Close

नौकरी के मामले में शादीशुदा महिलाएं हैं आगे, मगर बेटे को लेकर नहीं बदली सोच (More married women than single women are working)

working women आमतौर पर आज भी ये धारणा है कि शादी के बाद महिलाओं का करियर ख़त्म हो जाता है, मगर 2011 की जनगणना रिपोर्ट में जो आंकड़े सामने आए हैं, वो तो कुछ और ही कहानी बयां करते हैं. इसके मुताबिक, नौकरी के मामले में शादीशुदा महिलाएं सिंगल महिलाओं से कहीं आगे हैं. नौकरी में मारी बाज़ी शादी के बाद घर-परिवार की ज़िम्मेदारियों के साथ प्रोफेशनल लाइफ मैनेज करना आसान नहीं होता, रसोई के साथ ही ऑफिस की कुर्सी संभालना वर्किंग महिलाओं के लिए किसी जंग से कम नहीं और वो ये जंग लड़ना बख़ूबी जानती हैं. 2011 की जनगणना रिपोर्ट भी इस बात की तस्दीक करती है. इसके मुताबिक, नौकरी के मामले में सिंगल और विवाहित महिलाओं में काफ़ी अंतर है. जहां 41 प्रतिशत विवाहित महिलाएं नौकरीपेशा हैं, वहीं स़िर्फ 27 प्रतिशत अविवाहित महिलाएं ही वर्किंग हैं. बेटे के प्रति नहीं बदली सोच नौकरी के मामले में जनगणना के आंकड़े जहां विवाहित महिलाओं के सकारात्मक विकास को बयां करते हैं, वहीं स़िर्फ बेटे की चाहत लिंगभेद की तरफ़ इशारा करते हैं. आमतौर पर वर्किंग महिलाएं एक ही बच्चा चाहती हैं, क्योंकि करियर और घर के साथ बच्चों की परवरिश बहुत मुश्किल होती है. साथ ही आर्थिक बोझ भी बढ़ता है, मगर हैरानी वाली बात तो ये है कि एक बच्चे के रूप में वो बेटे की ही चाहत रखती हैं, जो पितृसत्ता की तरफ इशारा करता है. यानी करियर में आगे होने के बावजूद बेटे के प्रति परंपरावादी सोच में बदलाव नहीं आया है. रिपोर्ट के मुताबिक, विवाहित महिलाओं की इस सोच की वजह से लिंगानुपात में कमी दर्ज की जा रही है. ये हमारे देश की विडंबना ही है कि तमाम प्रयासों के बावजूद ‘बेटा ही तो वंश बढ़ाएगा’ वाली सोच बदली नहीं है. हां, कुछ परिवार अपवाद ज़रूर हैं. अविवाहित महिलाएं नौकरी में पीछे क्यों? रिपोर्ट के अनुसार, 15-49 उम्र समूह में स़िर्फ 27 फीसदी अविवाहित महिलाएं ही कामकाजी हैं. जानकारों का कहना है कि ज़्यादातर अविवाहित लड़कियों को उनका परिवार नौकरी करने की इजाज़त नहीं देता है. कुछ लड़कियां कॉलेज में पढ़ रही होती हैं. जानकारों के अनुसार, सामान्य तौर पर भारतीय मानसिकता होती है कि अविवाहित महिलाओं को घर की दहलीज नहीं पार करनी चाहिए. ग्रामीण और शहरी महिलाओं में फर्क़ रिपोर्ट में एक और चौंकाने वाली बात सामने आई है. इसके मुताबिक़, ग्रामीण इलाकों में जहां क़रीब 50 फीसदी विवाहित महिलाएं कामकाजी है, वहीं शहरों में स़िर्फ 22 प्रतिशत शादीशुदा महिलाएं ही वर्किंग है, साथ ही उनकी प्रजनन दर में भी कमी आई है. शहरों में लिंगानुपात भी घटा है. शहरों में कामकाजी महिलाओं को औसतन दो बच्चे हैं, जबकि ग्रामीण इलाकों में ये आंकड़ा 3 से 4 का है.

- कंचन सिंह

Share this article