panchtantra tales

बहुत समय पहले की बात है घने से जंगल में एक शेर और एक शेरनी साथ-साथ रहते थे. उन दोनों में बेहद प्यार, अपनापन और भरोसा था. वे दोनों एक-दूसरे से बहुत प्रेम करते थे और रोज़ दोनों साथ में ही शिकार करने जाते थे. को भी शिकार मिलता उसको मारकर आपस में बराबर बांट कर खाते थे. ऐसे ही उनका जीवन हंसी-ख़ुशी चल रहा था कि कुछ समय के बाद शेर और शेरनी दो पुत्रों के माता-पिता बन गए.

जब शेरनी ने बच्चों को जन्म दिया, तो शेर ने कहा कि अब से तुम शिकार पर मत जाना. घर पर रहकर अपनी और बच्चों की देखभाल करना. अब से मैं अकेले ही शिकार पर जाऊंगा और हम सब के लिए शिकार लेकर आऊंगा. शेरनी अब घर पर रहकर बच्चों की देखभाल करती और शेर अकेले ही शिकार पर जाता.

उनकी ज़िंदगी मज़े से चल रही थी कि एक दिन शेर को कोई भी शिकार नहीं मिला. उसने बहुत ढूंढ़ा, यहां तक कि वो दूसरे जंगल में भी गया लेकिन उसके हाथ कुछ न लगा. आख़िरकार थक हारकर वह खाली हाथ ही घर की तरफ जा रहा था कि रास्ते में उसे एक लोमड़ी का बच्चा अकेले घूमता हुआ दिखाई दिया. शेर को पहले तो लगा कि ये बहुत ही छोटा बच्चा है, पर फिर उसने सोचा आज उसके पास शेरनी और बच्चों के लिए कोई भोजन नहीं है, तो वह इस लोमड़ी के बच्चे को ही अपना शिकार बनाएगा. शेर ने लोमड़ी का बच्चा पकड़ा, पर वह बहुत छोटा था, जिस वजह से वह उसे मार नहीं सका. वह उसे ज़िंदा ही पकड़कर घर ले गया.

घर जाकर शेरनी उसने सारा क़िस्सा बताया कि आज उसे एक भी शिकार नहीं मिला और वापसी में रास्ते में उसे यह लोमड़ी का बच्चा दिखाई दिया, तो वह उसे ही मारकर खा जाए. शेर की बातें सुनकर शेरनी बोली- जब तुम इसे बच्चे को नहीं मार पाए, तो मैं इसे कैसे मार सकती हूं? मैं इसे नहीं खा सकती है. इसे भी मैं अपने दोनों बच्चों की ही तरह पाल-पोसकर बड़ा करूंगी और यह अब से हमारा तीसरा पुत्र होगा.

उसी दिन से शेरनी और शेर लोमड़ी के बेटे को भी अपने पुत्रों ही तरह प्यार करने लगे और वो बच्चा भी शेर के परिवार के साथ घुल-मिल गया और वो उनके साथ बहुत खुश था. वो अब उनके परिवार उन्हीं के साथ खेलता-कूदता और बड़ा होने लगा. तीनों ही बच्चों को लगता था कि वह सारे ही शेर हैं. लोमड़ी का बच्चा भी इस अंतर को नहीं समझ पाया और न ही शेर के दोनों बच्चे.

जब वो तीनों थोड़े और बड़े हुए, तो खेलने के लिए जंगल में जाने लगे. एक दिन जंगल में खेलते-खेलते उन्होंने वहां एक हाथी को देखा. शेर के दोनों बच्चे उस हाथी के पीछे शिकार के लिए लग गए, लेकिन वहीं लोमड़ी का बच्चा इतने बड़े हाथी को देख डर गया और डर के मारे वापस घर पर शेरनी मां के पास आ गया. लोमड़ी के बच्चे ने अपने भाइयों को भी हाथी के पीछे जाने से मना किया था लेकिन वो दोनों नहीं माने.

कुछ देर बाद जब शेरनी के दोनों बच्चे भी वापस आए, तो उन्होंने जंगल वाली बात अपनी मां को बताई. उन्होंने बताया कि वह हाथी के पीछे गए, लेकिन उनका तीसरा भाई डर कर घर वापस भाग आया. अपने भाइयों की बातें सुनकर लोमड़ी के बच्चे को बहुत ग़ुस्सा आया और वो बहुत ग़ुस्सा हो गया. उसने गुस्से में कहा कि तुम दोनों जो खुद को बहादुर बता रहे हो, मैं तुम दोनों को पटकर ज़मीन पर गिरा सकता हूं.

लोमड़ी के बच्चे की बात सुनकर शेरनी ने उसे समझाया कि उसे अपने भाइयों से इस तरह की बात नहीं करनी चाहिए. शेरनी मां की बात लोमड़ी के बच्चों को अच्छी नहीं लगी. गुस्से में उसने कहा, तो क्या आपको भी लगता है कि मैं डरपोक हूं और हाथी को देखकर डर गया था?

लोमड़ी के बच्चे की इस बात को सुनकर शेरनी उसे अकेले में ले गई और उसे उसके लोमड़ी होने का सच बताया. हमने तुम्हें भी अपने दोनों बच्चों की तरह ही बड़ा किया है, उन्हीं के साथ तुम्हारी भी परवरिश की है और तुमसे हम बहुत प्यार करते हैं, लेकिन तुम लोमड़ी वंश के हो और अपने वंश के कारण ही तुम हाथी जैसे बड़े जानवर को देखकर डर गए और घर वापस भाग आए. वहीं, तुम्हारे दोनों भाई शेर वंश के हैं, जिस वजह से वह हाथी का शिकार करने के लिए उसके पीछे भागे थे.

शेरनी ने आगे कहा कि अभी तक तुम्हारे दोनों भाईयों को तुम्हारे लोमड़ी होने का पता नहीं है. लेकिन जिस दिन उन्हें यह पता चलेगा वह तुम्हारा भी शिकार कर सकते हैं. इसलिए, तुम्हारे लिए भी अच्छा होगा कि तुम यहां से जल्द ही चले जाओ और अपने वंश के लोगों के साथ रहो… तुम यहां से भागकर अपनी जान बचा लो.

शेरनी से अपने बारे में अपना सच सुनकर लोमड़ी का बच्चा वाक़ई डर गया और मौका मिलते ही वह रात में वहां से छिपकर भाग गया.

सीख: जंगल का अपना क़ानून है और हर जानवर का स्वभाव व आदत अपने वंश पर ही होती है फिर भले ही वो निडर और बहादुर लोगों के बीच रहें. वहीं दूसरी ओर ये कहानी यह भी बताती है कि शेर होने बाद भी लोमड़ी के बच्चे से प्यार व उसका पालन-पोषण करना यही दर्शाता है कि जानवरों के मन में भी प्यार और दया का भाव होता है.

बहुत समय पहले की बात है, हिम्मतनगर नाम के एक गांव में दो मित्र रहते थे, जिनका नाम धर्मबुद्धि और पापबुद्धि था. धर्मबुद्धि सीधा-साधा ईमानदार और नेक इंसान था और पापबुद्धि बेहद धूर्त और चालाक था. पापबुद्धि के चालक मन में एक दिन ये ख्याल आया कि मैं धर्मबुद्धि के साथ दूसरे नगर जाकर ढेर सारा धन कमाऊंगा और किसी ना किसी तरीके से वह सारा धन धर्मबुद्धि से हड़प लूंगा और आगे का सारा जीवन बड़े ही सुख-चैन से बिताऊंगा.

उसने किसी ना किसी तरीके से धर्मबुद्धि को अपने साथ चलने के लिए तैयार कर लिया और फिर दोनों अन्य नगर के लिए निकल गए. जाते समय वे अपने साथ ढेर सारा सामान लेकर गए थे और उसे अन्य नगरी में मुंह मांगे दामों में बेचकर खूब पैसा और स्वर्ण मुद्राएं इकट्ठी कर ली. दोनों ख़ुशी-ख़ुशी अपने गांव की ओर लौटने लगे.

गांव से पास पहुंचने पर बस कुछ दूर पहले ही पाप बुद्धि ने धर्म बुद्धि से कहा- अगर हम इतना सारा धन एक साथ गांव में ले जाएंगे तो हो सकता है कि गांव वाले हमसे कुछ धनराशि कर्ज के रूप में ले लें या हो सकता है कि लोग हमसे जलने लगें या फिर कोई चोर इस धन को हमसे चुरा ले. इसलिए हमें इस धन को किसी सुरक्षित स्थान पर छुपा देना चाहिए. इतना सारा धन एक साथ देखने पर तो किसी साधु-संन्यासी, योगी-महात्मा का मन भी डोल सकता है.

धर्मबुद्धि ने पापबुद्धि की बात से सहमति जताई और दोनों ने जंगल में एक सुरक्षित जगह खोजी और एक पेड़ के नीचे गड्ढा खोदकर उसमें धन को छिपा दिया. इसके बाद दोनों गांव चले गए.

एक रात पापबुद्धि ने मौका पाकर जंगल में जाकर वो सारा धन निकाल लिया और अपने साथ ले गया. धर्मबुद्धि इस बात से अनजान था और कई दिन बीत जाने के बाद वो पापबुद्धि के पास आया और बोला- भाई मुझे धन की आवश्यकता आ पड़ी है, आप चलो मेरे साथ तो हम दोनों उस गाढ़े हुए धन को निकाल लाते हैं. पापबुद्धि तैयार हो गया.

दोनों ने जब इस पेड़ के पास से मिट्टी हटाई तो वहां पर कुछ नहीं था. पापबुद्धि ने सीधे-सीधे धर्मबुद्धि पर धन चुराने का आरोप लगा दिया. इस बात पर दोनों में बहस होने लगी और फिर जब दोनों में झगड़ा बढ़ा तो दोनों न्यायाधीश के पास पहुंचे.

दोनों से कहा गया कि वो अपना पक्ष रखें. इसके बाद न्यायाधीश ने सच्चाई का पता लगाने के लिए दिव्य परीक्षा लेने का निर्णय लिया और दोनों से कहा कि वो जलती हुई आग में हाथ डालें. पापबुद्धि ने इसका विरोध किया और कहा कि आग में हाथ डालने की ज़रूरत नाहीं है, सच्चाई की गवाही तो वन देवता देंगे. न्यायाधीश तैयार हो गए.

धूर्त पापबुद्धि ने पहले ही एक खोखले वृक्ष के तने में अपने पिता को बैठा दिया था. जब उस पेड़ के पास पहुंच कर न्यायाधीश ने वन देवता से पूछा कि दोनों में से चोर कौन है तो पेड़ के तने से आवाज़ आई कि चोर धर्मबुद्धि है.

धर्मबुद्धि ने जब यह सुना तो उसने उस पेड़ के नीचे आग लगा दी. थोड़ी देर में जब आग बढ़ने लगी तो पापबुद्धि का पिता भी जलने लगा और कुछ देर में आग से झुलसने के कारण पापबुद्धि का पिता रोने-चिल्लाने लगा और वो तड़पते हुए उस पेड़ से बाहर निकल आया वो भी एकदम झुलसा हुआ और उसने न्यायाधीश के सामने पापबुद्धि की सारी योजना का खुलासा कर दिया.

सच्चाई सामने आने पर न्यायाधीश ने पापबुद्धि को मौत कि सज़ा सुनाई.

सीख: लालच बुरी बला है और उससे भी बुरा है अपनों के साथ धोखा और विश्वासघात करना. इन बुराइयों से दूर रहें और ईमानदारी व सच्चाई के साथ चलें.

एक घने जंगल के पास एक नदी बहती थी और उसी जंगल के बीचोंबीच एक तालाब था, जिसमें ढेर सारे मेंढक रहते थे. वो सभी तालाब में ही रहते और खाते-पीते थे. उन्हीं में एक मेंढक अपने तीन बच्चों के साथ उसी तालाब में रहता था. वो खूब खाता-पीता और मस्त रहता था, इसी वजह से उस मेंढक की सेहत अच्छी-खासी हो चुकी थी और वो उस तालाब का सबसे बड़ा और विशाल मेंढक बन चुका था. उस मेंढक को अपने बड़े शरीर पर बड़ा घमंड हो चला था. उसके बच्चे भी उसे देखकर काफी खुश होते थे. उसके बच्चों को लगता कि उनके पिता ही दुनिया में सबसे बड़े, शक्तिशाली और बलवान हैं. वो मेंढक भी अपने बच्चों को अपने बारे में बड़ाई मारनेवाली मनगढ़ंत व झूठी कहानियां सुनाता और उनके सामने शक्तिशाली होने का दिखावा करता था.

समय यूं ही बीत रहा था कि एक दिन मेंढक के बच्चे खेलते-खेलते तालाब से बाहर चले गए और जब वो पास के एक गांव में पहुंचे, तो वहां उनकी नज़र एक बैल पर पड़ी. उसे देखते ही उनकी आंखें खुली की खुली रह गईं. उन्होंने कभी इतना विशाल और बड़ा जीव नहीं देखा था. उनकी ज़िंदगी तो अब तक तालाब तक ही सीमित थी. बाहरी दुनिया से उनका कोई वास्ता नहीं था. इसलिए उस बैल को देखकर वो डर गए. वो बैल तो अपनी धुन में मज़े से घास खा रहा था, लेकिन वो बच्चे चकित होकर उस बैल को देखे जा रहे थे. इसी बीच घास खाते-खाते बैल ने ज़ोर से हुंकार लगाई. बस फिर क्या था, तीनों बच्चे डर के मारे भागकर सीधे तालाब में अपने पिता के पास आ गए. उनके घमंडी पिता ने उनके डर का कारण पूछा, तो उन्होंने अपने पिता को बताया कि आज उनकी आंखों ने क्या देखा. उन्होंने अपने पिता से कहा कि हमने आज आपसे भी बहुत बड़ा, विशाल और ताकतवर जीव को देखा.

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बच्चे आगे बोले कि हमको तो आज तक यही लगता था कि आप ही इस दुनिया में सबसे विशाल, बड़े और ताक़तवर हो! यह सुनते ही मेंढक के अहंकार को ठेस पहुंची. उसने एक लंबी सांस भरकर खुद को फुला लिया, ताकि उसका शरीर बड़ा दिखे और अपने बच्चों से कहा क्या वो उससे भी बड़ा जीव था? उसके बच्चों ने कहा, हां वो आप से बहुत बड़ा था.

मेंढक का क्रोध बढ़ गया… उसने ग़ुस्से में आकार और भी ज़्यादा सांस भरकर खुद को फुलाया और फिर पूछा, क्या अब भी वो जीव मुझसे बड़ा था? बच्चों ने कहा, हां पिताजी, ये तो कुछ भी नहीं, वो आपसे कई गुना बड़ा था. मेंढक से यह बात बर्दाश्त नहीं हुई और वो सांस फुला-फुलाकर खुद को गुब्बारे की तरह फुलाता चला गया. फिर एक वक्त आया जब उसका शरीर पूरी तरह फुल गया और वो फट गया और अपने इस झूठे अहंकार के चक्कर में वो अपनी जान से ही हाथ धो बैठा.

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सीख: झूठे दिखावे और अहंकार से दूर रहना चाहिए. किसी भी बात का घमंड नहीं करना चाहिए, क्योंकि घमंड करने से कोई लाभ नहीं होता, बल्कि खुद का ही नुकसान होता है, जैसा कि उस घमंडी मेंढक का हुआ. विनम्र रहें और अपनी शक्ति या हुनर का सही इस्तेमाल करें, न कि झूठा दिखावा.

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एक गांव में मन्थरक नाम का जुलाहा यानी बुनकर रहता था. वो मेहनत से अपना काम करता था पर वो बेहद गरीब था. एक बार जुलाहे के उपकरण, जो कपड़ा बुनने के काम आते थे, टूट गए. जुलाहा चाहता था जल्द से जल्द उपकरण बनजाएं ताकि उसका परिवार भूखा ना रहे, लेकिन उपकरणों को फिर बनाने के लिये लकड़ी की जरुरत थी. जुलाहा लकड़ीकाटने की कुल्हाड़ी लेकर समुद्र के पास वाले जंगल की ओर चल पड़ा. बहुत ढूंढ़ने पर भी उसे अच्छी लकड़ी नहीं मिली तबउसने समुद्र के किनारे पहुंचकर एक वृक्ष देखा, उसकी लकड़ी उत्तम थी तो उसने सोचा कि इसकी लकड़ी से उसके सबउपकरण बन जाएंगे. लेकिन जैसे ही उसने वृक्ष के तने में कुल्हाडी़ मारने के लिए हाथ उठाया, उसमें से एक देव प्रकट हएऔर उसे कहा, मैं इस वृक्ष में वास करता हूं और यहां बड़े ही आनन्द से रहता हूं और यह पेड़ भी काफ़ी हराभरा है तो तुम्हेंइस वृक्ष को नहीं काटना चाहिए. 

जुलाहे ने कहा, मैं बेहद गरीब हूं और इसलिए लाचार हूं, क्योंकि इसकी लकड़ी के बिना मेरे उपकरण नहीं बनेंगे, जिससे मैंकपड़ा नहीं बुन पाऊंगा और मेरा परिवार भूखा मर जाएगा. आप किसी और वृक्ष का आश्रय ले लो. 

देव ने कहा, मन्थरक, मैं तुम्हारे जवाब से प्रसन्न हूं, इसलिए अगर तुम इस पेड़ को ना काटो तो मैं तुम्हें एक वरदान दूंगा, तुममांगो जो भी तुमको चाहिए. 

मन्थरक सोच में पड़ गया और बोला, मैं अभी घर जाकर अपनी पत्‍नी और मित्र से सलाह करता हूं कि मुझे क्या वर मांगना चाहिए. 

देव ने कहा, तुम जाओ मैं तब तक तुम्हारी प्रतीक्षा करता हूं. 

गांव में पहुंचने पर मन्थरक की भेंट अपने एक मित्र नाई से हो गई. उसने दोस्त को सारा क़िस्सा सुनाया और पूछा, मित्र, मैं तुमसे सलाह लेने ही आया हूं कि मुझे क्या वरदान मांगना चाहिए.

नाई ने कहा, क्यों ना तुम देव से एक पूरा राज्य मांग को, तुम वहां के राजा बन जाना और मैं तुम्हारा मन्त्री बन जाऊंगा. जीवन में सुख ही सुख होगा.

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मन्थरक को मित्र की सलाह अच्छी लगी लेकिन उसने नाई से कहा कि मैं अपनी पत्‍नी से सलाह लेने के बाद ही वरदान का निश्चय करुंगा. मंथरक को नाई ने कहा कि मित्र तुम्हारी पत्नी लोभी और स्वार्थी है, वो सिर्फ़ अपना भला और फायदा ही सोचेगी. 

मन्थरक ने कहा, मित्र जो भी है आख़िर मेरी पत्नी है वो तो उसकी सलाह भी ज़रूरी है. घर पहुंचकर वह पत्‍नी से बोला, जंगल में आज मुझे एक देव मिले है और वो मुझसे खुश होकर एक वरदान देना चाहते हैं, बदले में मुझे उस पेड़ को नहीं काटना है. नाई की सलाह है कि मैं राज्य मांग लूं और राजा बनकर सुखी जीवन व्यतीत करूं, तुम्हारी क्या सलाह है?

पत्‍नी ने उत्तर दिया, राज्य-शासन का काम इतना आसान नहीं है, राजा की अनेकों जिम्मेदारियाँ होती हैं, पूरे राज्य और जनता की सोचनी पड़ती है. इसमें सुख कम और कष्ट ज़्यादा हैं. 

मन्थरक को पत्नी की बात जम गई और वो बोला, बात तो बिलकुल सही है. राजा राम को भी राज्य-प्राप्ति के बाद कोई सुख नहीं मिला था, हमें भी कैसे मिल सकता है ? किन्तु राज्य की जगह वरदान में क्या मांगा जाए?

मन्थरक की पत्‍नी ने कहा, तुम सोचो कि तुम अकेले दो हाथों से जितना कपड़ा बुनते हो, उससे गुज़र बसर हो जाता है, पर यदि तुम्हारे एक सिर की जगह दो सिर हों और दो हाथ की जगह चार हाथ हों, तो तुम दुगना कपड़ा बुन पाओगे वो भी तेज़ीसे, इससे ज़्यादा काम कर पाओगे और ज़्यादा कमा भी पाओगे, जिससे पैसे ज़्यादा आएंगे और हमारी ग़रीबी दूर होजाएगी. 

मन्थरक को पत्‍नी की बात इतनी सही लगी कि वो वृक्ष के पास वह देव से बोला, मैंने सोच लिया है, आप मुझे यह वर दो कि मेरे दो सिर और चार हाथ हो जाएं. 

मन्थरक की बात सुन देव ने उसे उसका मनचाहा वरदान दे दिया और उसके अब दो सिर और चार हाथ हो गए. वो खुशहोकर गांव की तरफ़ चल पड़ा, लेकिन इस बदली हुई हालत में जब वह गांव  में आया, तो लोग उसे देखकर डर गए और लोगों ने उसे राक्षस समझ लिया. सभी लोग राक्षस-राक्षस कहकर सब उसे मारने दौड़ पड़े और लोगों ने उसको पत्थरों सेइतना मारा कि वह वहीं मर गया

सीख: यदि मित्र समझदार हो और उसकी सलाह सही लगे, तो उसे मानो. अपनी बुद्धि से काम लो और सोच-समझकर ही कोई निर्णय लो. बेवक़ूफ़ की सलाह और उसपे अमल आपको हानि ही पहुंचाएगी. 

एक जंगल में महाचतुरक नामक सियार रहता था. वो बहुत तेज़ बुद्धि का था और बेहद चतुर था. एक दिन जंगल में उसने एक मरा हुआ हाथी देखा, अपने सामने भोजन को देख उसकी बांछे खिल गईं, लेकिन जैसे ही उसने हाथी के मृत शरीर पर दांत गड़ाया, चमड़ी मोटी होने की वजह से, वह हाथी को चीरने में नाकाम रहा.
वह कुछ उपाय सोच ही रहा था कि उसे सामने से सिंह आता दिखाई दिया, सियार ने बिना घबराए आगे बढ़कर सिंह का स्वागत किया और हाथ जोड़कर कहा- स्वामी आपके लिए ही मैंने इस हाथी को मारकर रखा है, आप इसका मांस खाकर मुझ पर उपकार करें! सिंह ने कहा- मैं किसी और के हाथों मारे गए जीव को खाता नहीं हूं, इसे तुम ही खाओ.
सियार मन ही मन खुश तो हुआ, पर उसकी हाथी की चमड़ी को चीरने की समस्या अब भी हल न हुई थी. थोड़ी देर में उस तरफ से एक बाघ भी आता नज़र आया. बाघ ने मरे हाथी को देखकर अपने होंठ पर जीभ फिराई, तों सियार ने उसकी मंशा भांपते हुए कहा- मामा, आप इस मृत्यु के मुंह में कैसे आ गए? सिंह ने इसे मारा है और मुझे इसकी रखवाली करने को कह गया है. एक बार किसी बाघ ने उनके शिकार को जूठा कर दिया था, तब से आज तक वे बाघ जाति से नफरत करने लगे हैं. आज तो हाथी को खाने वाले बाघ को वह मार ही गिराएंगे.
यह सुनते ही बाघ डर गया और फ़ौरन वहां से भाग खड़ा हुआ. थोड़ी ही देर में एक चीता आता हुआ दिखाई दिया, तो सियार ने सोचा कुछ तो ऐसा करूं कि यह हाथी की चमड़ी भी फाड़ दे और मांस भी न खा पाए!

Panchatantra Story
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उसने चीते से कहा- मेरे प्रिय भांजे, इधर कैसे? क्या बात है कुछ भूखे भी दिखाई पड़ रहे हो? सिंह ने इस मरे हुए हाथी की रखवाली मुझे सौंपी है, पर तुम इसमें से कुछ मांस खा सकते हो. मैं तुम्हें सावधान कर दूंगा, जैसे ही सिंह को आता हुआ देखूंगा, तुम्हें सूचना दे दूंगा, तुम फ़ौरन भाग जाना. ऐसे तुम्हारा पेट भी भर जाएगा और जान भी बच जाएगी!
चीते को सियार की बात और योजना अच्छी तो लगी लेकिन डर के कारण उसने पहले तो मांस खाने से मना कर दिया, पर सियार के विश्वास दिलाने पर वो तैयार हो गया. सियार मन ही मन प्रसन्न था कि चीते के तेज़ दांत उसका काम कर देंगे! चीते ने पलभर में हाथी की चमड़ी फाड़ दी पर जैसे ही उसने मांस खाना शुरू किया, दूसरी तरफ देखते हुए सियार ने घबराकर कहा- जल्दी भागो सिंह आ रहा है.
इतना सुनते ही चीता बिना देर किए सरपट भाग खड़ा हुआ. सियार बहुत खुश हुआ और उसने कई दिनों तक उस विशाल हाथी का मांस खाकर दावत उड़ाई!

उस सियार ने अपनी चतुराई और सूझ-बूझ से बड़ी ही आसानी से अपने से बलवान जानवरों का सामना करते हुए उन्हीं के ज़रिए अपनी समस्या का हल निकाल लिया!

सीख: बुद्धि का बल शरीर के बल से कहीं बड़ा होता है और अगर सूझबूझ से काम किया जाए तो कठिन से कठिन समस्या आसानी से हल हो सकती है! इसलिए समस्या देखकर या ख़तरा देखकर घबराने की बजाए चतुराई से काम लें!

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Panchtantra Ki Kahani

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पंचतंत्र की कहानी: चूहा और संन्यासी (The Hermit And The Mouse)

बहुत समय पहले की बात है. एक गांव में एक संन्यासी रहता था. वह संन्यासी एकांत में गांव के एक मंदिर में रहता था और लोगों की सेवा करता था. भिक्षा मांगकर जो कुछ भी उसे मिलता, वह उसे उन लोगों को दान कर देता, जो मंदिर के रख-रखाव व साफ़-सफ़ाई करने में उसका सहयोग करते थे.

उस मंदिर में एक शैतान चूहा भी रहता था. वह चूहा अक्सर उस संन्यासी का रखा हुआ अन्न खा जाता था. संन्यासी ने चूहे को कई भगाने की कई कोशिशें कीं, लेकिन वह चकमा देकर छिप जाता.

संन्यासी ने उस चूहे को पकड़ने की भी काफी कोशिश की, लेकिन वह हर बार असफल रहता. एकदिन परेशान होकर संन्यासी अपने एक मित्र के पास गया.

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उसके मित्र ने उसे एक योजना बताई कि चूहे ने मंदिर में अपना कहीं बिल बना रखा होगा और वह वहां अपना सारा खाना जमा करता होगा. अगर उसके बिल तक पहुंचकर सारा खाना निकाल लिया जाए, तो चूहा खुद ही कमज़ोर होकर मर जायेगा.

अब संन्यासी और उसके मित्र ने बिल को खोजना शुरू कर दिया और बहुत ढूंढ़ने के बाद अंत में उनको बिल मिल ही गया जिसमें चूहे ने खूब सारा अन्न चुराकर इकठ्ठा कर रखा था. उन्होंने बिल खोदकर सारा अन्न बाहर निकाल लिया.

अब चूहे को खाना नहीं मिला तो वह कमज़ोर हो गया और संन्यासी ने अपनी छड़ी से कमज़ोर चूहे पर हमला किया. चूहा डरकर तुरंत भाग खड़ा हुआ और फिर कभी मंदिर में नहीं आया.

सीख: अपने शत्रु को परास्त है तो पहले उसकी शक्तियों पर हमला करो. शक्तियां खत्म तो शत्रु स्वयं कमज़ोर पड़ जायेगा.

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Panchtantra Story

दो दोस्त और बोलनेवाला पेड़ (Panchtantra Story: Two Friends And A Talking Tree)

एक गांव में मनोहर और धर्मचंद नाम के दो दोस्त रहते थे. एक बार वे कमाने के लिए अपना गांव छोड़कर बाहर गए. दूसरे शहर से वो दोनों ख़ूब सारा धन कमाकर लाए. उन्होंने सोचा कि इतना सारा धन घर में रखेंगे, तो ख़तरा हो सकता है. बेहतर होगा कि इसे घर में न रखकर कहीं और रख दें, इसलिए उन्होंने उस धन को नीम के पेड़ की जड़ में गड्ढा खोदकर दबा दिया.

दोनों में यह भी समझौता हुआ कि जब भी धन निकालना होगा, साथ-साथ आकर निकाल लेंगे. मनोहर बेहद भोला और नेक दिल इंसान था, जबकि धर्मचंद बेईमान था. वह दूसरे दिन चुपके से आकर धन निकालकर ले गया, उसके बाद वह मनोहर के पास आया और बोला कि चलो कुछ धन निकाल लाते हैं. दोनों मित्र पेड़ के पास आए, तो देखा कि धन गायब है.

Two Friends And A Talking Tree Story

धर्मचंद ने फौरन मनोहर पर इल्ज़ाम लगा दिया कि धन तुमने ही चुराया है. दोनों मे झगड़ा होने लगा. बात राजा तक पहुंची, तो राजा ने कहा कि कल नीम की गवाही के बाद ही कोई फैसला लिया जाएगा. ईमानदार मनोहर ने सोचा कि ठीक है नीम भला झूठ क्यों बोलेगा?
धर्मचंद भी ख़ुशी-ख़ुशी मान गया. दूसरे दिन राजा उन दोनों के साथ जंगल में गया. उनके गांव के अन्य लोग भी थे. सभी सच जानना चाहते थे. राजा ने नीम से पूछा- हे नीमदेव बताओ धन किसने लिया है?

मनोहर ने… नीम की जड़ से आवाज़ आई.

यह सुनते ही मनोहर रो पड़ा और बोला- महाराज, पेड़ झूठ नहीं बोल सकता, इसमें ज़रूर किसी की कोई चाल है. कुछ धोखा है.
राजा ने पूछा कैसी चाल?

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मैं अभी सिद्ध करता हूं महाराज. यह कहकर मनोहर ने कुछ लकड़ियां इकट्ठी करके पेड़ के तने के पास रखी और फिर उनमें आग लगा दी.
तभी पेड़ से बचाओ-बचाओ की आवाज़ आने लगी. राजा ने तुरंत सिपाहियों को आदेश दिया कि जो भी हो उसे बाहर निकालो. सिपाहियों ने फौरन पेड़ के खोल में बैठे आदमी को बाहर निकाल लिया. उसे देखते ही सब चौंक पड़े, क्योंकि वह धर्मचंद का पिता था. अब राजा सारा माजरा समझ गया.

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उसने पिता-पुत्र को जेल में डलवा दिया और उसके घर से धन ज़ब्त करके मनोहर को दे दिया. साथ ही उसकी ईमानदारी सिद्ध होने पर और भी बहुत-सा ईनाम व धन दिया.

सीख: विपरीत परिस्थितियों में भी अपना आपा नहीं खोना चाहिए. अपनी समझ-बूझ से काम करना चाहिए. कठिन परिस्थितियों में भी डरने की बजाय उसका सामना करने की हिम्मत करें और शांत होकर अपने दिमाग से फैसले लें.

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Panchtantra Story

पंचतंत्र की कहानी: खरगोश, तीतर और धूर्त बिल्ली (Panchtantra Story: The Hare, Partridge & Cunning Cat)

आज के हाईटेक युग में जब बच्चों को हर जानकारी कंप्यूटर/इंटरनेट पर ही मिल रही है, उनका पैरेंट्स से जुड़ाव कम हो रहा है. साथ ही उन्हें मोरल वैल्यूज़ (Moral Values) भी पता नहीं चल पाती, ऐसे में बेड टाइम स्टोरीज़ (Bed Time Stories) जैसे- पंचतंत्र (Panchtantra) की सीख देने वाली पॉप्युलर कहानियों के ज़रिए न स़िर्फ आपकी बच्चे से बॉन्डिंग स्ट्रॉन्ग होगी, बल्कि उन्हें अच्छी बातें भी पता चलती हैं.

एक नगर में बड़े से पेड़ पर एक तीतर का घोंसला था. वो बड़े मज़े से वहां रहता था. एक दिन वह अपना भोजन व दाना पानी ढूंढ़ने के चक्कर में दूसरी जगह किसी अच्छी फसलवाले खेत में पहुंच गया. वहां उसके खाने पीने की मौज हो गई. उस खुशी में वो उस दिन घर लैटना भी भूल गया और उसके बाद तो वो मज़े से वहीं रहने लगा. उसकी ज़िंदगी बहुत अच्छी कटने लगी.

यहां उसका घोसला खाली था, तो एक शाम को एक खरगोश उस पेड़ के पास आया. पेड़ ज़्यादा ऊंचा नहीं था. खरगोश ने उस घोसले में झांककर देखा तो पता चला कि यह घोसला खाली पड़ा है. खरगोश को वो बेहद पसंद आया और वो आराम से वहीं रहने लगा, क्योंकि वो घोसला काफ़ी बड़ा और आरामदायक था.

कुछ दिनों बाद वो तीतर भी नए गांव में खा-खाकर मोटा हो चुका था. अब उसे अपने घोसले की याद सताने लगी, तो उसने फैसला किया कि वो वापस लौट आएगा. आकर उसने देखा कि घोसले में तो खरगोश आराम से बैठा हुआ है. उसने ग़ुस्से से कहा, “चोर कहीं के, मैं नहीं था तो मेरे घर में घुस गए… निकलो मेरे घर से.”

खरगोश शान्ति से जवाब देने लगा, “ये तुम्हारा घर कैसे हुआ? यह तो मेरा घर है. तुम इसे छोड़कर चले गए थे और कुआं, तालाब या पेड़ एक बार छोड़कर कोई जाता है, तो अपना हक भी गवां देता है. अब ये घर मेरा है, मैंने इसे संवारा और आबाद किया.”
यह बात सुनकर तीतर कहने लगा, “हमें बहस करने से कुछ हासिल नहीं होने वाला, चलो किसी ज्ञानी पंडित के पास चलते हैं. वह जिसके हक में फैसला सुनायेगा उसे घर मिल जाएगा.”

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उस पेड़ के पास से एक नदी बहती थी. वहां एक बड़ी सी बिल्ली बैठी थी. वह कुछ धर्मपाठ करती नज़र आ रही थी. वैसे तो बिल्ली इन दोनों की जन्मजात शत्रु है, लेकिन वहां और कोई भी नहीं था, इसलिए उन दोनों ने उसके पास जाना और उससे न्याय लेना ही उचित समझा. सावधानी बरतते हुए बिल्ली के पास जाकर उन्होंने अपनी समस्या बताई, “हमने अपनी उलझन बता दी, अब आप ही इसका हल निकालो. जो भी सही होगा उसे वह घोसला मिल जाएगा और जो झूठा होगा उसे आप खा लेना.”

“अरे, यह कैसी बातें कर रहे हो, हिंसा जैसा पाप नहीं है कोई इस दुनिया में. दूसरों को मारनेवाला खुद नरक में जाता है. मैं तुम्हें न्याय देने में तो मदद करूंगी लेकिन झूठे को खाने की बात है तो वह मुझसे नहीं हो पाएगा. मैं एक बात तुम लोगों को कानों में कहना चाहती हूं, ज़रा मेरे करीब आओ तो.”

खरगोश और तीतर खुश हो गए कि अब फैसला होकर रहेगा और उसके बिलकुल करीब गए. बस फिर क्या था, करीब आए खरगोश को पंजे में पकड़कर मुंह से तीतर को भी उस चालाक बिल्ली बिल्ली ने नोंच लिया और दोनों का काम तमाम कर दिया.

सीख: अपने शत्रु को पहचानते हुए भी उस पर विश्‍वास करना बहुत बड़ी बेवक़फ़ी है. तीतर और खरगोश इसी विश्‍वास और बेवक़फ़ी के चलते को अपनी जान गवांनी पड़ी.

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आज के हाईटेक युग में जब बच्चों को हर जानकारी कंप्यूटर/इंटरनेट पर ही मिल रही है, उनका पैरेंट्स से जुड़ाव कम हो रहा है. साथ ही उन्हें मोरल वैल्यूज़ (Moral Values) भी पता नहीं चल पाती, ऐसे में बेड टाइम स्टोरीज़ (Bed Time Stories) जैसे- पंचतंत्र (Panchtantra) की सीख देने वाली पॉप्युलर कहानियों के ज़रिए न स़िर्फ आपकी बच्चे से बॉन्डिंग स्ट्रॉन्ग होगी, बल्कि उन्हें अच्छी बातें भी पता चलती हैं.

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पंचतंत्र की कहानी: वंश की रक्षा (Panchtantra Ki Kahani: Frogs That Rode A Snake)

एक पर्वत प्रदेश में मन्दविष नाम का एक बूढ़ा सांप रहता था. एक दिन वह विचार करने लगा कि ऐसा क्या उपाय हो सकता है, जिससे बिना परिश्रम किए ही उसकी आजीविका चलती रहे. उसने बहुत सोचा और उसके मन में एक विचार आया.
वह पास के मेंढकों से भरे तालाब के पास चला गया. वहां पहुंचकर वह बड़ी बेचैनी से इधर-उधर घूमने लगा. उसे घूमते देखकर तालाब के किनारे एक पत्थर पर बैठे मेंढक को आश्‍चर्य हुआ तो उसने पूछा, “आज क्या बात है मामा? शाम हो गई है, पर तुम भोजन-पानी की व्यवस्था नहीं कर रहे हो?”

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सांप बड़े दुखी मन से कहने लगा, “क्या करूं बेटा, अब मैं बूढ़ा हो चला हूं. मुझे तो अब भोजन की अभिलाषा ही नहीं रह गई है. आज सवेरे ही मैं भोजन की खोज में निकल पड़ा था. एक सरोवर के तट पर मैंने एक मेंढक को देखा. मैं उसको पकड़ने की सोच ही रहा था कि उसने मुझे देख लिया. पास ही कुछ ब्राह्मण तपस्या में लीन थे, वह उनके बीच जाकर कहीं छिप गया. उसको तो मैंने फिर देखा नहीं, पर उसके भ्रम में मैंने एक ब्राह्मण के पुत्र को काट लिया, जिससे उसकी तत्काल मृत्यु हो गई. उसके पिता को इसका बड़ा दुख हुआ और उस शोकाकुल पिता ने मुझे शाप देते हुए कहा, “दुष्ट सांप! तुमने मेरे पुत्र को बिना किसी अपराध के काटा है, अपने इस अपराध के कारण तुमको मेंढकों का वाहन बनना पड़ेगा.”

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मैं बस अपने पाप का प्रायश्‍चित करना चाहता हूं और तुम लोगों के वाहन बनने के उद्देश्य से ही मैं यहां तुम लोगों के पास आया हूं.
मेंढक सांप से यह बात सुनकर अपने परिजनों के पास गया और उनको भी उसने सांप की वह बात बता दी. इस तरह से यह बात सब मेढकों तक पहुंच गई.

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उनके राजा जलपाद को भी इसकी ख़बर लगी. उसको यह सुनकर बड़ा आश्‍चर्य हुआ. सबसे पहले वही सांप के पास जाकर उसके फन पर चढ़कर बैठ गया. उसे चढ़ा हुआ देखकर अन्य सभी मेंढक उसकी पीठ पर चढ़ गए. सांप ने किसी को कुछ नहीं कहा.

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मन्दविष ने उन्हें तरह-तरह के करतब दिखाए. सांप की कोमल त्वचा का स्पर्श पाकर जलपाद तो बहुत ही प्रसन्न हुआ. इस प्रकार एक दिन निकल गया.

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दूसरे दिन जब वह उनको बैठाकर चला, तो उससे चला नहीं गया.  उसको देखकर जलपाद ने पूछा, “क्या बात है, आज आप चल नहीं पा रहे हैं?”
“हां, मैं आज भूखा हूं और इस उम्र में कमज़ोरी भी बहुत हो जाती है, इसलिए चलने में कठिनाई हो रही है.”

जलपाद बोला, “अगर ऐसी बात है, तो आप परेशना न हों. आप आराम से साधारण कोटि के छोटे-मोटे मेंढकों को खा लिया कीजिए और अपनी भूख मिटा लिया कीजिए.”

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इस प्रकार वह सांप अब रोज़ बिना किसी परिश्रम के अपना भोजन करने लगा. किन्तु वह जलपाद यह भी नहीं समझ पाया कि अपने क्षणिक सुख के लिए वह अपने वंश का नाश करने का भागी बन रहा है. धीरे-धीरे सांप ने अपनी चालाकी से सभी मेंढकों को खा लिया और उसके बाद एक दिन जलपाद को भी खा गया. इस तरह मेंढकों का पूरा वंश ही नष्ट हो गया.

 

सीख: अपने हितैषियों की रक्षा करने से हमारी भी रक्षा होती है.

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चालाक लोमड़ी और मूर्ख कौआ, The Fox And The Crow
पंचतंत्र की कहानी: चालाक लोमड़ी और मूर्ख कौआ (Panchtantra Ki Kahani: The Fox And The Crow)

एक जंगल में एक लोमड़ी रहती थी. वो बहुत ही भूखी थी. वह अपनी भूख मिटने के लिए भोजन की खोज में इधर– उधर घूमने लगी. उसने सारा जंगल छान मारा, जब उसे सारे जंगल में भटकने के बाद भी कुछ न मिला, तो वह गर्मी और भूख से परेशान होकर एक पेड़ के नीचे बैठ गई. अचानक उसकी नजर ऊपर गई. पेड़ पर एक कौआ बैठा हुआ था. उसके मुंह में रोटी का एक टुकड़ा था.

चालाक लोमड़ी और मूर्ख कौआ, The Fox And The Crow

कौवे के मुंह में रोटी देखकर उस भूखी लोमड़ी के मुंह में पानी भर आया. वह कौवे से रोटी छीनने का उपाय सोचने लगी. उसे अचानक एक उपाय सूझा और तभी उसने कौवे को कहा, ”कौआ भैया! तुम बहुत ही सुन्दर हो. मैंने तुम्हारी बहुत प्रशंसा सुनी है, सुना है तुम गीत बहुत अच्छे गाते हो. तुम्हारी सुरीली मधुर आवाज़ के सभी दीवाने हैं. क्या मुझे गीत नहीं सुनाओगे ?

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चालाक लोमड़ी और मूर्ख कौआ, The Fox And The Crow

कौआ अपनी प्रशंसा को सुनकर बहुत खुश हुआ. वह लोमड़ी की मीठी मीठी बातों में आ गया और बिना सोचे-समझे उसने गाना गाने के लिए मुंह खोल दिया. उसने जैसे ही अपना मुंह खोला, रोटी का टुकड़ा नीचे गिर गया. भूखी लोमड़ी ने झट से वह टुकड़ा उठाया और वहां से भाग गई.

चालाक लोमड़ी और मूर्ख कौआ, The Fox And The Crow

यह देख कौआ अपनी मूर्खता पर पछताने लगा. लेकिन अब पछताने से क्या होना था, चतुर लोमड़ी ने मूर्ख कौवे की मूर्खता का लाभ उठाया और अपना फायदा किया.

सीख: यह कहानी सन्देश देती है कि अपनी झूठी प्रशंसा से हमें बचना चाहिए. कई बार हमें कई ऐसे लोग मिलते हैं, जो अपना काम निकालने के लिए हमारी झूठी तारीफ़ करते हैं और अपना काम निकालते हैं. काम निकल जाने के बाद फिर हमें पूछते भी नहीं.

 

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पंचतंत्र की कहानी: दिन में सपने… (Panchtantra Ki Kahani: Day Dreams)

एक गांव में एक लड़की अपनी मां के साथ रहती थी. वो लड़की मन की बहुत चंचल थी. अक्सर सपनों में खो जाया करती थी. एक दिन वो दूध से भरा बर्तन लेकर शहर जाने की सोच रही थी. उसने अपनी मां से पूछा, “मां, मैं शहर जा रही हूं, क्या आपको कुछ मंगवाना है?”

उसकी मां ने कहा, “मुझे कुछ नहीं चाहिए. हां, यह दूध बेचकर जो पैसे मिलें, उनसे तुम अपने लिए चाहो तो कुछ ले लेना.”

पंचतंत्र की कहानी, Panchtantra Ki Kahani
वो लड़की शहर की ओर चल पड़ी. चलते-चलते वो फिर सपनों में खो गई. उसने सोचा कि ये दूध बेचकर भला मुझे क्या फ़ायदा होगा. ज़्यादा पैसे तो मिलेंगे नहीं, तो मैं ऐसा क्या करूं कि ज़्यादा पैसे कम सकूं… इतने में ही उसे ख़्याल आया कि दूध बेचकर जो पैसे मिलेंगे उससे वो मुर्गियां ख़रीद सकती है. वो फिर सपनों में खो गई“दूध बेचकर मुझे पैसे मिलेंगे, तो मैं मुर्गियां ख़रीद लूंगी, वो मुर्गियां रोज़ अंडे देंगी. इन अंडों को मैं बाज़ार में बेचकर काफ़ी पैसे कमा सकती हूं. उन पैसों से मैं और मुर्गियां ख़रीदूंगी, फिर उनके चूज़े निकलेंगे, उनसे और अंडे मिलेंगे… इस तरह तो मैं ख़ूब पैसा कमाऊंगी…

लेकिन फिर इतने पैसों का मैं करूंगी क्या?…हां, मैं उन पैसों से एक नई ड्रेस और टोपी ख़रीदूंगी. जब मैं यह ड्रेस और टोपी पहनकर बाहर निकलूंगी, तो पूरे शहर के लड़के मुझे ही देखेंगे.

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पंचतंत्र की कहानी, Panchtantra Ki Kahani

सब मुझसे दोस्ती करना चाहेंगे. पास आकर हाय-हैलो बोलेंगे. मैं भी इतराकर उनसे बात करूंगी. बड़ा मज़ा आएगा, लेकिन यह देखकर बाकी की सब लड़कियां तो मुझसे जलने लगेंगी. उन्हें जलता देख मुझे मज़ा आएगा. मैं उन्हें घूरकर देखूंगी और अपनी गर्दन इस तरह से स्टाइल में झटककर आगे बढ़ जाऊंगी.”

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पंचतंत्र की कहानी, Panchtantra Ki Kahani

यह कहते ही उस लड़की ने अपनी गर्दन को ज़ोर से झटका और गर्दन झटकते ही उसे सामने रखे एक पत्थर से ठोकर भी लग गई और दूध से भरा बर्तन, तो उसने सिर पर रख रखा था, नीचे गिरकर टूट गया. यह देख वो सदमे में आ गई और उसकी तंद्रा टूटी. मायूस होकर वो गांव लौटी.

उसने अपनी मां से माफी मांगी कि उसने सारा दूध गिरा दिया. यह सुनकर उसकी मां ने कहा, “दूध के गिरने की चिंता छोड़ो, लेकिन एक बात हमेशा याद रखो कि जब तक अंडे न फूट जाएं, तब तक चूज़े गिनने से कोई फ़ायदा नहीं…” मां की हिदायत और इशारा दोनों उसको समझ में आ गया. उसकी मां यही कहना चाहती थी कि जब तक हाथ में कुछ हो नहीं, तब तक उसके बारे में यूं ख़्याली पुलाव नहीं पकाना चाहिए.

सीख: ख़्याली पुलाव पकाने से कोई फ़ायदा नहीं. दिन में सपने देखकर उनमें खोने से कुछ नहीं होगा. अगर सच में कुछ हासिल करना है, तो हक़ीक़त में मेहनत करो.

 

Panchtantra Ki Kahani
पंचतंत्र की कहानी: गौरैया और घमंडी हाथी (Panchtantra Ki Kahani: The Sparrow And The Elephant)

एक जंगल में बड़े से पेड़ पर एक गौरैया अपने पति के साथ रहती थी. उसका पति बाहर जाकर खाने-पीने का इंतज़ाम करता और वह घोंसले में रहकर अपने अंडों की रखवाली करती। गोरैया अपने घोंसले में अंडों से चूजों के निकलने का बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी. एक दिन की बात है वो अपने अंडों को से रही थी और उसका पति भी रोज़ की तरह खाने के इंतज़ाम के लिए बाहर गया हुआ था.

Panchtantra Ki Kahani: The Sparrow And The Elephant
उसी जंगल में एक गुस्सैल हाथी में रहता था. वो हाथी वहां आ धमका और आस-पास के पेड़-पौधों को रौंदते हुए तोड़-फोड़ करने लगा. उसी तोड़ फोड़ के दौरान वह उस पेड़ तक भी पहुंच गया, जहां गौरैया रहती थी. उस हाथी ने पेड़ को गिराने के लिए ज़ोर-ज़ोर से हिलाया, लेकिन वह पेड़ बहुत मजबूत था इसलिए हाथी पेड़ को नहीं तोड़ पाया और थककर वहां से चला गया. लेकिन उसके पेड़ को ज़ोर-ज़ोर से हिलाने से गौरैया का घोंसला टूटकर नीचे आ गिरा और उसके सारे अंडे फूट गए.

Panchtantra Ki Kahani: The Sparrow And The Elephant

गौरैया यह देख बेहद आहत हुई और वो ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी. थोड़ी देर बाद उसका पति भी वापस आ गया. उसे सारा किस्सा पता चला, तो वो भी बहुत दुखी हुआ. लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और हाथी से बदला लेने व उसे सबक सिखाने की बात सोची.
उनका एक मित्र था, जो कठफोड़वा था. वे उसके पास पहुंचे और उसे सारी बात बताई. वे हाथी से बदला लेने के लिए कठफोड़वा की मदद चाहते थे. कठफोड़वा के दो अन्य दोस्त भी थे- एक मधुमक्खी और एक मेंढक. वो सब तैयार हो गए और उन्होंने मिलकर हाथी से बदला लेने की योजना बनाई.

Panchtantra Ki Kahani: The Sparrow And The Elephant

तय योजना के तहत सबसे पहले मधुमक्खी ने अपना काम शुरू किया. उसने हाथी के कान में गुनगुनाना शुरू किया. हाथी को उसका संगीत भा गया, उसे उसके संगीत में मज़ा आने लगा और वो पूरी तरह उसके संगीत में तल्लीन हो गया. इसी बीच कठफोड़वा ने अपना काम शुरू कर दिया. उसने हाथी की दोनों आंखों पर वार किया. हाथी दर्द से कराहने लगा.

उसके बाद मेंढक अपनी पलटन के साथ एक दलदल के पास गया और सब मिलकर टर्राने लगे. मेंढकों का टर्राना सुनकर हाथी को लगा कि पास में ही कोई तालाब है. वह उस आवाज़ की दिशा में गया और दलदल में फंस गया. इस तरह से हाथी धीरे-धीरे दलदल में फंसता चला गया.

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Panchtantra Ki Kahani: The Sparrow And The Elephant

सीख: एकता में बहुत ताक़त है, यदि कमज़ोर से कमज़ोर लोग भी एकजुट होकर काम करें, तो बड़े से बड़े कार्य को अंजाम दे सकते हैं और ताक़तवर शत्रु को भी पराजित कर सकते हैं. दूसरी ओर यह भी सीख मिलती है कि अपने कर्मों का फल भोगना ही पड़ता है, हाथी को अपनी ताक़त पर घमंड था और उसका गुस्सा उसकी कमज़ोरी बन गया, जिसका परिणाम उसे भोगना ही पड़ा.

 

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