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घर-आंगन का शृंगार है बेटियां
रिश्तों का आधार है बेटियां
आज राष्ट्रीय बालिका दिवस यानी नेशनल गर्ल चाइल्ड डे पर देशभर में बालिकाओं को ख़ूब याद किया जा रहा है. आज के दिन को मनाने का विशेष प्रयोजन लड़कियों से जुड़ी भ्रांतियां, कन्या भ्रूण हत्या को रोकना, बेटियों को लेकर सभी में जागरूकता लाना आदि है. आज हम सभी को समझना होगा कि लड़कियां न केवल हमारा बेहतरीन आज है, बल्कि सुनहरा भविष्य भी हैं.
एकबारगी देखें, तो परवरिश, शिक्षा, खानपान से लेकर सम्मान, अधिकार, सुरक्षा आदि में बालिका शिशु के साथ भेदभाव किया जाता है. यहां तक की इलाज में भी असमानताएं बरती जाती है. इसलिए आज सभी को लड़का-लड़की में भेदभाव न करने और देश में व्याप्त लिंग अनुपात की असमानता को ठीक करने का प्रण लेना चाहिए, क्योंकि यह लिंगानुपात 933:1000 है.
इससे जुड़ी ख़ास बातों और सुर्ख़ियों पर नज़र डालते हैं…
* हर साल 24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है.
* इसकी शुरुआत 2009 से की गई.
* इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य-
– बालिका शिशु की भूमिका व महत्व के प्रति सभी को जागरूक करना है.
– देश में बाल लिंगानुपात को दूर करने के लिए काम करना है.
– कोशिश यह रहनी चाहिए कि हर बेटी को समाज में उचित मान-सम्मान मिलें.
– लड़कियों को उनका अधिकार प्राप्त हो.
– बालिका के पालन-पोषण, सेहत, पढ़ाई, अधिकार पर विचार-विमर्श करना और उल्लेखनीय क़दम उठाना.
* इस दिन देशभर में बालिकाओं को लेकर बने क़ानून के बारे में सभी को बताया जाता है.
* बाल-विवाह, घरेलू हिंसा, दहेज प्रताड़ना आदि को लेकर विचार किया जाता है और सार्थक पहल करने पर निर्णय लिया जाता है.
* आज ही के दिन बालिका शिशु बचाओ के संदेश द्वारा अख़बारों, रेडियो, टीवी आदि जगहों पर सरकार, एनजीओ, गैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा प्रचार-प्रसार किया जाता है.
* पिता और पुत्री में एक बात आम होती है कि दोनों ही अपनी गुड़िया को बहुत प्यार करते हैं…
* खिलती हुई कलियां हैं बेटियां, मां-बाप का दर्द समझती हैं बेटियां
घर को रोशन करती हैं बेटियां, लड़के आज हैं, तो आनेवाला कल है बेटियां…
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बालिका दिवस पर ख़ास कविताएं…
बहुत चंचल बहुत ख़ुशनुमा-सी होती हैं बेटियां
नाज़ुक-सा दिल रखती हैं, मासूम-सी होती हैं बेटियां
बात-बात पर रोती हैं, नादान-सी होती हैं बेटियां
रहमत से भरभूर खुदा की नेमत हैं बेटियां
हर घर महक उठता है, जहां मुस्कुराती हैं बेटिया
अजीब-सी तकलीफ़ होती है, जब दूर जाती हैं बेटियां
घर लगता है सूना-सूना पल-पल याद आती हैं बेटियां
ख़ुशी की झलक और हर बाबुल की लाड़ली होती हैं बेटियां
ये हम नहीं कहते ये तो रब कहता है कि जब मैं ख़ुश रहता हूं, जो जन्म लेती हैं बेटियां…
फूलों-सी नाज़ुक, चांद-सी उजली मेरी गुड़िया
मेरी तो अपनी एक बस, यही प्यारी-सी दुनिया
सरगम से लहक उठता मेरा आंगन
चलने से उसके, जब बजती पायलिया
जल तरंग-सी छिड़ जाती है
जब तुतलाती बोले, मेरी गुड़िया
गद-गद दिल मेरा हो जाए
बाबा-बाबा कहकर, लिपटे जब गुड़िया
कभी घोड़ा मुझे बनाकर, खुद सवारी करती गुड़िया
बड़ी भली-सी लगती है, जब मिट्टी में सनती गुड़िया
दफ्तर से जब लौटकर आऊं
दौड़कर पानी लाती गुड़िया
कभी जो मैं, उसकी माँ से लड़ जाऊं
ख़ूब डांटती नन्ही-सी गुड़िया
फिर दोनों में सुलह कराती
प्यारी-प्यारी बातों से गुड़िया
मेरी तो वो कमज़ोरी है, मेरी सांसों की डोरी है
प्यारी नन्ही-सी मेरी गुड़िया…
सच में कल, आज और कल का प्यार-स्नेह, दया-ममता, अपनापन व सुनहरा भविष्य हैं बेटियां…
– ऊषा गुप्ता

हर लड़की यह जानने के लिए उत्सुक रहती है कि आख़िर लड़के लड़कियों में कौन-सी ख़ूबी पसंद करते हैं. तो पेश हैं ऐसी ही कुछ ख़ास बातें, जिन्हें पुरुष (Men) स्त्रियों (Women) में देखना चाहते हैं.
1. समझदार
पुरुष हमेशा उसी से प्यार करता है, जो उसे और उसकी बातों को समझती और महसूस करती हो. उनकी बातों और ज़रूरतों को समझकर उनके ही तरी़के से उन्हें हैंडल करने की कोशिश करे. जितनी समझदार आप होंगी, उतना ही प्यार पाएंगी.
2. ख़ुशमिजाज़
बातों को हमेशा हंसकर ख़ुशी से स्वीकारें. यदि वे जोेक करते हैं, मज़ाक करते हैं तो आप भी वैसा ही करें. उनकी हर बात का जवाब आपके पास तैयार होना चाहिए. आप हाज़िरजवाब हों, ताकि अपने दोस्तों के बीच वे गर्व महसूस कर सकें.
3. सीधी बात
घुमा-फिराकर, लंबी-चौड़ी बातें करनेवाली महिलाएं पुरुषों को नहीं भातीं, इसलिए जो भी कहें ङ्गशॉर्ट एंड स्वीटफ होना चाहिए. यानी सीधी बात, मगर सौम्यता से.
4. आत्मविश्वास
ऐसी महिलाएं, जो घबराती नहीं और हर बात आत्मविश्वास से कहती व करती हैं, पुरुषों को बहुत पसंद आती हैं. अतः बातें सहज, पर आत्मविश्वास से भरी हों.
5. समर्पण
पुरुष समर्पण चाहता है. घर, बाहर, नाते-रिश्तेदारियां निभाने में और बिस्तर पर भी.
6. लचीलापन
किसी भी परिस्थिति में चाहे वह सुख की हो या दुःख की, बिना किसी शिकायत के ढल जाना पुरुषों को आकर्षित करता है.
7. देखभाल
उनकी, उनके आसपास के लोगों की और बच्चों की देखभाल करना, वो भी अपनी ज़रूरतों को नकारकर उन्हें आपके प्रति भावुक बना देती है.
8. ईमानदारी
अपने रिश्ते में ईमानदारी की उम्मीद हर पुरुष रखता है. ङ्गआप स़िर्फ उनकी हैंफ यह भावना उन्हें बेहद सुकून पहुंचाती है.
9. गर्मजोशी
भले ही आप थकी हों या परेशान हों, वजह जो भी हो, आपसे हमेशा ही गर्मजोशी की उम्मीद की जाती है. ख़ासकर दोस्तों, रिश्तेदारों व मेहमानों के सामने.
10. बुद्धिमानी
यही वह प्रमुख गुण है, जिसके बारे में ़ज़्यादा बात नहीं की जाती. परंतु ध्यान रहे, होशियार व बुद्धिमान महिलाओं से वे जीवनभर प्रभावित रहते हैं.
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11. सकारात्मक सोच
जीवन के प्रति सकारात्मक रुख, जो आपके आसपास के व्यक्ति को प्रभावित करता है और ऊर्जा से भर देता है, उन्हें पसंद आता है.
12. प्रेज़ेंटेबल
घर में भी हर समय प्ऱेजेंटेबल रहें. साफ़-सुथरे सली़केदार कपड़े पहनें, जो आंखों को अच्छे लगें. हल्का-सा पऱफ़्यूम लगाएं. इसके साथ हरदम मुस्कुराता हुआ चेहरा उनकी सारी थकान मिटा देगा, यानी अपने आपको संवारकर रखें.
13. सादगी
पुरुष अक्सर महिलाओं की सादगी की ओर आकर्षित होते हैं. उन्हें दिखावा पसंद नहीं. इसलिए अपने व्यवहार में सादगी रखें.
14. मीठे बोल
क़ड़वा कभी न बोलें, न ही ताने मारें. मधुर आवाज़ में मीठी बातें बोलें, ख़ासकर आनेवाले मेहमानों और ससुरालवालों से. इसे अपनी आदत में शुमार कर लें. ऐसी महिलाएं पुरुषों को आकर्षित करती हैं.
15. फ़िटनेस
शरीर का सुडौल होना बहुत ज़रूरी है. कुछ हल्के व्यायाम, योगासन, जिम व डाइट से आप अपने आप को फ़िट रख सकती हैं. सुडौल काया ख़ूबसूरती के साथ तंदुरुस्ती देगी और उनकी तारीफ़ भी.
16. साफ़-सुथरा घर
थके-हारे व्यक्ति को घर में ही सुकून मिलता है, परंतु यदि घर बिखरा हुआ, गंदा हो तो परेशानी व चिड़चिड़ापन बढ़ जाता है. साफ़-सुथरा सली़केदार घर सभी को आकर्षित करता है, फिर आपके पति को भी आपकी इस ख़ूबी पर नाज़ होगा.
17. स्वादिष्ट खाना
‘प्यार का रास्ता पेट से होकर जाता है’ यह कोरी कहावत नहीं, बल्कि हक़ीक़त है. खाने में प्यार उड़ेलें, स्वाद अपने आप आ जाएगा.
18. स्पेस बनाए रखें
हर बात में पूछताछ, टोकाटाकी या शक ठीक नहीं, स्पेस दें. ऐसी महिलाएं पुरुषों को अच्छी लगती हैं. अगर आप भी ऐसा करेंगी तो ज़िंदगी मज़े से गुज़रेगी.
19. आदर दें
आपकी बातों व व्यवहार में उनके प्रति सम्मान झलके. यही आदर अपनी सास और अन्य बड़ों के प्रति भी होना चाहिए.
20. उनमें रुचि लें
उनकी बातों व कामों में रुचि दिखाएं, भले ही उसमें आपकी दिलचस्पी न हो. ऐसी महिलाओं से पुरुष बहुत प्रभावित रहते हैं.
– डॉ. नेहा
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वेजाइनल लुब्रिकेंट्स के बारे में कितना जानती हैं आप? (How Much You Know About Vaginal Lubricants?)
पहले के मुकाबले अब लोग सेक्स और सेक्स से जुड़ी बातों पर खुलकर अपने विचार रखने लगे हैं. चाहे बात सेक्सुअल प्रॉब्लम्स की हो या फिर प्राइवेट पार्ट्स की क्लीनिंग और हाइजीन. और यह अच्छा भी है, क्योंकि पहले इन सब बातों को छुपाने के कारण ही महिलाओं को कई तरह की शारीरिक और मानसिक समस्याओं से गुज़रना पड़ता था. ऐसे में अब सेक्सुअल हाइजीन और सेक्स लाइफ को और बेहतर बनाने को लेकर महिलाएं जागरूक हो रही हैं. इसी को ध्यान में रखते हुए हम वेजाइनल लुब्रिकेंट्स के बारे में आपको बता रहे हैं, क्योंकि आज भी बहुत-सी महिलाएं वेजाइनल ड्राइनेस की समस्या से जूझती हैं, पर इस बारे में अधिक जानकारी के अभाव में कुछ ख़ास नहीं कर पातीं.
वेजाइनल हेल्थ
हालांकि महिलाओं को वेजाइनल हेल्थ के बहुत ज़्यादा एफर्ट नहीं लेने पड़ते, क्योंकि इसका सेल्फ क्लीनिंग सिस्टम इसे हेल्दी बनाए रखता है. इसके अलावा यह अपना पीएच बैलेंस भी स्वयं बनाए रखती है, पर बात जब लुब्रिकेशन की आती है, तो इसे आपकी मदद की ज़रूरत पड़ती है.
वेजाइनल लुब्रिकेंट्स की ज़रूरत किसे पड़ती है?
वेजाइनल ड्राईनेस की समस्या हर उम्र की महिला को परेशान करती है. इसके कई कारण हैं, जैसे-
– कामोत्तेजना की कमी
– केमिकलयुक्त प्रोडक्ट्स, जैसे- हार्श सोप आदि का अधिक इस्तेमाल
– दवाइयों का साइड इफेक्ट
– नियमित टैम्पोन का इस्तेमाल
– हिस्टेरेक्टॉमी
– कीमोथेरेपी
– मेनोपॉज़
– वेजाइना के जिस अंदरूनी भाग से उसका प्रोडक्शन होता है, वहां ड्राइनेस आ जाना.
वेजाइना का नेचुरल लुब्रिकेशन किस तरह काम करता है?
महिलाओं के शरीर से दो तरह के लुब्रिकेशन निकलते हैं-
1. रेग्युलर वेजाइनल मेंटेनेंस के लिए
2. कामोत्तेजना के दौरान सेक्सुअल एक्टिविटी को बेहतर बनाने के लिए
लुब्रिकेंट्स के प्रकार
लुब्रिकेंट्स तीन तरह के होते हैं-
1. वॉटर बेस्ड
2. ऑयल बेस्ड
3. सिलिकॉन बेस्ड
अगर आपको किसी एक लुब्रिकेशन से एलर्जी की शिकायत हो, तो आप दूसरा ऑप्शन ट्राई कर सकती हैं या फिर डॉक्टर की सलाह लें.
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आज शायद ही ऐसी कोई कंपनी, कारखाना, दफ़्तर या फिर दुकान हो, जहां महिलाएं काम न करती हों. आर्थिक मजबूरी कहें या आर्थिक आत्मनिर्भरता- महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हैं, पर फिर भी सेक्सुअल हरासमेंट, कम सैलरी, मैटर्निटी लीव न देना या फिर देर रात तक काम करवाने जैसी कई द़िक्क़तों से महिलाओं को दो-चार होना पड़ता है. आपके साथ ऐसा न हो, इसलिए आपको भी पता होने चाहिए वर्किंग वुमन्स के ये अधिकार.
मैटर्निटी बेनीफिट एक्ट में मिले अधिकार
मैटर्निटी एक्ट के बावजूद आज भी बहुत-सी महिलाएं डिलीवरी के बाद नौकरी पर वापस नहीं लौट पातीं. कारण डिलीवरी के बाद बच्चे की देखभाल के लिए क्रेच की सुविधा न होना है, जबकि द मैटर्निटी बेनीफिट अमेंडमेंट एक्ट 2017 में क्रेच की सुविधा पर ख़ास ज़ोर दिया गया है, ताकि महिलाएं नौकरी छोड़ने पर मजबूर न हों.
पेशे से अध्यापिका विभिता अभिलाष ने अपना अनुभव बताते हुए कहा कि जब वो पहली बार मां बननेवाली थीं, तब डिलीवरी के मात्र एक महीने पहले उन्हें अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी, क्योंकि उनके स्कूल ने उनके बच्चे के लिए क्रेच की कोई सुविधा मुहैया नहीं कराई थी. विभिता की ही तरह बहुत-सी महिलाएं डिलीवरी से पहले ही नौकरी छोड़ देती हैं, ताकि बच्चे की देखभाल अच्छी तरह कर सकें. अगर ऐसा ही होता रहा, तो देश की आधी आबादी को आर्थिक आत्मनिर्भरता देने का सपना अधूरा ही रह जाएगा. वर्किंग वुमन होने के नाते आपको अपने मैटर्निटी बेनीफिट्स के बारे में पता होना चाहिए.
– आपको यह जानकर हैरानी होगी कि पूरी दुनिया में स्वीडन एक ऐसा देश है, जहां सबसे ज़्यादा मैटर्निटी लीव मिलती है. यह लीव 56 हफ़्ते की है यानी 12 महीने 3 हफ़्ते और 5 दिन. हमारे देश में भी महिलाओं को 26 हफ़्तों की मैटर्निटी लीव मिलती है. आइए जानें, इस लीव से जुड़े सभी नियम-क़ायदे.
– हर उस कंपनी, फैक्टरी, प्लांटेशन, संस्थान या दुकान में जहां 10 या 10 से ज़्यादा लोग काम करते हैं, वहां की महिलाओं को मैटर्निटी बेनीफिट एक्ट का फ़ायदा मिलेगा.
– अगर किसी महिला ने पिछले 12 महीनों में उस कंपनी या संस्थान में बतौर कर्मचारी 80 दिनों तक काम किया है, तो उसे मैटर्निटी लीव का फ़ायदा मिलेगा. इसका कैलकुलेशन आपकी डिलीवरी डेट के मुताबिक़ किया जाता है. आपकी डिलीवरी डेट से 12 महीने पहले तक का आपका रिकॉर्ड उस कंपनी में होना चाहिए.
– प्रेग्नेंसी के दौरान कोई भी कंपनी या संस्थान किसी भी महिला को नौकरी से निकाल नहीं सकता. अगर आपकी प्रेग्नेंसी की वजह से आप पर इस्तीफ़ा देने का दबाव बनाया जा रहा है, तो तुरंत अपने नज़दीकी लेबर ऑफिस से संपर्क करें. लेबर ऑफिसर को मिलकर अपने मेडिकल सर्टिफिकेट और अपॉइंटमेंट लेटर की कॉपी दें.
– जहां पहले महिलाओं को डिलीवरी के 6 हफ़्ते पहले से छुट्टी मिल सकती थी, वहीं अब वो 8 हफ़्ते पहले मैटर्निटी लीव पर जा सकती हैं.
– हालांकि तीसरे बच्चे के लिए आपको स़िर्फ 12 हफ़्तों की लीव मिलेगी और प्रीनैटल लीव भी आप 6 हफ़्ते पहले से ही ले सकेंगी.
– अगर आप 3 साल से छोटे बच्चे को गोद ले रही हैं, तो भी आपको 12 हफ़्तों की मैटर्निटी लीव मिलेगी.
– 26 हफ़्ते की लीव के बाद अगर महिला वर्क फ्रॉम होम करना चाहती है, तो वह अपनी कंपनी से बात करके ऐसा कर सकती है. यहां आपका कॉन्ट्रैक्ट महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा.
– मैटर्निटी बेनीफिट एक्ट में यह भी अनिवार्य किया गया है कि अगर किसी कंपनी या संस्थान में 50 या 50 से अधिक कर्मचारी हैं, तो कंपनी को ऑफिस के नज़दीक ही क्रेच की सुविधा भी देनी होगी, जहां मां को 4 बार बच्चे को देखने जाने की सुविधा मिलेगी.
– बच्चे के 15 महीने होने तक मां को दूध पिलाने के लिए ऑफिस में 2 ब्रेक भी मिलेगा.
– अगर दुर्भाग्यवश किसी महिला का गर्भपात हो जाता है, तो उसे 6 हफ़्तों की लीव मिलेगी, जो उसके गर्भपातवाले दिन से शुरू होगी.
– अगर प्रेग्नेंसी के कारण या डिलीवरी के बाद महिला को कोई हेल्थ प्रॉब्लम हो जाती है या फिर उसकी प्रीमैच्योर डिलीवरी होती है, तो उसे 1 महीने की छुट्टी मिलेगी.
– सरोगेट मदर्स और कमीशनिंग मदर्स (जो सरोगेसी करवा रही हैं) को भी 12 हफ़्तों की मैटर्निटी लीव का अधिकार मिला है. यह लीव उस दिन से शुरू होगी, जिस दिन उन्हें बच्चा सौंप दिया जाएगा.
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वर्कप्लेस पर सेक्सुअल हरासमेंट से सुरक्षा
इंडियन नेशनल बार एसोसिएशन द्वारा किए गए सर्वे में इस बात का खुलासा हुआ है कि सेक्सुअल हरासमेंट ऑफ वुमन ऐट वर्कप्लेस एक्ट, 2013 के बावजूद आज भी सेक्सुअल हरासमेंट हर इंडस्ट्री, हर सेक्टर में जारी है. सर्वे में यह बात सामने आई कि आज भी 38% महिलाएं इसका शिकार होती हैं, जिसमें सबसे ज़्यादा चौंकानेवाली बात यह है कि उनमें से 89.9% महिलाओं ने कभी इसकी शिकायत ही नहीं की. कहीं डर, कहीं संकोच, तो कहीं आत्मविश्वास की कमी के कारण वो अपने अधिकारों के लिए नहीं लड़ीं, लेकिन आप अपने साथ ऐसा न होने दें. अपने अधिकारों के प्रति जागरूक बनें और जानें अपने अधिकार.
– किसी भी कंपनी/संस्थान में अगर 10 या 10 से ज़्यादा कर्मचारी कार्यरत हैं, तो उनके लिए इंटरनल कंप्लेंट कमिटी (आईसीसी) बनाना अनिवार्य है.
– चाहे आप पार्ट टाइम, फुल टाइम या बतौर इंटर्न ही क्यों न किसी कंपनी या संस्थान में कार्यरत हैं, आपको सेक्सुअल हरासमेंट ऑफ वुमन ऐट वर्कप्लेस एक्ट, 2013 के तहत सुरक्षित माहौल मिलना आपका अधिकार है.
– स़िर्फ कंपनी या ऑफिस ही नहीं, बल्कि किसी ग़ैरसरकारी संस्थान, फर्म या घर/आवास में भी काम करनेवाली महिलाओं को इस एक्ट के तहत सुरक्षा का अधिकार मिला है यानी आप कहीं भी काम करती हों, कुछ भी काम करती हों, कोई आपका शारीरिक शोषण नहीं कर सकता.
– अगर आपको लगता है कि कोई शब्दों के ज़रिए या सांकेतिक भाषा में आपसे सेक्सुअल फेवर की मांग कर रहा है, तो आप उसकी लिखित शिकायत ऑफिस की आईसीसी में तुरंत करें.
– हालांकि आपको पूरा अधिकार है कि आप घटना के 3 महीने के भीतर कभी भी शिकायत दर्ज कर सकती हैं, पर जितनी जल्दी शिकायत करेंगी, उतना ही अच्छा है.
– सरकारी नौकरी करनेवाली महिलाएं जांच के दौरान अगर ऑफिस नहीं जाना चाहतीं, तो उन्हें पूरा अधिकार है कि वे तीन महीने की पेड लीव ले सकती हैं. यह छुट्टी उन्हें सालाना मिलनेवाली छुट्टी से अलग होगी.
– आप अपने एंप्लॉयर से कहकर कंपनी के किसी और ब्रांच में अपना या उस व्यक्ति का ट्रांसफर करा सकती हैं.
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समान वेतन का अधिकार
ऐसा क्यों होता है कि एक ही ऑफिस में एक ही पद पर काम करनेवाले महिला-पुरुष कर्मचारियों को वेतन के मामले में अलग-अलग नज़रिए से देखा जाता है? महिलाओं को ख़ुद को साबित करने के लिए दुगुनी मेहनत करनी पड़ती है, पर बावजूद इसके जब उन्हें प्रमोशन मिलता है, तो वही पुरुष कलीग महिला के चरित्र पर उंगली उठाने से बाज़ नहीं आते. पुरुषों को प्रमोशन मिले, तो उनकी मेहनत और महिलाओं को मिले, तो महिला होने का फ़ायदा, कैसी विचित्र मानसिकता है हमारे समाज की.
– ऐसा नहीं है कि यह स़िर्फ हमारे देश की समस्या है, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी महिलाएं इसका विरोध कर रही हैं यानी दुनिया के दूसरे देशों में भी वेतन के मामले में लिंग के आधार पर पक्षपात किया जाता है.
– हाल ही में चीन की एक इंटरनेशनल मीडिया हाउस की एडिटर ने स़िर्फ इसलिए अपनी नौकरी छोड़ दी, क्योंकि उनके ही स्तर के पुरुष कर्मचारी को उनसे अधिक वेतन दिया जा रहा था.
– यह ऐसा एक मामला नहीं है, समय-समय पर आपको ऐसी कई ख़बरें देखने-सुनने को मिलती रहती हैं, जब ‘इक्वल पे फॉर इक्वल वर्क’ बस मज़ाक बनकर रह जाता है.
– हमारे देश में भी पुरुषों और महिलाओं को समान वेतन के लिए ‘इक्वल पे फॉर इक्वल वर्क’ का अधिकार है, जो इक्वल रेम्यूनरेशन एक्ट, 1976 में दिया गया है.
– एक्ट के मुताबिक़, अगर महिला और पुरुष एक जैसा काम कर रहे हैं, तो एम्प्लॉयर को उन्हें समान वेतन देना होगा.
– नौकरी पर रखते समय भी एम्प्लॉयर महिला और पुरुष में लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकता.
– दरअसल, बहुत से एम्प्लॉयर जानबूझकर पुरुषों को नौकरी देते हैं, ताकि उन्हें मैटर्निटी लीव न देनी पड़े.
– हालांकि इसके लिए कई महिलाओं ने लड़ाई लड़ी और जीती भी हैं. अगर आपको भी लगता है, आपके ऑफिस में आप ही के समान काम करनेवाले पुरुष को आपसे अधिक तनख़्वाह मिल रही है, तो आप भी अपने अधिकार के लिए आवाज़ उठा सकती हैं.
– पहले ऑफिस में मामला सुलझाने की कोशिश करें, अगर ऐसा न हो, तो कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाने से हिचकिचाएं नहीं.
काम की अवधि/समय
– फैक्टरीज़ एक्ट के मुताबिक़ किसी भी फैक्टरी में रात 7 बजे से सुबह 6 बजे तक महिलाओं का काम करना वर्जित है. लेकिन कमर्शियल संस्थान, जैसे- आईटी कंपनीज़, होटेल्स, मीडिया हाउस आदि के लिए इसमें छूट मिली है, जिसे रात 10 बजे से लेकर सुबह 5 बजे तक के लिए बढ़ा दिया गया है.
– किसी भी महिला के लिए वर्किंग आवर्स 9 घंटे से ज़्यादा नहीं हो सकते यानी हफ़्ते में 48 घंटे से ज़्यादा आपसे काम नहीं कराया जा सकता. अगर इससे ज़्यादा काम आपको दिया जा रहा है, तो आपको ओवरटाइम के हिसाब से पैसे मिलने चाहिए.
– किसी भी महिला कर्मचारी से महीने में 15 दिन से ज़्यादा नाइट शिफ्ट नहीं कराई जा सकती.
– रात 8.30 बजे से सुबह 6 बजे तक महिला कर्मचारी को कंपनी की तरफ़ से ट्रांसपोर्ट आदि की सुविधा मिलनी चाहिए.
– साप्ताहिक छुट्टी के अलावा कुछ सालाना छुट्टियां भी मिलेंगी, जिन्हें आप अपनी सहूलियत के अनुसार ले सकती हैं.
– अगर कोई कंपनी रात में देर तक महिला कर्मचारियों से काम करवाना चाहती है, तो उन्हें सिक्योरिटी से लेकर तमाम सुविधाएं देनी पड़ेंगी.
कुछ और अधिकार
– सभी महिलाओं को वर्कप्लेस पर साफ़-सुथरा माहौल, पीने का साफ़ पानी, सही वेंटिलेशन, लाइटिंग की सुविधा सही तरी़के से मिलनी चाहिए.
– अगर कोई महिला ओवरटाइम करती है, तो उसे उतने घंटों की दुगुनी सैलेरी मिलेगी.
– जॉब जॉइन करने से पहले आपको अपॉइंटमेंट लेटर मिलना चाहिए, जिसमें सभी नियम-शर्ते, सैलेरी शीट सब साफ़-साफ़ लिखे हों.
– किसी भी महिला कर्मचारी को ग्रैच्युटी और प्रॉविडेंट फंड की सुविधा से वंचित नहीं किया जा सकता.
– एम्प्लॉइज स्टेट इंश्योरेंस एक्ट के तहत सभी कर्मचारियों के हेल्थ को कवर किया जाता है. ईएसआई के अलावा कंपनी सभी कर्मचारियों का हेल्थ इंश्योरेंस भी करवाती है, ताकि किसी मेडिकल इमर्जेंसी में उन्हें आर्थिक मदद मिल सके.
– अनीता सिंह
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भावी पति को लेकर हर लड़की की पसंद अलग-अलग हो सकती है, पर ऐसी कुछ बातें व विशेषताएं होती हैं, जिन्हें हर लड़की अपने होनेवाले पति में ढूंढ़ती (Qualities Every Woman Look For In A Husband) है. आइए, उन दिलचस्प पहलुओं के बारे में जानते हैं.
1. तक़रीबन हर तीसरी लड़की की यह ख़्वाहिश ज़रूर होती है कि उसका हसबैंड स्मार्ट व गुड लुकिंग हो. वे गुण पर कम, रूप पर अधिक आकर्षित होती हैं, इसलिए उनकी इस खोज में सुंदर लड़का होना टॉप मोस्ट डिमांड पर होता है.
2. हर किसी के लिए रिश्ते में केयरिंग नेचर का होना सर्वोपरि होता है. यही लड़कियों में भी देखा गया है. उनकी शिद्दत से यह चाह रहती है कि उनका पति उनका ख़्याल रखे. उन्हें लाड़ करे, एक तरह से पैंपर करे. यानी लड़कियां केयरिंग नेचर के लड़के को अधिक महत्व देती हैं.
3. हर लड़की यह ज़रूर देखती है कि उसका पति कमाऊ हो यानी अच्छी नौकरी या फिर बिज़नेस करता हो. भावी जीवन में मज़बूत आर्थिक स्थिति का होना उनके लिए बहुत ज़रूरी होता है. वे अपने भविष्य को सुनिश्चित करने के लिए अच्छे सेटल्ड यानी नौकरीपेशा लड़कों को अधिक पसंद करती हैं.
4. वैसे आजकल की लड़कियां ख़ुशमिज़ाज लड़कों को भी अधिक महत्व देती हैं. उनका यह मानना है कि लड़का ज़िंदादिल व हंसमुख होगा, तो ज़िंदगी मज़े से हंसते–हंसते कट जाएगी.
5. यदि पतिदेव घूमने के शौक़ीन हैं, तो पत्नी के लिए ज़िंदगी का सफ़र मौज–मस्ती के साथ गुज़ारना आसान हो जाता है. इसलिए लड़कियों की यह दिली ख़्वाहिश होती है कि उनके भावी पति को घूमने का शौक़ ज़रूर हो, ताकि वे भी समय–समय पर घूमते–फिरते ज़िंदगी के लुत्फ़ उठा सकें.
6. लड़कियां मैनर्स व एटीकेट्स को भी गंभीरता से लेती हैं. जो लड़के शालीन स्वभाव के होते हैं और जगह व व्यक्ति के अनुसार उन्हें उचित मान–सम्मान देते हैं, ऐसे व्यक्तित्ववाले लड़के उन्हें अधिक आकर्षित करते हैं.
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7. लड़कियां अपने पार्टनर में इमोशनल फैक्टर को भी ख़ूब देखती हैं. यदि पति संवेदनशील होंगे, तभी तो पत्नी की भावनाओं व दुख–दर्द को भलीभांति समझ सकेंगे. यही ख़्याल उन्हें अपने पार्टनर में इमोशंस को देखने के लिए मजबूर करता है.
8. रिश्तों की कद्र करनेवाले और जीवनसाथी को पर्याप्त समय देनेवाले लड़के की ख़्वाहिश भी लड़कियों में होती है. यदि पतिदेव ऑफिस के कामों व टूर में ही बिज़ी रहेंगे, तो भला पत्नी को कितना वक़्त दे पाएंगे. इसलिए जो पुरुष रिश्तों की गरिमा को बनाए रखते हैं और पार्टनर को भी क्वालिटी टाइम देते रहते हैं, ऐसे पार्टनर पत्नी को बेहद पसंद आते हैं.
9. पत्नी का सम्मान करनेवाले और उसकी बातों को भी अहमियत देनेवाले साथी की चाह भी ख़ूब होती है. अधिकतर घरों में देखा गया है कि पति महाशय घरेलू मामलों को छोड़कर अन्य आर्थिक मामलों मेंं पत्नी को उतना तवज्जो नहीं देते, जितना कि देना चाहिए. ऐसे में लड़कियां यह ज़रूर चाहती हैं कि घर–बाहर हर मामले में पति उनकी बातों को भी अहमियत दें. ऐसे शख़्स से वे बहुत अधिक प्रभावित होती हैं.
10. व्यक्तिगत स्पेस देनेवाले पार्टनर को हर लड़की पसंद करती है. उन्हें ऐसे पति पसंद हैं, जो हर समय पत्नी पर रोक–टोक नहीं लगाते, जासूसी नहीं करते, उनकी सहेलियों से मिलने की पूरी आज़ादी देते हैं, मायके जाने पर अधिक पाबंदी नहीं लगाते.
– ऊषा गुप्ता
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– अरे सुनो, वो जो पड़ोस की वर्माजी की बेटी है न, वो रोज़ देर रात को घर लौटती है, पता नहीं ऐसा कौन–सा काम करती है…?
– गुप्ताजी की बीवी को देखा, कितना बन–ठन के रहती हैं, जबकि अभी–अभी उनके जीजाजी का देहांत हुआ है…!
– सुनीता को देख आज बॉस के साथ मीटिंग है, तो नए कपड़े और ओवर मेकअप करके आई है…
इस तरह की बातें हमारे आसपास भी होती हैं और ये रोज़ की ही बात है. कभी जाने–अनजाने, तो कभी जानबूझकर, तो कभी टाइमपास और फन के नाम पर हम अक्सर दूसरों के बारे में अपनी राय बनाते–बिगाड़ते हैं और उनकी ज़िंदगी में ताकझांक भी करते हैं. यह धीरे–धीरे हमारी आदत और फिर हमारा स्वभाव बनता जाता है. कहीं आप भी तो उन लोगों में से नहीं, जो इस तरह का शौक़ रखते हैं?
क्यों करते हैं हम ताकझांक?
– ये इंसानी स्वभाव का हिस्सा है कि हम जिज्ञासावश लोगों के बारे में जानना चाहते हैं. ये जिज्ञासा जब हद से ज़्यादा बढ़ जाती है, तो वो बेवजह की ताकझांक में बदल जाती है.
– अक्सर अपनी कमज़ोरियां छिपाने के लिए हम दूसरों में कमियां निकालने लगते हैं. यह एक तरह से ख़ुद को भ्रमित करने जैसा होता है कि हम तो परफेक्ट हैं, हमारे बच्चे तो सबसे अनुशासित हैं, दूसरों में ही कमियां हैं.
– कभी–कभी हमारे पास इतना खाली समय होता है कि उसे काटने के लिए यही चीज़ सबसे सही लगती है कि देखें आसपास क्या चल रहा है.
– दूसरों के बारे में राय बनाना बहुत आसान लगता है, हम बिना सोचे–समझे उन्हें जज करने लगते हैं और फिर हमें यह काम मज़ेदार लगने लगता है.
– इंसानी स्वभाव में ईर्ष्या भी होती है. हम ईर्ष्यावश भी ऐसा करते हैं. किसी की ज़्यादा कामयाबी, काबिलीयत हमसे बर्दाश्त नहीं होती, तो हम उसकी ज़िंदगी में झांककर उसकी कमज़ोरियां ढूंढ़ने की कोशिश करने लगते हैं और अपनी राय बना लेते हैं.
– इससे एक तरह की संतुष्टि मिलती है कि हम कामयाब नहीं हो पाए, क्योंकि हम उसकी तरह ग़लत रास्ते पर नहीं चले, हम उसकी तरह देर रात तक घर से बाहर नहीं रहते, हम उसकी तरह सीनियर को रिझाते नहीं… आदि.
– कहीं न कहीं हमारी हीनभावना भी हमें इस तरह का व्यवहार करने को मजूबर करती है. हम ख़ुद को सामनेवाले से बेहतर व श्रेष्ठ बताने के चक्कर में ऐसा करने लगते हैं.
– हमारा पास्ट एक्सपीरियंस भी हमें यह सब सिखाता है. हम अपने परिवार में यही देखते आए होते हैं, कभी गॉसिप के नाम पर, कभी ताने देने के तौर पर, तो कभी सामनेवाले को नीचा दिखाने के लिए उसकी ज़िंदगी के राज़ या कोई भी ऐसी बात जानने की कोशिश करते हैं. यही सब हम भी सीखते हैं और आगे चलकर ऐसा ही व्यवहार करते हैं.
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कहां तक जायज़ है यूं दूसरों की ज़िंदगी में झांकना?
– इसे जायज़ तो नहीं ठहराया जा सकता है, लेकिन चूंकि यह इंसानी स्वभाव का हिस्सा है, तो इसे पूरी तरह से बंद भी नहीं किया जा सकता.
– किसी की ज़िंदगी में झांकने का अर्थ है आप उसकी प्राइवेसी में दख़लअंदाज़ी कर रहे हैं, जो कि बिल्कुल ग़लत है.
– न स़िर्फ ये ग़लत है, बल्कि क़ानूनन जुर्म भी है.
– हमें यह नहीं पता होता कि सामनेवाला किन परिस्थितियों में है, वो क्या और क्यों कर रहा है, हम महज़ अपने मज़े के लिए उसके सम्मान के साथ खिलवाड़ करने लगते हैं.
– ये शिष्टाचार के ख़िलाफ़ भी है और एक तरह से इंसानियत के ख़िलाफ़ भी कि हम बेवजह दूसरों की निजी ज़िंदगी में झांकें.
– जिस तरह हम यह मानते हैं कि हमारी ज़िंदगी पर हमारा हक़ है, किसी और को हमारे बारे में राय कायम करने या ग़लत तरह से प्रचार करने का अधिकार नहीं है, उसी तरह ये नियम हम पर भी तो लागू होते हैं.
– लेकिन अक्सर हम अपने अधिकार तो याद रखते हैं, पर अपनी सीमा, अपने कर्त्तव्य, अपनी मर्यादा भूल जाते हैं.
– यदि हमारे किसी भी कृत्य से किसी के मान–सम्मान, स्वतंत्रता या मर्यादा को ठेस पहुंचती है, तो वो जायज़ नहीं.
– किसने क्या कपड़े पहने हैं, कौन कितनी देर रात घर लौटता है या किसके घर में किसका आना–जाना लगा रहता है– इन तमाम बातों से हमें किसी के चरित्र निर्माण का हक़ नहीं मिल जाता है.
– हम जब संस्कारों की बात करते हैं, तो सबसे पहले हमें अपने ही संस्कार देखने चाहिए. क्या वो हमें यह इजाज़त देते हैं कि दूसरों की ज़िंदगी में इतनी
ताका–झांकी करें?
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कैसे सुधारें ये ग़लत आदत?
– किसी के बारे में फ़ौरन राय न कायम कर लें और न ही उसका प्रचार–प्रसार आस–पड़ोस में करें.
– बेहतर होगा यदि इतना ही शौक़ है दूसरों के बारे में जानने का, तो पहले सही बात का पता लगाएं.
– ख़ुद को उस व्यक्ति की जगह रखकर देखें.
– उसकी परवरिश से लेकर उसकी परिस्थितियां व हालात समझने का प्रयास करें.
– दूसरों के प्रति उतने ही संवेदनशील बनें, जितने अपने प्रति रहते हैं.
– अपनी ईर्ष्या व हीनभावना से ऊपर उठकर लोगों को देखें.
– यह न भूलें कि हमारे बारे में भी लोग इसी तरह से राय कायम कर सकते हैं. हमें कैसा लगेगा, यदि कोई हमारी ज़िंदगी में इतनी ताकझांक करे?
– सच तो यह है कि वर्माजी की बेटी मीडिया में काम करती है, उसकी लेट नाइट शिफ्ट होती है, इसीलिए देर से आती है.
– गुप्ताजी की बीवी सज–संवरकर इसलिए रहती है कि उसकी बहन ने ही कहा था कि उसके जीजाजी बेहद ज़िंदादिल और ख़ुशमिज़ाज इंसान थे और वो नहीं चाहते थे कि उनके जाने के बाद कोई भी दुखी होकर उनकी याद में आंसू बहाये, बल्कि सब हंसी–ख़ुशी उन्हें याद करें. इसलिए सबने यह निर्णय लिया कि सभी उनकी इच्छा का सम्मान करेंगे.
– सुनीता का सच यह था कि आज उसकी शादी की सालगिरह भी है, इसलिए वो नए कपड़े और मेकअप में नज़र आ रही है.
…ये मात्र चंद उदाहरण हैं, लेकिन इन्हीं में कहीं न कहीं हम सबकी सच्चाई छिपी है. बेहतर होगा हम बेहतर व सुलझे हुए इंसान बनें, क्योंकि आख़िर हमसे ही तो परिवार, परिवार से समाज, समाज से देश और देश से दुनिया बनती है. जैसी हमारी सोच होगी, वैसी ही हमारी दुनिया भी होगी. अपनी दुनिया को बेहतर बनाने के लिए सोच को भी बेहतर बनाना होगा.
– विजयलक्ष्मी
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मैं ख़्वाब नहीं, हक़ीक़त हूं… मैं ख़्वाहिश नहीं, एक मुकम्मल जहां हूं… किसी की बेटी, बहन या अर्द्धांगिनी बनने से पहले मैं अपने आप में संपूर्ण आसमान हूं, क्योंकि मैं एक व्यक्ति हूं, व्यक्तित्व हूं और मेरा भी अस्तित्व है… मुझमें संवेदनाएं हैं, भावनाएं हैं, जो यह साबित करती हैं कि मैं भी इंसान हूं…
जी हां, एक स्त्री को हम पहले स्त्री और बाद में इंसान के रूप में देखते हैं या फिर यह भी हो सकता है कि हम उसे स़िर्फ और स़िर्फ एक स्त्री ही समझते हैं… उसके अलग अस्तित्व को, उसके अलग व्यक्तित्व को शायद ही हम देख-समझ पाते हैं. यही वजह है कि उसे हम एक शगुन समझने लगते हैं. कभी उसे अपना लकी चार्म बना लेते हैं, तो कभी उसे शापित घोषित करके अपनी असफलताओं को उस पर थोपने का प्रयास करते हैं…
…बहू के क़दम कितने शुभ हैं, घर में आते ही बेटे की तऱक्क़ी हो गई… बेटी नहीं, लक्ष्मी हुई है, इसके पैदा होते ही बिज़नेस कितना तेज़ी से बढ़ने लगा है… अक्सर इस तरह के जुमले हम अपने समाज में सुनते भी हैं और ख़ुद कहते भी हैं… ठीक इसके विपरीत जब कभी कोई दुखद घटना या दुर्घटना हो जाती है, तो भी हम कुछ इस तरह की बातें कहते-सुनते हैं… इस लड़की के क़दम ही शुभ नहीं हैं, पैदा होते ही यह सब हो गया या फिर ससुराल में नई बहू के आने पर यदि कोई दुर्घटना हो जाती है, तब भी इसी तरह की बातें कहने-सुनने को मिलती हैं. कुल मिलाकर बात यही है कि हर घटना को किसी स्त्री के शुभ-अशुभ क़दमों से जोड़कर देखा जाता है और आज हम इसी की चर्चा करेंगे कि यह कहां तक जायज़ है?
– अगर किसी सेलिब्रिटी की लाइफ में कोई लड़की आती है, तो उसकी हर कामयाबी या नाकामयाबी को उस लड़की से जोड़कर देखा जाने लगता है. ऐसे कई उदाहरण हमने देखे हैं, फिर चाहे वो क्रिकेटर हो या कोई एक्टर, उनकी परफॉर्मेंस को हम उस लड़की को पैमाना बनाकर जज करने लगते हैं.
– यहां तक कि हम ख़ुद भी बहुत ही सूक्ष्म स्तर पर यह सब करते हैं, चाहे जान-बूझकर न करें, लेकिन यह हमारी मानसिकता बन चुकी है. श्र हम ख़ुद भी बहुत गर्व महसूस करते हैं, जब हमारा कोई अपना हमारे लिए यह कहे कि तुम मेरे लिए बहुत लकी हो…
– लेडी लक की अक्सर बहुत बातें की जाती हैं और इसे हम सकारात्मक तरी़के से ही लेते हैं, लेकिन ग़ौर करनेवाली बात यह है कि हर सुखद व दुखद घटना को किसी स्त्री के लकी या अनलकी होने से जोड़ना सही है?
– कर्म और भाग्य सबके अपने ही होते हैं, किसी दूसरे को अपने कर्मों या अपने भाग्य के लिए ज़िम्मेदार बताना कितना सही है?
– 42 वर्षीया सुनीता शर्मा (बदला हुआ नाम) ने इस संदर्भ में अपने अनुभव शेयर किए, “मेरी जब शादी हुई थी, तो मेरे पति और ससुरजी का बिज़नेस काफ़ी आगे बढ़ने लगा था. मुझे याद है कि हर बात पर मेरे पति और यहां तक कि मेरी सास भी कहती थीं कि सुनीता इस घर के लिए बहुत लकी है. मेरे पति की जब भी कोई बड़ी बिज़नेस डील फाइनल होती थी, तो घर आकर मुझे ही उसका श्रेय देते थे कि तुम जब से ज़िंदगी में आई हो, सब कुछ अच्छा हो रहा है. कितनी लकी हो तुम मेरे लिए… उस व़क्त मैं ख़ुद को बहुत ही ख़ुशनसीब समझती थी कि इतना प्यार करनेवाला पति और ससुराल मिला है. फिर कुछ सालों बाद मुझे बेटा हुआ, सब कुछ पहले जैसा ही था, बिज़नेस के उतार-चढ़ाव भी वैसे ही थे, कभी अच्छा, तो कभी कम अच्छा होता रहता था. फिर बेटे के जन्म के 3 साल बाद मुझे बेटी हुई. हम सब बहुत ख़ुश थे कि फैमिली कंप्लीट हो गई.
मेरे पति भी अक्सर कहते कि तुम्हारी ही तरह देखना, हमारी बेटी भी हमारे लिए बहुत लकी होगी. मैं ख़ुश हो जाती थी उनकी बातें सुनकर, लेकिन बिटिया के जन्म के कुछ समय बाद ही उनको बिज़नेस में नुक़सान हुआ, तो मेरी सास ने कहना शुरू कर दिया कि जब से गुड़िया का जन्म हुआ है, बिज़नेस आगे बढ़ ही नहीं रहा… मेरे पति भी बीच-बीच में कुछ ऐसी ही बातें करते, तब जाकर मुझे यह महसूस हुआ कि हम कितनी आसानी से किसी लड़की को अपने लिए शुभ-अशुभ घोषित कर देते हैं और यहां तक कि मैं ख़ुद को भी इसके लिए ज़िम्मेदार मानती हूं. जब पहली बार मुझे अपने लिए यह सुनने को मिला था, उसी व़क्त मुझे टोकना चाहिए था, ताकि इस तरह की सोच को पनपने से रोका जा सके.
मैंने अपने घरवालों को प्यार से समझाया, उनसे बात की, उन्हें महसूस करवाया कि इस तरह किसी भी लड़की को लकी या अनलकी कहना ग़लत है. वो लोग समझदार थे, सो समझ गए. कुछ समय बाद हमारा बिज़नेस फिर चल पड़ा, तो यह तो ज़िंदगी के उतार-चढ़ाव लगे रहते हैं, इसके लिए किसी की बेटी-बहू को ज़िम्मेदार ठहराना बहुत ही ग़लत है. समाज को अपनी धारणा बदलनी चाहिए.”
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– भले ही हमें यह बात छोटी-सी या ग़ैरज़रूरी लगे, लेकिन अब यह ज़रूरी हो गया है कि हम इस तरह की मानसिकता से बाहर निकलें कि जब कोई क्रिकेटर यदि आउट ऑफ फॉर्म हो, तो उसके लिए पूरा समाज उसकी सेलिब्रिटी गर्लफ्रेंड को दोषी ठहराने लगे. उस पर तरह-तरह के ताने-तंज कसे जाने लगें या उस पर हल्की बातें, अपशब्द, सस्ते जोक्स बनाकर सोशल मीडिया पर फैलाने लगें.
– हम ख़ुद भी इस कुचक्र का हिस्सा बन जाते हैं और इस तरह की बातें सर्कुलेट करते हैं. न्यूज़ में अपनी स्टोरी की टीआरपी बढ़ाने के लिए चटखारे ले-लेकर लोगों के रिएक्शन्स दिखाते हैं, लेकिन इन सबके बीच हम भूल जाते हैं कि जिसके लिए यह सब कहा जा रहा है, उसके मनोबल पर इसका क्या असर होता होगा…?
– किसी को भी किसी के लिए शुभ-अशुभ कहनेवाले भला हम कौन होते हैं? और क्यों किसी लेडी लक के बहाने हर बार एक स्त्री को निशाना बनाया जाता है?
– दरअसल, इन सबके पीछे भी हमारी वही मानसिकता है, जिसमें पुरुषों के अहं को तुष्ट करने की परंपरा चली आ रही है.
– हम भले ही ऊपरी तौर पर इसे अंधविश्वास कहें, लेकिन कहीं न कहीं यह हमारी छोटी मानसिकता को ही दर्शाता है.
– इस तरह के अंधविश्वास किस तरह से रिश्तों व समाज के लिए घातक सिद्ध हो सकते हैं यह समझना ज़रूरी है.
– किसी स्त्री के अस्तित्व पर ही आप प्रश्नचिह्न लगा देते हैं और फिर आप इसी सोच के साथ जीने भी लगते हैं. हर घटना को उसके साथ जोड़कर देखने लगते हैं… क्या यह जायज़ है?
– क्या कभी ऐसा देखा या सुना गया है कि किसी पुरुष को इस तरह से लकी-अनलकी के पैमाने पर तोला गया हो?
– चाहे आम ज़िंदगी हो या फिर सेलिब्रिटीज़, किसी भी पुरुष को इन सबसे नहीं गुज़रना पड़ता, आख़िर क्यों?
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– घूम-फिरकर हम फिर वहीं आ रहे हैं कि लेडी लक के बहाने क्यों महिलाओं को ही निशाना बनाया जाता है? और यह कब तक चलता रहेगा?
– सवाल कई हैं, जवाब एक ही- जब तक हमारे समाज की सोच नहीं बदलेगी और इस सोच को बदलने में अब भी सदियां लगेंगी. एक पैमाना ऐसी भी न जाने कितनी घटनाएं आज भी समय-समय पर प्रकाश में आती हैं, जहां किसी महिला को डायन या अपशगुनि घोषित करके प्रताड़ित या समाज से बहिष्कृत कर दिया जाता है. कभी किसी पेड़ से बांधकर, कभी मुंह काला करके, तो कभी निर्वस्त्र करके गांवभर में घुमाया जाता है… हालांकि पहले के मुकाबले अब ऐसी घटनाएं कम ज़रूर हो गई हैं, लेकिन पूरी तरह से बंद नहीं हुई हैं. ये और इस तरह की तमाम घटनाएं महिलाओं के प्रति हमारी उसी सोच को उजागर करती हैं, जहां उन्हें शुभ-अशुभ के तराज़ू में तोला जाता है.
– गीता शर्मा

हम सोचते हैं कि व़क्त तेज़ी से बदल रहा है, लेकिन क्या सचमुच ऐसा है? अगर हम यह मान भी लें कि व़क्त बदल रहा है, लेकिन व़क्त के साथ क्या हम भी उतनी ही तेज़ी से बदल रहे हैं? विशेषज्ञों की मानें, तो जिस तेज़ी से भारतीय समाज बदल रहा है, उतनी तेज़ी से लोग, उनकी सोच और हमारा पारिवारिक व सामाजिक ढांचा नहीं बदल रहा. यही वजह है कि महिलाओं की सेक्सुअलिटी को लेकर आज भी हमारा समाज परिपक्व नहीं हुआ है.स़िर्फ समाज ही नहीं, महिलाएं ख़ुद भी अपनी सेक्सुअलिटी को लेकर मैच्योर नहीं हुई हैं.
– आज भी महिलाएं सेक्स शब्द के इस्तेमाल से बचना चाहती हैं.
– वो अपनी सेक्सुअलिटी को लेकर कुछ नहीं बोलतीं.
– ख़ासतौर से अपनी शारीरिक ज़रूरतों को लेकर, सेक्स की चाह को लेकर भी वो कुछ भी बोलने से कतराती हैं.
– वो भले ही अपनी चाहत को कितना ही दबाकर रखें, लेकिन इस बात को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता कि उनमें भी पुरुषों के समान, बल्कि पुरुषों से भी अधिक सेक्सुअल डिज़ायर होती है.
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क्या वजह है?
– सबसे बड़ी वजह है हमारा सामाजिक व पारिवारिक ढांचा.
– महिलाओं को इस तरह ट्रेनिंग दी जाती है कि वो सेक्स को ही ग़लत या गंदा समझती हैं.
– यहां तक कि अधिकांश भारतीय पुरुष यह मानकर चलते हैं कि महिलाएं ‘एसेक्सुअल जीव’ हैं यानी उनमें सेक्स की चाह नहीं होती, बल्कि जब उनका पति उनसे सेक्स की चाह रखे, तब ख़ुद को समर्पित कर देना उनका कर्त्तव्य होता है.
– यही वजह है कि उनका मेल पार्टनर उनकी संतुष्टि से अधिक अपनी शारीरिक संतुष्टि पर ध्यान देता है.
– सेक्स को लेकर ये जो अपरिपक्व सोच है, उसी वजह से शादी के बाद भी अधिकतर महिलाएं ऑर्गेज़्म का अनुभव नहीं कर पातीं, क्योंकि उनका पार्टनर इसे महत्वपूर्ण ही नहीं समझता.
– सबसे बड़ी समस्या यह भी है कि वेे अपने पति से अपनी संतुष्टि की बात तक नहीं कर पातीं, क्योंकि उन्हें डर रहता है कि कहीं इससे उनके चरित्र पर तो उंगलियां उठनी शुरू नहीं हो जाएंगी.
अच्छी लड़कियां कैसी होती हैं?
– हमारे समाज में यही धारणा बनी हुई है कि अच्छी लड़कियां सेक्स पर बात नहीं करतीं. बात तो क्या, वो सेक्स के बारे में सोचती तक नहीं.
– अच्छी लड़कियां सेक्स में पहल भी नहीं करतीं.प वो अपने पार्टनर से अपनी संतुष्टि की डिमांड नहीं कर सकतीं.
– अच्छी लड़कियां अपने पति के बारे में ही सोचती हैं. उसका सुख, उसकी संतुष्टि, उसकी सेहत… आदि.
– शादी के बाद उनके शरीर पर उनके पति का ही हक़ होता है. ऐसे में अपने शरीर के बारे में, अपने सुख के बारे में सोचना स्वार्थ होता है.
– अच्छी लड़कियां सेक्स को लेकर फैंटसाइज़ भी नहीं करतीं.
– अच्छी लड़कियां मास्टरबेट नहीं करतीं.
– अच्छी लड़कियां शादी से पहले सेक्स नहीं करतीं.
– उनकी सोच होती है कि उन्हें अपनी वर्जिनिटी अपने पार्टनर के लिए बचाकर रखनी चाहिए.
– अच्छी लड़कियां मेडिकल स्टोर से कंडोम्स नहीं ख़रीदतीं.
– वो अपने वेजाइनल हेल्थ के बारे में बात नहीं करतीं. उन्हें हर चीज़ छुपानी चाहिए, वरना उन्हें इज़्ज़त नहीं मिलेगी.
– अच्छी लड़कियां हमेशा अच्छे कपड़े पहनती हैं. वो छोटे कपड़े नहीं पहनतीं और सिंपल रहती हैं.
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क्या असर होता है?
– महिलाएं अपनी इंटिमेट हाइजीन पर बात नहीं करतीं, जिसके कारण कई तरह के संक्रमण का शिकार हो जाती हैं.
– पार्टनर को भी कंडोम यूज़ करने के लिए नहीं कह पातीं.
– कंट्रासेप्शन के बारे में भी पार्टनर को नहीं कहतीं, वो ये मानकर चलती हैं कि ये तमाम ज़िम्मेदारियां उनकी ही हैं.
– इन सबके गंभीर परिणाम हो सकते हैं, लेकिन फिर भी हमारा समाज सतर्क नहीं होना चाहता, क्योंकि सेक्स जैसे विषय पर महिलाओं का खुलकर बोलना हमारी सभ्यता व संस्कृति के ख़िलाफ़ माना जाता है.
क्या सचमुच बदल रहा है इंडिया?
– बदलाव हो रहे हैं, यह बात सही है, लड़कियां अब बोल्ड हो रही हैं.
– सेक्स पर बात करती हैं, मेडिकल स्टोर पर जाकर कॉन्ट्रासेप्टिव पिल्स या कंडोम भी ख़रीदती हैं… लेकिन यहां हम बात महिलाओं के बदलाव व परिपक्वता की नहीं कर रहे, बल्कि उनके इस बोल्ड अंदाज़ पर समाज की परिपक्व सोच की बात कर रहे हैं.
– क्योंकि पीरियड्स तक पर बात करना यहां बेशर्मी समझा जाता है, सेक्स तो दूर की बात है.
– हमारे समाज में आज भी लिंग आधारित भेदभाव बहुत गहरा है. शादी से पहले भी और शादी के बाद भी हम पुरुषों के अफेयर्स को स्वीकार कर लेते हैं, लेकिन स्त्री के विषय में हम उसे घर की इज़्ज़त, संस्कार व चरित्र से जोड़कर देखते हैं.
– जबकि सच तो यही है कि जो चीज़ ग़लत है, वो दोनों के लिए ग़लत है.
– अगर कोई लड़की छेड़छाड़ का शिकार होती है, तो आज भी ऐसे लोगों की कमी नहीं, जो छेड़छाड़ के लिए लड़कों की बुरी नियत को नहीं, बल्कि लड़की को ही दोषी ठहराते हैं. कभी उनके कपड़ों को लेकर, तो कभी उनके रहन-सहन व बातचीत के तरीक़ों पर तंज कसकर.
– अगर कोई युवती शादी से पहले प्रेग्नेंट हो जाती है, तो सामाजिक रूप से बहिष्कृत कर दी जाती है, लेकिन उन पुरुषों का क्या, जो शादी से पहले और बाद में भी कई महिलाओं के साथ संबंध बनाते हैं और यहां तक कि उन्हें यूज़ करते हैं, प्रेग्नेंट करते और फिर छोड़ देते हैं, क्योंकि उनकी भी यही धारणा होती है कि शादी से पहले जिस लड़की ने हमारे साथ सेक्स कर लिया, वो पत्नी बनाने के लायक नहीं होती, क्योंकि वो तो चरित्रहीन है.
– आज भी हमारा समाज महिलाओं को समान स्तर के नागरिक के रूप में नहीं स्वीकार पा रहा.
– यही वजह है कि जब भी महिलाओं पर कोई अपराध होता है, तो उसका दोष भी महिलाओं के हावभाव और कपड़ों को दिया जाता है, न कि अपराधी की ग़लत सोच को.
– यह बात दर्शाती है कि हम फीमेल सेक्सुअलिटी को लेकर आज भी कितने अपरिपक्व हैं.
– गीता शर्मा
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क्या आप बेहद स्मार्ट हैं? क्या आपके सिक्स पैक ऐब्स भी हैं? फिर भी कोई लड़की आपकी ओर ध्यान नहीं दे रही है, जबकि आपके साधारण से दिखनेवाले साथी की बेहद ख़ूबसूरत व आकर्षक गर्लफ्रेंड है. ऐसा क्यों? आइए जानते हैं पुरुषों की वो सात ख़ूबियां, जिन्हें महिलाएं पसंद करती हैं.
बुद्धिमान पुरुष
ये समझदारीभरी बातें करते हैं. इनका सेंस ऑफ ह्यूमर कमाल का होता है. इनकी बातें, चाहे वो जोक्स, पॉलिटिक्स या दुनिया के किसी भी विषय पर हों, इतनी दिलचस्प होती हैं कि इन्हें हर कोई ध्यान से सुनना चाहता है. इनके साथ घंटों बैठकर भी कोई बोर नहीं होता.
क्यों करते हैं ये दिलों पर राज?
– किसी भी रिश्ते के संवरने में, इंटेलेक्चुअल कनेक्शन होना बेहद ज़रूरी है, अन्यथा रिश्ते बहुत जल्दी बोरिंग हो जाते हैं.
– वहीं दो बुद्धिमान लोगों के बीच रिश्ते ज़्यादा टिकते हैं.
– महिलाएं हमेशा से ही इंटेलिजेंट पुरुष की ओर आकर्षित होती रही हैं.
आत्मविश्वासी पुरुष
ऐसे पुरुष मज़बूत इरादों के होते हैं. इन्हें ख़ुद पर पूरा भरोसा होता है. ये कभी इनसिक्योर नहीं होते. इनकी बातों व व्यवहार से ही पावर और कंट्रोल झलकता है. ये दूसरे पुरुषों से ईर्ष्या नहीं रखते, बल्कि इन्हें तो पत्नी के मेल कलीग या दोस्तों से भी ख़तरा महसूस नहीं होता. इनका आत्मविश्वास भरा डॉमिनेटिंग नेचर महिलाएं पसंद करती हैं.
क्यों करते हैं ये दिलों पर राज?
– महिलाएं आत्मविश्वासी पुरुषों की तरफ़ अधिक आकर्षित होती हैं.
– इन पर आसानी से भरोसा कर लेती हैं.
– ऐसे पुरुष किसी भी बात में महिलाओं पर निर्भर नहीं रहते.
– ख़ुद के निर्णय ख़ुुद लेते हैं.
– महिलाओं पर अपने निर्णय नहीं लादते और उन्हें भी काफ़ी आज़ादी देते हैं.
– बस, यही बातें महिलाओं को उनका मुरीद बना देती हैं.
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आर्टिस्टिक पुरुष
आर्टिस्टिक पुरुष स्पॉन्टेनियस होते हैं और वे उसी पल में जीना पसंद करते हैं. ऐसे पुरुष अपने आर्टिस्टिक अंदाज़ व क्रिएटिविटी से महिलाओं को प्रभावित करते रहते हैं, जैसे- अपनी गर्लफ्रेंड के लिए पेंटिंग बनाना या उस पर गाने लिखना. महिलाओं को यह सब बहुत अच्छा लगता है.
क्यों करते हैं ये दिलों पर राज?
– हर महिला ख़ुद को सबसे अलग और ख़ास समझती है.
– जब आर्टिस्टिक पुरुष कहते हैं कि तुम मेरी प्रेरणा हो, तो वे भावुक हो जाती हैं.
– पुरुषों के दिलो-दिमाग़ पर ख़ुद के हावी होने का एहसास उन्हें सुख से भर देता है.
विदेशी या दूसरी संस्कृति से आए पुरुष
महिलाओं को इस तरह के पुरुष बहुत पसंद आते हैं. उनके बोलने का लहज़ा और दुनिया देखने का अलग अंदाज़ इन्हें आकर्षित करता है. महिलाओं को इनके रीति-रिवाज़ और रोज़मर्रा का व्यवहार भले ही थोड़ा अजीब लगता हो, परंतु वे इनकी इतनी दीवानी होती हैं कि इन बातों को अनदेखा कर देती हैं.
क्यों करते हैं ये दिलों पर राज?
– ऐसे पुरुष जो जिज्ञासु प्रवृत्ति के होते हैं, लड़कियों को अच्छे और लुभावने लगते हैं.
– कई बार इनका विदेशी होना लड़कियों को आकर्षित करता है.
– अलग संस्कृति में पले-बढ़े होना और नए कल्चर को जानना इनके क़रीब लाता है.
बिंदास पुरुष
अक्सर महिलाएं बिंदास टाइप के पुरुषों की ओर जल्दी आकर्षित होती हैं. इनके एडवेंचर्स, चाहे वो बाइक चलाना हो, ऑफिस से भागकर मिलने आना हो या कुछ बिंदास काम… कुछ महिलाएं इन अदाओं पर लट्टू हो जाती हैं.
क्यों करते हैं ये दिलों पर राज?
– महिलाएं सोचती हैं कि ऐसे पुरुष दुनिया में अन्य किसी चीज़ की नहीं, बल्कि उनकी परवाह करते हैं.
– अक्सर इसी बात से वे ख़ुश हो जाती हैं.
– बिंदास पुरुषों का बोल्ड स्टाइल उन्हें लुभा जाता है.
सेंसिटिव पुरुष
इस तरह के पुरुष महिलाओं की भावनाओं को समझते हैं और उन्हें मान-सम्मान देते हैं. ऐसे पुरुष आपके लिए कार का दरवाज़ा खोलते हैं, डिनर पर कुर्सी ऑफर करते हैं और डिनर का बिल भी चुकाते हैं. वे इस बात का पूरा ख़्याल रखते हैं कि आपको कोई असुविधा न हो.
क्यों करते हैं ये दिलों पर राज?
– महिलाओं को उनकी रिस्पेक्ट करनेवाली और स्पेस देनेवाली आदत अच्छी लगती है.
– वे जानती हैं कि ज़िंदगीभर साथ निभाने के लिए इस तरह के गुणोंवाला पुरुष होना चाहिए, इसीलिए वे इनकी ओर आकर्षित होती हैं.
रोमांटिक पुरुष
इस तरह के पुरुष रोमांस में विश्वास करते हैं और थोड़े फिल्मी होते हैं. वे अपनी गर्लफ्रेंड के लिए हमेशा फूल, बुके या चॉकलेट लेकर आते हैं. कैंडल लाइट डिनर करवाते हैं.
बार-बार फोन करते हैं और अक्सर यह एहसास कराते हैं कि आप हमेशा उनके ख़्यालों में रहती हैं और वे आपको भूल ही नहीं पाते.
क्यों करते हैं ये दिलों पर राज?
– महिलाएं अपनी तारीफ़ सुनना पसंद करती हैं.
– वे ख़ुद को ख़ास समझती हैं और रोमांटिक पुरुष यही एहसास उन्हें कराते हैं.
– महिलाएं उनके रोमांटिक अंदाज़ पर मर मिटती हैं.
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– डॉ. सुषमा श्रीराव

महिलाओं के हक में जल्द ही स्वास्थ्य मंत्रालय एक ऐसा कदम उठाने जा रही है, जिसमें अविवाहित व सिंगल महिलाओं को भी अबॉर्शन का क़ानूनी हक़ मिलेगा. अभी तक स़िर्फ विवाहित महिलाओं को ही अनवांटेड प्रेग्नेंसी टर्मिनेट करवाने की अनुमति है, लेकिन स्वास्थ्य मंत्रालय के नए क़दम के तहत सिंगल/अविवाहित महिलाओं को भी ‘गर्भ निरोधक गोलियों के असफल रहने’ व ‘अनचाहे गर्भ’ की स्थिति में अबॉर्शन के लिए कानूनी मान्यता मिल जाएगी.
नया कानून स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी ऐक्ट में संशोधन के लिए की गई सिफारिशों का नतीजा होगा. वर्तमान में अबॉर्शन के लिए एक डॉक्टर की ज़रूरत होती है, जो बताता है कि अबॉर्शन क्यों ज़रूरी है. देश में सेक्सुअली एक्टिव सिंगल व अनमैरिड महिलाओं को देखते हुए सरकार अबॉर्शन के कानूनी दायरे को बढ़ाना चाहती है. जानकारों का मानना है कि सरकार का ये कदम महिलाओं के हक में है. इससे उन महिलाओं को राहत मिलेगी जो रेप के कारण प्रेगनेंट हो जाती हैं.
फैक्ट फाइल
* भारत में हर साल क़रीब 70 लाख अबॉर्शन किए जाते हैं.
* इसमें से 50 फीसदी ऑफरेशन गैरक़ानूनी होते हैं.
* ग़लत और असुरक्षित तरी़के से ऑपरेशन की वजह से अबॉर्शन के व़क्त क़रीब 8 प्रतिशत महिलाओं की मृत्यु हो जाती है.
* पूरे विश्व में हर साल क़रीब 2 करोड़ 20 लाख असुरक्षित अबॉर्शन के मामले दर्ज किए जाते हैं.
– कंचन सिंह

हमारे देश में शादी को एक सामाजिक पर्व के रूप में देखा जाता है. ऐसे में भारत में शादी के महत्व को स्वत: ही समझा जा सकता है. अगर आप भारत में हैं और 30 वर्ष की उम्र तक शादी के बंधन में नहीं बंधते, तो लोग आपसे सवाल करना और आपको शादी करने की सलाह देना अपना हक़ समझते हैं.
शादी की क़ामयाबी और असफलता कई बातों पर निर्भर करती है. लेकिन सच्चाई यही है कि आज भी अधिकांश महिलाएं अपनी नाकाम, असफल शादियों को ताउम्र झेलती रहती हैं. पर सबसे बड़ा सवाल यही है कि आख़िर क्यों वे इस तरह की शादियों में बनी रहती हैं? क्यों कोई ठोस निर्णय लेकर अलग होने की हिम्मत नहीं कर पातीं? क्यों सारी उम्र ज़िल्लत सहना अपना नसीब मान लेती हैं?
ऐसे ही तमाम सवालों के जवाब के लिए हमने बात की दिल्ली में प्रैक्टिस कर रहे सायकियाट्रिस्ट डॉ. विकास सैनी से-
पालन-पोषण: भले ही हम कितनी ही विकास की बातें कर लें, लेकिन आज भी अधिकतर घरों में लड़कियों का पालन-पोषण यही सोचकर किया जाता है कि उसे पराये घर जाना है यानी उसे हर बात को सहन करना, शांत रहना, ग़ुस्सा न करना आदि गुणों से लैस करवाने की प्रैक्टिस बचपन से ही करवाई जाती है. ऐसे में वो आत्मनिर्भर नहीं हो पातीं. शादी के बाद उन्हें लगता है कि जिस तरह अब तक वो अपने पैरेंट्स पर निर्भर थीं, अब पति पर ही उनकी सारी ज़िम्मेदारी है.
माइंडसेट: हमारे समाज की सोच यानी माइंडसेट ही ऐसा है कि शादी यदि हो गई, तो अब उससे निकलना संभव नहीं है, फिर भले ही उस रिश्ते में आप घुट रहे हों, लेकिन लड़कियों को यही सिखाया जाता है कि शादी का मतलब होता है ज़िंदगीभर का साथ. तलाक़ का ऑप्शन या अलग होने के रास्तों को एक तरह से परिवार व लड़की की इज़्ज़त से जोड़ दिया जाता है. ऐसे में ख़ुद महिलाएं भी अलग होने का रास्ता चुन नहीं पातीं.
सोशल स्टिग्मा: घर की बात घर में ही रहनी चाहिए… अगर तुम अलग हुई, तो तुम्हारे भाई-बहनों से कौन शादी करेगा… उनके भविष्य के लिए तुम्हें सहना ही पड़ेगा… समाज में बदनामी होगी… हम लोगों को क्या मुंह दिखाएंगे… आदि… इत्यादि बातें जन्मघुट्टी की तरह लड़कियों को पिला दी जाती हैं. ऐसे में पति भले ही कितना ही बुरा बर्ताव करे, शादी का बंधन भले ही कितना ही दर्द दे रहा हो, लड़कियां सबसे पहले अपने परिवार और फिर समाज के बारे में ही सोचती हैं.
आर्थिक मजबूरी: आज की तारीख़ में महिलाएं आत्मनिर्भर हो तो रही हैं, लेकिन अब भी बहुत-सी महिलाएं अपनी आर्थिक ज़रूरतों के लिए पहले पैरेंट्स पर और बाद में पति पर निर्भर होती हैं. यह भी एक बड़ी वजह है कि वो अक्सर चाहकर भी नाकाम शादियों से बाहर नहीं निकल सकतीं. कहां जाएंगी? क्या करेंगी? क्या माता-पिता पर फिर से बोझ बनेंगी? इस तरह के सवाल उनके पैरों में बेड़ियां डाल देते हैं. पति का घर छोड़ने के बाद भी उन्हें मायके से यही सीख दी जाती है कि अब वही तेरा घर है. दूसरी ओर उसे मायके में और समाज में भी सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता. ऐसे में बेहद कठिन हो जाता है कि वो अपनी शादी को तोड़कर आगे क़दम बढ़ाए.
बच्चे: किसी भी नाकाम शादी में बने रहने की सबसे बड़ी वजह बच्चे ही होते हैं. बच्चों को दोनों की ज़रूरत होती है, ऐसे में पति से अलग होकर उनका क्या भविष्य होगा, यही सोचकर अधिकांश महिलाएं इस तरह की शादियों में बनी रहती हैं.
समाज: आज भी हमारा समाज तलाक़शुदा महिलाओं को सम्मान की नज़र से नहीं देखता. चाहे नाते-रिश्तेदार हों या फिर आस-पड़ोस के लोग, वो यही सोच रखते हैं कि ज़रूर लड़की में ही कमी होगी, इसीलिए शादी टूट गई. एक तलाक़शुदा महिला को बहुत-सी ऐसी बातें सुननी व सहनी पड़ती हैं, जो उसके दर्द को और बढ़ा देती हैं. यह भी वजह है कि शादी को बनाए रखने के लिए कोई भी महिला अंत तक अपना सब कुछ देने को तैयार रहती है.
पैरेंट्स: ढलती उम्र में अपने माता-पिता को यह दिन दिखाएं, इतनी हिम्मत हमारे समाज की बेटियां नहीं कर पातीं. फिर भले ही वो ख़ुद अपनी ज़िंदगी का सबसे क़ीमती समय एक ख़राब और नाकाम शादी को दे दें.
ये तमाम पहलू हैं, जो किसी भी महिला को एक नाकाम शादी से निकलकर बेहतर जीवन की ओर बढ़ने से रोकते हैं, क्योंकि हम यही मानते हैं कि बिना शादी के जीवन बेहतर हो ही नहीं सकता. हमारे समाज में शादी को ङ्गसेटलफ होना कहा जाता है… और तलाक़ को जीवन का सबसे बड़ा अभिशाप समझा जाता है. जब तक हम इन सामान्य क्रियाओं को सामान्य नज़र से नहीं देखने लगेंगे, तब तक स्थिति में अधिक बदलाव नहीं आएगा.
कुछ बदलाव तो आए हैं डॉ. विकास सैनी के अनुसार समाज में काफ़ी बदलाव आ रहा है, लेकिन इन बदलावों से होते हुए हमें संतुलन की ओर बढ़ना होगा, जहां तक पहुंचने में व़क्त लगेगा.
* नई पीढ़ी अधिक बोल्ड है. वो निर्णय लेने से डरती नहीं. यही कारण है कि जैसे-जैसे लड़कियां आत्मनिर्भर हो रही हैं, वो ज़्यादती बर्दाश्त नहीं कर रही हैं.
* यह ज़रूरी भी है कि पुरुष प्रधान समाज का ईगो इसी तरह से तोड़ा जाए, ताकि पुरुष ख़ुद को लड़कियों की जगह रखकर सोचें.
* हालांकि इसका दूसरा पहलू यह भी है कि अब लड़के-लड़कियां थोड़ा-सा भी एडजेस्ट करने को तैयार नहीं होते, जिससे रिश्ते को जितना व़क्त व धैर्य की ज़रूरत होती है, वो नहीं देते. यही आज बढ़ते तलाक़ के मामलों की बड़ी वजह बन रहे हैं.
* कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि हम दोनों ही मामलों में एक्स्ट्रीम लेवल पर हैं. एक तरफ़ मिडल एज जेनरेशन है, जहां महिलाएं निर्णय ले ही नहीं पातीं और यदि कोई निर्णय लेती भी हैं, तो तब जब रिश्तों में सब कुछ आउट ऑफ कंट्रोल हो जाता है और इस पर भी तलाक़ जैसा क़दम वही उठा पाती हैं, जिन्हें पैरेंट्स का सपोर्ट होता है. दूसरी ओर आज की युवापीढ़ी है, जो निर्णय लेने में बहुत जल्दबाज़ी करती है. मामूली से झगड़े, वाद- विवाद को भी रिश्ते तोड़ने की वजह मान लेती है. जबकि ज़रूरत है बीच के रास्ते की, लेकिन वहां तक पहुंचने में अब भी काफ़ी समय लगेगा.
रियल लाइफ स्टोरीज़
* “मैं अपने पति से बेइंतहा प्यार करती हूं और उनके बिना अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकती.” जी हां, यह कहना है मुंबई की एक महिला का, जो न बच्चों के कारण और न ही आर्थिक मजबूरी के चलते अपनी ख़राब शादी में रह रही है. पति के एक्स्ट्रा मेरिटल अफेयर को जानते हुए भी वो अपनी शादी नहीं तोड़ना चाहती. यह शायद बेहद भावनात्मक निर्णय है, लेकिन इस तरह की सोच भी होती है कुछ महिलाओं की.
* “मैंने अपने पति को सबक सिखाया.” मुंबई की ही एक 38 वर्षीया महिला ने अपनी नाकाम शादी को किस तरह से क़ामयाब बना दिया, इस विषय में बताया… “मेरे पति न कमाते थे, न ही किसी तरह से भावनात्मक सहारा था उनका. दिन-रात नशे में धुत्त रहते. एक दिन उनके लिए घर का दरवाज़ा नहीं खोला, तो वो छत से कूदकर जान देने की बात कहने लगे. मैंने पुलिस को बुलाकर उन्हें अरेस्ट करवा दिया. कुछ समय बाद ज़मानत पर रिहा होकर जब वे दोबारा मुझे परेशान करने लगे, तो दोबारा पुलिस को बुलाया और तलाक़ की बात कही मैंने. इसके बाद कुछ समय तक वो ग़ायब रहे, फिर एक दिन अचानक आकर बोले कि घर से अपना सामान लेकर दूर जाना चाहते हैं, लेकिन घर में आने के बाद उन्होंने अपने किए की माफ़ी मांगी और अपनी ग़लतियों को सुधारने का एक मौक़ा भी, जो मैंने दिया. आज वो सचमुच आदर्श पति की तरह अपने कर्तव्य पूरे कर रहे हैं. मैं स़िर्फ यह कहना चाहती हूं कि शादी जैसे रिश्ते में आपको अपनी लड़ाई ख़ुद लड़नी है. आप किस तरह की परेशानियों का सामना कर रही हैं, यह आप ही बेहतर समझ सकती हैं, फिर क्यों किसी मदद के लिए समाज या माता-पिता, भाई-बहन के मुंह की ओर ताकें? हिम्मत जुटाओ, परिस्थितियां ख़ुद ब ख़ुद बदल जाएंगी.”
* “मैंने वाकई अपनी ज़िंदगी का एक लंबा अरसा अपनी नाकाम शादी में बर्बाद किया.” यह कहना है मुंबई की 37 वर्षीया गीता वोहरा का. “हमारी लव मैरिज थी. शादी के कुछ समय बाद ही मेरे पति को शराब की लत लग गई. नौकरी करना उसे पसंद नहीं था और मेरा नौकरी पर जाना उसे अखरता था. उसे लगता था कि मैं बाहर मज़े करने जाती हूं. उसके बाद छोटे-छोटे झगड़ों से बात मार-पीट तक पहुंचने लगी. वो अक्सर मुझ पर हाथ उठाता था. लेकिन मेरे रिश्तेदारों से मुझे यही सलाह मिलती कि तू अपने पति को सही रास्ते पर लाने की कोशिश कर. इस बीच हमारी एक बच्ची भी हुई. मुझे लगने लगा कि हमारे झगड़ों के बीच उसका बचपन मुरझाने लगा है. लेकिन मुझे कहीं से सपोर्ट नहीं मिल रहा था. मैंने अपने पति को प्यार से समझाया. पुणे के रिहैबिलेटेशन सेंटर में भी दो बार इलाज करवाया, इलाज का पूरा ख़र्चा उठाया, लेकिन स्थिति नहीं बदली. मेरे एक दोस्त ने मेरी हालत समझकर मुझे सपोर्ट किया और हौसला दिया कि मुझे इस शादी में नहीं बने रहना चाहिए. मुझे भी अच्छी ज़िंदगी जीने का हक़ है. तब जाकर कहीं मुझमें हिम्मत आई और मैंने तलाक़ लिया. हालांकि तलाक़ लेने में भी उसने काफ़ी अड़चनें डालीं, लेकिन मैंने निर्णय ले लिया था. अब भी समाज के कुछ लोग मुझ पर उंगलियां उठाते हैं कि ज़रूर मुझमें ही कोई कमी होगी या मेरा अफेयर रहा होगा, पर मुझे परवाह नहीं. इस तरह अगर मैं दुनिया के बारे में सोचूंगी, तो अपनी ज़िंदगी कब जीऊंगी. मैं उन महिलाओं से स़िर्फ यह कहना चाहती हूं कि आप मेरी तरह किसी दोस्त या रिश्तेदार के सपोर्ट के इंतज़ार में अपना क़ीमती समय न गवाएं. अपने रिश्ते को संभालने की हर संभव कोशिश ज़रूर करें, लेकिन जब आप यह जान जाएं कि अब कोई गुंजाइश नहीं बची, तो बिना देरी किए अलग हो जाएं और नई ज़िंदगी शुरू करें, क्योंकि ज़िंदगी बेशक़ीमती है.”
– गीता शर्मा

परफेक्ट कॉम्बीनेशन
सामग्रीः 400 ग्राम स़फेद रंग का ऊन, 100 ग्राम मैरून ऊन, सलाइयां.
विधिः आगे का भागः मैरून रंग से 120 फं. डालकर स़फेद रंग से 1 फं. सी. 1 उ. की रिब बुनाई में 3 इंच का बॉर्डर बुनें. ग्राफ की मदद से स़फेद व मैरून रंग से डिज़ाइन डालते हुए सीधी-उल्टी सलाई की बुनाई में बुनें. 18 इंच बाद मुड्ढे घटाएं. 5 इंच और बुनने के बाद गोल गला घटाएं.
पीछे का भागः आगे के भाग की तरह ही बुनें. गला न घटाएं. कंधे जोड़कर गले की पट्टी बुनें.
आस्तीनः 56-56 फं. डालकर आगे-पीछे के भाग की तरह बुनते हुए 22 इंच लंबी आस्तीन बुनें. हर 5वीं सलाई में दोनों तरफ़ से 1-1 फं. बढ़ाती जाएं.
स्वेटर के सभी भागों को जोड़कर सिल लें.
डिज़ाइनर कार्डिगन
सामग्रीः 400 ग्राम पेस्टल ग्रीन रंग का ऊन, सलाइयां, बटन.
विधिः पीछे का भागः 110 फं. डालकर सीधी सलाई 2 फं. सी. 2 उ. की बुनाई में बुनें. उल्टी सलाई पूरी उल्टी बुनें. इसी बुनाई को दोहराते हुए बुनें. 14 इंच लंबाई हो जाने पर मुड्ढे घटाएं. 7 इंच और बुनकर फं. बंद कर दें.
आगे का भागः दाएं-बाएं भाग के लिए 55-55 फं. डालें. 10 फं. बटनपट्टी के रखकर शेष में बुनाई डालें. 1 जाली, 1 सी., 2 उ., 2 उ. का जोड़ा, 2 उ., 2 सी., 1 जाली, 3 उ., 1 जाली- इसी तरह पूरी जाली डालें. बटनपट्टी भी साथ-साथ ही रिब बुनाई में बुनते जाएं. 14 इंच लंबाई हो जाने मुड्ढे व दोनों तरफ़ वी गला घटाएं.
आस्तीनः 50-50 फं. डालकर पीछे के भाग की तरह बुनते हुए 19 इंच लंबी आस्तीन बुनें. हर 5वीं सलाई में दोनों तरफ़ 1-1 फं. बढ़ाती जाएं.
स्वेटर के सभी भागों को जोड़कर सिल लें.
ज्योमैट्रिक डिज़ाइन
सामग्रीः 300 ग्राम क्रीम रंग का ऊन, 50-50 ग्राम ब्लू और ब्राउन ऊन, 25 ग्राम डार्क ब्राउन ऊन, सलाइयां.
विधि: आगे-पीछे का भाग: आगे-पीछे का भाग एक जैसे ही बुनेंगे. क्रीम रंग से 70-70 फं. डालकर 1 फं. सी. 1 उ. की रिब बुनाई में 2 इंच का बॉर्डर बुनें. अब चित्रानुसार अलग-अलग रंगों से ज्योमैट्रिक डिज़ाइन बुनें. 14 इंच बाद मुड्ढे घटाएं. 3 इंच और बुनने के बाद आगे के भाग में गोल गला घटाएं. कुल लंबाई 20 इंच हो जाए, तो कंधे जोड़ें. गले के फं. उठाकर 1 फं. सी. 1 उ. की बुनाई में क्रीम रंग से गले की डबलपट्टी बुनें.
आस्तीन: 38-38 फं. डालकर आगे-पीछे के भाग की तरह बुनाई करते हुए 17 इंच लंबी आस्तीन बुनें. हर 5वीं सलाई में दोनों तरफ़ से 1-1 फं. बढ़ाते जाएं.
स्वेटर के सभी भागों को जोड़कर सिल लें.
फूल खिले हैं
सामग्रीः 400 ग्राम क्रीम रंग का ऊन, 25-25 ग्राम मेहंदी व बैंगनी ऊन, सलाइयां.
विधि: आगे-पीछे का भाग: 90-90 फं. क्रीम रंग से डालकर बैंगनी व मेहंदी रंग से चित्रानुसार बेल की डिज़ाइन बुनें. क्रीम ऊन से 4 सलाई सीधी-उल्टी बुनकर जाली डालें. 1 जोड़ा, 2 फं. सी., 1 जाली- पूरी सलाई ऐसे ही बुनें. उल्टी सलाई पूरी उल्टी बुनें. अब जाली वाली बर्फी बुनें. इसी तरह बेल और जाली की डिज़ाइन दोहराते हुए 14 इंच बुनें. मुड्ढे घटाएं. 3 इंच बाद गोल गला घटाएं. कंधे जोड़ें.
आस्तीनः 46-46 फं. डालकर आगे-पीछे के भाग की तरह बुनाई करते हुए 16 इंच लंबी आस्तीन बुनें. मुड्ढे घटाएं. हर 5वीं सलाई में दोनों तरफ़ से 1-1 फं. बढ़ाते जाएं.
बॉर्डरः आगे-पीछे के भाग, आस्तीन और गले के बॉर्डर के लिए दो बार क्रोशिया करें. अब 5 फं. डालकर पत्ती की लेस बना लें. 2 सी., 1 जाली, 1 सी., 1 जाली, 2 सी.- पूरी सलाई ऐसे ही बुनें. उल्टी सलाई पूरी उल्टी ही बुनें. 5 बार जाली से फं. बढ़ जाने पर किनारे पर जोड़े फं. बुनें. इसे क्रोशिया के बॉर्डर के बाद सिल दें और फिर से क्रोशिया करें.
लेमन स्ट्रोक
सामग्रीः 200 ग्राम लेमन रंग का ऊन, 100 ग्राम क्रीम ऊन, सलाइयां.
विधि: आगे-पीछे का भाग: आगे-पीछे का भाग एक जैसे ही बुनें. 100 फं. लेमन ऊन से डालकर 2 उल्टी धारी बुनें. 1 फं. सी., 1 जाली, 5 सी., 3 फं. का 1, 5 सी., 1 जाली, 1 सी., 1 जाली, 5 सी., 3 फं. का 1, 5 सी., 1 जाली, 1 सी., 1 जाली बुलें. उल्टी सलाई पूरी उल्टी बुनें. 6 बार जाली बनाएं. ऊपर 1 जाली, 3 का 1, 1 जाली, 11 सी. फं. रह जाएंगे. अब 2 उल्टी धारी डालें. इसी तरह बुनते हुए 9 इंच लंबा बुनें. अब क्रीम ऊन से 5 इंच सीधी-उल्टी सलाई की बुनाई में बुनें. 7 इंच फिर जाली वाली डिज़ाइन बुनें. मुड्ढे के 6 फं. एक साथ बंद करके घटाएं. किनारे के 3-3 फं. उल्टी धारी के बुनें. 6 इंच और बुनें. आगे के भाग में गोल गला घटाएं.
कंधे जोड़कर गले के फं. उठाकर उल्टी धारी में गले की पट्टी बुनें. स्वेटर के सभी भागों को जोड़कर सिल लें.
कैप विद स्टोल
सामग्रीः 300 ग्राम क्रीम रंग का ऊन, सलाइयां.
विधिः स्टोल के लिए 30 फं. डालकर उल्टी धारियों की 65 इंच लंबी एक पट्टी बुनें. कैप के लिए 56 फं. डालकर 4 सी. फं. की केबल, 4 उ., 4 सी. की केबल, 4 उ. बुनें. एक तरफ शुरू में 1 फं. सी. 1 उ. के 10 फं. बुन लें, जो आगे की पट्टी जैसी बन जाएगी. 20 इंच लंबी पट्टी बुनें. हर 6ठी सलाई में केबल पलटें. टोपी की सिलाई कर लें.
स्काई हाई
सामग्रीः 500 ग्राम एक्वा ब्लू रंग का मोटा ऊन, सलाइयां.
विधि: पीछे का भाग: 102 फं. डालकर 3 फं. उ. 8 सी. की पूरी सलाई बुनें. उल्टी सलाई 3 सी., 8 उ. की बुनाई में बुनें. सीधे वाले 4-4 फं. को आपस में ही पलटते रहें. इससे एक के ऊपर एक केबल पड़ती जाएगी. हर चौथी सलाई में केबल पलटें. 15 इंच लंबाई हो जाने पर मुड्ढे घटाएं. 7 इंच और बुनें.
आगे का भागः दाएं-बाएं भाग के लिए 50-50 फं. डालकर पीछे के भाग की तरह बुनें. बस दोनों भागों में बटनपट्टी के 6-6 फं. हर बार साबुदाने की बुनाई में बुनें. शेष फं. पीछे के भाग की तरह बुनें.
आस्तीनः 45-45 डालकर आगे-पीछे के भाग की तरह बुनाई डालते हुए 19 इंच लंबी आस्तीन बुनें. हर 5वीं सलाई में दोनों तरफ़ से 1-1 फं. बढ़ाते जाएं.
स्वेटर के सभी भागों को जोड़कर सिल लें. एक शो बटन टांकें.