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Potato Wafers Making
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आपके आसपास ऐसी कई चीज़ें हैं, जिनके बारे में कुछ अजब-ग़ज़ब बातें आप शायद नहीं जानते होंगे. ऐसी बातों के बारे में जानकर आपको हैरानी भी होगी और आपका ज्ञान भी बढ़ेगा. यकीन मानिए, ये 5 अजब-ग़ज़ब बातें आपको ज़रूर पसंद आएंगी.
1) कैसे हुई लॉन्जरी स्टोर्स में लॉन्जरीज़ (अंडरगार्मेन्ट्स) के डिस्प्ले की शुरुआत?
हम अक्सर यही सोचते हैं कि महिलाओं के लिए लॉन्जरीज़ (अंडरगार्मेन्ट्स) कौन ख़रीदता है? ज़ाहिर है महिलाएं ही… पर यह जवाब पूरी तरह सही नहीं है. लॉन्जरी ख़रीदने में महिलाओं से कहीं आगे हैं पुरुष और इसकी वजह ये है कि पुरुष अपनी पत्नी या प्रेमिका को लॉन्जरीज़ ग़िफ़्ट करना पसंद करते हैं. ख़ास बात ये है कि लॉन्जरी स्टोर्स में जाकर लॉन्जरी ख़रीदने से ज़्यादा पुरुष लॉन्जरीज़ की ऑनलाइन शॉपिंग करना पसंद करते हैं, क्योंकि ऐसा करते समय उन्हें कोई देख नहीं सकता और वो आसानी से अपनी पत्नी या प्रेमिका के लिए लॉन्जरीज़ ख़रीद सकते हैं. आंकड़ों के अनुसार, वैलेंनटाइन डे, शादी के सीज़न के दौरान पुरुष लॉन्जरीज़ की शॉपिंग अधिक करते हैं. इसकी एक बड़ी वजह यह है कि शादी के सीज़न में ज़्यादातर कपल्स की वेडिंग एनीवर्सरी होती है इसलिए पुरुष अपनी वाइफ के लिए लॉन्जरीज़ की शॉपिंग करते हैं. इसी तरह वैलेंनटाइन डे के ख़ास मौके पर भी पुरुष अपनी पत्नी या प्रेमिका को लॉन्जरीज़ गिफ्ट करना पसंद करते हैं. आपको ये बात जानकर हैरानी होगी कि पुरुषों की वजह से ही लॉन्जरी स्टोर्स में लॉन्जरीज़ (अंडरगार्मेन्ट्स) के डिस्प्ले की शुरुआत हुई थी. ऐसा क्यों हुआ, आइए हम आपको बताते हैं. दरअसल, भारतीय पुरुष जब अपने देश से बाहर जाते हैं तो उनकी शॉपिंग लिस्ट में सबसे ऊपर लॉन्जरीज़ का ही नाम होता है. वे अपनी पत्नी या प्रेमिका को लॉन्जरीज़ ग़िफ़्ट करना पसंद करते हैं, लेकिन दुनिया के हर पुरुष की तरह भारतीय पुरुष भी लॉन्जरी स्टोर में जाकर अलग-अलग स्टाइल्स के बारे में पूछने से हिचकिचाते हैं. ये बात जल्दी ही लॉन्जिरी स्टोर्स के मालिकों को समझ आ गई. उन्होंने पुरुषों की समस्या को समझते हुए और लॉन्जरीज़ की बिक्री बढ़ाने के लिए एक तरकीब निकाली और हर पैटर्न की बेहतरीन लॉन्जरीज़ को स्टाइलिश ढंग से डिस्प्ले करना शुरू कर दिया. इससे पुरुष डिस्प्ले की गई लॉन्जरीज़ को पसंद कर उसे ख़रीदने लगे. इस तरह पुरुषों की वजह से हुई लॉन्जरी स्टोर्स में लॉन्जरीज़ (अंडरगार्मेन्ट्स) के डिस्प्ले की शुरुआत!
2) कैसे हुआ गर्भनिरोधक गोलियों का आविष्कार?
आजकल बर्थ कंट्रोल पिल्स बहुत कॉमन हो गई हैं. आपने भी कभी न कभी गर्भनिरोधक गोलियों का प्रयोग ज़रूर किया होगा. पर क्या आप जानती हैं कि गर्भनिरोधक गोलियों का आविष्कार किसने किया था? आपको जानकर हैरानी होगी कि गर्भनिरोधक गोलियों का आविष्कार किसी पुरुष ने नहीं, बल्कि एक महिला ने किया है. जी हां, आपको यह जानकर ख़ुशी होगी कि बर्थ कंट्रोल पिल्स का आविष्कार मार्गरेट हिगिन्स सेंगर नामक एक महिला ने किया था. दरअसल, मार्गरेट हिगिन्स सेंगर ख़ुद अपने माता-पिता की ग्यारहवीं संतान थी, इसीलिए शायद उसे गर्भनिरोधक गोलियों की अहमियत अच्छी तरह पता थी. लेकिन आपको यह जानकर दुख होगा कि बर्थ कंट्रोल क्लीनिक चलाने के आरोप में सन् 1917 में मार्गरेट सेंगर को जेल की सज़ा हुई थी.
IVF और गर्भनिरोधक गोलियों का आविष्कारक अमेरिकी बायोलॉजिस्ट और शोधकर्ता ग्रेगोरी गुडविन पिंकस को भी माना जाता है. अमेरिकी बायोलॉजिस्ट और शोधकर्ता ग्रेगोरी गुडविन पिंकस बचपन से ही खोजी स्वभाव के थे, जिसके कारण उन्होंने एक ऐसी कॉट्रासेप्टिव पिल बनाई, जिसकी मदद से महिलाएं गर्भवती होने से बच सकती हैं. ग्रेगोरी की उत्सुकता हार्मोनल चेंज और रिप्रोडक्शन प्रोसेस में होने वाले बदलाव में थी. रिप्रोडक्शन प्रक्रिया को क्या बीच में रोका जा सकता है, क्या गर्भधारण को रोका जा सकता है जैसे सवाल ग्रेगोरी के दिमाग में कौंधते रहते थे. अपने इन्हीं सवालों के जवाब के रूप में ग्रेगोरी गुडविन पिंकस को 1934 में पहली बार इस क्षेत्र में बड़ी कामयाबी मिली, जब खरगोश में विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) प्रोड्यूस करने में वो कामयाब हुए. ग्रेगोरी ने कम्बाइंड कॉन्ट्रासेप्टिव पिल्स का भी आविष्कार किया. ग्रेगोरी गुडविन पिंकस ने ‘द कंट्रोल ऑफ फर्टिलिटी’ और ‘द एग्स ऑफ मैमल्स’ नाम की किताबें भी लिखीं, जो आज भी इस क्षेत्र में होने वाले शोध में मददगार साबित होती हैं.
3) टीवी सीरियल्स को डेली सोप क्यों कहते हैं?
क्या आप जानते हैं कि जो डेली सोप यानी टेलीविज़न पर आने वाले स्पॉन्सर्ड टीवी प्रोग्राम्स आप इतने लगाव से देखते हैं, उनके नाम की शुरुआत कैसे हुई? आप जो सीरियल टीवी पर देखते हैं, उन्हें आख़िर डेली सोप क्यों कहते हैं? हो गए ना हैरान? चलिए, हम आपकी जिज्ञासा शांत करते हैं और आपके बताते हैं कि आख़िर टीवी सीरियल्स को डेली सोप क्यों कहा जाता है. ये बात बहुत पुरानी है. दरअसल हुआ यूं कि जब यूएसए में ओपेराज़ ने टीवी की दुनिया में अपना पहला क़दम रखा, तो साबुन बनानेवाली यानी सोप कंपनियों में उन्हें स्पॉन्सर करने की होड़-सी लग गई. साबुन बनानेवाली सभी कंपनियां चाहती थीं कि उनका साबुन यानी उनका सोप ओपेराज़ को स्पॉन्सर (प्रायोजित) करे. साबुन कंपनियों की इस होड़ को देखते हुए ओपेराज़ का नाम सोप ओपेरा पड़ गया. मज़ेदार बात यह है कि आज भी ऐसे टेलीविज़न के कार्यक्रमों को स्पॉन्सर करने में सोप कंपनीज़ ही आगे हैं. हालांकि आज टेलीविज़न प्रोग्राम्स को कई अन्य कंपनियां भी स्पॉन्सर करती हैं, लेकिन आज भी टीवी पर आने वाले प्रोगाम को डेली सोप ही कहा जाता है. तो है ना ये सोप ओपेरा की दिलचस्प कहानी!
4) कैसे हुई पोटैटो चिप्स की शुरुआत?
क्या आप जानते हैं कैसे हुई पोटैटो चिप्स की शुरुआत? नहीं ना… चलिए, हम आपको बताते हैं पोटैटो चिप्स के आविष्कार की दिलचस्प कहानी. आपको जानकर हैरानी होगी कि पोटैटो चिप्स का अविष्कार सोच-समझकर नहीं किया गया. दरअसल, पोटैटो चिप्स का अविष्कार एक ग़लती के कारण हुआ. आख़िर क्या थी ये ग़लती और कैसे हुई पोटैटो चिप्स की शुरुआत? आइए, हम आपको बताते हैं. हुआ यूं कि न्यूयॉर्क के एक होटल में एक मेहमान ने फ्रेंच फ्रायड पोटैटो का ऑर्डर दिया. जब उसे डिश परोसी गई तो उसने यह कहते हुए डिश को वापस किचन में भेज दिया कि आलू के स्लाइसेज़ बहुत मोटे हैं. शेफ़ को यह बात लग गई, उसने इसे एक चुनौती की तरह लेते हुए कहा कि अब मैं तुम्हें आलू की बहुत पतली स्लाइसेज़ दूंगा. दूसरी बार उसने आलू को बहुत पतला-पतला काटकर भेजा. इस बार उस मेहमान को वह डिश बेहद पसंद आई. इस बात से प्रभावित होकर होटल ने उस नई डिश को अपने रेग्युलर मेनू कार्ड में स्थान दे दिया. धीरे-धीरे कई होटलों के रेग्युलर मेनू में इसे जगह मिल गई. पोटैटो चिप्स की क़ामयाबी का आलम यह है कि आज विश्वभर में अरबों डॉलरों की पोटैटो चिप्स इंडस्ट्रीज़ हैं.
5) कैसे हुआ स्कूटर का आविष्कार?
क्या आप जानते हैं हमारी ज़िंदगी को आसान बनाने वाले स्कूटर कैसे बने? आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि स्कूटर का निर्माण ख़ासतौर पर लेडीज़ यानी महिलाओं के लिए किया गया था. वैसे तो स्कूटर के आविष्कार के बारे में अनेक कहानियां हैं, लेकिन स्कूटर के निर्माण से जुड़ी एक कहानी के अनुसार, स्कूटर का आविष्कार विश्व युद्ध के दौरान हुआ. विश्व युद्ध के समय पुरुष मोटर साइकिल का इस्तेमाल धड़ल्ले से कर रहे थे. युद्ध में बहुत से पुरुषों को जान से हाथ धोना पड़ा. धीरे-धीरे पुरुषों की संख्या घटने लगी. परिणामस्वरूप मजबूरी में महिलाओं को युद्ध के मैदान में उतरना पड़ा. ज़ाहिर है, उन्हें आने-जाने के लिए सवारी की ज़रूरत महसूस हुई, लेकिन महिलाओं को मोटर साइकिल चलाने में काफ़ी दिक़्क़त आ रही थी, क्योंकि मोटर साइकिल चलाने के लिए उन्हें दोनों पैरों को फैलाना पड़ता था. महिलाओं की असुविधा को ध्यान में रखकर स्कूटर का निर्माण किया गया, ताकि वे आसानी से युद्ध में भाग ले सकें.
एक रिपोर्ट के अनुसार भारत की 14 प्रतिशत महिलाएं टू व्हीलर चलाना जानती हैं और पिछले 10 सालों में टू व्हीलर चलाने वाली महिलाओं में 50 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है. इसकी सबसे बड़ी वजह है भारत में कामकाजी महिलाओं की संख्या का तेज़ी से बढ़ना. आज की कामकाजी महिलाएं ऑफिस जाने से लेकर बच्चों को स्कूल लाने-ले जाने, मार्केट से समान लाने आदि काम के लिए पति की बाइक या कार का इंतज़ार किए बिना ख़ुद स्कूटी चलाना पसंद कर रही हैं. महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने और उनके काम समय पर पूरा करने में उनकी स्कूटी का बहुत बड़ा योगदान है. स्कूटी के लिए महिलाओं का क्रेज़ देखते हुए अब बाइक कंपनियां महिलाओं की पसंद और सहूलियत को देखते हुए स्कूटी तैयार कर रही हैं.
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बढ़ती महंगाई और बेरोज़गारी ने बहुतों को सोचने पर मजबूर किया है कि वो कोई लघु उद्योग (Small Industry) करें, पर जानकारी न होने के कारण वो आगे नहीं बढ़ पाते. ऐसे ही लोगों के लिए ख़ास ‘मेरी सहेली’ (Meri Saheli) लेकर आई है लघु उद्योग सीरीज़ (Small Scale Industries Series), जहां हर महीने हम एक नए लघु उद्योग (New Small Industries) के बारे में आपको जानकारी (Information) दे रहे हैं. इसी कड़ी में इस बार हम लाए हैं, पोटैटो वेफर्स उद्योग (Potato Wafers Industry)..
बर्थडे पार्टी हो या कोई और सेलिब्रेशन का मौक़ा- पोटैटो वेफर्स के बिना कोई भी सेलिब्रेशन अधूरा ही लगता है. मूवी टाइम हो या पिकनिक, स्नैक्स टाइम या फिर यूं ही टाइमपास करना हो पोटैटो वेफर्स ही सबसे पहले दिमाग़ में आते हैं. हालांकि मार्केट में और भी कई तरह के वेफर्स उपलब्ध हैं, पर पोटैटो वेफर्स के शौक़ीन सबसे ज़्यादा हैं. किराने की दुकान हो, बेकरी या फिर होटल हर जगह इनकी डिमांड सबसे ज़्यादा है. पोटैटो वेफर्स में भी प्लेन वेफर्स, मसाला वेफर्स और बहुत से टैंगी फ्लेवर्स उपलब्ध हैं. आप अपनी सुविधानुसार जो चाहें बना सकते हैं. तो आइए देखें, इस बिज़नेस को शुरू करने की क्या है सही प्रक्रिया?
मशीनें
मार्केट में पोटैटो वेफर्स बनाने की ऑटोमैटिक और सेमी ऑटोमैटिक कई मशीनें उपलब्ध हैं. इन्हें आप अपनी पसंद व क्षमतानुसार ले सकते हैं. यहां हमने बेसिक मशीनों के बारे में आपको जानकारी दी है, जिन्हें ख़रीदकर आप अपना बिज़नेस शुरू कर सकते हैं.
* पोटैटो पीलिंग मशीन (छिलके निकालने के लिए) 20 हज़ार रुपए से शुरू.
* स्लाइसिंग मशीन (स्लाइस में काटने के लिए) की क़ीमत लगभग 20 हज़ार रुपए से शुरू.
* तलने के लिए मशीन 10 हज़ार रुपए से शुरू.
* पैकिंग के लिए मशीन 2 हज़ार रुपए से शुरू.
* इस तरह कुल ख़र्च होगा, क़रीब 52 हज़ार रुपए.
आपको रोज़ाना कितने वेफर्स का उत्पादन करना है, उसकी क्षमतानुसार आप मशीन ले सकते हैं. ब्रांड और क्षमता के अनुसार मशीनों की क़ीमत में थोड़ा-बहुत फ़र्क़ हो सकता है. आप अपनी आर्थिक क्षमतानुसार मशीनें ख़रीदने का निर्णय लें.
कुल ख़र्च
स्थान
* वेफर्स तैयार करने के लिए वैसे आपको अलग से जगह लेने की ज़रूरत नहीं, क्योंकि इसे आप घर पर ही शुरू कर सकते हैं.
* यह बिज़नेस शुरू करने के लिए आपको 250 से 300 स्न्वैर फुट के जगह की ज़रूरत होती है.
* किराया: अगर आपके घर में बिज़नेस करना मुमकिन नहीं, तो आप किराए पर जगह ले सकते हैं. अपनी क्षमतानुसार किरायेवाली जगह लें.
* बिजली का बिल- लगभग 1 हज़ार रुपए.
* अन्य ख़र्च- लगभग 1 हज़ार रुपए.
* प्रशासकीय ख़र्च- लगभग 2 हज़ार रुपए (किराया छोड़कर).
कर्मचारी
रोज़ाना 30 किलो वेफर्स बनाने के लिए आपको क़रीब 5 कर्मचारियों की ज़रूरत पड़ेगी.
* हर एक कर्मचारी को रोज़ाना 200 रुपए के अनुसार दिन के.
* 200×5=1000 देने होंगे, तो एक महीने यानि 25 वर्किंग डे का वेतन 1000×25= 25000 रुपए होगा.
कच्चा माल
पोटैटो वेफर्स बनाने के लिए कच्चे माल के तौर पर आपको आलू, नमक और तेल की ज़रूरत होगी. इसके अलावा अगर आपको वेफर्स में फ्लेवर्स ऐड करने हैं, तो उसकी व्यवस्था करनी होगी. आप यह कच्चा माल नज़दीकी किराने की दुकान से ख़रीद रहे हैं या फिर सब्ज़ी मंडी से, उससे भी आपकी लागत पर फ़र्क़ पड़ता है. आप चाहें तो ये सारा कच्चा माल ऑनलाइन भी ख़रीद सकते हैं.
यह भी पढ़ें: लघु उद्योग- चॉकलेट मेकिंग- छोटा इन्वेस्टमेंट बड़ा फायदा (Small Scale Industry- Chocolate Making- Small Investment Big Returns)
उत्पादन और क़ीमत (प्रतिदिन)
प्रतिदिन वेफर्स का उत्पादन 30 किलो
होलसेल में 50 ग्राम वेफर्स की क़ीमत 15 रुपए
50 ग्राम वेफर्स की एमआरपी 20 रुपए
फुटकर व्यापार करनेवाले को
होलसेल विक्रेता को मिलनेवाला प्रॉफिट 5 रुपए
आवश्यक कच्चा माल (प्रतिदिन)
आलू 20 किलो × क़ीमत 30 रुपए
(1 किलो का दाम) 600 रुपए
नमक 1 किलो × क़ीमत 30 रुपए
(1 किलो का दाम) 30 रुपए
तेल 10 लीटर × क़ीमत 100 रुपए 1000 रुपए
प्रतिलीटर
पेपर बैग्स 3 × क़ीमत 20 रुपए 60 रुपए
(1 पेपर बैग की क्षमता 10 किलो)
कुल ख़र्च 1690 रुपए
जमा ख़र्च
हर महीने का कुल मिलाकर ख़र्च 69,250 रुपए
(तक़रीबन 25 दिन)
(42,250+25,000+2000)
कच्चा मालः 42,250 रुपए (1690×25)
कर्मचारी वेतनः 25,000 रुपए.
प्रशासकीय ख़र्च 2000 रुपए.
25 दिनों में कुल उत्पादन (30 किलो×25) 750 किलो
हर महीने वेफर्स की बिक्री से होनेवाला लाभ
क़ीमत रुपए 300×750 2,25,000 रुपए
1 किलो वेफर की होलसेल क़ीमत: 300 रुपए
हर महीने का प्रॉफिट 1,55,750 रुपए
(रुपए 2,25,000-69,250)
1 साल का प्रॉफिट (रुपए1,55,750×12) 18,69,000 रुपए
यह भी पढ़ें: लघु उद्योग- कैंडल मेकिंग: रौशन करें करियर (Small Scale Industries- Can You Make A Career In Candle-Making?)
ये बातें याद रखें
* पोटैटो वेफर्स का उद्योग शुरू करने के लिए उत्पादन की क्वालिटी पर ध्यान देना सबसे ज़रूरी है.
* पोटैटो वेफर्स लोग बड़े चाव से खाते हैं, लेकिन वो ख़राब भी जल्दी होते हैं, इसलिए इस बात का ख़ास ध्यान रखें.
* बेहतरीन क्वालिटी का पोटैटो वेफर्स बनाने के लिए आलू अच्छी क्वालिटी के होने ज़रूरी हैं, इसलिए आलू ख़रीदते समय ध्यान रखें कि आलू अच्छे हों, कटे-फटे या ख़राब न हों.
* वेफर्स तलनेवाली मशीन का इस्तेमाल करते समय स्टैंडर्ड तापमान बनाए रखें, वरना वेफर्स जल सकते हैं.
* इसे पैक करने के लिए सही पैकिंग का इस्तेमाल करें, वरना वो नरम हो सकते हैं या फिर उनमें चींटी लग सकती है.
* लोगों को साफ़-सुथरे और अच्छी तरह से पैक किए गए पैकेट्स पसंद आते हैं, जो देखने में भी अट्रैक्टिव हों, तो आप भी इस बात का ध्यान रखें.
पोटैटो वेफर्स की पैकिंग
अच्छी क्वालिटी के वेफर्स तैयार करते समय जिस तरह आपने सभी बातों का ध्यान रखा, उसी तरह उसकी पैकेजिंग पर भी विशेष ध्यान देना होगा.
* वेफर्स की पैकिंग इस बात पर निर्भर करती है कि आप उसे किस मार्केट में बेचेंगे, क्योंकि होलसेल और रिटेल की पैकेजिंग अलग-अलग तरह से की जाती है.
* अगर आप लोकल मार्केट में उसे बेचनेवाले हैं, तो लोगों की सहूलियत को ध्यान में रखते हुए, छोटे-छोटे पैकेट्स बनाएं.
* डिमांड को ध्यान में रखते हुए आप उसकी पैकेजिंग में बदलाव ला सकते हैं.
* अपने वेफर्स को कोई अच्छा-सा नाम देकर आप अपना ब्रांड क्रिएट कर सकते हैं.
उत्पादन की बिक्री
वेफर्स तैयार होने और अच्छी पैकिंग होने के बाद जो सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है वो है, प्रोडक्ट की बिक्री. जितनी अच्छी ब्रिकी होगी, बिज़नेस भी उतना ही अच्छा होगा, इसलिए इस ओर ध्यान रखें.
* वेफर्स की मार्केटिंग के लिए आपको ख़ुद मेहनत करनी होगी. मार्केट में अपने ब्रांड की पहचान के लिए आपको ख़ुद पब्लिसिटी करनी होगी.
* पोटैटो वेफर्स सभी जगह बिक जाते हैं, छोटे-बड़े मार्केट, दुकान सभी जगह आप अपने प्रोडक्ट की मार्केटिंग कर सकते हैं.
* अपने आस-पास की छोटी-छोटी दुकानों पर भी आप अपने प्रोडक्ट को रखने के लिए बात कर सकते हैं.
* न्यूज़पेपर, टीवी और वेबसाइट का सहारा ले सकते हैं.
* फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करें.
संपर्क
पोटैटो वेफर्स का उद्योग शुरू करने के लिए लगनेवाला कच्चा माल, मशीनें और इससे जुड़ी अधिक जानकारी के लिए नीचे दिए स्थानों पर संपर्क करें-
टूल्स एंड मशीनरी स्टोर्स
बी.आर.बी. बासू रोड, कोलकाता,
पश्चिम बंगाल.
संपर्क: 09831024094
वेबसाइट: www.indiamart.com/toolsmachinery
हरि ओम इंडस्ट्रीज़
वावड़ी, राजकोट, गुजरात.
संपर्क: 9428264944
वेबसाइट: www.hariomindfood.com
स्किल लाइफ इंडस्ट्रीज़
नांगलोई, दिल्ली.
संपर्क: 08048698282
एस.एस. इक्विपमेंट
चिखलठाणा, औरंगाबाद, महाराष्ट्र.
संपर्क: 9422202772
वेबसाइट: www.ssequipment.net
पोटैटो वेफर्स बनाने के लिए ज़रूरी सामग्री ऑनलाइन भी उपलब्ध है. इसके लिए आप इन वेबसाइट्स की मदद ले सकते हैं.
www. amazon.com
www.flipkart.com
www.indiamart.com
www.snapdeal.com
कर्ज़/लोन
व्यवसाय कोई भी हो, पूंजी की आवश्यकता होती ही है. इस पूंजी पर ही आपका नफ़ा या नुक़सान निर्भर करता है. यदि पूंजी न हो, तो आप बैंक से लोन भी ले सकते हैं. हर एक बैंक की ब्याज़ दर अलग-अलग होती है. उसे भी जान लेना ज़रूरी है.
* सरकार भी लघु उद्योगों के लिए मदद करती है. प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के अंतर्गत ऋण तथा विशेष सहूलियतें भी दी गई हैं. यदि इस योजना का लाभ लेना है, तो यहां संपर्क करें-
प्रधानमंत्री मुद्रा योजना वेबसाइट
टोल फ्री नंबरः 1800 180 1111 और 1800 110 001
वेबसाइटः www.mudra.org.in
ईमेलः helpmudra.org.in
– श्रद्धा भालेराव
यह भी पढ़ें: लघु उद्योग- जानें सोप मेकिंग बिज़नेस की एबीसी… (Small Scale Industry- Learn The Basics Of Soap Making)
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