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Razia Sultan
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जी हां, इस ख़बर से गौतम रोड़े को चाहने वाली कई लड़कियों का दिल टूट सकता है, लेकिन ये ख़बर सच है. सूर्यपुत्र कर्ण यानी गौतम रोड़े ने की रज़िया सुल्तान यानी पंखुड़ी अवस्थी के साथ सगाई कर ली है और जल्दी ही दोनों शादी के बंधन में बंधने जा रहे हैं.
काफ़ी समय से ये ख़बर सुर्ख़ियों में थी कि चालीस साल के हो चुके गौतम रोड़े अपने से लगभग आधी उम्र की पंखुरी अवस्थी को डेट कर रहे हैं, लेकिन अब इन दोनों ने ख़बरों पर विराम लगाते हुए रिश्ते में बंधने का फैसला कर लिया है और सगाई कर ली है.
दरअसल हुआ यूं कि गौतम रोड़े और पंखुड़ी अवस्थी की पहली मुलाक़ात सीरियल सूर्यपुत्र कर्ण के सेट पर हुई थी. दोनों साथ-साथ व़क्त गुज़ारने लगे और अच्छे दोस्त बन गए. फिर दोस्ती प्यार में बदल गई और दोनों एक-दूसरे को डेट करने लगे.
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हालांकि गौतम रोड़े का नाम जेनिफर विंगट से भी जोड़ा जा रहा था, लेकिन ये बात स़िर्फ ख़बर बनकर रह गई.
ख़बरों की माने तो गौतम ने पंखुड़ी को शादी के लिए प्रपोज़ किया और पंखुड़ी ने भी ख़ुशी-ख़ुशी शादी के लिए हामी भर दी. फिर गौतम ने पंखुड़ी को अपनी मां से मिलवाया. मां को भी उनका रिश्ता पसंद आया.
अब भई, जब लड़का-लड़की राज़ी, तो क्या करेगा काज़ी. गौतम और पंखुड़ी एक-दूसरे को पसंद करते हैं, दोनों की फैमिली राज़ी है, तो फिर रिश्ता तो आगे बढ़ना ही था. इसीलिए हो गई सगाई. अब तो बस शादी का इंतज़ार है.
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भव्य और शानदार फिल्मों की जब भी बात आती है, तो कमाल अमरोही (Kamal Amrohi) का ही नाम सबसे पहले ज़ेहन में आता है. पाक़ीज़ा, रज़िया सुल्तान, महल जैसी फिल्में बनाने वाले कमाल साहब का आज जन्मदिन है. 17 जनवरी 1918 को उत्तर प्रदेश के अमरोहा में जन्में कमाल साहब की ज़िंदगी किसी फिल्म स्टोरी से कम नहीं है. छोटी-सी उम्र में वो ग़ुस्से में घर छोड़ कर लाहौर आ गए थे. पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने 18 साल की उम्र में उर्दू अख़बार में नौकरी कर ली. लेकिन अखबार की नौकरी भला कहां भाने वाली थी उन्हें. कमाल साहब के लिए फिल्मी दुनिया इंतज़ार जो कर रही थी. उन्होंने मुंबई का रुख किया. उनके लिए भी शुरुआती दौर मुश्किलों भरा रहा. साल 1939 में उन्होंने सोहराब मोदी की फिल्म पुकार के लिए चार गाने लिखे, फिल्म सुपरहिट रही और लोग कमाल साहब को जानने लगे. कहानी और डायलॉग्स लिखने का सिललिसा शुरू हो गया था. इसी बीच उन्हे फिल्म महल के निर्देशन का ऑफर मिला. महल उनके करियर की सबसे अहम् फिल्म साबित हुई. इस फिल्म के बाद उन्होंने कमाल पिक्चर्स और कमालिस्तान स्टूडियो की स्थापना की. साल 1952 में उन्होंने मीना कुमारी से शादी कर ली, लेकिन साल 1964 में 12 साल के रिश्ते में दरार आ गई. दोनों अलग रहने लगे. जिसका असर पड़ा कमाल साहब के ड्रीम प्रोजेक्ट पाक़ीज़ा पर. लेकिन जब पाक़ीज़ा रिलीज़ हुई, तो एक बार फिर लोगों ने कमाल साहब के निर्देशन का दम देखा.
के आसिफ के कहने पर कमाल साहब ने मुगल-ए-आज़म फिल्म के डायलॉग्स लिखे, जिसके लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ डायलॉग राइटर का फिल्मफेयर अवॉर्ड भी मिला. मीना कुमारी के निधन के बाद कमाल साहब भी फिल्मों से दूर हो गए. फिल्म रज़िया सुल्तान के ज़रिए उन्होंने दोबारा अपने निर्देशन की छाप भले ही छोड़ी, लेकिन ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर चल नहीं पाई.
फिल्म अंतिम मुगल बनाने की इच्छा कमाल साहब की अधूरी रह गई. भले ही कमाल साहब हमारे बीच न हों, लेकिन उनकी बनाई हुई फिल्में हमेशा उनकी याद दिलाती रहेंगी.
मेरी सहेली (Meri Saheli) की ओर से कमाल अमरोही साहब को शत-शत नमन.
– प्रियंका सिंह
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