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Worship
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हम सब के साथ कभी न कभी ऐसा अवश्य हुआ है कि हम पूजा करने के लिए ज्योत जगाते हैं और किसी कारणवश दीया बुझ जाता है. ऐसा होते ही हम या हमारे आसपास खड़े लोगों के मन में शंका व वहम घर कर जाता है कि न जाने अब क्या अशुभ होगा. क्या सही में ज्योत का बुझ जाना अशुभ संकेत है? शुभ-अशुभ मान्यताओं की सच्चाई बता रही हैं एस्ट्रो-टैरो-न्यूमरोलॉजी-वास्तु व फेंगशुई एक्सपर्ट मनीषा कौशिक.
पूजा करते समय दीया बुझ जाने को अशुभ क्यों माना जाता है?
किसी पूजा-अनुष्ठान में या घर में पूजा करते हुए यदि दीया बुझ जाता है, तो सभी लोग परेशान हो जाते हैं. दीया बुझने को ज़्यादातर लोग अशुभ संकेत मानते हैं. कई लोग ये भी मानते हैं कि भगवान ने पूजा स्वीकार नहीं की. हमारे घर के बड़े दीया बुझने को अशुभ मानते हैं इसलिए हम भी दीया बुझ जाने से घबरा जाते हैं.
पूजा करते समय दीया बुझ जाए, तो करें ये…
अगर हम ज्योत जलाने की प्रक्रिया को शुरू से देखें, तो वो इस प्रकार होगी- सबसे पहले हम मंदिर में ज्योत के दीये को धोकर साफ़ करते हैं, फिर रूई या कलावा की बत्ती बनाते हैं. कुछ लोग इस बत्ती को बनाने के लिए दो बूंद पानी का इस्तेमाल भी करते हैं. उसके बाद दीये के बीच उस ज्योत को स्टैंड में लगा उसमें घी या तेल डालते हैं. इस प्रक्रिया में दीये को धोते समय ठीक से सुखाया न जाए या दीये के स्टैंड को ठीक से दाफ़ न किया जाए या फिर बत्ती बनाते समय उसमें ज़्यादा पानी लग जाए, तो ज्योत ठीक से नहीं जलेगी. ऐसी स्थिति में दीया बुझ भी सकता है. दीया बुझ जाने को अशुभ मानने की कोई ज़रूरत नहीं है. ईश्वर से क्षमा मांगकर आप फिर से दीया जला लें.

महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।।
या देवी सर्वभूतेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
मां की श्रद्धापूर्वक पूजा, ध्यान-आराधना करने से सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं.
जिस तरह सप्तमी में मां की पूजा की थी, उसी तरह अष्टमी में भी मां की पूजा करें.
अष्टमी के दिन महिलाएं अपने सुहाग के लिए मां को चुनरी भेंट करती हैं.
ध्यान
वन्दे वांछित कामार्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा महागौरी यशस्वनीम्॥
पूर्णन्दु निभां गौरी सोमचक्रस्थितां अष्टमं महागौरी त्रिनेत्राम्।
वराभीतिकरां त्रिशूल डमरूधरां महागौरी भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर किंकिणी रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वंदना पल्ल्वाधरां कातं कपोलां त्रैलोक्य मोहनम्।
कमनीया लावण्यां मृणांल चंदनगंधलिप्ताम्॥
स्तोत्र
सर्वसंकट हंत्री त्वंहि धन ऐश्वर्य प्रदायनीम्।
ज्ञानदा चतुर्वेदमयी महागौरी प्रणमाभ्यहम्॥
सुख शान्तिदात्री धन धान्य प्रदीयनीम्।
डमरूवाद्य प्रिया अद्या महागौरी प्रणमाभ्यहम्॥
त्रैलोक्यमंगल त्वंहि तापत्रय हारिणीम्।
वददं चैतन्यमयी महागौरी प्रणमाम्यहम्॥
कवच
ओंकारः पातु शीर्षो मां, हीं बीजं मां, हृदयो।
क्लीं बीजं सदापातु नभो गृहो च पादयो॥
ललाटं कर्णो हुं बीजं पातु महागौरी मां नेत्रं घ्राणो।
कपोत चिबुको फट् पातु स्वाहा मा सर्ववदनो॥
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सिद्धियां प्रदान करनेवाली मां सिद्धिदात्री…
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:
नवरात्रि के नौंवे दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा-आराधना का विधान है.
चार भुजाओंवाली देवी सिद्धिदात्री सिंह पर सवार श्वेत वस्त्र धारण कर कमल पुष्प पर विराजमान है.
शास्त्रों के अनुसार, अणिमा, महिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, गरिमा व वशित्व ये आठ सिद्धियां हैं.
मां अपने भक्तों को ये सभी सिद्धियां प्रदान करती हैं, इसलिए इन्हें सिद्धिदात्री देवी के रूप में पूजा जाता है.
नवरात्रि में नौ दिन का व्रत रखनेवालों को नौ कन्याओं को नौ देवियों के रूप में पूजना चाहिए.
साथ ही इन सभी को भोग, दान-दक्षिणा आदि देने से दुर्गा मां प्रसन्न होती हैं.
पूजा के बाद आरती व क्षमा प्रार्थना करें.
हवन में चढ़ाया गया प्रसाद सभी को श्रद्धापूर्वक बांटें.
हवन की अग्नि ठंडी हो जाने पर जल में विसर्जित कर दें.
यदि चाहें, तो भक्तों में भी बांट सकते हैं.
मान्यता अनुसार, इस भस्म से बीमारी, चिंता-परेशानी, ग्रह दोष आदि दूर होते हैं.
बीज मंत्र
ऊँ ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे नमो नम:
ध्यान
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
कमलस्थितां चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्वनीम्॥
स्वर्णावर्णा निर्वाणचक्रस्थितां नवम् दुर्गा त्रिनेत्राम्।
शख, चक्र, गदा, पदम, धरां सिद्धीदात्री भजेम्॥
पटाम्बर, परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदना पल्लवाधरां कातं कपोला पीनपयोधराम्।
कमनीयां लावण्यां श्रीणकटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
स्तोत्र
कंचनाभा शखचक्रगदापद्मधरा मुकुटोज्वलो।
स्मेरमुखी शिवपत्नी सिध्दिदात्री नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकारं भूषिता।
नलिस्थितां नलनार्क्षी सिद्धीदात्री नमोअस्तुते॥
परमानंदमयी देवी परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति, सिध्दिदात्री नमोअस्तुते॥
विश्वकर्ती, विश्वभती, विश्वहर्ती, विश्वप्रीता।
विश्व वार्चिता विश्वातीता सिध्दिदात्री नमोअस्तुते॥
भुक्तिमुक्तिकारिणी भक्तकष्टनिवारिणी।
भव सागर तारिणी सिध्दिदात्री नमोअस्तुते॥
धर्मार्थकाम प्रदायिनी महामोह विनाशिनी।
मोक्षदायिनी सिद्धीदायिनी सिध्दिदात्री नमोअस्तुते॥
कवच
ओंकारपातु शीर्षो मां ऐं बीजं मां हृदयो।
हीं बीजं सदापातु नभो, गुहो च पादयो॥
ललाट कर्णो श्रीं बीजपातु क्लीं बीजं मां नेत्र घ्राणो।
कपोल चिबुको हसौ पातु जगत्प्रसूत्यै मां सर्व वदनो॥
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ख्यात्यै तथैव कृष्णायै धूम्रायै सततं नमः
या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:
नवरात्रि के पांचवें दिन अंबे मां के पांचवें स्वरूप स्कन्दमाता की पूजा-आराधना की जाती है.
मां अपने भक्तों की सभी इच्छाओं को पूर्ण करती हैं.
मां को माहेश्वरी व गौरी के नाम से भी जाना जाता है.
महादेव शिव की वामिनी यानी पत्नी होने के कारण माहेश्वरी भी कहलाती हैं.
अपने गौर वर्ण के कारण गौरी के रूप में पूजी जाती है.
मां को अपने पुत्र स्कन्द (कार्तिकेय) से अत्यधिक प्रेम होने के कारण पुत्र के नाम से कहलाना पसंद करती हैं, इसलिए इन्हें स्कन्दमाता कहा जाता है.
अपने भक्तों के प्रति इनका वात्सल्य रूप प्रसिद्ध है.
कमल के आसन पर विराजमान होने के कारण इन्हें पद्यासना भी कहते हैं.
स्कन्दमाता अपने इस स्वरूप में स्कन्द के बालरूप को अपनी गोद में लेकर विराजमान रहती हैं.
इनकी चार भुजाएं हैं. दाईं ओर कमल का फूल व बाईं तरफ़ वरदमुद्रा है.
इनका वाहन सिंह है.
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सिंहासनगता नित्यं पद्याश्रितकरद्वया
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी
संतान की कामना करनेवाले भक्तगण इनकी विशेष रूप से पूजा करते हैं.
वे इस दिन लाल वस्त्र में लाल फूल, सुहाग की वस्तुएं- सिंदूर, लाल चूड़ी, महावर, लाल बिंदी, फल, चावल आदि बांधकर मां की गोद भरनी करते हैं.
ध्यान
वंदे वांछित कामार्थे चंद्रार्धकृतशेखराम्
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा स्कंदमाता यशस्वनीम्
धवलवर्णा विशुद्ध चक्रस्थितों पंचम दुर्गा त्रिनेत्रम्
अभय पद्म युग्म करां दक्षिण उरू पुत्रधराम् भजेम्
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानांलकार भूषिताम्
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल धारिणीम्
प्रफु्रल्ल वंदना पल्लवांधरा कांत कपोला पीन पयोधराम्
कमनीया लावण्या चारू त्रिवली नितम्बनीम्
कवच
ऐं बीजालिंका देवी पदयुग्मघरापरा। हृदयं पातु सा देवी कार्तिकेययुता॥
श्री हीं हुं देवी पर्वस्या पातु सर्वदा। सर्वांग में सदा पातु स्कन्धमाता पुत्रप्रदा॥
वाणंवपणमृते हुं फ्ट बीज समन्विता। उत्तरस्या तथाग्नेव वारुणे नैॠतेअवतु॥
इन्द्राणां भैरवी चैवासितांगी च संहारिणी। सर्वदा पातु मां देवी चान्यान्यासु हि दिक्षु वै॥
यदि आप कफ़, वात, पित्त जैसी बीमारियों से ग्रस्त हैं, तो आपको स्कंदमाता की विशेष रूप से पूजा करनी चाहिए.
मां को अलसी चढ़ाकर प्रसाद में रूप में ग्रहण करना चाहिए.
केले का भोग लगाना चाहिए, क्योंकि केला मां को प्रिय है.

या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
देवी कूष्मांडा अष्टभुजा से युक्त है,
इसलिए इन्हें अष्टभुजा भी कहा जाता है.
जिस तरह से ब्रह्माचारिणी व चंद्रघंटा देवी
की पूजा-अर्चना की जाती है,
उसी तरह से कूष्मांडा देवी की पूजा का विधान है.
इनकी पूजा करने से आयु, यश व आरोग्य त कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्.
सिंहरूढा अष्टभुजा कुष्माण्डा यशस्वनीम्॥
भास्वर भानु निभां अनाहत स्थितां चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्.
कमण्डलु चाप, बाण, पदमसुधाकलश चक्र गदा जपवटीधराम्॥
पटाम्बर परिधानां कमनीया कृदुहगस्या नानालंकार भूषिताम्.
मंजीर हार केयूर किंकिण रत्नकुण्डल मण्डिताम्.
प्रफुल्ल वदनां नारू चिकुकां कांत कपोलां तुंग कूचाम्.
कोलांगी स्मेरमुखीं क्षीणकटि निम्ननाभि नितम्बनीम् ॥
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स्त्रोत मंत्र
दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दारिद्रादि विनाशिनीम्.
जयंदा धनदां कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
जगन्माता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्.
चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यसुंदरी त्वंहि दु:ख शोक निवारिणाम्.
परमानंदमयी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
कवच मंत्र
हसरै मे शिर: पातु कूष्माण्डे भवनाशिनीम्.
हसलकरीं नेत्रथ, हसरौश्च ललाटकम्॥
कौमारी पातु सर्वगात्रे वाराही उत्तरे तथा.
पूर्वे पातु वैष्णवी इन्द्राणी दक्षिणे मम.
दिग्दिध सर्वत्रैव कूं बीजं सर्वदावतु॥
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या देवी सर्वभूतेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
नवरात्रि के तीसरे दिन चंद्रघंटा देवी की पूजा की जाती है.
देवी का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है.
इनके मस्तक पर घंटे के आकार का आधा चंद्र है,
इसलिए इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है.
इनके दस हाथ हैं, जो कमल, धनुष-बाण, कमंडल,
त्रिशूल, गदा, खड्ग, अस्त्र-शस्त्र से विभूषित हैं.
चंद्रघंटा देवी की सवारी सिंह है.
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पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता
इस दिन सांवली रंगत की महिला को घर बुलाकर पूजा-अर्चना करें.
भोजन में दही-हलवा आदि खिलाएं.
कलश व मंदिर की घंटी भेंट करें.
इनकी आराधना करने से निर्भयता व सौम्यता दोनों ही प्राप्त होती है.
इनके घंटे की ध्वनि सदा अपने भक्तों की प्रेतबाधा से रक्षा करती है.
स्त्रोत मंत्र
ध्यान वन्दे वाच्छित लाभाय चन्द्रर्घकृत शेखराम।
सिंहारूढा दशभुजां चन्द्रघण्टा यशंस्वनीम्घ
कंचनाभां मणिपुर स्थितां तृतीयं दुर्गा त्रिनेत्राम।
खड्ग, गदा, त्रिशूल, चापशंर पद्म कमण्डलु माला वराभीतकराम्घ
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्यां नानालंकार भूषिताम।
मंजीर हार, केयूर, किंकिणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम्घ
प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलां तुग कुचाम।
कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटिं नितम्बनीम्घ
स्तोत्र आपद्धद्धयी त्वंहि आधा शक्तिरू शुभा पराम।
अणिमादि सिद्धिदात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यीहम्घ्
चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्ट मंत्र स्वरूपणीम।
धनदात्री आनंददात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्घ
नानारूपधारिणी इच्छामयी ऐश्वर्यदायनीम।
सौभाग्यारोग्य दायिनी चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्घ्
कवच रहस्यं श्रणु वक्ष्यामि शैवेशी कमलानने।
श्री चन्द्रघण्टास्य कवचं सर्वसिद्धि दायकम्घ
बिना न्यासं बिना विनियोगं बिना शापोद्धरं बिना होमं।
स्नान शौचादिकं नास्ति श्रद्धामात्रेण सिद्धिकमघ
कुशिष्याम कुटिलाय वंचकाय निन्दकाय च।
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अक्षय तृतीया (Akshaya Tritiya) के पीछे बहुत सारी मान्यताएं और बहुत सारी कहानियां भी जुड़ी हैं. इसे भगवान परशुराम जन्मदिन यानी परशुराम जयंती के रूप में भी मनाया जाता है. भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम के अलावा विष्णु के अवतार नर व नारायण के अवतरित होने की मान्यता भी इसी दिन से जुड़ी है. यह भी मान्यता है कि त्रेता युग का आरंभ इसी तिथि से हुआ था. मान्यता के अनुसार इस तिथि को उपवास रखने, दान करने से अनंत फल की प्राप्ति होती है यानी इस दिन व्रत रखने वाले को कभी भी किसी चीज़ का अभाव नहीं होता, उसके भंडार हमेशा भरे रहते हैं. चूंकि इस व्रत का फल कभी कम न होने वाला, कभी न घटने वाला, कभी नष्ट न होने वाला होता है, इसलिए इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है. अक्षय तृतीया 2020 का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और मान्यताओं से जुड़ी सभी जानकारी दे रहे हैं पंडित राजेंद्रजी.
अक्षय तृतीया 26 अप्रैल 2020: जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और मान्यताएं
अक्षय तृतीया पूजा मुहूर्त – 05:48 से 12:19
सोना खरीदने का शुभ समय – 05:48 से 13:22
तृतीया तिथि प्रारंभ – 11:51 (25 अप्रैल 2020)
तृतीया तिथि समाप्ति – 13:22 (26 अप्रैल 2020)
अक्षय तृतीया से जुड़ी मान्यताएं
- माना जाता है कि जो लोग इस दिन अपने सौभाग्य को दूसरों के साथ बांटते हैं, उन्हें ईश्वर की असीम अनुकंपा प्राप्त होती है. इस दिन दिए गए दान से अक्षय फल की प्राप्ति होती है. सुख-समृद्धि और सौभाग्य की कामना से इस दिन शिव-पार्वती और नर-नारायण की पूजा का विधान है.
- अक्षय तृतीया के दिन दान को श्रेष्ठ माना गया है. चूंकि वैशाख मास में सूर्य की तेज धूप और गर्मी चारों ओर रहती है और यह आकुलता को बढ़ाती है, तो इस तिथि पर शीतल जल, कलश, चावल, चना, दूध, दही आदि खाद्य पदार्थों सहित वस्त्राभूषणों का दान अक्षय व अमिट पुण्यकारी होता है.
अक्षय तृतीया के शुभ अवसर पर जानें मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के आसान उपाय
1) लग्न राशि के ‘स्वामी ग्रह’ को करें प्रसन्न
प्रत्येक जातक की एक चन्द्र राशि होती है और इसी तरह कुंडली में जन्म के समय से संबंधित एक लग्न राशि भी होती है. जातक के गुण व व्यवहार को लग्न राशि काफी हद तक प्रभावित करती है. यदि किसी के कार्य नहीं बन पा रहे हैं या आर्थिक रूप से तकलीफ में हैं, तो अपनी लग्न राशि के ‘स्वामी ग्रह’ के अनुकूल रंग की कोई वस्तु अपने साथ जरूर रखें या स्वामी ग्रह के रंग से संबंधित कोई एक छोटा कपड़ा अपने साथ जरूर रखें.
2) अलमारी रखें उचित स्थान पर
धन की अलमारी उत्तर दिशा के कमरे में दक्षिण की दीवार पर अगर लगी हो, तो यह धनवृद्धि में लाभदायक साबित हो सकती है.
3) मुख्य द्वार पर दीपक लगाएं
प्रात: सुबह लक्ष्मीजी का पूजन घर में प्रतिदिन किया जाना चाहिए और सायंकाल घर के मुख्य द्वार पर दाईं ओर एक घी का दीया जरूर जलाना चाहिए. इन दोनों कार्यों से धन की देवी लक्ष्मीजी प्रसन्न होकर व्यक्ति के पास ही रहती हैं.
4) घर के मुख्य द्वार पर गणेशजी का स्वरूप
गणेश भगवान के स्वरूप को घर के मुख्य द्वार पर लगाने से घर में धन संबंधित सभी समस्याओं का अंत होता है और घर में नकारात्मक शक्तियों का भी उदय नहीं हो पाता है.
5) घर में तुलसीजी का पौधा लगाएं
तुलसीजी की सेवा करने से धन-धान्य की कोई कमी नहीं होती है. तुलसी के पौधे पर नियमित रूप से दीपक लगाने और पूजन से मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है.
6) गोमाता को चारा खिलाएं
नित्य सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर गोमाता को हरा चारा या आटे का भोग लगाने से भी लक्ष्मीजी प्रसन्न होती हैं.
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अक्षय तृतीया पर करें 14 तरह के दान, देखें जीवन में चमत्कार
चूंकि तृतीया मां गौरी की तिथि है, इसलिए इस दिन गृहस्थ जीवन में सुख-शांति की कामना से की गई प्रार्थना तुरंत स्वीकार होती है. गृहस्थ जीवन को खुशहाल रखने के लिए इस दिन उनकी पूजा की जानी चाहिए.
अक्षय तृतीया के दिन ये 14 दान हैं महत्वपूर्ण
1) गौ,
2) भूमि
3) तिल
4) स्वर्ण
5) घी
6) वस्त्र
7) धान्य
8) गुड़
9) चांदी
10) नमक
11) शहद
12) मटकी
13) खरबूजा
14) कन्या