मैं 30 वर्षीया महिला हूं और मेरे पति की उम्र भी इतनी ही है. पिछले 3 सालों से हम प्रेग्नेंसी के लिए ट्राई कर रहे हैं, पर अभी तक हमें कोई सफलता नहीं मिली. क्या महिलाओं की ही तरह पुरुषों में भी इंफर्टिलिटी की समस्या होती है?
– पार्वती मिश्रा, नोएडा.
रिसर्च में यह बात साबित हो चुकी है कि महिलाओं की तरह पुरुषों में भी इंफर्टिलिटी की समस्या काफ़ी कॉमन है. इंफर्टिलिटी के मामलों में ऐसा देखा गया है कि 1/3 मामलों में पुरुषों में होनेवाली इंफर्टिलिटी, 1/3 मामलों में महिलाओं की इंफर्टिलिटी और 1/3 मामलों में दोनों या फिर किन्हीं अज्ञात कारणों से गर्भधारण में प्रॉब्लम हो सकती है. आपको किसी फर्टिलिटी एक्सपर्ट से मिलना चाहिए, वो आप दोनों की जांच करके सही इलाज की सलाह देंगे.
मैं 28 वर्षीया महिला हूं. मेरे पति को लगता है कि उनकी स्पर्म क्वालिटी में कुछ समस्या है. इस बात को लेकर उनमें हीनभावना आ गई है. हम प्रेग्नेंसी प्लान करने के बारे में सोच रहे हैं, इसलिए जानना चाहते हैं कि क्या पति का स्पर्म काउंट टेस्ट कराना ज़रूरी है? और पुरुषों के लिए नॉर्मल स्पर्म काउंट क्या है?
– शशि मेहरा, हैदराबाद.
सीमेन टेस्ट के ज़रिए पुरुषों के सीमेन में स्पर्म काउंट और उसकी क्वालिटी की जांच की जाती है. आमतौर पर 1 मिलीलीटर सीमेन में 15 से 100 मिलियन स्पर्म होते हैं. 10 मिलियन से नीचे स्पर्म काउंट लो माना जाता है, जबकि 15 मिलियन या उससे अधिक का स्पर्म काउंट सामान्य माना जाता है, बशर्ते उसकी क्वालिटी अच्छी हो. स्टडी में यह बात पता चली है कि क़रीब 10-15% पुरुषों में स्पर्म काउंट ज़ीरो होता है, जिसके कारण उन्हें इंफर्टाइल कहा जा सकता है, इसलिए अगर किसी का स्पर्म काउंट 10 मिलियन से कम हो, तो उन्हें इंफर्टिलिटी स्पेशलिस्ट से मिलकर अपना इलाज कराना चाहिए. आप सबसे पहले अपने पति को सीमेन टेस्ट कराने की सलाह दें, ताकि उनका स्पर्म काउंट पता चल सके.
मैं 28 साल की शादीशुदा महिला हूं. मेरी शादी को 3 साल हो चुके हैं. मेरी समस्या ये है कि मेरे पति के वीर्य में शुक्राणु (Sperm) कम हैं. क्या मैं मां बन सकती हूं? कृपया, उचित सलाह दें.
– अर्चना भाटिया, दिल्ली.
वीर्य में शुक्राणु की कमी के दो कारण हो सकते हैं- टेस्टकुलर फेलियर यानि अंडग्रंथि द्वारा शुक्राणु का निर्माण करने में असमर्थता और दूसरा अंडग्रंथि शुक्राणु का निर्माण करते हैं, लेकिन मार्ग में कोई रुकावट होती है. अगर दूसरा कारण है तो रुकावट हटाने के लिए छोटी सी सर्जरी करनी पड़ सकती है. अगर इसके बावजूद फ़ायदा नहीं होता या शुक्राणु का निर्माण ही नहीं हो रहा है तो टेस्टीकुलर बायोप्सी करवाई जा सकती है. अगर इसमें कुछ अच्छे शुक्राणु मिल जाते हैं तो आप टेस्टट्यूब बेबी का रास्ता अपना सकती हैं, जिसमें महिला के अंडे को निकाल कर लेज़र टेकनीक द्वारा शुक्राणु को उसमें इंजेक्ट कर दिया जाता है और इसके बाद टेस्टट्यूब बेबी को गर्भाशय में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है. अगर बायोप्सी में शुक्राणु नहीं मिलते तो दूसरे का किसी दानकर्ता से शुक्राणु लिया जा सकता है.
मैं 21 साल की हूं. मेरा मासिक धर्म हमेशा नियमित रहता है, किंतु मासिक धर्म आने के पूर्व मेरा पेट फूल जाता है और अचानक वज़न भी बढ़ जाता है. ऐसा क्यों होता है? कृपया इस बारे में जानकारी दें.
– प्रतिमा सिंह, बिहार.
आपकी समस्याओं के बारे में जानकर ऐसा लगता है कि आप पीएमएस (प्रीमेन्सट्रुअल सिंड्रोम) यानि माहवारी से पहले होनेवाली तकलीफ़ों से गुज़र रही हैं. इस दौरान आपको अपने आप में और भी कई तरह के बदलाव नज़र आ सकते हैं, जैसे- स्तनों के आकार में वृद्धि, स्वभाव में चिड़चिड़ापन आना, अधिक भूख लगना आदि. ये सब माहवारी के दौरान के सामान्य लक्षण हैं, इसलिए चिंता की कोई बात नहीं है. हां, अपने गायनाकोलॉजिस्ट से यह अवश्य जान लें कि आपके वज़न बढ़ने का कारण कहीं कोई और समस्या तो नहीं है.
मैं 35 वर्षीया शादीशुदा महिला हूं और मुझे बेटा भी है. मैं एक स्वस्थ महिला हूं और मुझे कोई बुरी आदत भी नहीं है. अगर मुझे दूसरा बच्चा चाहिए, तो क्या मुझे कंप्लीट मेडिकल चेकअप की ज़रूरत है?
– रंजना शिंदे, पुणे.
प्रेग्नेंसी के दौरान मां व बच्चे दोनों की अच्छी सेहत के लिए मां का स्वस्थ होना बहुत ज़रूरी है. प्रेग्नेंसी प्लान करने से पहले सभी ज़रूरी टेस्ट्स करवाएं. रेग्युलर हेल्थ चेकअप में ब्लड टेस्ट ज़रूर करवाएं. इससे थायरॉइड, डायबिटीज़ और ओबेसिटी जैसी बीमारियों का पता उनके शुरुआती दौर में ही चल जाता है. थायरॉइड के कारण जहां कंसीव करने में परेशानी होती है, वहीं डायबिटीज़ व ओबेसिटी से प्रेग्नेंसी के दौरान द़िक्क़तें आ सकती हैं. अगर कंसीव करने से पहले इनका पता चल जाए, तो सही तरी़के से इलाज किया जा सकता है और प्रेग्नेंसी में कोई प्रॉब्लम नहीं आती. प्रेग्नेंसी प्लान करने से पहले किसी अच्छे गायनाकोलॉजिस्ट को मिलें.
मेरी बेटी की उम्र 15 साल है. पीरियड्स के दौरान उसे बहुत दर्द होता है. क्या उसे इलाज की ज़रूरत है? क्या उसे किसी डॉक्टर को दिखाना चाहिए?
– ममता शाह, सूरत.
दर्दयुक्त माहवारी आपकी बेटी की सेहत के साथ-साथ उसकी पढ़ाई-लिखाई व पर्सनल लाइफ को भी प्रभावित कर सकती है. अगर इसके कारण वह अपनी लाइफ नॉर्मल तरी़के से जी नहीं पा रही है, तो आपको ज़रूर उसका इलाज कराना चाहिए. यह कई कारणों से हो सकता है, इसलिए सबसे पहले किसी एक्सपर्ट डॉक्टर से उसका चेकअप कराएं. वो उसे सोनोग्राफी करवाने की सलाह दे सकते हैं. पूरा चेकअप हो जाने के बाद डॉक्टर आपको कुछ पेनकिलर्स या ओरल कॉन्ट्रासेप्टिव पिल्स लेने की सलाह दे सकते हैं.
मैं ख़्वाब नहीं, हक़ीक़त हूं… मैं ख़्वाहिश नहीं, एक मुकम्मल जहां हूं… किसी की बेटी, बहन या अर्द्धांगिनी बनने से पहले मैं अपने आप में संपूर्ण आसमान हूं, क्योंकि मैं एक व्यक्ति हूं, व्यक्तित्व हूं और मेरा भी अस्तित्व है… मुझमें संवेदनाएं हैं, भावनाएं हैं, जो यह साबित करती हैं कि मैं भी इंसान हूं…
जी हां, एक स्त्री को हम पहले स्त्री और बाद में इंसान के रूप में देखते हैं या फिर यह भी हो सकता है कि हम उसे स़िर्फ और स़िर्फ एक स्त्री ही समझते हैं… उसके अलग अस्तित्व को, उसके अलग व्यक्तित्व को शायद ही हम देख-समझ पाते हैं. यही वजह है कि उसे हम एक शगुन समझने लगते हैं. कभी उसे अपना लकी चार्म बना लेते हैं, तो कभी उसे शापित घोषित करके अपनी असफलताओं को उस पर थोपने का प्रयास करते हैं…
…बहू के क़दम कितने शुभ हैं, घर में आते ही बेटे की तऱक्क़ी हो गई… बेटी नहीं, लक्ष्मी हुई है, इसके पैदा होते ही बिज़नेस कितना तेज़ी से बढ़ने लगा है… अक्सर इस तरह के जुमले हम अपने समाज में सुनते भी हैं और ख़ुद कहते भी हैं… ठीक इसके विपरीत जब कभी कोई दुखद घटना या दुर्घटना हो जाती है, तो भी हम कुछ इस तरह की बातें कहते-सुनते हैं… इस लड़की के क़दम ही शुभ नहीं हैं, पैदा होते ही यह सब हो गया या फिर ससुराल में नई बहू के आने पर यदि कोई दुर्घटना हो जाती है, तब भी इसी तरह की बातें कहने-सुनने को मिलती हैं. कुल मिलाकर बात यही है कि हर घटना को किसी स्त्री के शुभ-अशुभ क़दमों से जोड़कर देखा जाता है और आज हम इसी की चर्चा करेंगे कि यह कहां तक जायज़ है?
– अगर किसी सेलिब्रिटी की लाइफ में कोई लड़की आती है, तो उसकी हर कामयाबी या नाकामयाबी को उस लड़की से जोड़कर देखा जाने लगता है. ऐसे कई उदाहरण हमने देखे हैं, फिर चाहे वो क्रिकेटर हो या कोई एक्टर, उनकी परफॉर्मेंस को हम उस लड़की को पैमाना बनाकर जज करने लगते हैं.
– यहां तक कि हम ख़ुद भी बहुत ही सूक्ष्म स्तर पर यह सब करते हैं, चाहे जान-बूझकर न करें, लेकिन यह हमारी मानसिकता बन चुकी है. श्र हम ख़ुद भी बहुत गर्व महसूस करते हैं, जब हमारा कोई अपना हमारे लिए यह कहे कि तुम मेरे लिए बहुत लकी हो…
– लेडी लक की अक्सर बहुत बातें की जाती हैं और इसे हम सकारात्मक तरी़के से ही लेते हैं, लेकिन ग़ौर करनेवाली बात यह है कि हर सुखद व दुखद घटना को किसी स्त्री के लकी या अनलकी होने से जोड़ना सही है?
– कर्म और भाग्य सबके अपने ही होते हैं, किसी दूसरे को अपने कर्मों या अपने भाग्य के लिए ज़िम्मेदार बताना कितना सही है?
– 42 वर्षीया सुनीता शर्मा (बदला हुआ नाम) ने इस संदर्भ में अपने अनुभव शेयर किए, “मेरी जब शादी हुई थी, तो मेरे पति और ससुरजी का बिज़नेस काफ़ी आगे बढ़ने लगा था. मुझे याद है कि हर बात पर मेरे पति और यहां तक कि मेरी सास भी कहती थीं कि सुनीता इस घर के लिए बहुत लकी है. मेरे पति की जब भी कोई बड़ी बिज़नेस डील फाइनल होती थी, तो घर आकर मुझे ही उसका श्रेय देते थे कि तुम जब से ज़िंदगी में आई हो, सब कुछ अच्छा हो रहा है. कितनी लकी हो तुम मेरे लिए… उस व़क्त मैं ख़ुद को बहुत ही ख़ुशनसीब समझती थी कि इतना प्यार करनेवाला पति और ससुराल मिला है. फिर कुछ सालों बाद मुझे बेटा हुआ, सब कुछ पहले जैसा ही था, बिज़नेस के उतार-चढ़ाव भी वैसे ही थे, कभी अच्छा, तो कभी कम अच्छा होता रहता था. फिर बेटे के जन्म के 3 साल बाद मुझे बेटी हुई. हम सब बहुत ख़ुश थे कि फैमिली कंप्लीट हो गई.
मेरे पति भी अक्सर कहते कि तुम्हारी ही तरह देखना, हमारी बेटी भी हमारे लिए बहुत लकी होगी. मैं ख़ुश हो जाती थी उनकी बातें सुनकर, लेकिन बिटिया के जन्म के कुछ समय बाद ही उनको बिज़नेस में नुक़सान हुआ, तो मेरी सास ने कहना शुरू कर दिया कि जब से गुड़िया का जन्म हुआ है, बिज़नेस आगे बढ़ ही नहीं रहा… मेरे पति भी बीच-बीच में कुछ ऐसी ही बातें करते, तब जाकर मुझे यह महसूस हुआ कि हम कितनी आसानी से किसी लड़की को अपने लिए शुभ-अशुभ घोषित कर देते हैं और यहां तक कि मैं ख़ुद को भी इसके लिए ज़िम्मेदार मानती हूं. जब पहली बार मुझे अपने लिए यह सुनने को मिला था, उसी व़क्त मुझे टोकना चाहिए था, ताकि इस तरह की सोच को पनपने से रोका जा सके.
मैंने अपने घरवालों को प्यार से समझाया, उनसे बात की, उन्हें महसूस करवाया कि इस तरह किसी भी लड़की को लकी या अनलकी कहना ग़लत है. वो लोग समझदार थे, सो समझ गए. कुछ समय बाद हमारा बिज़नेस फिर चल पड़ा, तो यह तो ज़िंदगी के उतार-चढ़ाव लगे रहते हैं, इसके लिए किसी की बेटी-बहू को ज़िम्मेदार ठहराना बहुत ही ग़लत है. समाज को अपनी धारणा बदलनी चाहिए.”
– भले ही हमें यह बात छोटी-सी या ग़ैरज़रूरी लगे, लेकिन अब यह ज़रूरी हो गया है कि हम इस तरह की मानसिकता से बाहर निकलें कि जब कोई क्रिकेटर यदि आउट ऑफ फॉर्म हो, तो उसके लिए पूरा समाज उसकी सेलिब्रिटी गर्लफ्रेंड को दोषी ठहराने लगे. उस पर तरह-तरह के ताने-तंज कसे जाने लगें या उस पर हल्की बातें, अपशब्द, सस्ते जोक्स बनाकर सोशल मीडिया पर फैलाने लगें.
– हम ख़ुद भी इस कुचक्र का हिस्सा बन जाते हैं और इस तरह की बातें सर्कुलेट करते हैं. न्यूज़ में अपनी स्टोरी की टीआरपी बढ़ाने के लिए चटखारे ले-लेकर लोगों के रिएक्शन्स दिखाते हैं, लेकिन इन सबके बीच हम भूल जाते हैं कि जिसके लिए यह सब कहा जा रहा है, उसके मनोबल पर इसका क्या असर होता होगा…?
– किसी को भी किसी के लिए शुभ-अशुभ कहनेवाले भला हम कौन होते हैं? और क्यों किसी लेडी लक के बहाने हर बार एक स्त्री को निशाना बनाया जाता है?
– दरअसल, इन सबके पीछे भी हमारी वही मानसिकता है, जिसमें पुरुषों के अहं को तुष्ट करने की परंपरा चली आ रही है.
– हम भले ही ऊपरी तौर पर इसे अंधविश्वास कहें, लेकिन कहीं न कहीं यह हमारी छोटी मानसिकता को ही दर्शाता है.
– इस तरह के अंधविश्वास किस तरह से रिश्तों व समाज के लिए घातक सिद्ध हो सकते हैं यह समझना ज़रूरी है.
– किसी स्त्री के अस्तित्व पर ही आप प्रश्नचिह्न लगा देते हैं और फिर आप इसी सोच के साथ जीने भी लगते हैं. हर घटना को उसके साथ जोड़कर देखने लगते हैं… क्या यह जायज़ है?
– क्या कभी ऐसा देखा या सुना गया है कि किसी पुरुष को इस तरह से लकी-अनलकी के पैमाने पर तोला गया हो?
– चाहे आम ज़िंदगी हो या फिर सेलिब्रिटीज़, किसी भी पुरुष को इन सबसे नहीं गुज़रना पड़ता, आख़िर क्यों?
– घूम-फिरकर हम फिर वहीं आ रहे हैं कि लेडी लक के बहाने क्यों महिलाओं को ही निशाना बनाया जाता है? और यह कब तक चलता रहेगा?
– सवाल कई हैं, जवाब एक ही- जब तक हमारे समाज की सोच नहीं बदलेगी और इस सोच को बदलने में अब भी सदियां लगेंगी. एक पैमाना ऐसी भी न जाने कितनी घटनाएं आज भी समय-समय पर प्रकाश में आती हैं, जहां किसी महिला को डायन या अपशगुनि घोषित करके प्रताड़ित या समाज से बहिष्कृत कर दिया जाता है. कभी किसी पेड़ से बांधकर, कभी मुंह काला करके, तो कभी निर्वस्त्र करके गांवभर में घुमाया जाता है… हालांकि पहले के मुकाबले अब ऐसी घटनाएं कम ज़रूर हो गई हैं, लेकिन पूरी तरह से बंद नहीं हुई हैं. ये और इस तरह की तमाम घटनाएं महिलाओं के प्रति हमारी उसी सोच को उजागर करती हैं, जहां उन्हें शुभ-अशुभ के तराज़ू में तोला जाता है.
हम सोचते हैं कि व़क्त तेज़ी से बदल रहा है, लेकिन क्या सचमुच ऐसा है? अगर हम यह मान भी लें कि व़क्त बदल रहा है, लेकिन व़क्त के साथ क्या हम भी उतनी ही तेज़ी से बदल रहे हैं? विशेषज्ञों की मानें, तो जिस तेज़ी से भारतीय समाज बदल रहा है, उतनी तेज़ी से लोग, उनकी सोच और हमारा पारिवारिक व सामाजिक ढांचा नहीं बदल रहा. यही वजह है कि महिलाओं की सेक्सुअलिटी को लेकर आज भी हमारा समाज परिपक्व नहीं हुआ है.स़िर्फ समाज ही नहीं, महिलाएं ख़ुद भी अपनी सेक्सुअलिटी को लेकर मैच्योर नहीं हुई हैं.
– आज भी महिलाएं सेक्स शब्द के इस्तेमाल से बचना चाहती हैं.
– वो अपनी सेक्सुअलिटी को लेकर कुछ नहीं बोलतीं.
– ख़ासतौर से अपनी शारीरिक ज़रूरतों को लेकर, सेक्स की चाह को लेकर भी वो कुछ भी बोलने से कतराती हैं.
– वो भले ही अपनी चाहत को कितना ही दबाकर रखें, लेकिन इस बात को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता कि उनमें भी पुरुषों के समान, बल्कि पुरुषों से भी अधिक सेक्सुअल डिज़ायर होती है.
– सबसे बड़ी वजह है हमारा सामाजिक व पारिवारिक ढांचा.
– महिलाओं को इस तरह ट्रेनिंग दी जाती है कि वो सेक्स को ही ग़लत या गंदा समझती हैं.
– यहां तक कि अधिकांश भारतीय पुरुष यह मानकर चलते हैं कि महिलाएं ‘एसेक्सुअल जीव’ हैं यानी उनमें सेक्स की चाह नहीं होती, बल्कि जब उनका पति उनसे सेक्स की चाह रखे, तब ख़ुद को समर्पित कर देना उनका कर्त्तव्य होता है.
– यही वजह है कि उनका मेल पार्टनर उनकी संतुष्टि से अधिक अपनी शारीरिक संतुष्टि पर ध्यान देता है.
– सेक्स को लेकर ये जो अपरिपक्व सोच है, उसी वजह से शादी के बाद भी अधिकतर महिलाएं ऑर्गेज़्म का अनुभव नहीं कर पातीं, क्योंकि उनका पार्टनर इसे महत्वपूर्ण ही नहीं समझता.
– सबसे बड़ी समस्या यह भी है कि वेे अपने पति से अपनी संतुष्टि की बात तक नहीं कर पातीं, क्योंकि उन्हें डर रहता है कि कहीं इससे उनके चरित्र पर तो उंगलियां उठनी शुरू नहीं हो जाएंगी.
अच्छी लड़कियां कैसी होती हैं?
– हमारे समाज में यही धारणा बनी हुई है कि अच्छी लड़कियां सेक्स पर बात नहीं करतीं. बात तो क्या, वो सेक्स के बारे में सोचती तक नहीं.
– अच्छी लड़कियां सेक्स में पहल भी नहीं करतीं.प वो अपने पार्टनर से अपनी संतुष्टि की डिमांड नहीं कर सकतीं.
– अच्छी लड़कियां अपने पति के बारे में ही सोचती हैं. उसका सुख, उसकी संतुष्टि, उसकी सेहत… आदि.
– शादी के बाद उनके शरीर पर उनके पति का ही हक़ होता है. ऐसे में अपने शरीर के बारे में, अपने सुख के बारे में सोचना स्वार्थ होता है.
– अच्छी लड़कियां सेक्स को लेकर फैंटसाइज़ भी नहीं करतीं.
– अच्छी लड़कियां मास्टरबेट नहीं करतीं.
– अच्छी लड़कियां शादी से पहले सेक्स नहीं करतीं.
– उनकी सोच होती है कि उन्हें अपनी वर्जिनिटी अपने पार्टनर के लिए बचाकर रखनी चाहिए.
– अच्छी लड़कियां मेडिकल स्टोर से कंडोम्स नहीं ख़रीदतीं.
– वो अपने वेजाइनल हेल्थ के बारे में बात नहीं करतीं. उन्हें हर चीज़ छुपानी चाहिए, वरना उन्हें इज़्ज़त नहीं मिलेगी.
– अच्छी लड़कियां हमेशा अच्छे कपड़े पहनती हैं. वो छोटे कपड़े नहीं पहनतीं और सिंपल रहती हैं.
– महिलाएं अपनी इंटिमेट हाइजीन पर बात नहीं करतीं, जिसके कारण कई तरह के संक्रमण का शिकार हो जाती हैं.
– पार्टनर को भी कंडोम यूज़ करने के लिए नहीं कह पातीं.
– कंट्रासेप्शन के बारे में भी पार्टनर को नहीं कहतीं, वो ये मानकर चलती हैं कि ये तमाम ज़िम्मेदारियां उनकी ही हैं.
– इन सबके गंभीर परिणाम हो सकते हैं, लेकिन फिर भी हमारा समाज सतर्क नहीं होना चाहता, क्योंकि सेक्स जैसे विषय पर महिलाओं का खुलकर बोलना हमारी सभ्यता व संस्कृति के ख़िलाफ़ माना जाता है.
क्या सचमुच बदल रहा है इंडिया?
– बदलाव हो रहे हैं, यह बात सही है, लड़कियां अब बोल्ड हो रही हैं.
– सेक्स पर बात करती हैं, मेडिकल स्टोर पर जाकर कॉन्ट्रासेप्टिव पिल्स या कंडोम भी ख़रीदती हैं… लेकिन यहां हम बात महिलाओं के बदलाव व परिपक्वता की नहीं कर रहे, बल्कि उनके इस बोल्ड अंदाज़ पर समाज की परिपक्व सोच की बात कर रहे हैं.
– क्योंकि पीरियड्स तक पर बात करना यहां बेशर्मी समझा जाता है, सेक्स तो दूर की बात है.
– हमारे समाज में आज भी लिंग आधारित भेदभाव बहुत गहरा है. शादी से पहले भी और शादी के बाद भी हम पुरुषों के अफेयर्स को स्वीकार कर लेते हैं, लेकिन स्त्री के विषय में हम उसे घर की इज़्ज़त, संस्कार व चरित्र से जोड़कर देखते हैं.
– जबकि सच तो यही है कि जो चीज़ ग़लत है, वो दोनों के लिए ग़लत है.
– अगर कोई लड़की छेड़छाड़ का शिकार होती है, तो आज भी ऐसे लोगों की कमी नहीं, जो छेड़छाड़ के लिए लड़कों की बुरी नियत को नहीं, बल्कि लड़की को ही दोषी ठहराते हैं. कभी उनके कपड़ों को लेकर, तो कभी उनके रहन-सहन व बातचीत के तरीक़ों पर तंज कसकर.
– अगर कोई युवती शादी से पहले प्रेग्नेंट हो जाती है, तो सामाजिक रूप से बहिष्कृत कर दी जाती है, लेकिन उन पुरुषों का क्या, जो शादी से पहले और बाद में भी कई महिलाओं के साथ संबंध बनाते हैं और यहां तक कि उन्हें यूज़ करते हैं, प्रेग्नेंट करते और फिर छोड़ देते हैं, क्योंकि उनकी भी यही धारणा होती है कि शादी से पहले जिस लड़की ने हमारे साथ सेक्स कर लिया, वो पत्नी बनाने के लायक नहीं होती, क्योंकि वो तो चरित्रहीन है.
– आज भी हमारा समाज महिलाओं को समान स्तर के नागरिक के रूप में नहीं स्वीकार पा रहा.
– यही वजह है कि जब भी महिलाओं पर कोई अपराध होता है, तो उसका दोष भी महिलाओं के हावभाव और कपड़ों को दिया जाता है, न कि अपराधी की ग़लत सोच को.
– यह बात दर्शाती है कि हम फीमेल सेक्सुअलिटी को लेकर आज भी कितने अपरिपक्व हैं.