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कुछ बॉलीवुड स्टार अपने नाम के आगे अपना सरनेम नहीं लगाते या यूं कहें कि कुछ बॉलीवुड स्टार अपना सरनेम छुपाते हैं. रणवीर सिंह, गोविंदा, काजोल, तब्बू, रेखा… ये टेलीब्रिटीज अपने नाम के आगे अपना सरनेम क्यों नहीं लगाते हैं? आखिर क्या है इसकी वजह?
1) रणवीर सिंह
क्या आप रणवीर सिंह का पूरा नाम जानते हैं? रणवीर सिंह का पूरा नाम रणवीर सिंह भावनानी है. फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखने के बाद उन्होंने अपने इस सरनेम को हटा दिया. बॉलीवुड में इतना लंबा नाम उन्हें सही नहीं लग रहा था, इसलिए रणवीर सिंह ने अपने नाम के आगे से अपना सरनेम हटा दिया.
2) काजोल
बॉलीवुड की टैलेंटेड एक्ट्रेस और अजय देवगन की वाइफ काजोल अपने नाम के आगे अपना सरनेम नहीं लगाती हैं. काजोल का पूरा नाम ‘काजोल मुखर्जी’ है, लेकिन वो अपने नाम के आगे अपना सरनेम नहीं लगाती हैं. बता दें कि काजोल एक्ट्रेस तनूजा और फिल्म निर्देशन सोमू मुखर्जी की बेटी हैं, पैरेंट्स के अलग हो जाने के कारण काजोल अपना सरनेम यूज़ नहीं करती हैं. काजोल अपनी मां के साथ रही हैं इसलिए सब उन्हें तनूजा की बेटी के रूप में जानते हैं, उनके नाम के साथ उनके पिता का ज़िक्र कम ही होता है.
3) रेखा
बॉलीवुड की खूबसूरत अभिनेत्री रेखा भी अपने नाम के आगे अपना सरनेम नहीं लगाती हैं. रेखा का पूरा नाम भानुरेखा गणेशन है. हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के लिए शायद ये नाम बहुत बड़ा और याद न रहने वाला था, इसलिए रेखा ने अपने नाम से भानु और सरनेम गणेशन दोनों ही हटा दिए और बन गईं बॉलीवुड की रेखा.
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4) गोविंदा
बॉलीवुड के राजा बाबू गोविंदा का पूरा नाम गोविंदा अरुण आहूजा है. गोविंदा ने अपने नाम से सरनेम किसी वजह से नहीं हटाया, गोविंदा नाम स्वीट और सिंपल लगता है, इसलिए उन्होंने अपने नाम के आगे से सरनेम हटा दिया.
5) असिन
बॉलीवुड की क्यूट अभिनेत्री असिन का पूरा नाम असिन थोट्टूमकल है. ये सरनेम लोगों को बोलने में दिक्कत होती थी, कई लोग इसका सही उच्चारण नहीं कर पाते थे, इसलिए असिन ने अपने नाम के आगे से अपना सरनेम हटा दिया और अपना नाम सिर्फ असिन लिखने लगीं.
6) तब्बू
बॉलीवुड की मोस्ट टैलेंटेड एक्ट्रेस तब्बू का पूरा नाम तब्बसुम हाशमी है. तब्बू ने अपना सरनेम किसी खास वजह से नहीं हटाया, बस अपने नाम को छोटा और स्वीट बनाने के लिए वो अपना नाम सिर्फ तब्बू लिखती हैं और उनके फैन्स भी उन्हें इसी नाम से जानते हैं.
7) तमन्ना
बाहुबली फेम एक्ट्रेस तमन्ना का पूरा नाम तमन्ना भाटिया है. तमन्ना ने न्यूमरोलॉजी के कारण अपने नाम के आगे से अपना सरनेम हटा दिया. न्यूमरोलॉजी के अनुसार, उनका नाम उनके लिए लकी है इसलिए वो सिर्फ अपना नाम लिखती हैं और ऐसा करने से उन्हें सफलता भी मिली है.
8) जितेंद्र
बॉलीवुड के जम्पिंग जैक यानी जितेंद्र का पूरा नाम रवि कपूर है. अपने फिल्मी नाम के साथ ही उन्होंने अपने नाम के आगे से अपना सरनेम भी हटा दिया.
9) श्रीदेवी
बॉलीवुड की चुलबुली एक्ट्रेस श्रीदेवी का पूरा नाम श्रीअम्मा यांगर अयप्पन है. ये नाम बहुत मुश्किल और हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के लिए अजीब भी था, इसलिए उन्होंने अपना श्रीदेवी लिखना शुरू कर दिया और इस नाम से उन्हें बहुत सफलता भी मिली.
10) शान
बॉलीवुड के मशहूर गायक शान का पूरा नाम शान्तनु मुखर्जी है. शान ने अपने नाम को शॉर्ट एंड स्वीट बनाने के लिए अपना नाम छोटा किया और अपने नाम के आगे से अपना सरनेम भी हटा दिया.
11) हेलन
बॉलीवुड की बेहतरीन डांसर और खूबसूरत एक्ट्रेस हेलन का पूरा नाम हेलन एन्न रिचर्डसन है. ये नाम बोलने में लोगों को दिक्कत होती थी इसलिए हेलन ने अपने नाम के आगे से अपना सरनेम हटा दिया.
12) धर्मेंद्र
धरम पा जी यानि धर्मेंद्र का पूरा नाम धरम सिंह देओल है बॉलीवुड इंडस्ट्री में आने के बाद धरम जी ने अपने नाम के आगे से अपना सरनेम हटा दिया. हालांकि उनके बेटे-बेटियां अपने नाम के आगे अपना सरनेम लगाते हैं.

मन्ना डे अब इस जहां में नहीं हैं, मगर करोड़ों दिलों में बसे हैं अपनी मखमली आवाज और गाने के अनोखे अंदाज की बदौलत. शास्त्रीय गायन में पारंगत मन्ना डे अपनी गायन शैली से शब्दों के पीछे छिपे भाव को ख़ूबसूरती से सामने ले आते थे. मोहम्मद रफ़ी और महेंद्र कपूर सहित उस समय के कई मशहूर गायक उनके ज़बरदस्त प्रशंसक थे. उनका वास्तविक नाम प्रबोध चंद्र डे था. प्यार से उन्हें ‘मन्ना दा’ भी पुकारा जाता था.
मन्ना दा का जन्म कोलकाता में 1 मई, 1919 को हुआ था. उनकी मां का नाम महामाया और पिता का नाम पूर्णचंद्र डे था. उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा इंदु बाबुरपुर पाठशाला से की और उसके बाद विद्यासागर कॉलेज से स्नातक किया. वह कुश्ती और मुक्केबाजी की प्रतियोगिताओं में भी खूब भाग लेते थे. उनके पिता उन्हें वकील बनाना चाहते थे, मगर उन्हें अदालत नहीं, अदावत पसंद थी.
इस सुप्रसिद्ध गायक ने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा अपने चाचा कृष्ण चंद्र डे से ली थी. एक बार जब उस्ताद बादल खान और मन्ना डे के चाचा साथ में रियाज़ कर रहे थे, तभी बगल के कमरे में बालक मन्ना भी गा रहे थे. बादल खान ने कृष्ण चंद्र डे से पूछा कि यह कौन गा रहा है, तो उन्होंने मन्ना डे को बुलाया. वह उनकी प्रतिभा पहचान चुके थे और तभी से मन्ना अपने चाचा से संगीत की तालीम लेने लगे. उन्होंने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत का प्रशिक्षण उस्ताद दबीर खान, उस्ताद अमन अली खान और उस्ताद अब्दुल रहमान खान से लिया था.
मन्ना डे 1940 के दशक में संगीत के क्षेत्र में अपना मुकाम बनाने के लिए अपने चाचा के साथ मुंबई आ गए. वहां उन्होंने बतौर सहायक संगीत निर्देशक पहले अपने चाचा के साथ, फिर सचिन देव वर्मन के साथ काम किया.
पार्श्व गायक के रूप में मन्ना ने पहली बार फिल्म तमन्ना (1942) के लिए सुरैया के साथ गाना गाया. हालांकि उससे पहले वह फिल्म राम राज्य में समूहगान में शामिल हुए थे. इस फिल्म के बारे में दिलचस्प बात यह है कि यही एकमात्र फिल्म थी, जिसे महात्मा गांधी ने देखी थी.
पहली बार सोलो गायक के रूप में उन्हें संगीतकार शंकर राव व्यास ने राम राज्य (1943) फिल्म का गीत गई तू गई सीता सती… गाने का मौका दिया. उन्होंने ओ प्रेम दीवानी संभल के चलना… (कादंबरी-1944), ऐ दुनिया जरा… (कमला -1946)’, हाय ये है… (जंगल का जानवर- 1951),’ प्यार हुआ इकरार हुआ… (श्री 420-1955), ये रात भीगी भीगी… (चोरी-चोरी-1956) जैसे कई गीत गाए, लेकिन 1961 में आई फिल्म काबुली वाला के गीत ऐ मेरे प्यारे वतन… ने मन्ना डे को शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचा दिया.
मन्ना डे शास्त्रीय संगीत पर आधारित कठिन गीत गाने के शौक़ीन थे. पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई…, सुर ना सजे क्या गाऊ मैं… और तू प्यार का सागर है… तेरी इक बूंद के प्यासे हम… जैसे गीतों को उन्होंने बड़ी सहजता से गाया.
मन्ना डे शास्त्रीय संगीत में पारंगत थे, मगर किशोर कुमार को शास्त्रीय संगीत का ज्ञान ज़्यादा नहीं था. जब फिल्म पड़ोसन (1968) के गीत एक चतुर नार बड़ी होशियार… की रिकॉर्डिंग हो रही थी, तो निर्माता महमूद ने कहा कि राजेंद्र कृष्ण ने जैसा यह गीत लिखा है, उसी तरह हल्के-फुल्के तरीके से गाना है, लेकिन मन्ना डे नहीं माने, उन्होंने इसे अपने ही अंदाज़ में गाया. जब किशोर कुमार ने मुखड़ा गाया तो मन्ना डे को वह पसंद नहीं आया था. जैसे-तैसे इस गाने की रिकॉर्डिंग की गई.
प्रसिद्ध कवि हरिवंश राय बच्चन ने मन्ना डे से प्रभावित होकर अपनी अमर रचना मधुशाला को गाकर सुनाने का उन्हें मौका दिया था. उनकी गायकी से सजी आखिरी हिंदी फिल्म उमर थी.
मन्ना डे की शादी 18 दिसंबर, 1953 को केरल की सुलोचना कुमारन से हुई थी. उनकी दो बेटियां शुरोमा और सुमिता हैं. उनकी पत्नी का 2012 में कैंसर से निधन हो गया था.
फिल्म मेरे हुजूर (1969), बांग्ला फिल्म निशि पद्मा (1971) और मेरा नाम जोकर (1970) के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक का फिल्मफेयर अवार्ड मिला था.
मोहम्मद रफी ने एक बार उनके बारे में कहा था, “आप लोग मेरे गीत सुनते हैं, लेकिन अगर मुझसे पूछा जाए तो मैं कहूंगा कि मैं मन्ना डे के गीतों को ही सुनता हूं.”
मन्ना डे ने बांग्ला में अपनी आत्मकथा जीवोनेर जलासाघोरे लिखी थी. भारत सरकार ने उन्हें 1971 में पद्मश्री, 2005 में पद्मभूषण से सम्मानित किया.
साल 2004 में रवींद्र भारती विश्वविद्यालय ने उन्हें डी.लिट. की मानद उपाधि प्रदान की. संगीत के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें दादासाहेब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया.
24 अक्टूबर, 2013 की सुबह 4.30 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली. मन्ना दा सदा के लिए हमसे ओझल हो गए. शास्त्रीय संगीत को कर्णप्रिय बनाने में मन्ना डे का कोई सानी नहीं था. अपने गीतों की बदौलत वह अमर हो गए. उनके गीत सदियों तक गूंजते रहेंगे और पीढ़ी दर पीढ़ी लोग उन्हें सुनते रहेंगे.