चित्र में रंग भर, मंत्रमुग्ध-सा देख रहा था, कैनवास को अंदर ही अंदर मेरा दंभ मुझे शाबाशी दे रहा था और जैसे पूछ रहा था क्या कोई है, तेरे जैसा कलाकार कितने ही नाम, कौंध गए ज़ेहन में मेरे पर हर नाम मुझे, स्वयं से छोटा ही लगा तभी एक रंगबिरंगी तितली कहीं से आकर बैठ गई कैनवास पर पलभर में हो गए जैसे कैनवास के रंग फीके अब मेरा दंभ, मुझसे ही नज़रें चुरा रहा था…