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Vaccine
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कोरोना ने जहां पूरे संसार की रफ़्तार को धीमा कर दिया वहीं मानव जाति पर भी यह एक बड़ा संकट है यह कहना ग़लत नहीं होगा, ऐसे में सभी को इंतज़ार है तो बस वैक्सीन का. इसकी कोशिशें भी हो रही हैं और उम्मीद है कि जल्द ही वैक्सीन के रूप में हमारे पास कोरोना को हराने का हथियार होगा.
कई देशों में वैक्सीन के निर्माण का काम तेज़ी से चल रहा है और ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी भी इस ओर तेज़ी से कदम बढ़ा रही है और भारत में सिरम इंस्टिट्यूट और आईसीएमआर के साथ मिलकर एक सशक्त वैक्सीन- ‘कोविशील्ड’ के निर्माण की दिशा में वो काफ़ी आगे बढ़ चुकी है क्योंकि उसने ह्यूमन वैक्सिनेशन भी लगभग पूरा कर लिया है और अब वो इसके असर और प्रभाव पर नज़र बनाए हुए है.
ह्यूमन ट्रायल के लिए कुल भारत में 1600 वॉलंटियर्स की ज़रूरत थी और केईएम में 100, जिसमें से एक हैं महाराष्ट्र के नामी डॉक्टर सुरेश सुंदर जिनसे हमारी इस प्रक्रिया को लेकर बात हुई और हमें इस विषय को बेहतर तरीक़े से समझने में मदद मिली.
इतने महत्वपूर्ण मिशन के लिए वॉलंटियर बनने की क्या शर्तें और मानक होते हैं?
मैं भी डॉक्टर हूं तो ज़ाहिर है हमारा संपर्क और बातचीत होती रहती है इस तरह की कोशिशों से जुड़े लोगों से, इसीलिए मुझे भी अवसर मिला कि मैं इस अच्छे काम का हिस्सा बनूं.
आप कैसे इस मिशन से जुड़े?
आप एडल्ट हों और पूरी तरह हेल्दी हों. आपको कोरोना ना हुआ हो और आप मानसिक रूप से भी मज़बूत हों. पहले स्टेप में स्क्रीनिंग होती है जिसमें आपका हेल्थ चेकअप, कोविड टेस्टिंग वैग़ैरह होता है और दूसरा स्टेप होता है काउन्सलिंग का जिसमें आपको पूरी प्रक्रिया की गंभीरता और साइडइफ़ेक्ट्स की संभावनाओं के बारे में मानसिक रूप से तैयार किया जाता है.
इसके रिस्क फ़ैक्टर्स के बारे में कुछ बताइए?
चूंकी यह पूरी तरह नई वैक्सीन है तो इसके बारे में हमें ज़्यादा कुछ पता नहीं होता, ऐसे में इसके साइडइफ़ेक्ट्स भी कई तरह के हो सकते हैं, जैसे- मसल वीकनेस, किसी तरह की कमज़ोरी और यहां तक कि जान को भी ख़तरा हो सकता है.
ऐसे में आप और आपके परिवार वाले कैसे तैयार हुए?
मेरी पत्नी भी डॉक्टर हैं और मैं भी तो ज़ाहिर है ये वैक्सीन कितनी ज़रूरी है आज हमारे पूरे देश, दुनिया और समाज के लिए हम समझ सकते हैं. यह गर्व की बात है कि मुझे मौक़ा मिला इस तरह के कार्य का हिस्सा बनने का. चूंकी वैक्सीन को बिना ट्रायल के बाज़ार में उतारा नहीं जा सकता तो यह प्रक्रिया बेहद ज़रूरी हो जाती है.
मेरे परिजनों और दोस्तों ने मुझे हौसला दिया और यह भी कहना चाहूंगा कि प्रोफ़ेसर डॉक्टर गोगटे और केईएम डीन डॉक्टर देशमुख जिस तरह के प्रयास कर रहे हैं इस वैक्सीन के निर्माण व ट्रायल में वो क़ाबिले तारीफ़ है.
आपने अपना ट्रायल पूरा कर लिया?
मुझे 2 शॉट्स वैक्सीन के लग चुके हैं और नियम के मुताबिक़ 28 दिनों के अंतराल पर इसे लगाया जाता है. दो ही बार इसे इंजेक्ट किया जाता है और उसके बाद 5 महीनों तक मॉनिटर किया जाता है कि हमें किसी तरह के कॉम्प्लिकेशन्स या साइडइफ़ेक्ट तो नहीं हो रहे.
यह ट्रायल 5 महीनों तक चलता रहेगा और अभी तक वॉलंटियर्स को वैक्सिनेशन का काम पूरा हुआ है.
अब तक तो मैं पूरी तरह स्वस्थ हूं और उम्मीद है कि यह वैक्सीन जल्द ही मानकों पर खरी उतरेगी और लोगों तक पहुंचेगी!
लेकिन तब तक सभी ध्यान रखें, सुरक्षित रहें, मास्क सही तरह से मुंह और नाक ढंककर पहनें, सोशल डिसटैंसिंग का पालन करें और स्वच्छता का पूरा ख़्याल रखें, सतर्क रहें!
यह भी पढ़ें: हेल्थ अलर्ट: ब्रेस्ट कैंसर- जानें कारण, लक्षण और उपाय… (Health alert: Breast Cancer- Causes, Symptoms And Remedies)
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मेरी दो बेटियां हैं, जिनकी उम्र 10 और 6 साल है. कृपया, बताएं कि उन्हें सर्वाइकल कैंसर (Cervical Cancer) का वैक्सीन लगवाना कितना ज़रूरी है?
– मिताली तंवर, पंचकुला.
सर्वाइकल कैंसर (Cervical Cancer) के अगेनस्ट सर्वाइकल कैंसर का वैक्सीन केवल 70% प्रोटेक्शन देता है. वैसे तो इस टीके को 10 से 45 साल तक किसी भी उम्र में लगवा सकती हैं, लेकिन किशोरावस्था में सर्वाइकल कैंसर का टीका लगवाना ज़्यादा फ़ायदेमंद होता है, क्योंकि बढ़ती उम्र में यह वैक्सीन उतना प्रोटेक्शन नहीं देता, जितना कि किशोरावस्था में देता है. आप अपनी 10 वर्षीया बेटी को सर्वाइकल कैंसर का वैक्सीन लगवा सकती हैं. लेकिन 6 वर्षीया बेटी को तभी लगवाएं, जब वह 10 साल की हो जाए. यदि आप भी यह लगवाना चाहें और अगर आपकी उम्र 35 साल से अधिक है, तो डॉक्टरी सलाह के अनुसार ही यह वैक्सीन लगवाएं. यदि आप इस वैक्सीन को नहीं लगवाना चाहती हैं तो इसकी जगह सर्वाइकल कैंसर के लिए की जानेवाली रेग्युलर स्क्रीनिंग के तौर पर पैप स्मीयर टेस्ट करवाएं.
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मैं 40 वर्ष की हूं. मेरी दोनों डिलीवरी सामान्य हुई थी. इन दिनों मुझे एक परेशानी हो रही है. जब भी मैं खांसती या छींकती हूं तो यूरिन लीकेज हो जाता है. इससे मुझे इतनी शर्मिंदगी होती है कि मैंने बाहर जाना कम कर दिया है. कृपया, सलाह दें कि मैं क्या करूं?
– रेवती अय्यर, चेन्नई.
आपको स्ट्रेस यूरिनरी इनकॉन्टिनेंस की समस्या है. जिन महिलाओं की डिलीवरी नॉर्मल होती है, उन्हें अक्सर ऐसा होता है. इसका कारण है डिलीवरी के दौरान पेल्विक मसल्स व टिशूज़ में खिंचाव. पेल्विक फ्लोर एक्सरसाइज़ व सर्जिकल ट्रीटमेंट से इसका इलाज संभव है. नए इलाज, जैसे- ट्रांस वेजाइनल टेप व ट्रांस ऑब्टयूरेटर से 15 मिनट में इसका परमानेंट उपचार हो सकता है.
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डॉ. राजश्री कुमार
स्त्रीरोग व कैंसर विशेषज्ञ
[email protected]
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विश्व क्षय रोग दिवस (World TB Day) पूरे विश्व में आज यानी 24 मार्च को मनाया जाता है और इसका ध्येय है लोगों को इस बीमारी के विषय में जागरूक करना और टीबी की रोकथाम के लिए कदम उठाना है. भारत में टीबी के फैलने का एक मुख्य कारण इस बीमारी के लिए लोगों सचेत ना होना और इसे शुरुआती दौर में गंभीरता से न लेना. टी.बी किसी को भी हो सकता है, इससे बचने के लिए कुछ सामान्य उपाय भी अपनाये जा सकते हैं. इसी बारे में ज़्यादा जानकारी के लिए हमने बात की डॉ. लविना मीरचंदानी, हेड ऑफ रेस्पिरेटरी डिपार्टमेंट, के.जी सोमैया हॉस्पिटल, मुंबई से.
टीबी क्या है?
टीबी अर्थात ट्यूबरक्लोसिस एक संक्रामक रोग होता है, जो बैक्टीरिया की वजह से होता है. यह बैक्टीरिया शरीर के सभी अंगों में प्रवेश कर जाता है. हालांकि ये ज्यादातर फेफड़ों में ही पाया जाता है. मगर इसके अलावा आंतों, मस्तिष्क, हड्डियों, जोड़ों, गुर्दे, त्वचा तथा हृदय भी टीबी से ग्रसित हो सकते हैं.
टीबी के लक्षण
- तीन हफ़्ते से ज़्यादा खांसी
- बुखार (जो शाम को बढ़ जाता है)
- छाती में तेज दर्द
- वजन का अचानक घटना
- भूख में कमी आना
- बलगम के साथ खून का आना
- बहुत ज्यादा फेफड़ों का इंफेक्शन
ऐसे होता है टीबी का संक्रमण
टीबी से संक्रमित रोगियों के कफ से, छींकने, खांसने, थूकने और उनके द्वारा छोड़ी गई सांस से वायु में बैक्टीरिया फैल जाते हैं, जोकि कई घंटों तक वायु में रह सकते हैं. जिस कारण स्वस्थ व्यक्ति भी आसानी से इसका शिकार बन सकता है. हालांकि संक्रमित व्यक्ति के कपड़े छूने या उससे हाथ मिलाने से टीबी नहीं फैलता. जब टीबी बैक्टीरिया सांस के माध्यम से फेफड़ों तक पहुंचता है तो वह कई गुना बढ़ जाता है और फेफड़ों को नुकसान पहुंचाता है. हालांकि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता इसे बढ़ने से रोकती है, लेकिन जैसे-जैसे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर पड़ती है, टीबी के संक्रमण की आशंका बढ़ती जाती है.
जांच के तरीक़े
टीबी की जांच करने के कई माध्यम होते हैं, जैसे छाती का एक्स रे, बलगम की जांच, स्किन टेस्ट आदि. इसके अलावा आधुनिक तकनीक के माध्यम से आईजीएम हीमोग्लोबिन जांच कर भी टीबी का पता लगाया जा सकता है. अच्छी बात तो यह है कि इससे संबंधित जांच सरकार द्वारा निशुल्क करवाई जाती हैं.
बचने के उपाय
• दो हफ्तों से अधिक समय तक खांसी रहती है, तो डॉक्टर को दिखाएं.
• बीमार व्यक्ति से दूर रहें.
• आपके आस-पास कोई बहुत देर तक खांस रहा है, तो उससे दूर रहें.
• अगर आप किसी बीमार व्याक्ति से मिलने जा रहे हैं, तो अपने हाथों को ज़रूर धोलें.
• पौष्टिक आहार लें जिसमें पर्याप्त मात्रा में विटामिन्स , मिनेरल्स , कैल्शियम , प्रोटीन और फाइबर हों क्योंोकि पौष्टिक आहार हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाता है.
• अगर आपको अधिक समय से खांसी है, तो बलगम की जांच ज़रूर करा लें.
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