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Tales of Panchatantra
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काफ़ी समय पहले की बात है, दिनपुर गांव में सोहन नाम का एक मिठाई वाला था. वो गांव जितना खूबसूरत था उतनी ही प्रसिद्ध थी सोहन की मिठाई की दुकान. लगभग पूरा गांव उसकी दुकान की मिठाई ही लेता था.
सोहन और उसकी पत्नी शुद्ध देसी घी की मिठाई बना कर बेचते थे, इसलिए वो मिठाई सभी को पसंद थी. काफ़ी बिक्री के कारण उसकी दुकान भी अच्छी चल रही थी जिससे उसको काफी मुनाफा भी हो रहा था. पर न जाने क्यों इतना सब होने पर भी सोहन अपनी कमाई से खुश और संतुष्ट नहीं था. वो और मुनाफ़ा चाहता था और अपनी कमाई बढ़ाने के लिए उसने एक तरकीब भी निकाली. वो शहर से एक चुम्बक का टुकड़ा ले आया, जो उसने अपने तराजू पर लगा दिया जिससे वो घपला-घोटाला कर सके और मुनाफ़ा कमा सके.
इसके बाद एक ग्राहक आया और उसने एक किलो जलेबी मांगी. सोहन ने चुम्बक को लगाकर जलेबी तोल दी और ज़्यादा मुनाफ़ा कर लिया. वो काफ़ी खुश हुआ. उसने अपनी पत्नी को ज्यादा मुनाफ़े के बारे में बताया तो उसकी पत्नी ने सोहन से इसका कारण पूछा. सोहन ने चुम्बक वाली बात बता दी. लेकिन उसकी पत्नी ने उसको समझाया कि ये सही नहीं है और ग्राहकों के साथ धोखेबाजी है. उनकी दुकान अच्छी-ख़ासी चल रही है इसलिए वह ऐसा घोटाला न करे, लेकिन सोहन पर उसका लालच हावी था और उसने पत्नी की राय को अनसुना कर ये धांधली जारी रखी.
एक दिन सोहन की दुकान पर रवि नाम का एक लड़का आया उसने सोहन से 2 किलो जलेबी मांगी. सोहन से वैसे ही जलेबी तोल कर दे दी. रवि को संदेह हुआ और उसने जब जलेबी को देखा तो सोहन को बोला यह तो कम लग रही है. क्या आप इसको दोबारा तोल सकते हो? इस पर सोहन को गुस्सा आ गया और वो रवि को बोला कि तुमको जलेबी चाहिए तो ले लो वरना जाओ क्योंकि मुझे और भी बहुत काम है.
रवि वहां से एक जलेबी लेकर चला गया लेकिन वह दूसरी दूकान में गया और उसने जलेबी को दोबारा तुलवाया, जिससे उसको पता चला की जलेबी आधा किलो कम थी. इसके बाद रवि एक तराजू लेकर सोहन की दुकान में गया और उस तराज़ू को उसने दुकान के बाहर रख दिया.
अब रवि ने सभी गांव वालों को ज़ोर-ज़ोर से बोलकर इकट्ठा कर लिया. सोहन को घबराहट होने लगी और उसने रवि को फटकार लगाई कि वो आख़िर ये तमाशा क्यों कर रहा है? रवि ने सोहन और बाक़ी लोगों को बताया कि वो अब सबको जादू दिखाएगा. उसने कहा कि आप जो भी मिठाई सोहन की दुकान से ख़रीदोगे तो वो इस तराज़ू में अपने आप कम हो जाएगी.
इसके बाद लोगों ने मिठाइयां तुलवाई और ये पाया कि सोहन की दुकान की मिठाई का वज़न तो वाक़ई अन्य दुकानों की मिठाई से कम निकला. इसके बाद रवि ने सोहन के तराजू में लगा चुम्बक लोगों को दिखाया और सारी बात बताई. सच जानकर लोगों को बहुत ग़ुस्सा आया और उन्होंने सोहन की खूब पिटाई की. घबराए सोहन ने लोगों से वादा किया कि इस बार उसे माफ़ कर दें वो आगे से ऐसा काम कभी नहीं करेगा. उसने माना कि वो लालच में आ गया था.
लेकिन सोहन पर से अब गांववालों का विश्वास उठ गया यह और उसकी इस धोखेबाजी से पूरा गांव नाराज़ था, इसलिए लोगों ने उसकी दुकान में जाना काफी कम कर दिया था. लेकिन अब सोहन के पास पछताने के अलावा कुछ और नहीं बचा, क्योंकि उसने ज़रा से अधिक मुनाफ़े के लालच में अपना ईमान खोकर धोखा किया जिससे उसे पहले जो मुनाफ़ा हो रहा था अब उससे भी हाथ धोना पड़ा.
सीख: लालच बुरी बला है, कम समय में जल्दी और ज़्यादा मुनाफ़े के चक्कर में बड़ा नुक़सान ही उठाना पड़ता है. इसके अलावा आपका सम्मान व इज़्ज़त भी जाती है. इसलिए मेहनत और ईमानदारी की कमाई ही फलती-फूलती है.
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एक जंगल में एक चालाक लोमड़ी रहती थी. वो इतनी चालाक थी कि अपने शिकार और भोजन के लिए पहले तो वो जानवरों से दोस्ती करती और फिर मौक़ा पाते ही उन्हें मारकर दावत उड़ाती. उस लोमड़ी की इसी आदत की वजह से उससे सभी दूर रहते और कतराते थे. एक दिन उसे कहीं भोजन नहीं मिला तो वो दूर तक शिकार की तलाश में निकल पड़ी, उसकी नज़र एक तंदुरुस्त मुर्गे पर पड़ी. वह मुर्गा पेड़ पर चढ़ा हुआ था. वह लोमड़ी मुर्गे को देखकर सोचने लगी कि कितना बड़ा और तंदुरुस्त मुर्गा है, यह मेरे हाथ लग जाए, तो कितना स्वादिष्ट भोजन मिल जाएगा मुझे. अब लोमड़ी का लालच बढ़ चुका था, वो रोज़ उस मुर्गे को देखती लेकिन वो मुर्गा पेड़ पर हि चढ़ा रहता और लोमड़ी के हाथ नहीं आता.
बहुत सोचने के बाद लोमड़ी को लगा ये ऐसे हाथ न आएगा, इसलिए उसने छल और चालाकी करने की सोची. वो मुर्गे के पास गई और कहने लगी आर मेरे मुर्गे भाई! क्या तुम्हें यह बात पता चली कि एक खुशखबरी मिली है सबको जंगल में? मुर्गे ने कहा कैसी खुशख़बरी? लोमड़ी बोली कि आकाशवाणी हुई है और खुद भगवान ने कहा ह अब से इस जंगल के सारे लड़ाई-झगड़े खत्म होंगे, आज से कोई जानवर किसी दूसरे जानवर को नुकसान नहीं पहुंचाएगा और ना ही मारकर खाएगा. सब मिलजुलकर हंसी-ख़ुशी से रहेंगे, एक दूसरे की सहायता करेंगे. कोई किसी पर हमला नहीं करेगा.
मुर्गे को समझ में आ गया कि हो न हो ये लोमड़ी झूठ बोल रही है, इसलिए मुर्गे ने उसकी बातों पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया और कहा कि अच्छी बात है. लोमड़ी मुर्गे की ऐसी ठंडी प्रतिक्रिया देख फिर बोली- तो मेरे भाई, इसी बात पर आओ, नीचे तो आओ, हम गले लगकर एक दूसरे को बधाई दें और साथ में ख़ुशियां बांटे.
मुर्गा अब लोमड़ी की चालाकी समझ चुका था इसलिए वो मुस्कुराते हुए बोला कि ठीक है लेकिन मेरी लोमड़ी बहना तुम पहले अपने उन दोस्तों से तो गले मिलकर बधाई ले लो जो इसी तरफ़ ख़ुशी से दौड़े चले आ रहे हैं. मुझे पेड़ से दिख रहे हैं वो.
लोमड़ी ने हैरान हो कर पूछा- मुर्गे भाई मेरे कौन से दोस्त? मुर्गे ने कहा- अरे बहन वो शिकारी कुत्ते, वो भी अब हमारे दोस्त हैं न, वो भी शायद तुम्हें बधाई देने के लिए ही इस ओर आ रहे हैं. शिकारी कुत्तों का नाम सुनते ही लोमड़ी थर-थर कांपने लगी. वो बुरी तरह डर गई क्योंकि उसे लगा कि अब अगर वो थोड़ी देर भी यहां रुकी तो ये मुर्गा भले ही उसका शिकार बने न बने लेकिन वो खुद इन शिकारी कुत्तों का शिकार ज़रूर बन जाएगी, इसलिए उसने अपनी जान बचाना ही मुनासिब समझा और आव देखा न ताव बस उल्टी दिशा में भाग खड़ी हुई.
भागती हुई लोमड़ी को मुर्गे ने हंसते हुए कहा- अरे- बहन, कहां भाग रही हो, अब तो हम सब दोस्त हैं तो डर किस बात का, थोड़ी देर रुको. लोमड़ी बोली कि भाई दोस्त तो हैं लेकिन शायद शिकारी कुत्तों को अब तक यह खबर नहीं मिली और बस यह कहते हुए लोमड़ी वहां से ग़ायब हो गई!
सीख: चतुराई, सतर्कता और सूझबूझ से आप सामने संकट आने पर भी बिना डगमगाए आसानी से उससे बच सकते हो. कभी भी किसी के ऊपर या उसकी चिकनी छुपड़ी बातों पर आंख बंद करके आसानी से विश्वास नहीं करना चाहिए, धूर्त अत और चालाक लोगों से हमेशा सतर्क व सावधान रहना चाहिए क्योंकि ऐसे लोग ना किसी के दोस्त होते हैं और ना हाई भरोसे लायक वो सिर्फ़ अपने लिए सोचते हैं और सवार्थपूर्ति के लिए किसी की भी जान के सकते हैं.
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एक गांव में युधिष्ठिर नाम का कुम्हार रहता था. एक दिन वह शराब के नशे में घर आया तो अपने घर पर एक टूटे हुए घड़े से टकराकर गिर पड़ा और उस घड़े के जो टुकड़े जमीन पर बिखरे हुए थे, उनमें से एक नुकीला टुकड़ा कुम्हार के माथे में घुस गया, जिससे उस स्थान पर गहरा घाव हो गया. वो घाव इतना गहरा था कि उसको भरने में काफ़ी लंबा समय लगा. घाव भर तो गया था लेकिन कुम्हार के माथे पर हमेशा के लिए निशान बन गया था.
कुछ दिनों बाद कुम्हार के गांव में अकाल पड़ गया था, जिसके चलते कुम्हार गांव छोड़ दूसरे राज्य में चला गया. वहां जाकर वह राजा के दरबार में काम मांगने गया तो राजा की नज़र उसके माथे के निशान पर पड़ी. इतना बड़ा निशान देख राजा ने सोचा कि अवश्य की यह कोई शूरवीर योद्धा है. किसी युद्ध के दौरान ही इसके माथे पर यह चोट लगी है.
राजा ने कुम्हार को अपनी सेना में उच्च पद दे दिया. यह देख राजा के मंत्री और सिपाही कुम्हार से ईर्ष्या करने लगे. लेकिन वो राजा का विरोध नहीं कर सकते थे, इसलिए चुप रहे. कुम्हार ने भी भी बड़े पद के लालच में राजा को सच नहीं बताया और उसने सोचा अभी तो चुप रहने में ही भलाई है!
समय बीतता गया और एक दिन अचानक पड़ोसी राज्य ने आक्रमण कर दिया. राजा ने भी युद्ध की तैयारियां शुरू कर दी. राजा ने युधिष्ठिर से भी कहा युद्ध में भाग लेने को कहा और युद्ध में जाने से पहले उससे पूछना चाहा कि उसके माथे पर निशान किस युद्ध के दौरान बना, राजा ने कहा- हे वीर योद्धा! तुम्हारे माथे पर तुम्हारी बहादुरी का जो प्रतीक है, वह किस युद्ध में किस शत्रु ने दिया था?
तब तक कुम्हार राजा का विश्वास जीत चुका था तो उसने सोचा कि अब राजा को सच बता भी दिया तो वो उसका पद उससे नहीं छीनेंगे क्योंकि वो और राजा काफ़ी क़रीब आ चुके थे. उसने राजा को सच्चाई बता दी कि महाराज, यह निशान मुझे युद्ध में नहीं मिला है, मैं तो एक मामूली गरीब कुम्हार हूं. एक दिन शराब पीकर जब मैं घर आया, तो टूटे हुए घड़े से टकराकर गिर पड़ा. उसी घड़े का एक नुकीले टुकड़ा मेरे माथे में गहराई तक घुस गया था जिससे घाव गहरा हो गया था और यह निशान बन गया.
राजा सच जानकर आग-बबूला हो गया. उसने कुम्हार को पद से हटा दिया और उसे राज्य से भी निकल जाने का आदेश दिया. कुम्हार मिन्नतें करता रहा कि वह युद्ध लड़ेगा और पूरी वीरता दिखाएगा, अपनी जान तक वो राज्य की रक्षा के लिए न्योछावर कर देगा, लेकिन राजा ने उसकी बात नहीं सुनी और कहा कि तुमने छल किया और कपट से यह पद पाया. तुम भले ही कितने की पराक्रमी और बहादुर हो, लेकिन तुम क्षत्रियों के कुल के नहीं हो. तुम एक कुम्हार हो . तुम्हारी हालत उस गीदड़ की तरह है जो शेरों के बीच रहकर खुद को शेर समझने लगता है लेकिन वो हाथियों से लड़ नहीं सकता! इसलिए जान की परवाह करो और शांति से चले जाओ वर्ना लोगों को तुम्हारा सच पता चलेगा तो जान से मारे जाओगे. मैंने तुम्हारी जान बख्श दी इतना ही काफ़ी है!
कुम्हार चुपचाप निराश होकर वहां से चला गया.
सीख: सच्चाई ज़्यादा दिनों तक छिप नहीं सकती इसलिए हमेशा सच बोलकर सत्य की राह पर ही चलना चाहिए. झूठ से कुछ समय के लिए फ़ायदा भले ही हो लेकिन आगे चलकर नुक़सान ही होता है. इतना ही नहीं कभी भी घमंड में और अपने फ़ायदे के लिए सुविधा देखकर सच बोलना भारी पड़ता है!
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काफ़ी समय पहले एक गांव में एक किसान अपनी पत्नी के साथ रहता था. किसान बूढ़ा था, लेकिन उसकी पत्नी जवान थी और इसी वजह से किसान की पत्नी अपने पति से खुश नहीं थी. वो हमेशा दुखी रहती थी, क्योंकि उसके मन में एक युवा साथी का सपना पल रहा था. यही वजह थी कि वो हमेशा बाहर घूमती रहती थी.
उसकी मन की दशा एक ठग भांप गया और वो उस महिला का पीछा करने लगा और एक दिन उस ठग को मौक़ा मिल ही गया. उसने किसान की पत्नी को ठगने के इरादे से एक झूठी कहानी सुनाई. ठग ने कहा- मेरी पत्नी का देहांत हो चुका है और अब मैं अकेला हूं. मैं तुम्हारी सुंदरता पर मोहित हो गया हूं. मैं तुम्हारे साथ ही जीवन यापन करना चाहता हूं और तुम्हें अपने साथ शहर ले जाना चाहता हूं.
किसान की पत्नी यह सुनते ही खुश हो गई. वो तैयार हो गई और झट से बोली- मैं तुम्हारे साथ चलूंगी, लेकिन मेरे पति के पास बहुत धन है. पहले मैं उसे ले आती हूं. उन पैसों से हमारा भविष्य सुरक्षित होगा और हम जीवनभर आराम से रहेंगे. यह सुनकर चोर ने कहा कि ठीक है तुम जाओ और कल सुबह इसी जगह आना मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा.
किसान की पत्नी ने सारी तैयारी कर ली. जब उसने देखा कि पति गहरी नींद में है तो उसने सारे गहने और पैसों को पोटली में बांधा और ठग के पास चली गई. दोनों दूसरे शहर की ओर निकल गए. इसी बीच ठग के मन में बार बार यही विचार आता रहा कि इस महिला को साथ ले जाने में ख़तरा है, कहीं इसका पति इसे खोजते हुए पीछे ना आ जाए और मुझ तक पहुंच गया तो ये सारा धन भी हाथ से जाएगा.
ठग अब उस महिला से पीछा छुड़ाने का उपाय सोचने लगा. तभी रास्ते में एक नदी मिली. नदी को देखते ही ठग को एक तरकीब सूझी और वह महिला से बोला- यह नदी काफ़ी गहरी है, इसलिए इसे मैं तुम्हें पार करवाऊंगा, लेकिन पहले मैं यह पोटली नदी के उस पार रखूंगा फिर तुम्हें साथ ले जाऊंगा, क्योंकि दोनों को साथ ले जाना संभव नहीं. महिला ने ठग पर ज़रा भी शक नहीं किया और वो फ़ौरन मान गई, उसने कहा- हां, ऐसा करना ठीक रहेगा. इसके अलावा ठग ने महिला के पहने हुए गहने भी उतरवा के पोटली में रख लिए, उसने कहा भारी ज़ेवरों के साथ नदी पार करने में बाधा हो सकती है.
बस फिर क्या था, ठग मन ही मन खुश हुआ और पोटली में बंधा धन लेकर नदी के पार चला गया. किसान की पत्नी उसके लौटने का इंतजार करती रही, लेकिन वो फिर कभी लौटकर नहीं आया. किसान की पत्नी को अपनी बेवक़ूफ़ी पर रोना आने लगा, लेकिन बहुत देर हो चुकी थी. पैसे भी गए, इज़्ज़त भी गई और वो कहीं की ना रही.
सीख : ग़लत कर्मों और धोखेबाज़ी का फल हमेशा बुरा ही होता है. रिश्तों में ईमानदारी ही सबसे बड़ी पूंजी और ख़ुशी होती है. जो जैसा बोता है, वैसा ही काटता है, जैसी करनी वैसी भरनी!

एक पर्वतीय प्रदेश में एक बड़े से पेड़ पर एक पक्षी रहता था, जिसका नाम सिंधुक था. आश्चर्य की बात थी कि उस पक्षी की विष्ठा यानी मल सोने में बदल जाती थी. यह बात किसी को भी पता नहीं थी. एक बार उस पेड़ के नीचे से एक शिकारी गुज़र रहा था. शिकारी को चूंकी सिंधुक के स्वर्ण मल के बारे में पता नहीं था, इसलिए वो आगे बढ़ता गया, लेकिन इसी बीच सिंधुक ने शिकारी के सामने ही मल त्याग कर दिया. जैसे ही पक्षी का मल ज़मीन पर पड़ा, वो सोने में बदल गया. यह देखते ही शिकारी बहुत खुश हुआ और उसने उस पक्षी को पकड़ने के लिए जाल बिछाया दिया और पक्षी को शिकारी अपने घर ले आया.
पिंजरें में बंद सिंधुक को देख शिकारी को चिंता सताने लगी कि यदि राजा को इस बारे में पता चला, तो वो न सिर्फ पक्षी को दरबार में पेश करने को कहेंगे बल्कि मुझे भी दंड देंगे. इसलिए डर के मारे शिकारी खुद ही सिंधुक को राजा के दरबार में पेश करने ले गया और उसने राजा को सारी बात बताई.
राजा ने आदेश दिया कि पक्षी को सावधानी से रखा जाए और उस पर नज़र रखी जाए. पक्षी की देखभाल में कमी ना हो. ये सब सुनने के बाद मंत्री ने राजा को कहा- आप इस बेवकूफ शिकारी की बात पर भरोसा मत कीजिये. सभी हम पर हंसेंगे. कभी ऐसा होता है कि कोई पक्षी सोने का मल त्याग करे? इसलिए, अच्छा होगा कि इसे आज़ाद कर दें.
मंत्री की बात सुनकर राजा ने को लगा कि सही कह रहे हैं मंत्री , इसलिए रजा ने पक्षी को आजाद करने का आदेश दे दिया. सिंधुक उड़ते-उड़ते राजा के द्वार पर सोने का मल त्याग करके गया. उड़ते-उड़ते सिंधुक कह गया-
“पूर्वं तावदहं मूर्खो द्वितीयः पाशबन्धकः । ततो राजा च मन्त्रि च सर्वं वै मूर्खमण्डलम् ॥
अर्थात्- सबसे पहले तो मैं मूर्ख था, जो शिकारी के सामने मल त्याग किया, शिकारी मुझसे बड़ा बेवकूफ था, जो मुझे राजा के पास ले गया और राजा व मंत्री मूर्खों के सरताज निकले, क्योंकि राजा बिना सच जाने मंत्री की बात में आ गया. सभी मूर्ख एक जगह ही हैं.
हालाँकि राजा के सिपाहियों ने पक्षी को पकड़ने की चेष्टा की लेकिन तब तक देर हो चुकी थी.
सीख: बिना खुद जांचे-परखे किसी निर्णय तक ना पहुंचे. कभी भी दूसरे की बातों में नहीं आना चाहिए और अपने दिमाग से काम लेना चाहिए.

पंचतंत्र की कहानी: प्यासी चींटी और कबूतर (Panchtantra Ki Kahani: Ant And Dove)
एक समय की बात है, गर्मियों के दिनों में एक चींटी बहुत प्यासी थी और वो अपनी प्यास बुझाने के लिए पानी की तलाश कर रही थी. कुछ देर आस –पास तलाश करने के बाद वह एक नदी के पास पहुंची.
सामने पानी था, लेकिन पानी पीने के लिए वह सीधे नदी में नहीं जा सकती थी, इसलिए वह एक छोटे से पत्थर के ऊपर चढ़ गई. लेकिन जैसे ही उसने पानी पीने की कोशिश की, वह गिर कर नदी में जा गिरी.
उसी नदी के किनारे एक पेड़ था, जिसकी टहनी पर एक कबूतर बैठा था. उसने चींटी को पानी में गिरते हुए देख लिया. कबूतर को उस पर तरस आया और उसने चींटी को बचाने की कोशिश की. कबूतर ने तेजी से पेड़ से एक पत्ता तोड़कर नदी में संघर्ष कर रही चींटी के पास फेंक दिया.
चींटी उस पत्ते के पास पहुंची और उस पत्ते में चढ़ गयी. थोड़ी देर बाद, पत्ता तैरता हुआ नदी किनारे सूखे आ गया.. चींटी ने पत्ते में से छलांग लगाई और नीचे उतर गई. चींटी ने पेड़ की तरफ देखा और कबूतर को उसकी जान बचाने के लिए धन्यवाद किया.
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इस घटना के कुछ दिनों बाद, एक दिन.. एक शिकारी उस नदी किनारे पहुंचा और उस कबूतर के घोंसले के नजदीक ही उसने जाल लगा दिया और उसमें दाना डाल दिया. वह थोड़ी ही दूर जाकर छुप गया और उम्मीद करने लगा कि वह कबूतर को पकड़ लेगा. कबूतर ने जैसे ही जमीन में दाना देखा वह उसे खाने के लिए नीचे आया और शिकारी के जाल में फंस गया.
वो चींटी वहीं पास में थी और उसने कबूतर को जाल में फंसा हुआ देख लिया. कबूतर उस जाल में से निकलने में असमर्थ था. शिकारी ने कबूतर का जाल पकड़ा और चलने लगा. तभी चींटी ने कबूतर की जान बचाने की सोची और उसने तेजी से जाकर शिकारी के पैर में जोर से काट लिया.
तेज दर्द के कारण शिकारी ने उस जाल को छोड़ दिया और अपने पैर को देखने लगा. कबूतर को जाल से निकलने का यह मौका मिल गया और वह तेजी से जाल से निकल कर उड़ गया.
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सीख: कर भला, हो भला. हम जब भी दूसरों का भला करते हैं, तो उसका फल हमें जरुर मिलता है. कबूतर ने चींटी की मदद की थी और उसी मदद के फलस्वरूप मुश्किल समय में चींटी ने कबूतर की जान बचाई. इसलिए कभी भी किसी की सहायता करने या अच्छा करने से पीछे न हटें। जब भी मौका मिले, दूसरो की बिना किसी स्वार्थ के मदद करें.
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मिथिला के जंगलों में बहुत समय पहले एक सियार रहता था. वह बहुत आलसी था. पेट भरने के लिए खरगोश व चूहों का पीछा करना व उनका शिकार करना उसे बड़ा भारी काम लगता था. शिकार करने में मेहनत तो करनी ही पड़ती है. सियार का दिमाग़ शैतानी था. वह यही तिकड़म लगाता रहता कि कैसे ऐसी जुगत लगाई जाए कि बिना हाथ-पैर हिलाए भोजन मिलता रहे, बस खाया और सो गए. एक दिन इसी सोच में डूबा वह सियार एक झाड़ी में दुबका बैठा था.
बाहर चूहों की टोली उछल-कूद व भाग-दौड करने में लगी थी. उनमें एक मोटा-सा चूहा था, जिसे दूसरे चूहे “सरदार” कहकर बुला रहे थे और उसका आदेश मान रहे थे. सियार उन्हें देखता रहा. उसके मुंह से लार टपकती रही. फिर उसके दिमाग़ में एक तरकीब आई.
जब चूहे वहां से गए तो उसने दबे पांव उनका पीछा किया. कुछ ही दूरी पर चूहों के बिल थे. सियार वापस लौटा. दूसरे दिन प्रातः ही वह उन चूहों के बिल के पास जाकर एक टांग पर खड़ा हो गया. उसका मुंह उगते सूरज की ओर था. आंखें बंद थी.
चूहे बिलों से निकले तो सियार को इस अनोखी मुद्रा में खड़े देखकर हैरान रह गए. एक चूहे ने ज़रा सियार के निकट जाकर पूछा, “सियार मामा, तुम इस प्रकार एक टांग पर क्यों खड़े हो?”
सियार ने एक आंख खोलकर बोला, “मूर्ख, तूने मेरे बारे में नहीं सुना कभी? मैं चारों टांगें नीचे टिका दूंगा तो धरती मेरा बोझ नहीं संभाल पाएगी. यह डोल जाएगी. साथ ही तुम सब नष्ट हो जाओगे. तुम्हारे ही कल्याण के लिए मुझे एक टांग पर खड़े रहना पड़ता है.”
चूहों में खुसर-पुसर हुई. वे सियार के निकट आकर खड़े हो गए. चूहों के सरदार ने कहा, “हे महान सियार, हमें अपने बारे में कुछ बताइए.”
सियार ने ढोंग रचा. “मैंने सैकड़ों वर्ष हिमालय पर्वत पर एक टांग पर खड़े होकर तपस्या की है. मेरी तपस्या समाप्त होने पर सभी देवताओं ने मुझ पर फूलों की वर्षा की. भगवान ने प्रकट होकर कहा कि मेरे तप से मेरा भार इतना हो गया हैं कि मैं चारों पैर धरती पर रखूं तो धरती गिरती हुई ब्रह्मांड को फोड़कर दूसरी ओर निकल जाएगी. धरती मेरी कृपा पर ही टिकी रहेगी. तबसे मैं एक टांग पर ही खड़ा हूं. मैं नहीं चाहता कि मेरे कारण दूसरे जीवों को कष्ट हो.”
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सारे चूहों का समूह महान तपस्वी सियार के सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो गया. एक चूहे ने पूछा, “तपस्वी मामा, आपने अपना मुंह सूरज की ओर क्यों कर रखा हैं?”
सियार ने उत्तर दिया, “सूर्य की पूजा के लिए.”
“और आपका मुंह क्यों खुला हैं?” दूसरे चूहे ने कहा.
“हवा खाने के लिए! मैं केवल हवा खाकर ज़िंदा रहता हूं. मुझे खाना खाने की ज़रूरत नहीं पड़ती. मेरे तप का बल हवा को ही पेट में भांति-भांति के पकवानों में बदल देता है.” सियार बोला.
उसकी इस बात को सुनकर चूहों पर ज़बर्दस्त प्रभाव पड़ा. अब सियार की ओर से उनका सारा भय जाता रहा. वे उसके और निकट आ गए. अपनी बात का असर चूहों पर होता देख मक्कार सियार दिल ही दिल में ख़ूब हंसा. अब चूहे महातपस्वी सियार के भक्त बन गए. सियार एक टांग पर खड़ा रहता और चूहे उसके चारों ओर बैठकर ढोलक, मंजीरे, खड़ताल और चिमटे लेकर उसके भजन गाते.
सियार सियारम् भजनम् भजनम.
भजन कीर्तन समाप्त होने के बाद चूहों की टोलियां भक्ति रस में डूबकर अपने बिलों में घुसने लगती तो सियार सबसे बाद के तीन-चार चूहों को दबोचकर खा जाता. फिर रात भर आराम करता, सोता और डकारें लेता.
सुबह होते ही फिर वह चूहों के बिलों के पास आकर एक टांग पर खड़ा हो जाता और अपना नाटक चालू रखता.
चूहों की संख्या कम होने लगी. चूहों के सरदार की नज़र से यह बात छिपी नहीं रही. एक दिन सरदार ने सियार से पूछ ही लिया, “हे महात्मा सियार, मेरी टोली के चूहे मुझे कम होते नज़र आ रहे हैं. ऐसा क्यों हो रहा है?”
सियार ने आर्शीवाद की मुद्रा में हाथ उठाया, “हे चतुर मूषक, यह तो होना ही था. जो सच्चे मन से मेरी भक्ति करेगा, वह सशरीर बैकुण्ठ को जाएगा. बहुत-से चूहे भक्ति का फल पा रहे हैं.”
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चूहों के सरदार ने देखा कि सियार मोटा हो गया है. कहीं उसका पेट ही तो वह बैकुण्ठ लोक नहीं हैं, जहां चूहे जा रहे हैं?
चूहों के सरदार ने बाकी बचे चूहों को चेताया और स्वयं उसने दूसरे दिन सबसे बाद में बिल में घुसने का निश्चय किया. भजन समाप्त होने के बाद चूहे बिलों में घुसे. सियार ने सबसे अंत के चूहे को दबोचना चाहा.
चूहों का सरदार पहले ही चौकन्ना था. वह दांव मारकर सियार का पंजा बचा गया. असलियत का पता चलते ही वह उछलकर सियार की गर्दन पर चढ़ गया और उसने बाकी चूहों को हमला करने के लिए कहा. साथ ही उसने अपने दांत सियार की गर्दन में गड़ा दिए. बाकी चूहे भी सियार पर झपटे और सबने कुछ ही देर में महात्मा सियार को कंकाल सियार बना दिया. केवल उसकी हड्डियों का पंजर बचा रह गया.
सीख- ढोंग कुछ ही दिन चलता है, फिर ढोंगी को अपनी करनी का फल मिलता ही है.