20 वास्तु टिप्स पूजाघर के लिए (20 vastu tips for pooja room)
Share
5 min read
0Claps
+0
Share
ये सच है कि ईश्वर सर्वव्यापी हैं और वे हमेशा सबका कल्याण ही करेंगे, लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि दिशाओं के स्वामी भी देवता ही हैं. अत: आवश्यक है कि पूजा स्थल बनवाते समय भी वास्तु के कुछ नियमों का ध्यान रखा जाए.
* घर में कुलदेवता का चित्र होना अत्यंत शुभ है. इसे पूर्व या उत्तर की दीवार पर लगाना श्रेष्ठकर है.
* पूजा घर का द्वार टिन या लोहे की ग्रिल का नहीं होना चाहिए.
* आश्विन माह में दुर्गा माता के मंदिर की स्थापना करना शुभ माना गया है. इसका बहुत पुण्य फल मिलता है.
* घर में एक बित्ते से अधिक बड़ी पत्थर की मूर्ति की स्थापना करने से गृहस्वामी की सन्तान नहीं होती. उसकी स्थापना पूजा स्थान में ही करनी चाहिए.
* पूजा घर शौचालय के ठीक ऊपर या नीचे न हो.
* पूजा घर शयन-कक्ष में न बनाएं.
* घर में दो शिवलिंग, तीन गणेश, दो शंख, दो सूर्य-प्रतिमा, तीन देवी प्रतिमा, दो द्वारका के (गोमती) चक्र और दो शालिग्राम का पूजन करने से गृहस्वामी को अशान्ति प्राप्त होती है.
* पूजा घर का रंग स़फेद या हल्का क्रीम होना चाहिए.
* भूल से भी भगवान की तस्वीर या मूूर्ति आदि नैऋत्य कोण में न रखें. इससे बनते कार्यों में रुकावटें आती हैं.
यह भी पढ़ें: किचन के लिए Effective वास्तु टिप्स, जो रखेगा आपको हेल्दी
* पूजा स्थल के लिए भवन का उत्तर पूर्व कोना सबसे उत्तम होता है. पूजा स्थल की भूमि उत्तर पूर्व की ओर झुकी हुई और दक्षिण-पश्चिम से ऊंची हो, आकार में चौकोर या गोल हो तो सर्वोत्तम होती है.
* मंदिर की ऊंचाई उसकी चौड़ाई से दुगुनी होनी चाहिए. मंदिर के परिसर का फैलाव ऊंचाई से 1/3 होना चाहिए.
* मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा उस देवता के प्रमुख दिन पर ही करें या जब चंद्र पूर्ण हो अर्थात 5,10,15 तिथि को ही मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा करें.
* शयनकक्ष में पूजा स्थल नहीं होना चाहिए. अगर जगह की कमी के कारण मंदिर शयनकक्ष में बना हो तो मंदिर के चारों ओर पर्दे लगा दें. इसके अलावा शयनकक्ष के उत्तर पूर्व दिशा में पूजास्थल होना चाहिए.
* ब्रह्मा, विष्णु, शिव, सूर्य और कार्तिकेय, गणेश, दुर्गा की मूर्तियों का मुंह पश्चिम दिशा की ओर होना चाहिए कुबेर, भैरव का मुंह दक्षिण की तरफ़ हो, हनुमान का मुंह दक्षिण या नैऋत्य की तरफ़ हो.
* उग्र देवता(जैसे काली) की स्थापना घर में न करें.
[amazon_link asins='B075BWST6H,B00KAB6WME,B01N1YKP59,B01N0DQ7EQ,B06XSZVK35,B01DYC8JYY' template='ProductCarousel' store='pbc02-21' marketplace='IN' link_id='0ce4e213-baf5-11e7-bd4e-455c35c2ae4f']
यह भी पढ़ें: रसोई की ग़लत दिशा बिगाड़ सकती है सेहत और रिश्ते भी
* पूजास्थल में भगवान या मूर्ति का मुख पूर्व या पश्चिम की तरफ़ होना चाहिए और उत्तर दिशा की ओर नहीं होना चाहिए, क्योंकि ऐसी दशा में उपासक दक्षिणामुख होकर पूजा करेगा, जो कि उचित नहीं है.
* पूजाघर के आसपास, ऊपर या नीचे शौचालय वर्जित है. पूजाघर में और इसके आसपास पूर्णत: स्वच्छता तथा शुद्वता होना अनिवार्य है.
* रसोई घर, शौचालय, पूजाघर एक-दूसरे के पास न बनाएं. घर में सीढ़ियों के नीचे पूजाघर नहीं होना चाहिए.
* मूर्ति के आमने-सामने पूजा के दौरान कभी नहीं बैठना चाहिए, बल्कि सदैव दाएं कोण में बैठना उत्तम होगा.
* पूजन कक्ष में मृतात्माओं का चित्र वर्जित है. किसी भी श्रीदेवता की टूटी-फूटी मूर्ति या तस्वीर व सौंदर्य प्रसाधन का सामान, झाडू व अनावश्यक सामान
* पूजागृह के द्वार पर दहलीज़ ज़रूर बनवानी चाहिए. द्वार पर दरवाज़ा, लकड़ी से बने दो पल्लोंवाला हो तो अच्छा होगा. घर में बैठे हुए गणेशजी की प्रतिमा ही रखनी चाहिए.
वास्तु और फेंगशुई के जानकारी से भरपूर आर्टिकल्स के लिए यहां क्लिक करें: Vastu and Fengshui