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कहानी- तुम न करना… 1 (Story Series- Tum Na Karna… 1)

“दुश्मन नहीं होगी ये जानती हूं, पर तुम नहीं जानती कि ऐसी बातों का प्रभाव बच्चों पर अच्छा नहीं पड़ता है. बहन ही क्यों हर रिश्ते के लिए हमें सजग रहना चाहिए. हमें बच्चों के साथ आपसी रिश्तों में मधुरता बांटनी चाहिए न कि तल्ख़ी और कड़वाहट. जानती हूं, तू शुभ्रा से बहुत प्यार करती है. ये भी समझती हूं कि उसी प्यार के चलते तुम लोग एक-दूसरे को अधिकारपूर्ण उलाहना दे देते हो. हमारे मन में एक-दूसरे के प्रति द्वेष की भावना नहीं है, ये हम समझते हैं, पर ये अबोध बच्चे नहीं... ” “नानी, घूमने  कब जाएंगे...”  छह साल की नन्हीं कुहू ने अपनी नानी से मायूसी से पूछा, तो सुलभा बोली, “क्या बताऊं, अभी तक तेरी मौसी नहीं आई. लगता है किसी काम में फंस गई.” “तेरी मौसी के कारण सारा प्रोग्राम चौपट हो गया...” ग़ुस्से में झुंझलाती  भावना ने अपनी बेटी कुहू से कहा, तो   सुलभा के चेहरे पर नागवार भाव उभरे. भावना छोटी बहन शुभ्रा पर भड़ास निकालते हुए बोलती रही, “शुभ्रा की शादी क्या हो गई, अपने ससुरालवालों को इंप्रेस करने के चक्कर में हमें नज़रअंदाज़ कर देती है. उस दिन भी बेचारी कुहू कितनी देर तक अपने जन्मदिन पर उसका इंतज़ार करती रही, पर मैडम चाची बन गई हैं न... सो अपनी जेठानी के बेटे के बर्थडे में व्यस्त हो गई और हम यहां बेवकूफ़ की तरह उसकी राह देखते रहे.” “हां नानी, मौसी मेरे बर्थडे पर नहीं आई थीं...” नन्हीं कुहू अपनी मम्मी की हां में हां मिलाती दिखी, तो सुलभा हैरानी से बोली, “हे भगवान, क्या हो गया है तुम लोगों को... नई-नई  ससुराल के साथ तालमेल बैठाना भी तो ज़रूरी है. क्यों बेवजह उस बेचारी के पीछे पड़ गई हो.” “ज़्यादा बेचारी-वेचारी कहकर उसकी तरफ़दारी मत करो...” भावना के तल्ख़ अंदाज़ पर सुलभा सन्न रह गई. दो दिन पहले ही सुलभा कुछ दिनों के लिए अपनी बड़ी बेटी भावना के पास आई है. भावना अपने पति और छह साल की बेटी कुहू के साथ जयपुर में रहती है. छह महीने पहले ब्याही छोटी बेटी शुभ्रा की ससुराल भी जयपुर में ही है. शुभ्रा की ससुराल में उनके साथ सास-ससुर जेठ-जेठानी और उनका बेटा भी रहता है. शुभ्रा और भावना के एक ही शहर में होने से सुलभा बहुत ख़ुश थी... पर आज की परिस्थिति देखकर उसे लग रहा था कि ये दोनों बहनें दूर ही रहतीं, तो सही था. शुभ्रा आज अपना दिन मां और बहन के साथ बितानेवाली थी. जयपुर दर्शन के साथ सबका डिज़नी फेयर देखने का कार्यक्रम था. कुहू दोपहर बारह बजे से अपने मौसी-मौसा के आने पर डिज़नी फेयर जाने की राह देख रही थी. पर शाम के पांच बज गए, शुभ्रा का कहीं कोई अता-पता नहीं था... उसके समय से घर न पहुंचने की वजह से सारा प्रोग्राम खटाई में पड़ता देख कुहू उदास हो कह रही थी, “मौसी से कट्टी... बहुत गंदी हैं मौसी. उनकी वजह से आज हम घूमने नहीं जा पाएंगे...” यह भी पढ़ेगुम होता प्यार… तकनीकी होते एहसास… (This Is How Technology Is Affecting Our Relationships?) “सच में बहुत गंदी है तेरी मौसी...” भावना के कहते ही सुलभा का मन दरक गया. कहे बिना वह रह न पाई. “भावना, ये क्या तरीक़ा है, शुभ्रा तेरी छोटी बहन है और कुहू की मौसी. इस रिश्ते का लिहाज़ करते हुए कुहू को समझाओ कि मौसी किसी ज़रूरी काम में फंस गई होगी. आज नहीं गए, तो क्या कल चले जाएंगे...” “हे भगवान! मम्मी आप भी न... अरे, हम बहनों के बीच का मामला है, आप क्यों परेशान हो. सोचो, उसकी वजह से गड़बड़ा गया सारा कार्यक्रम. ग़ुस्सा नहीं आएगा क्या. आप भी पता नहीं क्या-क्या सोच लेती हो. मैंने तो कुहू से यूं ही कह दिया. आप तो ऐसे कह रही हो, जैसे कुहू आज से अपनी मौसी की दुश्मन हो जाएगी.” “दुश्मन नहीं होगी ये जानती हूं, पर तुम नहीं जानती कि ऐसी बातों का प्रभाव बच्चों पर अच्छा नहीं पड़ता है. बहन ही क्यों हर रिश्ते के लिए हमें सजग रहना चाहिए. हमें बच्चों के साथ आपसी रिश्तों में मधुरता बांटनी चाहिए न कि तल्ख़ी और कड़वाहट. जानती हूं, तू शुभ्रा से बहुत प्यार करती है. ये भी समझती हूं कि उसी प्यार के चलते तुम लोग एक-दूसरे को अधिकारपूर्ण उलाहना दे देते हो. हमारे मन में एक-दूसरे के प्रति द्वेष की भावना नहीं है, ये हम समझते हैं, पर ये अबोध बच्चे नहीं... आपसी रिश्तों में यदि किसी बात पर ग़ुस्सा आ भी गया, तो इन बच्चों के सामने उसे प्रकट मत करो. तुम्हारा ग़ुस्सा कल प्रेम में बदल जाएगा, पर इनके मन में पनपा ईर्ष्या-द्वेष-क्रोध का अंकुर इनके मन में अपनी जड़ें पसार लेगा.” भावना अपनी मां की तीव्र प्रतिक्रिया देख हतप्रभ थी. सुलभा की इस तीव्र प्रतिक्रिया के पीछे उसे कोई कारण समझ में नहीं आया, पर सुलभा के अवचेतन मन में एक ग्लानि थी अपनी छोटी बहन आभा के प्रति... कभी उसने भी जाने-अनजाने में बड़ी होती बेटियों के साथ मन की कही-अनकही साझा करने के चक्कर में आभा के प्रति हंसी-मज़ाक या संजीदगी के साथ कुछ नकारात्मकता भरी थी. बेटियों के मन में अपनी ही मौसी के प्रति प्रतिस्पर्धा भरती चली गई. “मौसी का फोन तो आता नहीं है. फिर आपको क्या पड़ी है उनसे बात करने की...” बड़ी होती बेटियों की दुनियादारी देख वह फूली न समाती थी. पर समय के साथ छोटी बहन ने उसके मन के कोमल हिस्से को तब स्पर्श किया जब शुभ्रा की शादी पक्की हुई. शुभ्रा की शादी के क़रीब छह महीने पहले आभा घर आई, तब  रात के दो-ढाई बजे तक गप्पे मारते  व़क्त बहन के प्रति सुप्त प्रेम का स्रोत बह निकला. ठंड़े पड़े रिश्ते एक-दूसरे का साथ पाकर गरमा गए. एक-दूसरे की अहमियत जो भुला दी गई थी, वह महसूस हुई, तो दोनों भावुक हो उठीं. Meenu Tripathi      मीनू त्रिपाठी

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