शरद मल्होत्रा कहते हैं, "जब मैं कमाटीपुरा गया, तो मैंने उन चेहरों को देखा, जिन्हें हम कभी नहीं देखते. उस प्रोफेशन के लोगों से मिला, जिनके बारे में हम बात तक नहीं करते. जब सूरज ढलता है, तो इस इलाके की गतिविधियां बढ़ जाती हैं, रात से लेकर सवेरे तक इस इलाके में जाने कितनी कहानियां बनती हैं.
मेरे लिए ये एक बहुत ख़ास अनुभव था जब मैं उस इलाके की कई ख़ूबसूरत महिलाओं से मिला. ख़ास बात ये है कि उन महिलाओं ने मेरा मुस्कुराकर स्वागत किया. शुरुआत में मैं थोड़ा हिचकिचा रहा था, लेकिन कुछ समय बाद मैं उनके साथ घुल-मिल गया. मैं इस अनुभव को कभी नहीं भूल सकता."
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