शादीशुदा ज़िंदगी में कैसा हो पैरेंट्स का रोल? (What Role Do Parents Play In Their Childrens Married Life?)
Share
5 min read
0Claps
+0
Share
कहते हैं, घर की ख़ुशहाली व आपसी रिश्तों की मज़बूती में पैरेंट्स का आशीर्वाद, सहयोग व प्यार काफ़ी मायने रखता है. लेकिन जब बच्चों की शादीशुदा ज़िंदगी में पैरेंट्स का सहयोगपूर्ण रवैया दख़लअंदाज़ी-सा लगने लगे, तो उनकी भूमिका सोचनीय हो जाती है. ऐसे में क्या करें पैरेंट्स? आइए, जानते हैं.
आज के बदले माहौल में पति-पत्नी की विचारधारा काफ़ी बदल गई है. शादी के बाद पति-पत्नी अलग घर बसाना चाहते हैं. स्वतंत्रता व आत्मनिर्भरता दोनों ही उनके लिए अहम् हैं. सब कुछ वो ख़ुद ही करना चाहते हैं. लेकिन ऐसे एकल परिवारों में भी समय-असमय पैरेंट्स या बुज़ुर्गों की ज़रूरत आन ही पड़ती है और पैरेंट्स को भी उनकी मदद करनी पड़ती है, फिर चाहे वो ख़ुशी से हो या कर्त्तव्यबोध के कारण. ऐसी स्थिति आज के पैरेंट्स को दुविधा में डाल रही है. वे समझ नहीं पाते हैं कि आत्मनिर्भर बच्चों की ज़िंदगी में उनका क्या स्थान है? उनकी क्या भूमिका
होनी चाहिए?
अधिकतर पैरेंट्स के लिए बच्चे हमेशा बच्चे ही रहते हैं. उनकी हर संभव मदद करना वे अपना कर्त्तव्य समझते हैं, जबकि अन्य लोगों का मानना है कि जब बच्चे बड़े हो जाते हैं और उनकी शादी हो जाती है, तब पैरेंट्स की ज़िम्मेदारियां ख़त्म हो जाती हैं. बच्चों को अपनी ज़िंदगी ख़ुद संभालनी चाहिए. पैरेंट्स से कोई उम्मीद नहीं रखनी चाहिए.
देखा गया है कि पैरेंट्स को जब विवाहित बच्चों की ज़िंदगी में परेशानियां व असुविधाएं दिखाई देती हैं, तब कभी तो वे तुरंत मदद के लिए हाथ बढ़ा देते हैं और कभी-कभी उन्हें समय व हालात के भरोसे छोड़ अपना हाथ खींच लेते हैं. ख़ासकर तब, जब ज़रूरत आर्थिक मदद की होती है.
काफ़ी समय पहले कोलकाता की एक एज्युकेशन रिसर्च संस्था अल्फा बीटा ओमनी ट्रस्ट द्वारा एक सर्वे किया गया था, जिसमें लगभग 200 पैरेंट्स से बातचीत की गई थी. 150 से भी ज़्यादा पैरेंट्स का कहना था- यदि संभव हो और सहूलियत हो, तो हर प्रकार की मदद की जानी चाहिए, क्योंकि बच्चे तो हमेशा ही हमारे लिए बच्चे रहेंगे. साथ ही उनका मानना था कि शादीशुदा ज़िंदगी का शुरुआती दौर कई बार मुश्किलों व असंतुलन से भरा होता है. कई प्रकार के पारिवारिक व भावनात्मक एडजस्टमेंट करने पड़ते हैं. कभी-कभी अनचाहे आर्थिक संकट भी ज़िंदगी को कठिन बना देते हैं. ऐसे में आर्थिक सहायता से ज़िंदगी आसान व ख़ुशहाल हो सकती है. दूसरे मत के अनुसार, शादी तभी की जानी चाहिए, जब व्यक्ति शादी के बाद आनेवाली हर परिस्थिति का मुक़ाबला करने के लिए तैयार हो, आर्थिक रूप से सुरक्षित व ठोस हो. बच्चों को पढ़ाना-लिखाना, ज़िम्मेदारियों के लिए तैयार करना पैरेंट्स की ज़िम्मेदारी है. उसके बाद पैरेंट्स की ज़िम्मेदारी ख़त्म. फिर तो बच्चों की ज़िम्मेदारी बनती है कि वो पैरेंट्स की देखभाल करें.
समाजशास्त्री डॉ. कामेश्वर भागवत का मानना है कि पैरेंट्स हमेशा ही पैरेंट्स रहते हैं. अपने बच्चों की ज़िंदगी में हमेशा ही उनकी भूमिका बनी रहती है. कभी मुख्य, तो कभी सहयोगी के तौर पर. इसलिए न तो पूरी तरह इनसे अलग हों और न ही रोज़मर्रा की हर बात में अपनी राय दें. यानी रास्ता बीच का होना चाहिए. वैसे भी भारतीय परिवार एक कड़ी की तरह जुड़े रहते हैं, एक तरफ़ हम अपने बच्चों की ज़िम्मेदारियां पूरी करते हैं, तो दूसरी तरफ़ पैरेंट्स के साथ जुड़े रहकर उनके प्रति दायित्व निभाते हैं. दरअसल शेयरिंग व केयरिंग की भावना ही परिवार है. पैरेंट्स का रोल कभी ख़त्म नहीं होता है, बस उनका स्वरूप बदल जाता है. आर्थिक योगदान के अलावा भी विवाहित बच्चों के जीवन में पैरेंट्स की एक सुखद भूमिका हो सकती है.
- पति-पत्नी यदि अकेले व समर्थ हैं, तो भी उन्हें अपने पैरेंट्स के भावनात्मक सहयोग, उनके प्यार व आशीर्वाद की ज़रूरत होती है.
- पति-पत्नी दोनों वर्किंग हैं, तो बच्चे की सुरक्षा व देखभाल की ज़िम्मेदारी लेकर आप उन्हें चिंतामुक्त कर सकते हैं. पैरेंट्स की मदद से वे लोग अपना काम बेहतर तरी़के से कर सकेंगे.
- तकलीफ़ या बीमारी के दौरान आपका समय व अनुभव उनके लिए किसी वरदान से कम न होगा.
- तनाव व संघर्ष के दौरान आपका भावनात्मक सहयोग व ज़िंदगी के अनुभव उन्हें संबल व हौसला प्रदान कर सकते हैं.
- बच्चों को स्कूल से लाना व छोड़ना प्रायः ग्रैंड पैरेंट्स को भी अच्छा लगता है और ग्रैंड चिल्ड्रेन भी दादा-दादी का साथ एंजॉय करते हैं.
- बच्चों में आध्यात्मिक व नैतिक गुणों तथा शिक्षा की शुरुआत भी ग्रैंड पैरेंट्स द्वारा बेहतर रूप से होती है.
- आज अकेला बच्चा हर समय टीवी, कंप्यूटर, प्ले स्टेशन जैसे गैजेट्स से चिपका रहता है, ऐसे में आपका साथ व मार्गदर्शन उसे समय का बेहतर उपयोग करना सिखा सकता है.
- बच्चे जिज्ञासु होते हैं, उनकी जिज्ञासा ग्रैंड पैरेंट्स बहुत अच्छी तरह से शांत कर सकते हैं.
- इन बातों के अलावा आपके विवाहित बच्चों की और भी अनेक व्यक्तिगत समस्याएं व ज़रूरतें हो सकती हैं, जिनका समाधान आपकी सहयोगी भूमिका से हो सकता है और बच्चों की विवाहित ज़िंदगी ख़ुशहाल हो सकती है.
- आर्थिक सहायता निश्चय ही जटिल व निजी मामला है. इससे हालात सुधर भी सकते हैं और पैरेंट्स बुढ़ापे में स्वयं को सुरक्षित भी कर सकते हैं.
याद रखें, बच्चे आपके ही हैं, फिर भी पराए हो चुके हैं. एक नए बंधन में बंध चुके हैं. एक नई दुनिया बसा रहे हैं. तो बस, पास रहकर भी दूर रहें और दूर रहकर भी अपने स्पर्श का एहसास उन्हें कराते रहें.
आपकी सहयोगी भूमिका आपके शादीशुदा बच्चों को कैसी लग रही है, यह जानने के लिए इन बातों पर ध्यान दें-
- क्या बच्चे आपकी मदद से ख़ुश हैं? आपकी भूमिका को सराहते हैं? आपके प्रति आभार व्यक्त करते हैं? यदि नहीं, तो आप मदद नहीं दख़ल दे रहे हैं.
- अब आपके बच्चे अकेले नहीं हैं, उनकी ज़िंदगी उनके जीवनसाथी के साथ जुड़ी है. क्या उनके साथी को भी आपका रोल पसंद है? यदि नहीं, तो एक दूरी बनाना बेहतर होगा.
- मदद के दौरान क्या आपको ऐसा महसूस होता है कि आपका फ़ायदा उठाया जा रहा है या आपको इस्तेमाल किया जा रहा है? ऐसी स्थिति कुंठा को जन्म देती है.
- मदद के दौरान होनेवाला आपका ख़र्च आपको परेशानी में तो नहीं डाल रहा है? यदि ऐसा है तो हाथ रोक लें, वरना पछतावा होगा.
- उनकी व्यस्तता को कम करने के लिए, उनकी ज़िंदगी को ख़ुशहाल बनाने के लिए अपनी ज़िंदगी को जीना न छोड़ें. अपनी दिनचर्या, अपनी हॉबीज़ पर भी ध्यान दें.
- बिना मांगे, आगे बढ़कर ख़ुद को ऑफ़र न करें, न ही उनकी ज़िंदगी में दख़लअंदाज़ी करें, वरना रिश्ते बिगड़ सकते हैं, आपके साथ भी और आपस में उनके भी.
- हर व़क़्त उनकी ज़िंदगी में झांकने की कोशिश न करें. जब वो शेयर करना चाहें, तो खुले मन से आत्मीयता बरतें.
- अपनी चिंताओं व कुंठाओं का रोना भी हर व़क़्त उनके सामने न रोएं. चाहे वो स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां हों या पारिवारिक रिश्तों की कड़वाहट.
- बदलते समय के साथ अपने व्यवहार व सोच में परिवर्तन लाएं, ताकि बच्चे आपसे खुलकर बात कर सकें.
शादी से पहले दिमाग़ में आनेवाले 10 क्रेज़ी सवाल (10 Crazy Things Which May Bother You Before Marriage)
Share
5 min read
0Claps
+0
Share
सगाई से शादी (Marriage) तक का समय लड़के-लड़की दोनों के लिए ही बहुत महत्वपूर्ण होता है. भावी जीवन को लेकर जहां मन में कई रूमानी ख़्वाब व ख़्वाहिशें होती हैं, तो कुछ अनकही आशंकाएं और ऊटपटांग सवाल भी दिलोदिमाग़ में गूंजते रहते हैं. कौन-से हैं वे ऊटपटांग या क्रेज़ी सवाल, आइए जानते हैं.
लड़कियों के दिमाग़ में आनेवाले सवाल
शादी से पहले हर लड़की के मन में अपने भावी जीवन को लेकर एक तस्वीर बसी होती है, जहां सब कुछ बहुत रोमांटिक और परफेक्ट होता है, पर शादी से पहले मन में कुछ के्रज़ी सवाल भी कुलबुलाते हैं. कभी उसकी आदतों को लेकर, तो कभी अपनी. हो सकता है, आपके दिमाग़ में भी ये सवाल आए हों.
क्या ये मेरे नखरे उठा पाएगा?
- आमतौर पर लड़कियां नखरीली ही होती हैं, पर वो सभी से नखरे नहीं करतीं. उन्हें अच्छी तरह पता होता है कि कौन उनके नखरे बर्दाश्त कर सकता है और कौन नहीं.
- बात जब शादी की होती है, तो उनके दिमाग़ में यह सवाल ज़रूर आता है कि क्या ये (भावी पति) मेरे नखरे उठा पाएगा? इसका जवाब जानने के लिए वो कभी-कभी अटपटी हरकतें भी करती हैं, जैसे- अपनी सहूलियत की जगह और समय के मुताबिक़ लड़के को मिलने बुलाना, ज़िद करके कुछ ख़रीदवाना, खाने-पीने में ज़िद करना आदि.
- यक़ीनन आपने भी शादी से पहले अपने मंगेतर के साथ ऐसी कोई ज़िद ज़रूर की होगी. इसमें कुछ ग़लत भी नहीं है. हर लड़की शादी से पहले श्योर होना चाहती है कि उसने जिस लड़के से शादी का निर्णय लिया है, वो पूरी तरह सही है या नहीं.
नाराज़ हो गया, तो कैसे मनाऊंगी?
- शादी के रिश्ते में हंसी-मज़ाक, नोंक-झोंक और ताने-उलाहने तो आम बात हैं, पर कभी-कभी हंसी-मज़ाक या शरारत भारी भी पड़ जाती है, ऐसे में आपको उन्हें मनाने के लिए भी अभी से तैयार रहना होगा.
- ‘रूठे-रूठे पिया मनाऊं कैसे...’ अच्छाजी मैं हारी चलो मान जाओ ना...’ ‘देखो रूठा ना करो, बात नज़रों की सुनो...’ जैसे कुछ एवरग्रीन बॉलीवुड गाने यहां आपकी मदद करेंगे. उन्हें गाकर सुनाएं या फिर गाना उन्हें व्हाट्सऐप कर दें. आपकी इस अदा पर वो ज़्यादा देर नाराज़ नहीं रह पाएंगे.
- थोड़ा रोमांटिक हो जाएं, तो गुलाब का फूल या चॉकलेट या फिर एक प्यारा-सा लव लेटर आपका काम बख़ूबी कर देंगे.
क्या मुझे अपना ब्लैंकेट शेयर करना पड़ेगा?
रिंकू बचपन से अपने ब्लैंकेट को लेकर बहुत पज़ेसिव थी. कोई और अगर उसे इस्तेमाल कर ले, तो वो हंगामा कर देती थी, लेकिन जब उसकी शादी तय हुई, तो सबसे पहले उसके दिमाग़ में जो क्रेज़ी सवाल आया, वो ब्लैंकेट का ही था. हालांकि उसने इसका तोड़ निकाला. पति को इतने प्यार से अपनी बात समझाई कि उन्होंने कभी उसके और उसके ब्लैंकेट के बीच आने की कोशिश नहीं की.
- रिंकू की तरह ही बहुत-सी लड़कियां अपनी चीज़ों को लेकर पज़ेसिव रहती हैं, लेकिन ज़रूरी नहीं कि शादी के बाद आपको हर जगह एडजस्टमेंट्स करने पड़ें. इस बारे में अपने पार्टनर से खुलकर बातें करें.
- किसी भी चीज़ को लेकर मन में कोई शंका न रखें. जो भी क्रेज़ी सवाल मन में आएं, पार्टनर से डिस्कस कर लें.
कहीं मम्मी से मेरी शिकायत कर दी तो?
- लड़कियों को अपनी रेप्युटेशन सबसे ज़्यादा प्यारी होती है. ख़ासकर शादी के बाद ससुराल में वो चाहती हैं कि हर कोई उनकी तारी़फ़ करे.
- ऐसे में मम्मी से अपनी शिकायत को लेकर वो सबसे ज़्यादा डरती हैं और यह बात सब लड़कों को पता होती है, तभी तो शादी के बाद ज़्यादातर पति यही धमकी देते हैं कि मम्मीजी को बता दूं...
- ग़लतियां तो सभी से होती हैं, आपसे भी होंगी ही, इसलिए इसे हौवा न बनाएं. बस, अपनी सासूमां को पटाकर रखें. ऐसे में वो ही आपकी ढाल बनेंगी.
कहीं मेरी पहचान खो न जाए?
- सबसे पहले तो इस बात को अपने दिमाग़ से निकाल दें कि शादी आपकी पहचान आपसे छीन लेगी, बल्कि शादी के बाद तो आपको कई नए रिश्ते, नाम और पहचान मिलती है.
- अगर मायके के निक नेम से ससुराल में कोई नहीं बुलाता, तो उदास न हों. पतिदेव ने आपको कोई लव नेम और ननद-देवर ने कुछ नए निक नेम दिए होंगे, तो उन्हें एंजॉय करें.
यह भी पढ़े:9 बातें जो ला सकती हैं दांपत्य जीवन में दरार (9 Things That Can Break Your Relationship)
लड़कों के दिमाग़ में आनेवाले सवाल
शादी के नाम से जितना डर लड़कियों को लगता है, उससे कम लड़कों को नहीं लगता. उनके मन में भी शादी को लेकर कई टेढ़े-मेढ़े सवाल आते रहते हैं.
क्या मैं भी जोरू का ग़ुलाम बन जाऊंगा?
- लड़कों में जोरू के ग़ुलाम का ऐसा हौवा है कि कोई भी अपनी पहचान इस रूप में नहीं चाहता.
- होनेवाली पत्नी की देखभाल और इच्छाओं का ख़्याल रखना आपकी ज़िम्मेदारी है, पर उसे तवज्जो देने में दूसरों को अनदेखा न करें.
- एक अच्छा बेटा होने के साथ-साथ आपको एक अच्छा दामाद भी बनना चाहिए, पर इस चक्कर में बेटे की ज़िम्मेदारियों को न भूल जाएं.
नाराज़ होकर मायके चली गई तो?
- यह सवाल अक्सर उनके दिमाग़ में आता है, जिनकी ससुराल उसी शहर में होती है. कहीं कुछ गड़बड़ हो गई और यह बोरिया-बिस्तर लेकर मायके चली गई, तो मैं क्या करूंगा?
- जाने का सवाल तो तब पैदा होगा, जब कोई गड़बड़ होगी. रिश्ते में प्यार और अपनापन बनाए रखें, यक़ीनन आपका वैवाहिक जीवन सुखमय होगा.
- शादी के पहले से ही उनके विचारों और पसंद-नापसंद को जानने की कोशिश करें.
- अगर कभी ग़लती हो भी गई, तो ‘सॉरी’ कहने में झिझकें नहीं.
कहीं मुझे ममाज़ बॉय न समझे?
- आमतौर पर जो लड़के अपनी हर छोटी-बड़ी ज़रूरतों के लिए मां पर पूरी तरह आश्रित होते हैं, उनके मन में यह सवाल ज़रूर आता है.
- अगर आप यह टैग नहीं चाहते, तो थोड़ा इंडिपेंडेंट बन जाएं और शादी से पहले ही अपने कुछ काम ख़ुद करना शुरू कर दें.
- खाने के बाद थाली उठाकर बेसिन में रखना, कपड़े वॉशिंग मशीन में डालना, अपनी आलमारी को व्यवस्थित रखना, जो चीज़ जहां से उठाई, उसे वहीं वापस रखना जैसी आदतें सभी लड़कों में होनी चाहिए.
मेरी चीज़ों पर कब्ज़ा न कर ले?
- पति-पत्नी पार्टनर्स होते हैं यानी आपकी सभी चीज़ों पर पत्नी का पूरा हक़ होता है. शादी से पहले ही इसके लिए मानसिक रूप से तैयार हो जाएं.
- एकाधिकार की भावना को छोड़कर शेयरिंग करना सीखें.
- अब अगर आप यह सोच रहे हैं कि शादी के बाद भी आपका कमरा बैचलर जैसा रहेगा, तो यह ज़्यादती ही होगी.
- शादी से पहले ही कमरे की सजावट और डेकोर के बारे में अगर होनेवाली पत्नी से बात करें, तो उसे अच्छा फील होगा.
अपने दोस्तों से मिलाना चाहिए या नहीं?
- अपने दोस्तों के बारे में लड़कों को अच्छे से पता होता है, स़िर्फ उनकी ख़ूबियां ही नहीं कमियां भी वो बख़ूबी जानते हैं, इसीलिए बात जब होनेवाली पत्नी को दोस्तों से मिलाने की होती है, तो वो सोच में पड़ जाते हैं, मिलाऊं या नहीं?
- दोस्तों से मिलाया और उन्होंने शेखी बघारने के चक्कर में कोई पोल खोल दी, तो ज़िंदगीभर ताने सुनने पड़ सकते हैं.
- आप बेहिचक पूरी टोली को होनेवाली पत्नी से मिलाएं. अगर कुछ दोस्त शादीशुदा हैं, तो यक़ीनन आपकी रेप्यूटेशन का पूरा ख़्याल रखेंगे और जमकर तारीफ़ भी करेंगे.
क्या आपका बॉयफ्रेंड मैरिज मटेरियल है? (Is Your Boyfriend Marriage Material?)
Share
5 min read
0Claps
+0
Share
नवीन व सीमा एक ही कॉलेज में थे. नवीन का आकर्षक व्यक्तित्व, सहायक स्वभाव, एक ही मुलाक़ात में दूसरों को अपना बना लेने का अंदाज़ क़ाबिले-तारीफ़ था, इसीलिए हर लड़की उसका साथ पसंद करती थी. दोस्तों के बीच भी वह काफ़ी लोकप्रिय था. जब नवीन की रुचि सीमा के प्रति बढ़ी तो उनकी दोस्ती जल्दी ही प्यार में बदल गई और झटपट शादी तय हो गई, किन्तु विवाह के बाद यही क़ाबिले तारीफ़ अंदाज़ और समाज सेवा का रवैया दोनों की तक़रार का कारण बना. सीमा नवीन से घरेलू ज़िम्मेदारियों की अपेक्षा करती थी, लेकिन नवीन से जग भलाई छूटती नहीं थी.
राखी और निरंजन अच्छे दोस्त थे. ऑफ़िस के बाद दोनों रोज़ ही कभी कॉफ़ी हाउस, तो कभी रेस्टॉरेन्ट में बैठते. निरंजन अकेला रहता था. राखी भी माता-पिता की स्वतन्त्र विचारों वाली इकलौती बेटी थी. उनके लिए घर से ज़्यादा कैरियर महत्वपूर्ण था. दोस्ती गहरी होती गई. एक-दूसरे का साथ बहुत प्रिय था, इतना कि लगा एक-दूसरे के बिना रह ही नहीं सकेंगे. परिवारों को भी कोई ऐतराज नहीं हुआ तो सहर्ष शादी के बंधन में बंध गए. कहा-सुनी तब शुरू हुई जब निरंजन रेस्टॉरेन्ट के बजाए घर के खाने को ज़्यादा पसंद करने लगा. वह चाहता था कि राखी गृहस्थी में भी थोड़ी रुचि ले, किन्तु राखी ने तो अपने घर में पहले कभी घरेलू कामों में रुचि ली ही नहीं थी. फिर तो छोटी-छोटी बातों पर भी तू-तू मैं-मैं होने लगी और इस रिश्ते का अंत हुआ तलाक़ के साथ.
जब इस तरह की बातें सामने आती हैं तब पछतावा होता है अपने चुनाव पर. तब लगता है जल्दबाज़ी तो नहीं कर दी निर्णय लेने में. दरअसल, प्यार का नशा ऐसा होता है कि साथी में कुछ ग़लत या कमी दिखाई नहीं देती है और यदि कुछ महसूस भी होता है तो साथी का साथ पाने की प्रबल चाह के आगे सब कुछ बौना हो जाता है. पहले विवाह हमेशा माता-पिता द्वारा तय किए जाते थे. लड़के से अधिक घर-परिवार को महत्व दिया जाता था. मुश्किलें तब भी आती थीं, लेकिन उस समय समझौता करना और आजीवन इस बंधन को निभाने की भावना सर्वोपरि होती थी. बेमेल विवाह भी निभाए जाते थे और समझौतों के साथ निभाते-निभाते समय के साथ अनुकूलता और परिपक्वता भी आ जाती थी. निभाना स्त्री का प्रथम गुण था भले ही वह उसकी मजबूरी थी, क्योंकि उस समय वह आर्थिक रूप से स्वतन्त्र नहीं थी. उनके पास इतना कोई विकल्प नहीं होता था. किन्तु अब ऐसा नहीं है, बल्कि लड़कियां ख़ुद अपने लिए जीवनसाथी का चुनाव कर रही हैं. वे शारीरिक रूप-रंग से ़ज़्यादा मानसिक स्तर पर मेल चाहती हैं. प्रेम-विवाह न भी हो तो आज शादी से पहले मिलना-जुलना, एक-दूसरे के विचारों को जानना, साथ समय गुज़ारना दोनों परिवारों को भी मान्य होने लगा है. इसके बावजूद कई बार विवाह के बाद बहुत कुछ ऐसी बातें सामने आती हैं, जिनके बारे में पहले ज़रा भी ख़याल नहीं आया होता. विचार, व्यवहार और दृष्टिकोण विवाहित जीवन का अहम हिस्सा हैं, क्योंकि आप अकेली नहीं हैं. परस्पर अनुकूलता, परिपक्वता और विश्वास ज़रूरी है इस बंधन में, अतः ज़रूरी हो जाता है यह आंकना कि जिस व्यक्ति के साथ आप ज़िंदगी गुज़ारने का फैसला ले रही हैं, वह शादी जैसे पवित्र बंधन के योग्य है या नहीं?
- लेकिन यह भी ज़रूरी है कि प्रेमी के बारे में अपनी राय बनाने से पहले आप अपना आत्मावलोकन भी करें, जैसे- अपने आपको जानना, अपने स्वभाव, अपनी क्रियाओं-प्रतिक्रियाओं को पहचानना, अपनी अपेक्षाओं को समझना, शादी की मैच्योरिटी को गम्भीरता से समझना और उससे जुड़ी ज़िम्मेदारियों को स्वीकारना.
- शादी एक पवित्र बंधन ही नहीं है, बल्कि यहां अनेक समझौते और कभी-कभी त्याग व समर्पण भी करने पड़ते हैं. कई बार ऐसा लगता है कि विचारों में समानता या अनुकूलता के साथ ही निभाना बेहतर होता है, किन्तु ऐसा नहीं है. अनुकूल स्वभाव के बावजूद टकराव हो ही जाता है. अहम का टकराव हो ही जाता है और कभी-कभी प्रतिकूल विचारधाराएं भी परिपूरक बन ज़िंदगी आसान बना देती हैं. जैसे यदि आप किन्हीं स्थितियों में कमज़ोर हैं तो साथी वहां पूरक बन जाए. उसे आपसे प्रेम है, आप पर भरोसा है और आपको समझता है, तो शादी का यह रिश्ता ख़ूबसूरत बन जाता है.
- विवाह की पहली शर्त है प्यार व विश्वास के साथ उसके गुण-अवगुण सहित स्वीकारना, साथ ही उसके परिजन व प्रियजनों को भी स्वीकारना. जिसके साथ जीवन बिताना है, उसे शर्तों में न बांधें, न ही उसकी शर्तें स्वीकार करें. प्रेमी या बॉयफ्रेंड अकेला होता है, किन्तु विवाह के बाद घर-परिवार होता है, हर रिश्ते से जुड़ना होता है, हर किसी के प्रति ज़िम्मेदारियां निभानी होती हैं.
- किसी भी रिश्ते या संबंध के निर्वाह में कम्यूनिकेशन यानी बातचीत अहम भूमिका रखती है, अतः बॉयफ्रेंड के साथ हर एक विषय पर स्पष्ट बात करें. उसके विचारों को जानें, अपनी भावनाओं को व्यक्त करें, उसकी प्रतिक्रिया महसूस करें. यदि स्वयं निर्णय ले पाने में दुविधा है तो किसी मैच्योर व्यक्ति या काउंसलर की सलाह भी ली जा सकती है. यदि व्यक्ति प्यार का वास्ता देकर अपनी बात मनवाने की कोशिश करता है या आपके प्यार में पागल हो अपने परिवार को छोड़ देने की बात करता है तो याद रहे, ये स्थिति न तो सामान्य है, न व्यावहारिक. आगे निश्चय ही परेशानियां आ सकती हैं. जो अब आपके लिए माता-पिता को छोड़ने की बात करता है, वह कल आपको भी छोड़ सकता है. कोई पति-पत्नी परिवार-समाज से दूर दुनिया बसा कर ख़ुश नहीं रह सकते हैं, बल्कि इससे तनाव व कुंठा महसूस होने लगती है, फिर शुरू होने लगता है एक-दूसरे पर आरोपों व प्रत्यारोपों का सिलसिला.
- विवाह का सच्चा सुख है केयरिंग व शेयरिंग में. साथी के साथ हर व्यवहार में सहजता महसूस होनी चाहिए. चाहे अपनी समस्या शेयर करनी हो या अपनों को केयरिंग की ज़रूरत हो. एक-दूसरे के अलावा आपकी ज़िंदगी में अपनों के लिए भी जगह होनी चाहिए. मेरा-तुम्हारा न होकर हर स्थिति मे ङ्गहमाराफ भाव होना चाहिए. एक-दूसरे को बदलने के बजाय एक-दूसरे का पूरक होना चाहिए.
- विचारों में समानता, ज़िंदगी के प्रति नज़रिया, घर-परिवार या भविष्य के प्रति दृष्टिकोण के साथ-साथ आर्थिक दृष्टिकोण के प्रति भी अपने बॉयफ्रेंड की प्लानिंग को जानने की कोशिश करें. प्यार में आसमान से तारे तोड़े जा सकते हैं, किन्तु शादीशुदा ज़िंदगी के लिए ठोस धरातल चाहिए. पैसों के बिना ज़िंदगी नहीं चलती. पैसों से ख़ुशियां नहीं पाई जा सकतीं, लेकिन पैसों से ही सुख के साधन जुटाए जा सकते हैं और सुख के माध्यम से आनंद की अनुभूति होती है.
- साथी का चरित्र जानना भी बहुत ज़रूरी है. चरित्र उसकी संगत, उसके व्यवहार, उसके अंदाज़ आदि से आसानी से पता लग सकता है, बस आपको अपनी सोच पर, प्यार के एहसास पर भरोसा होना चाहिए. शादी का ़फैसला लेना है, जीवनभर किसी का प्यार पाना है, उसे बनाए रखना है, फिर जल्दबाज़ी क्यों? सोच-समझकर निर्णय लें कि क्या वाकई आपका बॉयफ्रेंड ऐसा है कि उसके साथ आप ज़िंदगीभर निभा पाएंगी.
- वैसे भी विवाह नामक संस्था से आज की पीढ़ी का विश्वास उठता-सा जा रहा है. काफ़ी लोगों के लिए शादी ज़िंदगीभर का सामाजिक बंधन नहीं रह जाता है, बल्कि अब विवाह व्यक्तिगत परिपूर्णता के साधन के रूप में देखा जाता है. साथी यदि अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर पाता है, तो बंधन को निभाते जाना मूर्खता समझी जाती है, अतः ज़रूरी है कि इस बात को पहले ही समझ लिया जाए कि गर्लफ्रेंड या बॉयफ्रेंड परस्पर एक-दूसरे की कसौटी पर खरे उतर पाएंगे या नहीं.
लेट मैरेज को स्वीकारने लगा है समाज (Late Married Are Being Accepted By Society)
Share
5 min read
0Claps
+0
Share
आज समाज में बड़ी उम‘ की कुंवारी लड़कियां जब मज़े से अपनी ज़िंदगी जीती नज़र आती हैं, तो बड़े-बुज़ुर्गों के चेहरे पर आश्चर्य की लकीरें खिंच आती हैं. भले ही वे मुंह से कुछ न कहें. वाकई यह एक बड़ा बदलाव है. समाज में आज 25-30 वर्ष की बिन ब्याही लड़कियां आत्मसम्मान के साथ जी रही हैं. अब न उनकी शादी चिंता का विषय बनती है, न ही उनकी मौज-मस्ती पर प्रश्न उठते हैं.
हाल ही में हुए एक सर्वे के अनुसार, ज़्यादातर शहरी लड़कियों को अब शादी की जल्दी नहीं है. उन्हें करियर बनाना है. पैरेंट्स भले ही उनकी शादी की चिंता करें, लेकिन लड़कियां न तो इस बात से चिंतित हैं, न ही किसी प्रकार का अपराधबोध महसूस करती हैं, बल्कि अपने कुंवारेपन को ख़ूब एंजॉय करती हैं और शादी के मंडप में क़दम रखने से पहले विवाहित जीवन के हर पहलू पर भलीभांति विचार करना चाहती हैं. उनके लिए नारी जीवन का एकमात्र लक्ष्य शादी नहीं है. संभवतः पढ़ी-लिखी बेटियों की इस सोच से जाने-अनजाने पैरेंट्स भी सहमत होने लगे हैं और धीरे-धीरे समाज भी इसे स्वीकारने लगा है.
बदलाव कब और कैसे आया?
समाजशास्त्रियों के अनुसार, यदि लड़कियों के दृष्टिकोण पर ध्यान दिया जाए तो उनमें विवाह की जल्दी न होने के कई ठोस कारण हैं, जैसे- शिक्षा सबसे प्रमुख कारण है लड़कियों का शिक्षित होना. शिक्षा ने न स़िर्फ लड़कियों को, बल्कि समाज की सोच को भी परिवर्तनशील व व्यापक नज़रिया प्रदान किया है.
आत्मनिर्भरता
शिक्षा के कारण लड़कियों की विचारशक्ति व सोच में बदलाव आया है, उनमें आत्मविश्वास बढ़ा है. आत्मनिर्भर होने की आकांक्षा जागृत हुई है.
आर्थिक स्वतंत्रता
इसने लड़कियों को आर्थिक रूप से भी आत्मनिर्भर बना दिया है. उन्हें शादी से ़ज़्यादा अपने करियर पर फोकस करना महत्वपूर्ण लगता है. कई लड़कियां तो परिवार को आर्थिक सहयोग दे रही हैं. ऐसे में शादी का ख़्याल ही नहीं आता है.
बेमेल विवाह
समाज या परिवार में हुए बेमेल विवाहों ने भी लड़कियों की सोच बदली है. शादी भले ही देर से हो, लेकिन साथी ऐसा हो जिसके साथ ज़िंदगी की सार्थकता बनी रहे, सामंजस्य बना रहे, उचित तालमेल के साथ भावी जीवन ख़ुशहाल रहे.
‘चट मंगनी पट ब्याह’ की सोच में आज की पीढ़ी विश्वास नहीं रखती है. आए दिन होनेवाले तलाक़ की ख़बरों ने भी शादी के प्रति उनकी भावनाओं को बदल दिया है.
एकल परिवार
छोटे-छोटे परिवारों में (जहां स़िर्फ एक बेटी है) बेटियां पैरेंट्स की देखभाल की ज़िम्मेदारी को समझते हुए शादी का ़फैसलाजल्दी नहीं लेना चाहती हैं, बल्कि उन्हें ऐसे साथी की तलाश होती है, जो पैरेंंट्स की ज़िम्मेदारी के प्रति उनकी भावनाओं को समझे.
कमिटमेंट का डर
यंग जनरेशन आज कमिटमेंट से डरती है, किसी भी बंधन से कतराती है. उनकी अपनी वैल्यूज़ हैं, अपनी पसंद है. इसलिए इस मामले में वे ज़रा भी जल्दबाज़ी नहीं करना चाहते.
बड़ी उम में भी नॉर्मल चाइल्ड बर्थ
पहले कहा जाता था कि 25-30 तक की उम‘ में गर्भधारण कर लिया जाए तो हेल्दी बच्चा पैदा होता है और बड़ी उम‘ में गर्भधारण करने से होनेवाले शिशु के असामान्य होने की संभावना बढ़ जाती है. इस कारण समय से शादी करना ज़रूरी माना जाता था, लेकिन मेडिकल साइंस की नई टेक्नोलॉजी के चलते अब यह कोई बड़ी समस्या नहीं रह गई है.
पाश्चात्य प्रभाव
टीवी और इंटरनेट की दुनिया ने पूरे विश्व की संस्कृति को एक कर दिया है. आज हम संस्कृति भी एक्सचेंज कर रहे हैं. शादी को अब उम‘ से नहीं जोड़ा जाता है. 35-40 की उम‘ में भी आज शादियां होती हैं.
लड़के-लड़कियों की दोस्ती
आज यंग एज से ही इमोशनल सपोर्ट मिलने लगता है. पहले जिन भावनाओं का पूरक जीवनसाथी हुआ करता था, उसके लिए आज गर्लफ‘ेंड व बॉयफ‘ेंड हैं.
आदर्श साथी की तलाश
लड़कियों में मैच्योरिटी बढ़ गई है, लेकिन सहनशक्ति, त्याग व बलिदान जैसी भावनाएं कम हो रही हैं. वो ऐसा साथी चाहती हैं, जो उन्हें समझे. पैसा, स्टेटस जैसी चीज़ों के बावजूद वे साथी से इमोशनल सपोर्ट चाहती हैं.
इन कारणों के अतिरिक्त कुछ व्यक्तिगत कारण भी हो सकते हैं, जिनकी वजह से शादियां देर से होने लगी हैं. दूसरी ओर पैरेंट्स की सोच में भी बदलाव आया है, जैसे- कोई मां यदि अपने जीवन में मनचाहा नहीं कर पाई है तो उसकी पूरी कोशिश होती है कि उसकी बेटी उसकी महत्वाकांक्षाओं को पूरा कर सके. इसके लिए वह उसे हर प्रकार से सहयोग देती है.
- आज पैरेंट्स को अपने बच्चों पर भरोसा है. उनकी तरफ़ से भी बच्चों पर कोई प्रेशर नहीं होता है. पैरेंट्स बच्चों को पढ़ाई व करियर के प्रति प्रेरित करते हैं. जब तक लड़के-लड़कियां अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर लेते, शादी की चर्चा नहीं की जाती.
- पारिवारिक समारोह के दौरान अब ऐसा नहीं पूछा जाता कि ‘शादी कब हो रही है’, बल्कि हर कोई जानना चाहता है कि ‘बेटी क्या कर रही है’. बेटी की एजुकेशन या सफलता का ज़िक‘ करते समय पैरेंट्स गर्व महसूस करते हैं तो बच्चों का हौसला भी बढ़ता है, उनका दृष्टिकोण बदलता है.
- आज के पैरेंट्स अपनी बेटी की ख़ुशी के लिए परिवार-समाज के सामने झुकना ठीक नहीं समझते. उनके लिए उनकी बेटी की ख़ुुशियां सर्वोपरि होती हैं. हां, उन्हें चिंता ज़रूर होती है और वे चाहते भी हैं कि उनके जीते जी ही बेटी को सही साथी मिल जाए, क्योंकि उनके बाद बेटी को कौन सपोर्ट करेगा? बुढ़ापे में अकेली कैसे रहेगी? लेकिन बच्चों की ख़ुशी के आगे ये चिंताएं धरी की धरी रह जाती हैं और आख़िरी निर्णय वे अपने बच्चों पर ही छोड़ देते हैं.
वैवाहिक दोष और उन्हें दूर करने के उपाय (Marriage Problems And Their Astrological Solutions)
Share
5 min read
0Claps
+0
Share
सभी पैरेंट्स की ख़्वाहिश होती है कि उनके बच्चों की शादी सही उम्र और समय पर हो जाए, लेकिन कभी-कभी किसी ग्रह या नक्षत्र के कारण बात बनते-बनते रह जाती है, जिससे परिवार में काफ़ी तनाव रहता है, ऐसे में आप ये उपाय करके उन वैवाहिक दोषों को दूर कर सकते हैं. क्या हैं वो उपाय बता रहे हैं पंडित राजेंद्रजी दुबे.
जन्म कुंडली में दिए गए योग के अनुसार, विवाह का विचार मुख्य रूप से सप्तम भाव से किया जाता है. इस भाव से ही शादी के अलावा वैवाहिक जीवन से जुड़ी अन्य बातें, पति-पत्नी के आपसी संबंध, जुड़ाव, रिश्तों में मज़बूती आदि पर चिंतन-मनन किया जाता है. आइए, इससे जुड़े उपायों के बारे में जानते हैं.
- शनि की प्रतिकूल स्थिति से भी विवाह में बाधा आती है. शनि के कारण आनेवाली बाधा को दूर करने के लिए प्रत्येक शनिवार को शिव लिंग पर काले तिल अर्पित करना चाहिए.
- शनिवार को काले कपड़े में साबुत उड़द, लोहा, काला तिल और साबुन बांधकर दान करने से भी लाभ मिलता है.
- गुरू की स्थिति अनुकूल नहीं होने पर भी विवाह में देरी होती है. गुरू को अनुकूल बनाने के लिए गुरूवार के दिन पीला वस्त्र धारण करना चाहिए. चने की दान, केला, हल्दी एवं केसर का सेवन लाभप्रद होता है.
- जिन विवाह योग्य युवक-युवतियों का विवाह नहीं हो पा रहा है, उनको उत्तर या उत्तर-पश्चिम दिशा में स्थित कमरे में रहना चाहिए. इससे विवाह के लिए रिश्ते आने लगते हैं. उस कमरे में उन्हें सोते समय अपना सिर हमेशा पूर्व दिशा में रखना चाहिए.
- किसी कन्या की शादी हो रही हो तो उसमें अपनी क्षमता एवं श्रद्धा के अनुसार गुप्तदान करना भी बहुत फायदेमंद होता है. इससे जल्दी शादी होती है तथा वैवाहिक जीवन खुशहाल होता है, लेकिन दान की चर्चा कभी भी किसी से न करना चाहिए.
- गुरुवार को वट वृक्ष, पीपल, केले के वृक्ष पर जल अर्पित करने से विवाह बाधा दूर होती है.
- गुरुवार को विवाह योग्य लड़की को तकिए के नीचे हल्दी की गांठ पीले कपड़े में लपेटकर रखनी चाहिए.
- यदि लड़का या लड़की पीपल की जड़ में लगातार 13 दिन तक जल चढ़ाते हैं, तो विवाह से संबंधित परेशानियां दूर हो जाती हैं.
- जिस युवती की शादी में अड़चनें आ रही हों, उसे घर की वायव्य दिशा में सोना चाहिए.
- अविवाहित लड़के/लड़की को ऐसे कमरे में नहीं रहना चाहिए, जहां अधूरा काम किया हो यानी कमरे के पेंट, मरम्मत आदि का काम अधूरा पड़ा हो या जिस कमरे में बीम लटका हुआ दिखाई देता हो.
- कई बार ऐसा भी होता है कि कोई युवक या युवती शादी के लिए राजी नहीं होते हैं, तो उनके कमरे की उत्तर दिशा की ओर क्रिस्टल बॉल कांच की प्लेट में रखें.
- जिन विवाह योग्य युवक-युवतियों की शादी नहीं हो रही हो, उनके कमरे, बेडरूम व दरवाज़े का रंग गुलाबी, हल्का पीला या ब्राइट व्हाइट रंग का होना चाहिए. इससे स्थितियों में बदलाव आएगा.
- इसके अलावा उन्हें अपने कमरे में पूर्वोत्तर दिशा में वॉटर फाउंटेन रखना चाहिए.
- कुंआरी कन्याएं शीघ्र विवाह के लिए गुरुवार का व्रत करें. साथ ही केले के पेड़ के नीचे बैठकर बृहस्पति मंत्र के पाठ की एक माला का जाप करें.
- यदि कुंडली में प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, द्वादश स्थान में मंगल स्थित है, तो जातक को मंगली योग होता है. इस योग के होने से शादी में देरी, शादी के बाद कपल्स में मतभेद, वाद-विवाद आदि समस्याएं होती हैं.
- इससे बचने के लिए मंगली युवक या युवती मंगलवार का व्रत करें.
- मंगल मंत्र का जाप करें और घट विवाह करें.
- सप्तम में शनि स्थित होने से भी शादी-ब्याह में परेशानियां आती हैं.
- इसके लिए ‘शं शनैश्चराय नम:’ मंत्र का जाप करें.
- साथ ही शमी की लकड़ी, घी, शहद व मिश्री से हवन करें. अजब-ग़ज़ब टोटके
- योग्य दूल्हे की प्राप्ति के लिए बालकांड का पाठ करना श्रेयस्कर होता है.
- जब बेटी के पिता लड़केवालों से शादी की बात करने जाएं, तो बेटी बाल खुले रखे, तब तक जब तक पिता लौटकर घर न आ जाएं.
- जो माता-पिता यह सोचते हैं कि उनकी बहू सुंदर व बुद्धिमान हो, तो वे गुरुवार व रविवार को बेटे के नाख़ून काटकर किचन में चूल्हे पर जला दें.
- बेटी की शादी हो जाने के बाद विदाई के समय एक लोटे में गंगाजल, थोड़ी-सी हल्दी और एक सिक्का डालकर बेटी के सिर के ऊपर से सात बार घुमाकर उसके आगे फेंक दें. उसका वैवाहिक जीवन सुखी रहेगा.
शादी से पहले ही नहीं, बाद में भी ज़रूरी है फिट रहना (How To Stay Fit After Your Wedding)
Share
5 min read
0Claps
+0
Share
यह सच है कि शादी (Wedding) के कुछ समय बाद ही प्यार और रोमांस पर ज़िम्मेदारियों की जिल्द चढ़ने लगती है. ऐसे में रूमानी ख़्याल बीते दिनों की बात बनकर रह जाते हैं और उनकी जगह ले लेते हैं बिल्स, ख़र्चे, आटे-दाल के भाव, रिश्ते निभाने का दबाव, बच्चे, परवरिश, लोन आदि. यही वजह है कि मन के साथ-साथ शरीर पर भी ये ज़िम्मेदारियां परत बनकर मोटापे (Fats) व बीमारियों (Diseases) के रूप में उभरने लगती हैं. हम लापरवाह होते जाते हैं और कमर व पेट का साइज़ हमारी मौजूदा परिस्थिति, शादीशुदा ज़िंदगी, हेल्थ, फिटनेस और सेक्स लाइफ की पहचान बन जाते हैं.
हम अक्सर यही सोचते हैं कि जब तक शादी न हो जाए, तब तक हमारे लिए फिट रहना बहुत ज़रूरी है, ताकि हम अट्रैक्टिव लगें. शादी के बाद न स़िर्फ अपनी फिटनेस को लेकर, बल्कि हेल्थ और अट्रैक्शन को लेकर भी हमारी अप्रोच बहुत कैज़ुअल हो जाती है. चाहे लड़कियां हों या लड़के, सबका यही हाल होता है. शादी के शुरुआती समय को छोड़ दें, तो बाद में अपने प्रति इतने लापरवाह हो जाते हैं कि धीरे-धीरे एक-दूसरे के प्रति आकर्षण भी कम होने लगता है और इसका असर उनके रिश्ते व सेक्स लाइफ पर भी पड़ने लगता है.
क्यों हो जाते हैं बेपरवाह?
- शादी के बाद ज़िंदगी शुरू होती है, जबकि हमारी यह सोच बन जाती है कि अब तो शादी हो चुकी, अब कुछ करने के लिए बचा नहीं लाइफ में, तो हम में एक नीरसता पनपने लगती है.
- ज़िम्मेदारियों का बोझ जैसे-जैसे बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे हेल्थ, आकर्षण, फिटनेस, प्यार-मुहब्बत जैसी बातें गौण होने लगती हैं.
- कभी घर के लिए लोन की किश्तें, कभी बच्चों की फीस, तो कभी घर के बड़ों की हेल्थ प्रॉब्लम्स हमें अपने प्रति बेपरवाह बना देती हैं.
- करियर की चुनौतियां और तमाम तरह के तनावों के बीच हेल्थ और फिटनेस जैसी चीज़ों के लिए हमें समय निकालना समय की बर्बादी लगने लगती है.
- थकान, मोटापा और बेडौल बदन शादी के कुछ समय बाद ही हमारी पहचान बन जाते हैं.
- न कोई चार्म रहता है, न कोई ग्लैमर और न ही ऊर्जा.
क्यों ज़रूरी है फिटनेस?
- फिटनेस का प्रभाव आपके रिश्ते पर भी पड़ता है. शादी के बाद फिटनेस का ख़्याल रखना और भी ज़रूरी हो जाता है, क्योंकि इससे आप में यह एहसास बढ़ता है कि आप एक-दूसरे के लिए हेल्दी और आकर्षक नज़र आना चाहते हैं. इसके अलावा आप अधिक उत्साह व उमंग का अनुभव भी करते हैं.
- कुछ कपल्स पर किए गए एक सर्वे के अनुसार, फिटनेस पर ध्यान देने के बाद उन्हें यह महसूस हुआ कि फिटनेस से न केवल उनके व्यक्तित्व पर, बल्कि उनके आपसी रिश्ते पर सकारात्मक प्रभाव हुआ.
- जब कपल्स को यह महसूस कराया गया कि स़िर्फ हेल्दी रहने के लिए ही नहीं, बल्कि उन्हें अपने पार्टनर के लिए भी फिट रहना चाहिए, ताकि उनके बीच का चार्म बना रहे, तो उन्होंने इस सोच के साथ वर्कआउट और डायट करना शुरू किया कि यह कोई पर्सनल एजेंडा नहीं है, बल्कि यह रिश्ते में ताज़गी और गर्माहट बनाए रखने के लिए भी बेहद ज़रूरी है, तो वाकई उनका कॉन्फिडेंस बढ़ा और उनके रिश्ते भी सुधरे.
- कपल्स को यह कहा गया कि आप अपने पार्टनर से यह कहें कि मुझे तुम्हारे लिए फिट, हेल्दी और आकर्षक बने रहना है. इसके बाद उन्हें महसूस हुआ कि उनकी बॉन्डिंग और स्ट्रॉन्ग हुई.
- यह बात सही है कि शादी के कुछ समय बाद ही बहुत-सी चीज़ें बदलने लगती हैं. समय की कमी के साथ-साथ ऊर्जा व उत्साह की कमी भी होने लगती है. ऐसे में नीरसता पनपने लगती है, जो आप दोनों को एक-दूसरे से दूर भी कर सकती है. ऐसे में ज़रूरी है कि आप ख़ुद कोई रास्ता निकालें.
- अपना टाइमटेबल और शेड्यूल तैयार करें.
- एक डायरी बनाएं, जिसमें रोज़ की एक्टिविटीज़ और कैलोरीज़ की डिटेल्स रात को सोने से कुछ समय पहले नोट करें.
- हर संडे उस डायरी में नोट की हुई चीज़ों पर आपस में बातचीत करें और देखें कि कहां क्या कमी रह गई.
- सुबह जल्दी उठकर एक साथ वर्कआउट, वॉकिंग या जॉगिंग करें. इससे आप एक-दूसरे के साथ अधिक समय बिताएंगे.
- एक-दूसरे को चैलेंज और मोटिवेट करें कि कौन ज़्यादा फिट और एनर्जेटिक है.
- एक साथ वर्कआउट करने से पार्टनर एक-दूसरे के क़रीब आते हैं. दोनों में समन्वय व सामंजस्य बेहतर होता है, साथ ही शेयरिंग की भावना भी बढ़ती है.
- घर के काम मिल-जुलकर करें. इससे एक्सरसाइज़ भी हो जाएगी और बॉन्डिंग भी स्ट्रॉन्ग होगी.
- रियलिस्टिक गोल्स सेट करें. अगर आपको लग रहा है कि शादी के छह महीने बाद ही 4-5 किलो वज़न बढ़ गया है, तो कोशिश करें धीरे-धीरे डायट व रूटीन में बदलाव लाने की.
- घर में खाने के हेल्दी ऑप्शन्स रखें. अनहेल्दी स्नैक्स की जगह ड्रायफ्रूट्स, भुने चने, मूंगफली आदि रखें.
- हर महीने गोल बदलें कि अगले दो महीनों में कितना वज़न कम करना है और दोनों एक-दूसरे को चैलेंज करें.
- पार्टनर को मोटिवेट करने के लिए आप यह भी कर सकते हैं कि तुम्हारे बर्थडे या हमारी एनीवर्सरी तक अगर तुम इस आउटफिट में फिट आ गए, तो मैं तुम्हें गिफ्ट, पार्टी या हॉलीडे पर ले चलूंगा/चलूंगी.
- नियमित रूप से हेल्थ टेस्ट्स व चेकअप, जैसे- बीपी, ब्लड शुगर लेवल, कोलेस्ट्रॉल व अन्य टेस्ट्स करवाएं. बच्चे होने के बाद ख़ुद को महत्वहीन
न समझें
- अक्सर कपल्स बच्चे होने के बाद ख़ुद के प्रति और भी उदासीन हो जाते हैं. कभी-कभी ऐसा भी होता है कि एक पार्टनर ज़्यादा हेल्थ कॉन्शियस होता है, दूसरा बिल्कुल लापरवाह.
- ऐसे में आ