस्कुराएंगे, तो आपके बच्चे आपके साथ मुस्कुराएंगे… और अगर आप उन्हें ग़ुस्सा दिखाएंगे, तो यही आपको अनजाने में ही प्रतिउत्तर में मिलेगा.
– ऊषा गुप्ता
यह भी पढ़ें: बच्चों से जुड़ी मनोवैज्ञानिक समस्याएं (Psychological Problems Associated With Children)

दुनियाभर में अचानक आए सोशल आइसोलेशन या क्वारंटाइन जैसी स्थिति में, लोगों का भयभीत और चिंतित होना स्वाभाविक है. ऐसे में इसका बच्चों पर भी काफ़ी असर पड़ रहा है. उनके मन में भी एक अनकहा डर बैठ जाना कोई बड़ी बात नहीं है. इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि लॉकडाउन के चलते वर्किंग पैरेंट्स को उनके बच्चों के साथ अधिक समय गुज़ारने का मौक़ा मिल रहा है, लेकिन इसकी अपनी चुनौतियां भी बहुत हैं. लॉकडाउन हो जाने से, परिवारों को दिनभर बच्चों को संभालना पड़ रहा है. अधिकांश बच्चों की परीक्षाएं रद्द हो गई हैं और अभी उन पर पढ़ाई-लिखाई का दबाव भी नहीं है. लेकिन साथ ही पैरेंट्स को घर से ही काम करना पड़ रहा है और ऐसे में बच्चों को दिनभर व्यस्त रखना आसान काम नहीं है.
यहां डॉ. शौनक अजिंक्या, जो कोकिलाबेन धीरूभाई अम्बानी हॉस्पिटल के कंसल्टेंट साइकिएट्रिस्ट ने कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां दी हैं, जिन्हें अभी और आगे के लिए भी ध्यान में रखा जा सकता है.
सोशल मीडिया का प्रभाव
इन दिनों सोशल मीडिया चौबीस घंटे उपलब्ध है. ऐसे में पैरेंटिंग के मायने पूरी तरह से बदल गए हैं. व्हाट्सएप पर ऐसे अनेक मैसेज प्राप्त होते हैं, जिनमें कई वेबसाइट्स व ऐप्स के बारे में जानकारी दी गई होती है. इन वेबसाइट्स व ऐप्स के ज़रिए आप छुट्टियों के दिनों में अपने बच्चों को दिनभर न केवल व्यस्त रख सकेंगे, बल्कि इनमें बताई गई गतिविधियों को करने से उनकी दिमाग़ी क्षमता भी बढ़ेगी. लेकिन ज़रूरी नहीं कि ये सारी जानकारियां बच्चों के लिए उपयोगी ही हों. ऐसे में पैरेंट्स का यह दायित्व है कि वो अपने बच्चों के लिए सही व उपयोगी ऐप्स व साइट्स का चुनाव करें.
अनुशासन
बच्चों से जुड़ी कुछ चीज़ों को लेकर समझौता न करें, जैसे- भोजन का समय, पढ़ने का समय, दैनिक व्यायाम और उचित व्यवहार. बाकी चीज़ों के बारे में बच्चों को स्वयं से निर्णय लेने दें. कठोर अनुशासन के चलते किसी भी गतिविधि के प्रति उनका उत्साह समाप्त हो सकता है. बच्चों को उनके इच्छानुसार शेड्यूल्स तय करने दें और उन्हें यह निर्णय लेने की छूट दें कि वो किस गतिविधि को कैसे करना चाहते हैं.
सहानुभूति
अपने बच्चों को इस समय का उपयोग उनके मन लायक तरीक़े से करने दें. यह उनके लिए ऐसा सुनहरा समय हो सकता है, जो शायद ही कभी दोबारा आए. नियमों को लेकर दिन में हर समय कठोरता न बरतें.
मज़ेदार चीज़ें करें
फिर ऐसी चीजें भी हैं, जो आप मस्ती के लिए एक साथ कर सकते हैं, जैसे- खाना पकाना, वीडियो गेम या इनडोर बोर्ड गेम खेलना. अगर बच्चे बहुत छोटे हैं, तो उन्हें कहानियां पढ़कर सुनाना भी उनके साथ समय बिताने का एक अच्छा तरीक़ा है.
सामाजिक दायित्व
बच्चों को सामाजिक दायित्व के बारे में बताएं. उन्हें बताएं कि हम घरों में इसलिए हैं, क्योंकि अभी ऐसा करने में ही इस देश और यहां के लोगों की भलाई है. इससे ही हम बीमारी का डटकर मुक़ाबला कर सकते हैं.
तुलना न करें
हम स्वयं से बहुत अधिक उम्मीदें लगा लेते हैं. हमेशा अपनी और अपने बच्चे की तुलना दूसरों से न करें. कोई भी परफेक्ट नहीं होता है.
बार-बार सलाह न दें
ऐसी सलाह न दिया करें, जिनका पालन आप स्वयं न कर सकें. वहीं काम करें, जो आपको सबसे अच्छा लगे.
बच्चों की भी बातें मानें
बच्चों को उनके अपने तरीक़े से ख़ुश रहने दें. अपने बच्चे से पूछे कि उन्हें किन चीज़ों को करने से ख़ुशी मिलती है. अपने निर्णयों में अपने बच्चे को भी शामिल करें, इससे उन्हें लगेगा कि उनकी सोच व उनके एहसास आपके लिए मायने रखते हैं. बच्चों को ख़ुश देखकर पैंरेंट्स को भी दुनिया की सबसे बड़ी खुशी मिल जाती है.
पहले ख़ुद का ध्यान रखें
यदि आप अपना ध्यान नहीं रखते हैं, तो आप किसी और की देखभाल नहीं कर सकते. आपकी भावनात्मक क्रियाशीलता सर्वोच्च स्तर की होनी चाहिए, ताकि आप उस समय अपने बच्चे के साथ मौजूद हों, जब उसे वास्तव में आपकी ज़रूरत हो. ओवर कमिटिंग या ओवर एक्सटेंडिंग से बचने के लिए ख़ुद के लिए समय निकालना भी अच्छी आदत है, जो आपके बच्चे को सीखने को मिलेगी. बच्चे केवल अपने माता-पिता की कही हुई बातों से ही नहीं सीखते हैं, बल्कि वो उनके द्वारा किए जानेवाले कार्यों का भी अनुसरण करते हैं. यदि पैरेंट्स ख़ुशहाल रहेंगे, तो बच्चे भी ख़ुशहाल रहेंगे.
नई पीढ़ी का स्वागत करें
जनरेशन ज़ेड, मिलेनियल जनरेशन के बाद वाली पीढ़ी है, जो इस सेंचुरी के शुरू में या उसके बाद पैदा हुए हैं. पिछली पीढ़ियों की तुलना में जनरेशन ज़ेड के लिए घरों के अंदर रहकर वर्चुअल वर्ल्ड से जुड़े रहना अधिक आसान होगा. जनरेशन ज़ेड इस मायने में पिछली पीढ़ियों से अलग है, क्योंकि वे अधिक ग्लोबल और विविधतापूर्ण हैं. उनके पास अनगिनत ऐसे प्लेटफॉर्म्स व चैनल्स हैं, जिनसे वो जुड़ सकते हैं और कंट्रिब्यूट कर सकते हैं. युवाओं में हमेशा से मानवता को नए-नए तरीक़ों से परिभाषित किया है, लेकिन आज यह पहले से कहीं अधिक तेज़ी से और अधिक बार हो रहा है. जैसे-जैसे टेक्नोलॉजी और कनेक्टिविटी तेज़ी से बढ़ेगी, वैसे वैसे पीढ़ियां भी उभरेगी और आगे बढ़ेंगी.
अतः इस कोरोना काल में अपने बच्चों को अधिक-से-अधिक प्यार, सहयोग और प्रोत्साहन दें, ताकि वे परिस्थितियों का सहजता से सामना कर सकें और सकारात्मक रह सकें.
– ऊषा गुप्ता

एकबारगी देखें, तो अच्छा ही है, एक तरह से कोरोना के चक्कर में बिना सोचे-समझे एक ढर्रे पर भागती सबकी ज़िंदगियों पर यूं ब्रेक लग गया. कुछ सोचने-समझने और अपने लिए आत्मविश्लेषण का समय भी मिल गया है. ऐसे में दिए गए स्मार्ट ट्रिक्स से इस समय को यादगार भी बना सकते हैं.
शिक्षित गृहिणियों की लॉकडाउन में अजीब समस्या है. बोरियत में घिरी वे समझ नहीं पाती कि कैसे ख़ुश रहें? उनके कई पंसदीदा टीवी शोज़, सीरियल भी शूटिंग के अभाव में बंद पड़े हैं. दूसरी ओर किटी, शाॅपिंग आदि के बहाने से बाहर जाना भी बंद है. ले देकर वही किचन, साफ़-सफ़ाई, खाना, फ़रमाइशें, ज़रूरतें पूरी कर करके वे उकता भी रही हैं. क्योंकि इनके अलावा उन्हें टीवी सीरियल, किटी, गप्पे, शॉपिंग, नई ड्रेसेज, ज्वेलरी में फेसबुक, सेल्फी, वीडियो अपलोड, लाइक, लव की काउन्टिंग का खेल, जो कोरोना काल में सम्भव हो नहीं पा रहा, तो जैसे ज़िन्दगी में कोई चार्म नहीं रह गया. क्योंकि इन्हीं सब में उनकी ज़िन्दगी सिमटकर रह गई थी. उन्होंने कभी पढ़ाई भी की थी जैसे वे भूल ही चुकी. सोचकर देखें, तो करने के लिए तो बहुत कुछ है आपके पास, जो आपको ख़ुश और रुचिकर, स्वास्थ्यवर्धक व मनोरंजक भी, जो आप टाले हुए या भूले हुए हैं, जैसे-
• ताश, कैरम, लूडो, शतरंज आदि. याद है, कभी आप बहुत अच्छा खेला करती थीं? उन्हें निकालकर धूल साफ़ कीजिए. बुलाइए पति और बच्चों को रोज़ एक एक बाज़ी तो हो जाए. सच, बड़े दिनों बाद ऐसा आनंद आएगा.
• बच्चों और पति के साथ मिलकर यू ट्यूब से कभी बढ़िया रेसिपीज़ ट्राई करें, जो पहले वे बाज़ार में शौक से ला खा लेते थे. रोज़ कुछ नया ट्राई करें और सबके साथ ही आप भी किचन से ख़ाली हो जाएं.
• पुरानी अलबम फोटोज़ सपरिवार देखें, सम्भाले और संदर्भ याद करें. बताएं और आनंदित हों. बेमतलब की फोटोज़, मैसेजेज़ को डिस्कार्ट करने का सही समय है. मोबाइल से भी सारी फ़ालतू फोटोज़ हटा डालें. ज़रूरी अपने ड्राइव में सेव करें.
• परिवार के साथ सब अपनी आलमारियों से न पहनने जानेवाले कपड़ों, जूते-चप्पल, किताब-कापियों को छांटकर देने के लिए किसी कार्टन में अलग-अलग भर दें.
• समय का सदुपयोग करते हुए सब मिलकर घर को काॅक्रोच, छिपकली, चूहे, दीमक, मच्छर इत्यादि जीव-जंतुओं से मुक्त कर डालें.
• किचन से खाली डिब्बे, बेकार बर्तन, ख़राब सामग्री भी अलग कबाड़ में डालें और हटाएं. पति को दवाइयों का डिब्बा देकर एक्सपाइरी देखकर छांटने को कहें और बच्चों से फ़ालतू भरे खिलौने अलग हटाने के लिए खाली बैग दें. इस तरह घर को साफ़-सुथरा बनाएं.
• पाॅट में कुछ बीज डालकर बच्चों को पौधे लगाना सिखाएं. मिलकर अपने घर के बगीचे को संवारे.
• एक समय बना लें, जब सब रोचक, प्रसिद्ध, शिक्षाप्रद, ज्ञानवर्धक पुस्तकें, उपन्यास, कहानी, लेख, कविताएं पढ़ें-पढ़ाएं.अच्छी अवाॅर्ड विनिंग मूवीज़ सपरिवार देखकर लुत्फ़ उठाएं.
• जीवन के मज़ेदार और उपयोगी अनुभव परिवार के साथ शेयर करें और उनके भी सुने.
• पेंटिंग, सिलाई-कढ़ाई, लेखन पाठन आप क्या-क्या कर डालती थीं. अपने उन सोए व दबे शौक को जगाएं. कुछ सकारात्मक व ख़ूबसूरत सृजन कर डालें. रुचि अनुसार कुछ रचनात्मक करें और करवाएं. यू ट्यूब से अथवा एक-दूसरे के अपने-अपने स्किल यानी हुनर को सिखाएं, साथ ही सीखें भी.
• साइंस के छोटे प्रयोग के लिए बच्चों को उत्साहित करें उनके साथ स्वयं लगकर आनंद लें.
• देश-दुनिया की ख़बरों के साथ रिश्तों और मानवीय मूल्यों, अच्छे व्यवहार, संस्कार से भी समय-समय पर अवगत हों, याद करें और परिवार को भी जानकारी दें याद दिलाएं. परिवार के सभी सदस्यों के विचार, समस्याएं साथ बैठकर तसल्ली से सुने, समझें और सुलझाएं.
• फोन करने में तो कोई मनाही नहीं. सभी अपनों का समय-समय पर हालचाल लेते रहें.
• अपनी बुरी आदतों को छोड़ने के प्रयास में अच्छी आदतों को नियम से अपनाएं. अब आप सबके पास समय है. कोई भागमभाग या जल्दी नहीं. अच्छी आदतें, जैसे- जल्दी उठना, शारीरिक व्यायाम, योग करना, हेल्दी भोजन, समय पर खाना. बिना टीवी-वीडियो चलाए टेबल पर साथ नाश्ता व भोजन ज़रूर करें.
• किचन में, लॉन्ड्री में या कहीं भी ज़रूरत हो मदद लें. सहायता करना सिखाएं. टेबल लगाने व समेटने में सबकी मदद लें. मिलकर काम जल्दी भी होगा और सौहार्द भी बढ़ेगा.
• स्वास्थ्य, योग, संयम, सही दिनचर्या, नियमित खानपान, पौष्टिकता के विषय में जानकारी ले व दें और उस पर चलने के लिए प्रेरित करें. साथ ही सपरिवार अमल करने का प्रयास भी करें.
उपरोक्त बातों को ध्यान रखते व करते हुए आपको लॉकडाउन का पता ही नहीं चलेगा. एक स्थाई सुख, आनंद और संतुष्टि की नई अनुभूति आपमें असीमित ऊर्जा भर देगी. आप सुखद आश्चर्य अनुभव करेंगी कि लाॅकडाउन के बाद तो आप और आपका परिवार कितना स्वस्थ, समझदार व घर कितना सुचारु और व्यवस्थित हो गया है.
– डॉ. नीरजा श्रीवास्तव ‘नीरू’
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कोविड-19 के खिलाफ जंग में इस समय स्कूल और पैरेंट्स दोनों साथ मिलकर लड़ रहे हैं और इस बात का पूरा ध्यान रख रहे हैं कि महामारी के इस दौर में बच्चों की शिक्षा में कोई कमी न आए. इस महामारी ने एजुकेशन का पैटर्न भी बदल दिया है. ई-लर्निंग अब बच्चों को क्लासरूम का अनुभव दे रहा है. लेकिन लॉकडाउन के बाद बच्चों को स्कूल के लिए कैसे तैयार करें, इसके बारे में जानने के लिए हमने बात की रायन इंटरनेशनल ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस की मैनेजिंग डायरेक्टर मैडम ग्रेस पिंटो से, उन्होंने हमें ई-लर्निंग और लॉकडाउन के बाद स्कूल खुलने को लेकर विस्तृत जानकारी दी. आप और आपके बच्चों के लिए ये जानकारी बहुत जरूरी है.
1) अगस्त के मध्य तक स्कूलों के फिर से खुलने की उम्मीद है, ऐसे में रायन ग्रुप ऑफ स्कूल्स द्वारा सुरक्षा मानकों और दिशानिर्देशों का पालन किस तरह किया जाएगा?
महामारी के इस दौर में छात्रों का स्वास्थ्य और सुरक्षा हमारी सबसे बड़ी प्राथमिक है, इसलिए एक बड़े स्कूल नेटवर्क होने के नाते हमने हेल्थकेयर स्पेशलिस्ट से कंसल्ट किया है, साथ ही हम डब्लूएचओ (WHO), यूनिसेफ (UNICEF), सीडीसी CDC स्कूल गाइडलाइन का भी पालन कर रहे हैं तथा भारत में स्वास्थ्य और शिक्षा अधिकारियों द्वारा जारी किए गए सभी दिशानिर्देशों की भी समीक्षा की है. एसओपी और हमारे छात्रों की सुरक्षा के लिए हमने स्टाफ (वेंडर स्टाफ सहित) के लिए विभिन्न ट्रेनिंग वर्कशॉप भी आयोजित किए हैं.
2) जब स्कूल फिर से शुरू होंगे, तो पैरेंट्स को स्कूल को सपोर्ट करने के लिए अपनी तरफ से क्या सावधानियां बरतनी चाहिए? आप पैरेंट्स को क्या सलाह देंगी?
कोविड-19 के खिलाफ इस जंग में स्कूल और पैरेंट्स दोनों साथ मिलकर लड़ेंगे, तो हम इसे आसानी से हरा सकते हैं. पैरेंट्स के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे सबसे पहले स्थिति को समझें और फिर अपने बच्चों को खासतौर पर मास्क पहनना, नियमित रूप से हाथ साफ करना, सैनिटाइजर का उपयोग आदि के बारे में समझाएं. यदि बच्चे को सर्दी-खांसी, बुखार आदि की शिकायत है, तो पैरेंट्स को चाहिए कि वे उस समय बच्चे को स्कूल न भेजें. पैरेंट्स को स्कूल का पार्टनर बनकर दिए गए गाइडलाइन का पालन करना चाहिए और बच्चों के स्वास्थ्य व सुरक्षा का पूरा ध्यान रखना चाहिए.
3) स्कूल के संचालन को आगे बढ़ाने के लिए आप दिन-प्रतिदिन कैसे कदम उठाएंगे? क्या स्कूल फिर से खोलने की योजना तैयार हो चुकी है?
स्कूल के संचालन के दौरान हेल्थ और हाइजीन, एमरजेंसी आदि के बारे में व्यापक योजना तैयार की गई है. स्कूल में बच्चों की सुरक्षा को लेकर हम हर चीज़ का बारीकी से निरिक्षण कर रहे हैं. महामारी के इस मुश्किल समय में हमने अपने स्कूलों में सभी आवश्यक उपकरण रखे हुए हैं, ताकि बच्चों के स्वास्थ्य और सुरक्षा में कोई कमी न रहने पाए. हमारी आगे की प्रक्रिया सरकारी अधिकारियों द्वारा प्राप्त निर्देशों के अनुसार तय होगी.
4) लॉकडाउन के दौरान बच्चों ने बहुत से बदलाव देखे हैं खासकर पढ़ाई को लेकर, ऐसे बच्चों के भावनात्मक स्वास्थ्य को जानने-समझने के लिए मांओं के लिए कोई सलाह देना चाहेंगी आप?
बच्चों के दिमाग पर कोरोनोवायरस के प्रकोप के जबरदस्त प्रभाव को समझना बहुत जरूरी है. माता-पिता और अभिभावकों को चाहिए कि वे इस स्थिति को समझते हुए अपने बच्चों की भावनाओं को समझें, बच्चों को चिंता, तनाव आदि से दूर रखें और उनके शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखें. ये माता-पिता दोनों की जिम्मेदारी है कि वे इस समय धैर्य से काम लें और अपने बच्चे को घर में विभिन्न गतिविधयों में बिज़ी रखें. स्कूल भी ऑनलाइन क्लासेस के माध्यम से अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाहन कर रहे हैं, लेकिन पैरेंट्स को भी बच्चों के सर्वांगीण विकास पर विशेष ध्यान देना चाहिए.
5) जब स्कूल फिर से शुरू होंगे तो हर बच्चे की लिए डिस्टेंसिंग मेन्टेन करना बहुत जरूरी है. ऐसे में बच्चे अपने दोस्तों और सहपाठियों के साथ खुलकर घुलमिल नहीं सकेंगे, आपको क्या लगता है, इससे बच्चों के मन पर प्रभाव पड़ेगा? इस स्थिति में बच्चे कैसे एडजस्ट करेंगे, पैरेंट्स और टीचर्स इसमें बच्चों की मदद कैसे कर सकते हैं?
स्कूल खुलने के बाद छात्रों के लिए स्वस्थ वातावरण सुनिश्चित करना हमारी पहली प्राथमिकताओं में से एक होगा. इसके लिए स्कूल के शिक्षकों और अभिभावकों को एक साथ काम करना होगा, ताकि छात्रों के साथ जुड़ने और बातचीत करने के लिए एक माहौल तैयार किया जा सके, साथ ही सोशल डिस्टेंसिंग को भी मेन्टेन किया जा सके. टीचर्स को सिर्फ पाठ्यक्रम पूरा करने पर ध्यान देने की बजाय इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि बच्चे क्या सीख रहे हैं. पैरेंट्स और टीचर्स को काउंसलर्स के साथ मिलकर बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य और सर्वांगीण विकास पर ध्यान देना होगा. साथ ही बच्चों को इस परिस्थिति में सामंजस्य करना सिखाकर उन्हें अपनी पढ़ाई को एंजॉय करना भी सिखाना होगा.
6) बच्चों की पढ़ाई जारी रखने के लिए कई स्कूलों द्वारा ई-एजुकेशन शुरू की गई थी? ऐसे में आपको पैरेंट्स और बच्चों के दृष्टिकोण से ई-लर्निंग के क्या फायदे देखने को मिले?
लॉकडाउन के दौरान स्कूलों ने ई-लर्निंग के माध्यम से बच्चों की पढ़ाई जारी रखी, ताकि बच्चे अपने घर में सुरक्षित रहते हुए अपनी पढ़ाई कर सकें. ई-लर्निंग छात्रों को आत्मनिर्भर होकर पढ़ाई करना सिखाता है. इससे बच्चों की खुद से पढ़ाई करने की क्षमता बढ़ती है और वे नई टेक्नीक को भी सीख पाते हैं. ई-लर्निंग बच्चों को क्लासरूम का एक्सपीरियंस देते हुए उन्हें स्वतंत्र रूप से पढ़ने का कॉन्फिडेंस देता है, जिससे उनका आत्मविश्वास बढ़ता है. लॉकडाउन पीरियड में पैरेंट्स को भी ई-एजुकेशन की झलक मिली है, जिससे वे भी एजुकेशन के इस नए माध्यम की अपार संभावनाओं के बारे में समझ पाए होंगे.
7) बच्चों के लिए ई-एजुकेशन को और ज्यादा रोचक कैसे बनाया जा सकता है?
न्यू नॉर्मल के इस दौर में ई-एजुकेशन द्वारा स्कूल बच्चों की पढ़ाई में उनका सहयोग किया जाएगा और उनकी पढ़ाई में रुचि बरकरार रखी जाएगी. शिक्षा के क्षेत्र में टेक्नोलॉजी एक महत्वपूर्ण टूल है, जो शिक्षा को आसान बनाती है. इसके अलावा, ई-लर्निंग की स्ट्रेटेजी में भी काफी विकास हो रहा है, ये बच्चों के लिए सीखने का एक नया अनुभव है. ई-लर्निंग की स्ट्रेटेजी बिल्कुल नई और दिलचस्प है, ये बच्चों को उनकी पढ़ाई में बहुत मदद करेगी और उन्हें आत्मनिर्भर व ज़िम्मेदार बनाएगी.
8) बहुत सारे पैरेंट्स को अपने बच्चे को पढ़ाई में मदद करने में मुश्किल हो रही है? क्या आप उनके लिए कोई सुझाव देंगी, जो उन्हें अपने बच्चों का बेहतर मार्गदर्शन करने में मदद कर सकता है?
लॉकडाउन ने निश्चित रूप से पैरेंट्स को अपने बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम बिताने और उनके बीच एक मजबूत बॉन्डिंग बनाने में मदद की है. न्यू नॉर्मल के इस दौर में पैरेंट्स को चाहिए कि वे अपने बच्चों को पढ़ाई की ज़िम्मेदारी लेना सिखाएं. ऐसा करके आप अपने बच्चों को आत्मनिर्भर और कॉन्फिडेंट बना सकते हैं. इस समय बच्चों के साथ ज्यादा से ज्यादा बात करना और उनके साथ क्वालिटी टाइम बिताना बहुत जरूरी है, साथ ही बच्चों को उनके डे टु डे के काम करने की जिम्मेदारी लेना भी सिखाएं. बच्चे अपने सभी काम नियम से करें, इस बात का ध्यान पैरेंट्स को रखना चाहिए. पैरेंट्स की निगरानी में जब बच्चे स्वतंत्र रूप से ई-लर्निंग करेंगे, तो इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा और बच्चे आत्मनिर्भर बन सकेंगे. बच्चे अपने पैरेंट्स को देखकर सीखते हैं इसलिए पैरेंट्स को अपने बच्चे का रोल मॉडल बनकर ई-लर्निंग के माध्यम से उन्हें भविष्य के लिए तैयार करना होगा.
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9) आप देश में K-12 एजुकेशन के लीडर्स में से एक हैं, आपको क्या लगता है, कोविड के बाद भारत में K12 शिक्षा का भविष्य क्या होगा?
कोविड-19 के इस युग में अब स्कूलों का ध्यान ऑनलाइन एजुकेशन पर होगा. ई-लर्निंग आज की जरूरत है, इसलिए स्कूलों द्वारा ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म पर फोकस किया जा रहा है. ई-लर्निंग के माध्यम से क्लासरूम का अनुभव दिए जाने की पूरी कोशिश की जा रही है. एजुकेशनिस्ट समुदाय होने के नाते इस न्यू नॉर्मल में खुद को ढालते हुए आगे बढ़ना आज समय की मांग है. इसमें कई चुनौतियां होंगी, जिनका सामना करने के लिए तैयार रहना होगा.
- शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के शिक्षकों को नई टेक्नोलॉजी की ट्रेनिंग देना एक बड़ी चुनौती है, लेकिन शिक्षक हमेशा सीखने के लिए तैयार रहते हैं इसलिए हम ये उम्मीद करते हैं कि वे शिक्षा के इस नए पैटर्न को सीख जाएंगे.
- इस महामारी से उत्पन्न मानसिक स्वास्थ्य के बारे में कर्मचारियों और छात्रों को गाइड करना और उन्हें न्यू नॉर्मल को सामान्य रूप से अपनाने और भविष्य का सामना करने के लिए बहुत सावधानी, देखभाल और समझदारी से तैयार करना होगा.
- बुनियादी ढांचे और सुविधाओं की कमी के कारण, खासकर ग्रामीण इलाकों में जहां इंटरनेट की कनेक्टिविटी एक समस्या है, वहां पर बच्चों की पढ़ाई पर असर पड़ सकता है. लेकिन हमें ई-लर्निंग को एक मौका जरूर देना चाहिए और इसमें सुधार के प्रयास करने चाहिए. उम्मीद है, इस कमी को भी जल्दी पूरा कर लिया जाएगा.

‘क्योंकि कभी सास भी बहू थी’ के मि. बजाज..टेलीविज़न और बॉलीवुड का पॉपुलर चेहरा….
यानी रोनित रॉय को भी लॉक डाउन की वजह से आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है और एक इंटरव्यू में उन्होंने खुद कहा है कि पिछले पांच महीने से उनकी इनकम बिल्कुल बन्द है और सबकी तरह वो भी परेशान हैं.
कोरोना वायरस ने फिल्मों और सीरियल्स की शूटिंग को भी रोक दिया है, जिसका असर फ़िल्म और टीवी इंडस्ट्री पर भी पड़ा है. रोनित रॉय भी इन दिनों कई तरह की मुश्किलों का सामना कर रहे हैं और हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान लॉकडाउन के कारण अपनी जिंदगी में आ रही परेशानियों पर रोनित ने खुलकर बातचीत की.
जनवरी से नहीं मिली है कोई पेमेंट
इंटरव्यू में रोनित रॉय ने कहा, मैंने जनवरी से अभी तक कोई पैसा नहीं कमाया है. मेरे कई छोटे बिजनेस हैं जो चल रहे थे, लेकिन अब वह मार्च से बंद पड़े हैं. मेरे पास जो भी है मैं उससे 100 परिवारों को सपोर्ट कर रहा हूं. ये 100 परिवार परिवार हैं जिनके लिए मैं जिम्मेदार हूं, जो मुझपर निर्भर हैं.’ इसके साथ ही उन्होंने बताया कि इस दौरान भले ही पैसे नहीं आ रहे हो, लेकिन उन्होंने अपने स्टाफ की भी सैलरी नहीं रोकी है. ”भले ही इसके लिए मुझे अपने सामान बेचने पड़ रहे हैं, पर मैं लोगों की जितना हो पा रहा है, मदद कर रहा हूँ.”
प्रोडक्शन हाउस और चैनल्स मदद के लिए आगे आएं
रोनित ने सभी बड़े बड़े प्रोडक्शन हाउस से अपील की हैं कि वे कलाकारों की मदद करने के लिए आगे आएं, ”मैं बहुत अमीर नहीं हूं, लेकिन मुझसे जो भी बन पड़ रहा है, मैं कर रहा हूं. प्रोडक्शन हाउसेस और चैनल्स को भी मदद के लिए आगे आना चाहिए… जिनके ऑफिस इतने शानदार हैं कि जो दो किलोमीटर दूर से भी दिख जाते हैं. उन्हें भी कुछ करना चाहिए. उन्हें लोगों की मदद करनी चाहिए. अगर ऐसे समय में आप एक्टर्स की मदद नहीं करते हैं तो यह सही नहीं है.”
आजकल प्रोडक्शन हाउसेस की 90 डे पेमेंट वाली पालिसी पर भी काफी बहस चल रही है. ”मैं उनके 90 डे पेमेंट वाले रूल को मानता हूँ, हमने खुद इस रूल के साथ कॉन्ट्रैक्ट साइन किया है, लेकिन ये उन रूल्स को फॉलो करने का समय नहीं है. चैनल या प्रोडक्शन हाउस ये क्यों नहीं समझते कि उनके साथ जो भी जुड़े हैं, उनकी टीम, उनके परिवार का हिस्सा हैं. सारे काम बंद हैं, लोगों की आमदनी बन्द हो गयी है, तो ऐसे समय में उन्हें अपनी टीम की मदद करनी चाहिए. मैं ये नहीं कहता कि आप उन्हें एक्स्ट्रा पैसे दें, लेकिन उनका जो बनता है, वो तो दे दो. आपको उन्हें 90 दिन बाद भुगतान करना ही है लेकिन उन्हें अभी जरूरत है, उन्हें अभी दीजिए. वह भूखे नहीं रह सकते. उन्हें अंदाज़ा है कि सब फिलहाल किस तरह के इमोशनल, मेंटल और फाइनेंसियल स्ट्रेस से गुज़र रहे हैं.”
जान बचाइए, जान दीजिये मत
रोनित ने सबसे अपील की है कि सभी को तनाव में किसी भी गलत कदम को उठाने से बचना चाहिए, सुसाइड के बारे में सोचने से भी बचना चाहिए. रोनित ने बताया कि वो भी लंबे समय तक बेरोजगार थे और उन्हें काम नहीं मिला था,”मेरी पहली ही फ़िल्म ‘जान तेरे नाम’ ब्लॉकबस्टर थी. ये सिल्वर जुबली थी, तब की सिल्वर जुबली फ़िल्म मतलब अब की 100 करोड़ बिज़नेस वाली फिल्म. ये 92 की बात है, इसके बाद छः महीने तक मुझे कोई काम नहीं मिला. इसके बाद तीन साल तक मैंने छोटे मोटे काम किए. लेकिन 96 के बाद छोटे मोटे काम आना भी बन्द हो गए. चार साल तक मैं बिना काम के घर पर ही बैठा रहा. मेरे पास एक छोटी सी कार थी, लेकिन उसमें पेट्रोल डालने के भी पैसे नहीं थे. मुझे याद है कि मैं अपनी मां के यहां खाना खाने भी पैदल ही जाया करता था. लेकिन मैंने खुद को खत्म नहीं किया. इस तरह की क्राइसेस हर किसी की लाइफ में आती है और गुज़र भी जाती है. लेकिन सुसाइड की बात सोचना भी गलत है, क्योंकि जान देने से किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकता. इसलिए जीने के बारे में सोचिए, ये दौर जल्द ही गुज़र जाएगा.”
बता दें कि रोनित रॉय ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’, ‘कसौटी जिंदगी की’, ‘अदालत’ और ‘इतना करो न मुझे प्यार’ जैसे सीरियल्स समेत कई फ़िल्मों में भी नजर आ चुके हैं.
एकता कपूर की पॉपुलर वेब सीरीज ‘कहने को हमसफर हैं’ का तीसरा सीजन 6 जून से शुरू हो रहा है और टेलीकास्ट से पहले ही काफी सुर्खियां बंटोर चुका है.

पूनम पांडे लॉकडाउन के समय में अपने बॉयफ्रेंड सैम के साथ कल रात यानी रविवार को मरीन ड्राइव पर बेवजह घूम रही थीं. उन्हें कानून का उल्लंघन करने पर गिरफ्तार कर लिया गया है. साथ ही उनकी बीएमडब्ल्यू कार भी ज़ब्त कर ली गई, जिसमें वे घूम रही थीं.
उनके ख़िलाफ नेशनल डिजास्टर एक्ट आईपीसी की धारा 269 व 188 के अंतर्गत मुक़दमा दायर किया गया है. जानकारी के लिए बता दे कि धारा 269 के अंतर्गत किसी व्यक्ती पर बीमारी व इंफेक्शन को अपनी गैरजिम्मेदाराना हरकत के कारण फैलाने व दूसरे की ज़िंदगी ख़तरे में डालने का आरोप लगता है. धारा 189 में आरोपित पर सरकार द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन ना करने पर कार्यवाही की जाती है.
पूनम पांडे हमेशा विवादों में घिरी रही हैं. कभी अपने हॉट-बोल्ड फोटोग्राफ्स के लिए, तो कभी अपने विवादास्पद बयानबाजी के लिए. अभी कुछ ही दिनों पहले उन्होंने अपने बॉयफ्रेंड के साथ चेहरे पर रुमाल का मास्क लगाकर किस करते हुए फोटो शेयर किया था, जो काफ़ी वायरल हुआ था. कई बार इस तरह की हरकतें वे करती रही हैं. नशा फिल्म में अपने स्टूडेंट के साथ बोल्ड हरकतों के कारण भी बेहद सुर्ख़ियों में रहीं.
पूनम पांडे वर्ल्ड क्रिकेट के समय भी अजीबोगरीब बयानबाजी करते हुए काफ़ी सुर्खियों में रही थीं, ख़ासकर 2011 के वर्ल्ड कप में उन्होंने कहा था कि अगर भारत वर्ल्ड कप जीतता है, तो वे न्यूड होंगी. यह और बात है कि भारत ने वर्ल्ड कप जीता, पर पूनम ने अपने कहे अनुसार कुछ किया नहीं.
वे अक्सर इस तरह की विवादित बयान देती रहती हैं. साल 2012 में भी आईपीएल क्रिकेट मैच के समय उन्होंने कहा था कि शाहरुख ख़ान की टीम कोलकाता नाइटराइडर्स अगर कप जीती, तो वह न्यूड होंगी. इस तरह के विवादित बयान देना उनकी आदत में शुमार है.
वे रात में अपने बॉयफ्रेंड के साथ बीएमडब्ल्यू कार में मरीन ड्राइव पर घूम रही थीं, तब फाइव स्टार होटल के सामने से उन्हें अरेस्ट किया गया. पूनम पर बिना कारण बेवजह सड़कों पर घूमने और लॉकडाउन के नियम तोड़ने के कारण एफआईआर दर्ज किया है.

कोरोना महामारी के कारण लॉकडाउन से हर कोई परेशान है, लेकिन रोज़ाना काम करके पेट पालनेवाले गरीबों की स्थिति सबसे ज़्यादा ख़राब है, ऐसे में कुछ लोग मसीहा बनकर उन्हें खाना बांट रहे हैं, ताकि भूख से कोई गरीब परेशां न हो. अर्चना पूरण सिंह भी उन गरीबों के लिए मसीहा बनीं, जिन्हें उन्होंने खाना बांटा.
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वीडियो में आप देख सकते हैं कि सोशल डिस्टेंसिंग और हाथ में ग्लव्स और चेहरे पर मास्क लगाये अर्चना पूरण सिंह बारी बारी से गरीबों को खाना बांट रही हैं. यह वीडियो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो रहा है. उनके साथ उनके पति परमीत सेठी भी हैं और कुछ और लोग जो उनकी मदद कर रहे हैं. यहां सबसे बड़ी बात आपको बता दें कि सबकी तरह यह वीडियो अर्चना ने खुद शेयर नहीं किया, बल्कि एक्ट्रेस नंदिनी सेन ने यह वीडियो शेयर किया. इससे इस बात का पता चलता है कि अर्चना खुद इस बारे में मीडिया को नहीं बताना चाहती थीं. उनके इस सहयोग के लिए सोशल मीडिया पर जहां उन्हें एक ओर ढेरों शुभकामनाएं मिल रही हैं, वहीं लोग उनकी मिसाल दे रहे हैं.
उनके वीडियो पर एक्ट्रेस नीना गुप्ता ने कमेंट करते हुए कहा कि वाह! ये हुयी न बात… अर्चना के इस प्रयास की सभी ने काफ़ी तारीफ़ की, तो बहुतों ने उन्हें दुआएं भी दीं.
आपको बता दें कि लॉकडाउन के कारण द कपिल शर्मा शो की शूटिंग बंद है, जिसके कारण इसके कलाकार कोरोना से लड़ने में लोगों की मदद कर रहे हैं. अर्चना पूरण सिंह सालों से फिल्म इंडस्ट्री का हिस्सा हैं और वो उनके पति परमीत सेठी अपने दो बेटों के साथ मुंबई के मड आइलैंड में रहती हैं.
– अनीता सिंह
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देश में लॉकडाउन का दूसरा फेज़ शुरू हो गया है. प्रधानमंत्री मोदीजी ने इसकी अवधि 3 मई तक रखी है, पर यह भी कहा है कि 20 अप्रैल के बाद कुछ क्षेत्रों में छूट दी जाएगी, पर उसमें भी कुछ पाबंदियां होंगी. क्या खुला रहेगा और क्या बंद आइये देखते हैं.
20 अप्रैल से इन्हें मिलेगी छूट
- किराना दुकानें और फल सब्जी की दुकानें, साफ़ सफाई का सामान बेचनेवाली दुकानें
- डेयरी, मीट मछली की दुकानें
- कुरियर, ई कॉमर्स सर्विसेज़
- प्लम्बर, इलेक्ट्रिशियन, मैकेनिक और कार्पेंटर्स को मिलेगी काम करने की छूट
- आईटी कंपनियों के ऑफिस भी 50% स्टाफ के साथ खुलेंगे
- गांवों में उद्योग धंधे खुलेंगे
- हाइवे पर दुकानें और ढाबे खुलेंगे
- केवल सरकारी गतिविधियों के लिए काम करनेवाले डाटा और कॉल सेंटर्स
- प्राइवेट सिक्योरिटीज और मेंटेनेंस सर्विसेज़
ज़िला प्रशासन को आदेश दिए गए हैं कि वो लोगों और सामान की डिलीवरी, आवाजाही का इंतज़ाम करें. क्योंकि ट्रांसपोर्ट की सुविधा उपलब्ध नहीं होंगी. बस, ट्रेन, मेट्रो आदि पहले की तरह बंद रहेंगे. साथ ही हॉट स्पॉट के इलाकों में किसी तरह की कोई छूट नहीं मिलेगी.
गांवों में शुरू करेंगे ये काम
- गांवों में ईट भट्ठी और फ़ूड प्रोसेसिंग शुरू होगी.
- कोल्ड स्टोरेज और वेयरहाउस सर्विसेज़ शुरू होंगी.
- पॉल्ट्री फार्म शुरू होंगे.
- फिशिंग आदि से जुड़ी सर्विसेज़ शुरू होंगी.
- दूध का कलेक्शन, प्रोसेसिंग, डिस्ट्रीब्यूशन और ट्रांसपोर्ट शुरू होगा.
- सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए और मास्क लगाकर मनरेगा का काम शुरू कर सकते हैं.
3 मई तक बंद रहेंगी ये सेवाएं
- सभी घरेलु और विदेशी उड़ानें
- यात्री ट्रेनों की आवाजाही बंद रहेगी
- पब्लिक ट्रांसपोर्ट यानि मेट्रो ट्रेन और बसें बंद रहेंगी
- सभी तरह के एजुकेशन सेंटर, कोचिंग सेंटर, स्कूल, कॉलेज आदि
- ऑटो रिक्शा, टैक्सी और कैब सेवाएं बंद रहेंगी
- सिनेमाहॉल, जिम, रेस्टोरेंट्स, शॉपिंग मॉल्स, थियेटर, बार आदि
- किसी भी तरह के राजनीतिक और धार्मिक कार्यक्रम
फोटो सौजन्य: ड्रीम्सटाइम्स
– अनीता सिंह
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कोरोना के कहर से पूरा देश इस समय लॉकडाउन में है. महामारी से बचने के लिए लोग घरों में कैद हो गए हैं. दिनभर घर में काम करने के बाद शाम तक ऐसा मन होता है कि कहीं भाग जाएं, पर जाएंगे कहां? ऐसा लगता है हमारी खुशियों की किसी की नज़र लग गयी है. अगर आपके मन में भी ऐसे ख़्याल आ रहे हैं, तो आपको ज़रुरत है मोटिवेशन की. मन के डर और निराशा को दूर भगाने के लिए हम यहां कुछ स्मार्ट हैपिनेस टिप्स.
आपने अकबर और बीरबल की वह कहानी तो सुनी ही होगी, जब महाराज अकबर बीरबल से कहते हैं कि बीरबल कोई एक ऐसा वाक्य बताओ, जिसे सुनकर ख़ुशी में दुःख मिले और दुःख में ख़ुशी. और हमारे चतुर राजा बीरबल ने कहा था कि ये वक़्त भी बीत जायेगा. अगर कोई बहुत खुश हो उसे ये सुनाओ तो उसे बुरा लगता है, पर अगर उदासी में किसी को सुनाएं, तो उसमें नया उत्साह आता है. आज हमें इसी की ज़रुरत है. हर व्यक्ति अगर इस बात को कहे, तो उसका मानसिक स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा और वो ख़ुश भी रहेगा.
स्मार्ट हैपीनेस टिप्स
सबसे पहले तो मुस्कुराइये कि ये आर्टिकल पढ़ने के लिए आप ज़िंदा हैं. अब चाहें तो खिलखिलाकर अपने ज़िंदा होने का सबूत सबको दें. यकीन मानिए आपके चेहरे की मुस्कराहट घर में सभी के चेहरे खिला देगी.
अब अगर आप वर्क फ्रॉम होम कर रहे हैं, तो हर आधे एक घंटे में लैपटॉप से ब्रेक लें और घर में सौ कदम चलें. ऐसा करने से शरीर में अकड़न नहीं आएगी और चलने फिरने से आप अच्छा महसूस करेंगे.
काम ख़त्म के बाद बोरियत दूर करने के लिए कोई कॉमेडी फिल्म देखें या फिर डांस शो. भूलकर भी न्यूज़ चैनल लगाके न बैठें. कोरोना की बार बार खबर हमारे मस्तिष्क को बुरी तरह प्रभावित कर रही है.
दिन में एक बार सुबह और एक बार शाम को 15 मिनट तक न्यूज़ देखकर आपको देश दुनिया की खबर मिल जायेगी, उससे ज़्यादा जानने की आपको ज़रुरत नहीं है. इसलिए जितना कम कोरोना से जुड़ी खबर देखेंगे, उतना खुश रहेंगे.
ख़ुश होना हमे बच्चों से सीखना चाहिये, वो हर हाल में खुश रहते हैं, इसलिए ऐसे में आपको बच्चों के साथ खेलना चाहिए. बच्चों के साथ खेलते हुए हम बीमारी, महामारी सब भूल जाते हैं और इस समय यही हमारे लिए ज़रूरी है.
कोरोना से लड़ने के लिए पूरे परिवार को एक यूनिट की तरह काम करना है. इस बीमारी ने हमें अपनों की सुरक्षा का एहसास दिलाया है, जो शायद भागदौड़ की इस ज़िन्दगी में कहीं गुम गया था.
हम सामाजिक प्राणी हैं, इसलिये बिना मिले और बात किये हमे बड़ा अजीब लग रहा है. यह वक़्त है अपनों से संवाद बढ़ाने का. उनको करीब से जानने का. समझो प्रकृति ने हमें अपनों से और बेहतर जुड़ने के लिए ही यह स्थिति पैदा की हो.
जिन रिश्तेदारों से बहुत दिनों से बात नहीं हुई, उन्हें कॉल करके उनका हाल चल लें. रिश्ते में नई ताज़गी आ जायेगी.
यारों को सहेलियों को वीडियो कॉल करें, अपनी कहें और उनकी सुनें.
जो किताब कई दिनों से आप पढ़ना चाह रहे थे, अब उसे पूरा करने का समय आ गया है. वैसे चाहें तो अपनी फेवरेट किताब को दोबारा पढ़ सकते हैं.
इस समय ज़्यादातर लोग सिरदर्द, बदनदर्द से परेशान हैं, ऐसे में ज़रूरी है कि आप अपने शरीर को थोड़ा फ्री करें. सुबह शाम नाश्ते से पहले अपने फेवरेट फ़िल्मी जाने पर थोड़े ठुमके लगाएं. लगेगा जैसे ज़िन्दगी मुस्कुरा रही है.
आजकल जिसे देखो वो सोशल मीडिया पर रोज़ कुछ न कुछ नया बनाकर फोटो शेयर कर रहा है, सबके भीतर के छुपे मास्टर शेफ बाहर निकल रहे हैं. और अच्छा भी है, अपनी और अपनों की ख़ुशी के लिए ये अच्छा तरीका है.
अपने खाने के साथ साथ गली के उन जानवरों का भी ख़्याल कर लें, जो दुकानें बंद होने के कारण यहां-वहां खाने के लिए भटक रहे हैं. ज़्यादा नहीं बस कुछ बिस्किट या ब्रेड या पाव दूध में डुबोकर उन्हें दे दें. और साथ ही पानी का एक कटोरा रख दें. गर्मियां शुरू हो गयी हैं, उन्हें भी हमारी तरह प्यास लगती है.
अपने बड़ों के पास थोड़ी देर बैठें, उनके सुने किस्से फिर सुनें और अपने सुनाएँ. रिश्तों की डोर थोड़ी और मज़बूत करें और कोरोना को हराने में सभी की मदद करें.
– अनीता सिंह
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आज फिल्मी सितारों ने बैसाखी की बधाइयां देने के साथ-साथ लोगों से घर पर ही रहकर परिवार के साथ मिलकर इसे मनाने के लिए भी कहा. अमिताभ बच्चन ने अपनी फिल्म सुहाग के गाने तेरी रब ने बना दी जोड़ी… के सीन का फोटो शेयर करके लोगों को बधाइयां दीं और कहा की- बैसाखी के पावन अवसर पर, ले बारम बार बधाई.. ये दिन हर दिन मंगलमय हो.. हम सब की यही दुहाई.. हर्षित पल और मधुमय जीवन, अपने घर मनाएं.. सुख, शांत, सुरक्षित रहें सदा.. ईश्वर से यही दुआएँ.. हैप्पी बैसाखी लव…
हेमा मालिनी ने भी तमिल के नव वर्ष और बैसाखी की शुभकामनाएं देते हुए प्रार्थना की कि जल्द हम सब कोरोना से मुक्त हो नए सिरे से बिना किसी भय के ख़ुशियों के साथ अपने सभी काम कर सकेंगे.
ऐसा पहली बार हो रहा है जब कोई बड़ा व धूमधाम से भरपूर त्यौहार हम घर पर रहकर ही मना रहे हैं. ख़ास पंजाबियों के इस फेस्टिवल में आमतौर पर नाच-गाना, बड़ी धूमधाम और रौनक देखने को मिलती है, लेकिन कोरोना की लड़ाई में लॉकडाउन के कारण सब जगह बंद होने के कारण घर पर ही रहकर लोग इसे मना रहे हैं और मुबारकबाद दे रहे हैं.
अमिताभ बच्चन, हेमा मालिनी से लेकर सनी देओल, माधुरी दीक्षित, अजय देवगन, किरण खेर, हरभजन सिंह, गीता बसरा, अंगद बेदी, नेहा धूपिया आदि ने ढेर सारी बधाइयां और शुभकामनाएं दी. साथ ही ये प्रार्थना भी की कि यह मुश्किल घड़ी जल्दी ख़त्म हो जाए और देश में सुख, शांति और ख़ुशियां वापस लौट आए.
इस लॉकडाउन में स्टार्स अपने मनोरंजन का भी कोई मौक़ा नहीं चूक रहे. वे घर पर रहकर किस तरह से ख़ुद को इंटरटेन कर रहे हैं, इसकी ढेर सारी मज़ेदार वीडियोज़ आए दिन देखने को मिलती हैं. आइए उन्हीं में से कुछ चुनिंदा वीडियोज़ को देखते हैं.
सभी को बैसाखी की लख-लख बधाइयां.. मुबारकबाद.. शुभकामनाएं…
T 3500 – Happy Baisakhi .. brruuuuruaahhhhh !! pic.twitter.com/I00pzSx7Tg
— Amitabh Bachchan (@SrBachchan) April 13, 2020
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ਵਿਸਾਖੀ ਦੇ ਇਸ ਪਵਿੱਤਰ ਦਿਹਾੜੇ ਤੇ ਮੈਂ ਰੱਬ ਅੱਗੇ ਅਰਦਾਸ ਕਰਦਾ ਹਾਂ ਕਿ ਸਾਰੇ ਸਮਾਜ ਨੂੰ ਇਸ ਕਰੋਨਾ ਮਹਾਮਾਰੀ ਤੋਂ ਲੜਨ ਦਾ ਬਲ ਮਿਲੇ।
— Sunny Deol (@iamsunnydeol) April 13, 2020
वैसाखी के इस पवित्र अवसर पर मैं ईश्वर से यही प्रार्थना करता हूं कि सारे समाज को इस करोना नामक महामारी से लड़ने कि शक्ति प्रदान करें।#HappyBaisakhi #HappyVaisakhi
Vaisakhi di vadaiyan sabko! Stay at home & celebrate with your family. Lots of love to all ♥️#HappyBaisakhi
— Ajay Devgn (@ajaydevgn) April 13, 2020
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View this post on InstagramHappy baisakhi everyone😊..stay home..🙏
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Vaisakhi diyan samoh sangtan nu lakh Lakh wadhaiyan – naal ek benti hai ke tussi sab apney Gharan vich hi raho – teh aj saverey 11 baje appa saarey mill ke Waheguru nu Sarbat de bhaley lai ardaas kariye 🙏🏽 Nanak naam chadd di Kala terey bhaney sarbat da Bhalla #HappyBaisakhi ❤️
— Gurdas Maan (@gurdasmaan) April 13, 2020
View this post on InstagramBaisakhi diya sabnu lakh lakh vadhaiyan 😇🙏❤️ … #stayhomestaysafe
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View this post on InstagramDONT touch each other. Otherwise you may get a shock #besafe #tbt #socialdistancing
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View this post on InstagramLosing weight or losing mind?? @khemster2 #lockdown #day10
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View this post on InstagramTeejay and me are quarantined #mainyahantuwahan
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View this post on InstagramTo convince her to make a ponytail, I had to make one first. 😋😉. #dadysgirl #myall❤️
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कोरोना वायरस की लड़ाई में लॉकडाउन के इस समय यूं तो हर कोई अपने-अपने ढंग से कभी ख़ुशी कभी ग़म वाले अंदाज़ में घर पर समय बीता रहा है. लेकिन इसमें सबसे बड़ी कठिनाई का सामना फिल्म इंडस्ट्री के वर्कर्स कर रहे हैं. उन्हीं के सहयोग और मदद के लिए सभी सितारे एक हुए हैं और लाजवाब एक छोटी फिल्म बनाई गई है.
फिल्म स्टार जो मुश्किल से घर पर समय बिताते थे, अब उनके लिए पूरा 24 घंटे घर पर रहना.. दिनभर घर में समय बिताना मुश्किलोंभरा लग रहा है, लेकिन फिर भी इन सबके बावजूद वे घर पर हैं और लोगों को भी घर पर रहने, अपना ख़्याल रखने के लिए सलाह दे रहे हैं.. निवेदन कर रहे हैं. वे अपने परिवार यानी फिल्म इंडस्ट्री के बारे में भी सोच रहे हैं. इसी से जुड़ा हुआ वीडियो अमिताभ बच्चन ने शेयर किया है. साथ इस बात को भी मज़बूती से पेश किया है कि इस महामारी के समय हम सब एक हैं.
जब कभी देश में कोई मुसीबत या संकट आया है, तब सब एक हो गए हैं. फिल्म इंडस्ट्री भी इस बात की मिसाल रही है इसी की बानगी देखने को मिली है इस वीडियो में.
ब्लैक एंड वाइट के रूप में एक शॉर्ट फिल्म फैमिली, जो घर पर रहकर बनाई गई है. इसमें दिखाया गया है कि अमिताभ बच्चन अपना काला चश्मा यानी सनग्लास ढूंढ़ रहे हैं, जो मिल नहीं रहा है. वे बार-बार अपनी अर्धांगिनी यानी घरवाली को बुलाते रहते हैं, पुकारते रहते हैं कि उनका चश्मा नहीं मिला है. तब दिलजीत दोसांज आते हैं और ढूंढने लगते हैं. आगे बढ़ते हुए वे रणबीर कपूर को उठाते हैं, जो सो रहे हैं. उनको कहते हैं कि अंकल का चश्मा नहीं मिल रहा हैं. उसे ढूंढ़ने में मदद करो. जबकि रणबीर सोने के मूड में है और मना करते हैं. उस पर सोनाली उन्हें झाड़ लगाती हैं और दोनों को चश्मा ढूंढ़ने के लिए कहती हैं.
इसी तरह सीन आगे बढ़ता रहता है, तो कभी मामूट्टी, तो कभी रजनीकांत, आलिया भट्ट, प्रियंका चोपड़ा एक-एक कलाकार आते जाते हैं. भारतभर के सभी फिल्म इंडस्ट्री के कलाकारों ने अभिनय किया है और सभी चश्मा ढूंढने की इस मुहिम और बातचीत में शामिल होते हैं. अंत में जब दिलजीत आलिया भट्ट को फोन करते हैं और चश्मे के बारे में पूछते हैं, तो बड़े मजाकिया अंदाज में आलिया कहती हैं कि तुम मुझे फोन क्यों कर रहे हो, मैं तो तुम्हारे पीछे ही हूं. तब दिलजीत उन्हें चश्मे के बारे में पूछते हैं. ऐसे में आलिया का हाथ अपने माथे पर जाता है और चश्मा मिल जाता है. तब वह चश्मा लेकर अमिताभ बच्चन को देने के लिए भागते हैं, तो रणबीर उनके हाथ से ले लेते हैं उसे मैं दूंगा कहते हैं. लेकिन बाज़ी मार ले जाती हैं प्रियंका चोपड़ा. वे अमिताभ बच्चन को चश्मा देती हैं. उन्हें देख अमितजी थोड़ा चौंक से जाते हैं. प्रियंका पूछती हैं कि आप इतनी देर से चश्मा ढूंढ़ क्यों रहे थे. अमिताभ कहते हैं कि घर से बाहर जाना नहीं है. निकलना नहीं है, तो धूप भी नहीं लगेगी. ऐसे में सनग्लास को संभालकर रखना ज़रूरी है, कहीं इधर- उधर ना हो जाए.. गुम ना हो जाए, इसलिए ढूंढ रहा था.
है ना बड़ी मज़ेदार बात. पूरी शॉर्ट फिल्म एक काला चश्मा की तलाशी में बितती है. इसमें सभी कलाकार ने अपना-अपना सीन घर पर रहकर किया है.
अमिताभ बच्चन के अनुसार, इसे करने का उद्देश्य यह बताना रहा है कि फिल्म इंडस्ट्री एक है. हम सब एक परिवार की तरह हैं. इस कोरोना वायरस की लड़ाई में सबसे अधिक संघर्ष और दिक्कतों का सामना हमारे फिल्म वर्कर्स को करना पड़ रहा है. हम फिल्म इंडस्ट्री ने मिलकर निर्णय लिया है कि हम इन्हें सहयोग देंगे और इनकी मदद करेंगे, बिल्कुल एक परिवार की तरह. आपने देखा होगा कि जब कोई समस्या आती है, तब परिवार के सभी हाथ आगे बढ़कर मदद के लिए आ जाते हैं.
इसी के साथ उन्होंने एक मज़ेदार बात यह भी बताई कि यह शूट अपने-अपने घर पर रहकर कलाकारों ने किया है. सभी ने अपने-अपने राज्य व शहरों में अपने घर से इस शूट में हिस्सा लिया है यानी कोई भी घर से बाहर नहीं निकला है. उनके कहने का तात्पर्य है कि हमने नियम का पालन करते हुए सहयोग और प्रेरणा के लिए इसे बनाया है, तो आप सब से भी यही कहना है कि आप घर पर रहें.. स्वस्थ रहें.. और नियमों का पालन करें… यह दिन भी कट जाएंगे और सवेरा आएगा. उम्मीद का दामन मत छोड़ना.
इस यूनीक शॉर्ट फिल्म का निर्देशन प्रसून पांडे ने किया है. कलाकारों के नाम इस प्रकार हैं- दिलजीत दोसांझ, रणबीर कपूर, मामूट्टी, चिरंजीवी, मोहनलाल, सोनाली कुलकर्णी, रजनीकांत, प्रोसेनजीत चटर्जी, शिवा राजकुमार, आलिया भट्ट, प्रियंका चोपड़ा और अमिताभ बच्चन.
चूंकि अलग-अलग भाषा की फिल्मों के कलाकारों ने अभिनय किया है, तो उन्होंने अपनी भाषा यानी हिंदी, पंजाबी, मराठी, तमिल, तेलुगु, कन्नड, मलयालम, बंगाली आदि भाषाओं का इस्तेमाल किया है. इसी कारण इसमें इंग्लिश में सबटाइटल्स भी दिए गए हैं. सच बढ़िया व मज़ेदार परिकल्पना. इस तरह के दिलचस्प कॉन्सेप्ट पर और भी शॉर्ट फिल्में बननी चाहिए. घर बैठे लोगों को अच्छा मनोरंजन होगा और वक़्त भी बढ़िया गुजरेगा.
फिल्म के अंत में अमितजी ने बेहद प्रेरणादायी बात भी कही है कि-
जब विषय देशहित का हो.. और आपका संकल्प आपके सपने से भी ज़्यादा विशाल हो.. तब फिर इस ऐतिहासिक प्रयत्न का उल्लास और कृतज्ञ भाव, अपने फिल्म उद्योग के सह कलाकारों और मित्रों के लिए!
हम एक हैं.. टल जाएगा ये संकट का समां! नमस्कार! जय हिंद!..
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