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कहानी- मोहब्बत शहर (Short Story- Mohabbat Shahar)

डॉ. गौरव यादव

“यार नंबर तो तुमने जिस तरीक़े से मांगा मुझे लगा था कॉल कर-करके परेशान कर दोगे, लेकिन तुमने तो अपनी ख़ामोशी से परेशान कर दिया. 20 दिन में एक मैसेज नहीं किया तुमने.” मेरे फोन उठाते ही मायरा ने कहा था.

कॉलेज ख़त्म करके मुझे नौकरी करते 6 साल से ज़्यादा बीत चुके थे. इन 6 सालों में ये मेरा पांचवा तबादला था. मुझे जगह बदलने या तबादले से कोई ख़ास फर्क़ नहीं पड़ता था. लेकिन जब से मुझे मेरे पांचवे ट्रांसफर का ऑर्डर मिला था मैं कुछ परेशान-सा था और उसकी वजह थी मुझे अलॉट किया गया मेरा नया शहर.
मुझे उज्जैन से सागर ट्रांसफर किया जा रहा था.
सागर वही शहर था, जहां से मैंने अपनी स्नातकोत्तर की पढ़ाई की थी. आज से छह साल पहले अपनी पढ़ाई पूरी करके शहर छोड़कर जाते वक़्त मैंने बस यही सोचा था की चाहे जो भी हो जाए दोबारा इस शहर में नहीं आऊंगा. लेकिन आज जब मुझे नौकरी के लिए यहां स्थानांतरित किया गया, तो मैं चाह कर भी कुछ कर नहीं पा रहा था. मैंने अपने अधिकारियों से इस बारे में बात करने और मेरा तबादला रुकवा देने की अपील की थी. लोगों को खिलाने-पिलाने को भी तैयार हो गया था. लेकिन इन सब के बावजूद मेरा ट्रांसफर कैंसिल न हो सका और आख़िर में मुझे यहां आना ही पड़ा.
हालांकि वो जिसकी वजह से मैं इस शहर में वापस नहीं आना चाहता था, अब इस शहर से जा चुकी थी और वैसे भी किसी अनजान की वजह से मैं अपनी नौकरी क्यों दांव पे लगाऊं. सोचते हुए मैंने अपना सामान उज्जैन से समेटा और सागर के लिए निकल पड़ा.
सागर का नाम याद आते ही मायरा का नाम भी ज़ेहन में आ ही जाता था. मायरा शर्मा नाम था उसका. हम दोनों डॉक्टर हरीसिंह गौर यूनिवर्सिटी के एमएससी प्रीवियस के स्टूडेंट थे. वो सेक्शन A में थी और मैं सेक्शन B. हमारी क्लासेज अलग-अलग होती थी, लेकिन प्रैक्टिकल साथ ही हुआ करते थे. अलग-अलग सेक्शन के स्टूडेंट होने की वजह से हम दोनों के बीच कभी बात नहीं हुई थी. वो मुझे अच्छी लगती थी. मेरी कोर्स की क्लासेज भले छूट जाए, लेकिन एक उसे देख पाने के एहसास से प्रैक्टिकल की क्लासेज कभी नहीं छूटती थीं.
धीरे धीरे एक मायरा को छोड़कर मेरे क्लास के लगभग हर स्टूडेंट को ये बात पता चल गई थी कि मैं उसे पसंद करता हूं और ऐसा अक्सर होता है कि जिसे आप पसंद करते हैं उसे छोड़कर बाकी सबको आपके प्यार के बारे में पता चल ही जाता है. वक़्त के साथ मुझे उससे एक-दो बार बात करने का मौक़ा मिला भी लेकिन अकेले में नहीं, बल्कि पूरी भरी क्लास के साथ.
कहते हैं, अच्छा वक़्त तेज़ी से बीत जाता है और ये तो मेरी ज़िंदगी का सबसे अच्छा वक़्त था इसे तो तेज़ी से बीतना ही था और ऐसा हुआ भी. वक़्त अपने निर्धारित गति की अपेक्षा तेज़ी से बीतने लगा था. इन तेज़ी से बीतनेवालों दिनों में मुझे उससे अपने दिल की बात कहने का मौक़ा नहीं मिला और मुझसे पहले ही किसी ने उसे अपना बना लिया था. कॉलेज में ये ख़बर सबसे पहले मुझे पहुंचाई गई थी. मैंने किसी दूसरे की बातों पर भरोसा करने की बजाय ख़ुद पता लगाने का निर्णय किया और फिर एक शाम एक लड़के के साथ मायरा को बाइक पर जाते देख वो बात कंफर्म हो गई थी.
वो लड़का ज़्यादातर मायरा को कॉलेज से ले जाता. अब मायरा प्रैक्टिकल्स के लिए कम ही आती और ज़्यादा समय उस लड़के के साथ घूमने गई होती. मुझे ये बात खलती, मैंने भी क्लास में जाना कम कर दिया था और इस तरीक़े से मेरा कोर्स ख़त्म हो गया. मैं अपने शहर वापस लौट आया और जाते-जाते मैंने क़सम खाई की जिस शहर ने मुझसे मेरा प्यार छीना है, वहां अब कभी नहीं आऊंगा. लेकिन वक़्त का पहिया एक बार फिर मेरे ख़िलाफ़ चला गया और मुझे न चाहते हुए भी वापस उसी शहर आना पड़ा, जहां मेरे सूखे हुए घाव एक बार फिर से ताज़ा हो जाने थे.
ख़ैर मायरा अब इस शहर में नहीं थी. उसने कॉलेज ख़त्म होने के कुछ सालों बाद ही उसी लड़के से शादी कर ली थी और किसी दूसरे शहर सेटल हो गई थी. मुझे इस बात की तसल्ली थी की कम से कम हम दोनों एक शहर में तो नहीं है, वरना ऐसे शहर में सांस लेना जहां उसकी ख़ुशबू किसी भी पल मेरी सांसों से टकरा सकती थी मेरे लिए घुटन भरा हो जाता.

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पूरे वाकये को सोचते हुए मैं सागर पहुंच गया था. आज से छह साल पहले की ज़्यादातर यादें इस शहर ने सहेजकर रखी थी जैसे इसे भी इंतज़ार था किसी के वापस आने का. चौराहों पर पुरानी हो चुकी इमारतों की टूटी दीवारों से झांकते ईंट किसी बूढ़े हो चुके शरीर की झुर्रियों के समान प्रतीत हो रहे थे.
उन्ही पुरानी सड़कों से गुज़रते हुए मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे किसी ने ब्लैक एंड वाइट एलबम खोल दिया हो और एक-एक करके सब तस्वीरें दिखाता जा रहा हो. अपने हाथ से बैग को सहारा दिए हुए ऑटो के अंदर बैठा मैं चुपचाप उस बीती हुई ज़िंदगी के पुराने पन्नो की ख़ुशबू अपने ज़ेहन में महसूस करता जा रहा था.
जल्द ही मैं एक नए पते पर था. ये कुछ साल पहले ही तैयार हुई बिल्डिंग थी, जिसके एक फ्लैट में अब मैं किराएदार के तौर पर रहने आया था. इस बिल्डिंग का पता मुझे मेरे ही ऑफिस के एक साथी से मिला था, जो मुझसे पहले इस शहर में काम कर चुका था.
रिक्शावाले की मदद से मैंने अपना सामान अंदर रखा और उसे पैसे देकर मुक्त कर दिया. घर की साफ़-सफ़ाई और अरेंजमेंट में दिन कैसे बीत गया पता ही नहीं चला. अगले दिन मैं जल्दी ही तैयार होकर ऑफिस चला गया. कुछ ही दिनों में नए साथी बनने लगे थे.
ये जानते हुए भी की मायरा अब यहां नहीं रहती है शुरुआती दिनों में रास्तों से गुज़रते हुए मैं उसे खोजने की कोशिश करता. लगता की शायद वो कहीं दिख जाए. वैसे तो मैं उससे कभी न मिलने, उसे कभी न देखने की उम्मीद होने का दावा करता था, लेकिन दिल के किसी कोने में एक छुपी हुई आस थी की काश वो एक बार कहीं दिख जाए.
वक़्त के साथ वो आस भी बीत गई थी. कुछ महीनो तक भी जब वो नहीं दिखी, तो मैंने मान लिया था कि वो अब कभी नहीं दिखनेवाली और अपने नए जीवन में व्यस्त हो गया था.
मुझे सागर आए क़रीबन तीन महीने बीत गए थे. एक शाम घर जाने से पहले मैं रास्ते में रूककर कुछ सामान ख़रीद रहा था और फिर जैसे ही दुकान से बाहर जाने को पलटा किसी ने मेरा नाम पुकारा था.
“गौतम?” नाम के पुकारे जाते ही मैंने गर्दन घुमा कर देखा.
“गौतम सिंह, सेक्शन B, राइट.” मेरे उसकी तरफ़ देखते ही उसने आगे कहा था.
मैं अब तक उसके चेहरे को बिना कुछ कहे घूरे जा रहा था. मायरा मेरे सामने खड़ी थी. उसके चेहरे में आज भी ठीक वैसी ही चमक थी, जो आज से छह साल पहले दिखाई दिया करती थी. हां उसके कमर तक लंबे बाल अब पहले से कई गुना छोटे हो चुके थे. सिवाय छोटे गेसुओं के छह गुज़रें हुए साल उसमें और कुछ नहीं बदल सके थे.


“कुछ बोलोगे या बस घूरते ही रहोगे.” उसके टोकते ही मैं अतीत से वर्तमान में लौट आया था.
“सा सा, सॉरी वो अचानक तुम्हें इतने सालों बाद देखकर समझ ही नहीं आया की रिएक्ट कैसे करूं. कैसी हो?” मैंने हड़बड़ाते हुए कहा था.
“अच्छी हूं. तुम बताओ तुम कैसे हो और यहां कैसे?”
“मेरी जॉब यहीं है. इस समय तो उसी के लिए हूं. तुम बताओ तुम कब आई सागर और आजकल हो कहां?”
“सारी बातें यही खड़े-खड़े कर लोगे.”
“ओह सॉरी, वैसे बगल में एक कैफे है, चलो वही चलकर बातें करते हैं.” कहते हुए मैंने उसके हाथ में थामे हुए प्लास्टिक बैग्स ले लिए थे. उस प्लास्टिक बैग्स में उसके हाथों की गर्मी मौजूद थी. उन्हें पकड़ते हुए ऐसे लगा था जैसे मैंने उसके हाथों को थाम लिया हो.
दुकान से निकलकर हम दोनों बगल की कॉफी शॉप में आ गए थे. मैंने दोनों के लिए चाय ऑर्डर की और बातों का सिलसिला एक बार फिर छिड़ गया था.
“तो अकेले आए हो या शादी हो गई?” उसने मेरे सामनेवाली कुर्सी में बैठते हुए पूछा था.
“अकेला ही आया हूं और फ़िलहाल अकेला ही हूं. मम्मी ने शादी के लिए कई लड़कियां देख रखी हैं और मैं उन्हें ज़्यादा से ज्यादा इस साल के अंत तक रोक सकूंगा. उसके बाद शायद शादी हो ही जाए. तुम बताओ रहती कहां हो आजकल और क्या करती हो?”
“मैं यहीं हूं कुछ दिनों से. मम्मी पापा के साथ रहती हूं. एक कॉलेज है वहीं टीचिंग करती हूं. वैसे तुम किसमें जॉब कर रहे हो?”
“नगर निगम में हूं, उसी में ट्रांसफर होकर कुछ महीनों पहले उज्जैन से यहां आया हूं.”
“अच्छा, लेकिन सच-सच बताओ तुम मुझे पहचान नहीं पाए थे न… और देखो इसमें छुपाने जैसा भी कुछ नहीं है. ज़ाहिर सी बात है हमारी इतनी कोई ख़ास पहचान तो थी नही. फिर कैसे तुम मुझे छह सालों तक याद रख पाते. लेकिन देखो मैंने तुम्हें आसानी से पहचान लिया.” मायरा ने चाय का कप हाथ में लेते हुए कहा था.
मैं बस मुस्कुराकर रह गया. जवाब क्या दूं समझ ही नहीं आया.
“चलो अब मै जाती हूं, अच्छा लगा इतने सालों बाद किसी पहचानवाले से मिल के, ध्यान रखना अपना.” चाय का खाली कप टेबल पर वापस रखते हुए मायरा ने कहा था.
“ओके यू टू टेक केयर.” कहते हुए मैं अपनी कुर्सी से उठ गया था.
मायरा ने एक मुस्कान दी और बाहर की तरफ़ चल पड़ी. एक बार फिर उसे पाकर खो देने की भावना मेरे दिल में तेज़ी से उठने लगी थी. एक बार खोकर उसे दोबारा देखने में मुझे पूरे छह साल लग गए थे, जाने फिर कभी उससे मुलाक़ात होगी या नहीं. मैंने उसे आवाज़ दे दी.
“मायरा?”
“हां?” उसने रुकते हुए पूछा.
“इफ यू डोंट माइंड नंबर मिल सकता है तुम्हारा. एक ही शहर में हैं. अजनबी रहने की बजाय कभी मिल लेंगे, तो अच्छा लगेगा.”
मेरे इतना कहते ही वो कुछ देर मुझे देखती रही फिर उसने कहा.
“श्योर.” और अपना नंबर देकर चली गई थी.
अगले कुछ दिन ठीक वैसे ही झिझक भरे बीत गए थे जैसे कॉलेज में बीता करते थे. मैंने मायरा का नंबर तो मांग लिया था, लेकिन उसे फोन या मैसेज करने की हिम्मत नहीं जुटा सका था और अगर फोन करता तो कहता भी क्या. वो शादीशुदा थी. उससे मिलने से मुझे तकलीफ़ ही होनी थी. दूसरी तरफ मेरे घरवाले भी मेरे लिए लड़कियों की तलाश में थे. ऐसे में किसी दूसरी लड़की के बारे में सोचना और भी बुरा हो सकता था.
मायरा से मिले मुझे क़रीब 20 दिन बीत गए, जब एक दोपहर मायरा ने कॉल किया.
“यार नंबर तो तुमने जिस तरीक़े से मांगा मुझे लगा था कॉल कर-करके परेशान कर दोगे, लेकिन तुमने तो अपनी ख़ामोशी से परेशान कर दिया. 20 दिन में एक मैसेज नहीं किया तुमने.” मेरे फोन उठाते ही मायरा ने कहा था.
“अरे, ऐसा कुछ नहीं है. वो बस मैं थोड़ा बिजी था और फिर लगा तुम कहीं अपने घर न चली गई हो, तो नहीं किया.”
“हम्म… तो मतलब मैंने ग़लत टाइम पर कॉल किया. खाली थी तो सोचा मिल लूं, लेकिन तुम तो बिजी हो.”
“अरे, इतना भी बिजी नहीं हूं, बताओ कहां मिलना है आ जाते हैं.”
“उसी जगह जहां पिछली बार मिले थे. आज शाम छह बजे आ सकोगे.”
“तुम समझो बस आ गए.” मैंने हंसकर कहा था. उसने भी सी यू कहते हुए फोन रख दिया.
फोन रखते ही मैंने घडी पर नज़र डाली. शाम के चार बज रहे थे. पूरे दो घंटे बाकी थे मायरा से मिलने जाने में. मैंने कैसे भी करके एक घंटा बिताया और फिर पांच बजते ही ऑफिस से निकल गया.
कुछ ही देर में मायरा आ गई. आज वो बिल्कुल ठीक वैसी ही दिख रही थी जैसे कॉलेज के दिनों में दिखा करती थी. हम एक बार फिर बातों में लग गए थे. हम दोनों ने ही नहीं सोचा था की एक दिन इस तरीक़े से सालों बाद मिल के हम बातें कर रहे होंगे.
“मायरा वैसे एक बात पूछू?” मैंने कुछ देर बाद कहा था.
“हां पूछो.”
“तुमने बाल क्यों काट दिए. तुम्हें पता है न कॉलेज में तुम्हारे बाल तुमसे ज़्यादा फेमस थे.”
“बस ऐसे ही कोई ख़ास वजह नहीं. तुम अपना बताओ शेव क्यों बढ़ा रखी है, किसी के प्यार में बढ़ाई है या फैशन में.”
“हा हा, वैसे ये न तो प्यार की निशानी है और न ही फैशन की बस ये समझो की आलस है.” मैंने सच छुपाने की पूरी कोशिश करते हुए जवाब दिया था और कहा, “वैसे अभी कुछ दिन तो रुकोगी न यहां?”
“हां, अभी तो हूं.” उसने बिना मेरी तरफ़ देखे बताया.
“वैसे मायरा माफ़ करना मैंने कितना कुछ पूछा, लेकिन ये पूछना भूल गया की रहती कहां हो तुम?”
“बताया तो था की यहीं रहती हूं.”
“अरे, वो तो आजकल यहां हो न, वैसे कहां रहती हो मेरा मतलब है हसबैंड के साथ कहां रहती हो?”
मेरे इतना कहते ही उसने कोई जवाब नहीं दिया और फिर धीरे से बोली, “अब मैं उसके साथ नहीं रहती.”
“उसके साथ नहीं रहती मतलब?”
“मतलब की हम अब साथ नहीं हैं. कई साल बीत गए मुझे उससे अलग हुए तब से यहीं रहती हूं मम्मी-पापा के घर में. ख़ुद का ख़र्च चलाने के लिए जॉब करती हूं.” उसने नज़रें नीचे करते हुए बताया था. उसकी बात सुनकर मुझे समझ ही नहीं आया की, जो मैंने सुना वो सच है या उसने कहा कुछ और है, लेकिन मैंने सुना कुछ और है.
“आई एम सॉरी मायरा, मुझे पता नहीं था."
“अरे, तुम क्यों सॉरी बोल रहे हो और ग़लती मेरी थी, तो सहना भी मुझे ही पड़ेगा न.” कहते हुए उसकी आंखों में आंसू तैर आए थे.
“वैसे अगर प्रॉब्लम न हो, तो अलग होने की वजह पूछ सकता हूं क्या?” मुझे डर था की अगर वो कुछ देर और चुप रही, तो रो देगी. इसलिए मैंने उसे कहीं और व्यस्त कर देने के लिहाज़ से पूछा था.
उसने टिश्यू पेपर से आंसू पोंछ उसे मुट्ठी में भींचते हुए कहना शुरू किया.

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“जानते हो गौतम, इतने सालों में मेरे अलग होने कि वजह मैंने किसी को नहीं बताई, मम्मी-पापा को भी नहीं. लेकिन जाने क्यों आज लग रहा है तुमसे सब कह दूं. शुरुआत में किसी से ये बात कहने से डर-सा लगता था. कोई मुझे दया कि नज़रों से देखे सोचकर ख़राब लगता था. लेकिन अब जब ये बात मेरे मन में रह गई है, तो लगता है कि किसी से कह दूं, पर इतने सालों में लोगों ने इसके बारे में पूछना ही बंद कर दिया, तो मन है कि तुमसे सब सच-सच बता दूं. मैंने जिससे शादी की थी उसे तो तुम शायद जानते ही रहे होंगे और शायद ये भी जानते रहे होंगे कि वो एक बड़े घर का हैंडसम लड़का था. उस पर न जाने कितनी लड़कियां मरती थीं, न जाने कितनी लड़कियां उसकी दोस्त थीं. उसको हर दिन जाने कितने लड़कियों के फोन आते थे. कितनों के मैसेज आते थे, लेकिन मुझे इस बात से कोई परेशानी नहीं थी. आपका पार्टनर ख़ूबसूरत हो, लोग उसे पसंद करें, किसे अच्छा नहीं लगता. मुझे भी लगता था. शादी के बाद मैं उसके साथ कई महीनों तक रही. शादी के बाद भी मुझे उसके इस स्वभाव से कोई परेशानी नहीं थी, लेकिन शादी के बाद वो मुझे अपने घर तक सीमित रहनेवाली बीवी समझने लगा था. उसे मुझसे ज़्यादा वक़्त दूसरी लड़कियों के साथ बिताना होता था. घर पर वो किसी न किसी से बात करते रहता. मैंने जैसे-तैसे करके इसे भी नज़रअंदाज़ किया, लेकिन हद तो तब हो गई जब एक दिन मुझे ये बात पता चली कि उसने मुझसे पहले भी एक लड़की से सगाई की थी और फिर शादी नहीं की. सगाई टूटना आम बात है, लेकिन बुरा ये लगा कि उसने मुझे ये बात छुपाई. मेरे पूछने पर उसने साफ़ तौर पर कहा कि मेरी यही लाइफस्टाइल है मैं इसे नहीं बदलनेवाला. शादी के पहले मैं जैसे जीता था वैसे ही जियूंगा. तुम्हें ये सब तब सोचना था, जब तुम मेरे साथ कॉलेज में घूमा करती थी. मैंने ग़ुस्से में कहा कि ऐसे हालत में मैं उसके साथ रह नहीं पाऊंगी और अलग हो जाऊंगी. उसने कह दिया कि वो वैसे भी मुझसे शादी करके ख़ुश नहीं है और दिल से चाहता है कि मैं उससे अलग हो जाऊं. मैं अगले दिन अपने घर आ गई और फिर चार सालों में उसने मुझसे कोई संपर्क नहीं किया. मैं ग़लत थी. मैंने एक ऐसे लड़के से शादी कर ली, जिसके लिए मैं कोई मायने नहीं रखती थी. उसकी ज़िंदगी में तो बहुत लड़कियां थीं उसे मेरी कमी कभी खली ही नहीं. बस मुझे ये बात खल कर रह गई कि मैंने उसकी ख़ातिर अपने कई अच्छे दोस्तों से किनारा कर लिया था. मैं जानती हूं गौतम तुम भी मुझसे नाराज़ थे अमित से शादी करने की वजह से. मैंने देखा था तुम्हें कॉलेज में मुझे इग्नोर करते हुए और सच कहूं, तो तुम्हें इतने सालों बाद यहां देखकर मैंने सिर्फ़ इस वजह से ही रोका था कि मैं तुम्हे सॉरी कह सकूं. बहुत से लोगों से कहने की कोशिश की, पर कभी हिम्मत नहीं कर पाई और आज शायद तुम ये बात न छेड़ते, तो तुमसे भी न कह पाती, आई एम सॉरी गौतम.” कहते हुए उसकी आंखों से आंसुओं कि एक लकीर बह चली थी.
मायरा कि बातें सुनकर मैं हैरान था. उसने कॉलेज में मेरा उसे नज़रअंदाज़ करना महसूस किया था, तो फिर शायद उसने मेरी आंखों में उसके लिए प्यार भी ज़रूर महसूस किया होगा. मैं सोचने लगा कि क्या मुझे उससे अपने दिल की बात कहनी चाहिए. क्या ये सही वक़्त और सही जगह होगी ये बताने कि मुझे उससे प्यार है.
कुछ देर तक सोचने के बाद मैंने कहने कि कोशिश की.
“मायरा तुमने दोबारा कभी शादी का नहीं सोचा?”
“नहीं, मम्मी कहती हैं कि अगर मैं वापस उसके पास नहीं जानेवाली, तो मुझे शादी कर लेनी चाहिए. लेकिन मैंने ख़ुद से नहीं सोचा. एक बार शादी करके देख चुकी हूं दोबारा किसी पर शायद भरोसा नहीं कर पाऊं.”
“मायरा तुम्हे पता है लोग कहते हैं कि अगर कोई ऐसा मिल जाए, जिसका दिल टूट चूका हो तो उसे जाने नहीं देना चाहिए, क्योकि जिसका दिल टूट जाता है वो फिर किसी का दिल नहीं तोड़ाकरते. उन्हें प्यार की एहमियत पता होती है. तुम भी किसी ऐसे से क्यों नहीं प्यार करके देखती जिसका तुमने कभी दिल तोड़ा हो या फिर कोई ऐसा जो आज भी तुमसे प्यार करता हो.”
मेरी बात सुनकर वो थोड़ा-सा मुस्कुरा पड़ी. उसकी आंसुओं से भरी आंखें चमक उठी थी. फिर उसने कहा.
“अब ऐसा कोई कहां खोजने जाऊं जिसका मेरी वजह से दिल टूटा हो.”
“कोई तो होगा, हो सकता है कॉलेज में रहा हो, तुम्हे किसी ने बताया होगा कि एक लड़का है, जो तुम्हे पसंद करता है. याद करो. ऐसा था कोई.”
“गौतम मत करो ऐसा. एक शादीशुदा लड़की से प्यार करके कुछ हासिल नहीं कर सकोगे. मैं जानती हूं तुम ख़ुद के लिए कह रहे हो और ये भी जानती हूं कि तुम मुझे कॉलेज में पसंद करते थे. कॉलेज ख़त्म होने के बाद जब मैंने अमित से शादी कर ली थी और फिर परेशान रहने लगी थी, तो मैं अपने दोस्तों को कॉल करती थी. उनमें से मेरी एक सहेली ने बताया था कि तुम मुझे पसंद करते थे, लेकिन फिर अमित की वजह से तुमने मुझसे किनारा कर लिया था. मैं जानती हूं मैंने तुम्हारा दिल तोड़ा था और सच कहूं, तो उसी वजह से मैंने माफ़ी मांगने तुम्हें आवाज़ दी थी. इतने सालों बाद तुम्हें देखकर कितनी ख़ुश हुई थी मैं बता नहीं सकती, लेकिन तुमसे जुड़कर तुम्हें कुछ दे नहीं पाऊंगी।”
“हम्म… अब अगर मेरा सच तुम जान ही चुकी हो, तो फिर पूरा ही जान लो और फिर तय करो की करना क्या है तुम्हें. यू नो मायरा इन छह सालों में मैं एक दिन को भी भूल नहीं पाया तुम्हें. पिछले तीन महीनों से हर दिन हर सड़क में तुम्हें खोजने की कोशिश करता था. जब मेरा ट्रांसफर हुआ, तो मैं यहां आना नहीं चाहता था. ट्रांसफर कैंसिल हो जाने के लिए कई प्रयास भी किए, लेकिन ये भी मन्नतें मांगता कि ट्रांसफर कैंसिल न होने पाए. जल्द से जल्द भाग कर यहां आना भी चाहता था सिर्फ़ तुम्हारे लिए. मैं तो सिर्फ़ एक बार तुम्हें देखने आया था यहां और शायद मेरा प्यार ही था या मेरी प्यार की परीक्षा थी, जो छह सालों तक चली तुमसे अपने दिल की बात कहने के लिए और फिर इस तरीक़े से हम मिले. मैं तुमसे शादी करना चाहता हूं मायरा. मैं वादा करता हूं मैं तुम्हे कोई तकलीफ़ नहीं आने दूंगा. तुम्हारे ज़िंदगी के पिछले छह साल मैं वापस तो नहीं कर सकूंगा, लेकिन वादा है हर दिन उन छह सालों से बेहतर बीतेगा तुम्हारा.” मैंने उसकी आंखों में देखते हुए कहा था.
उसने मेरी बातें सुनी, लेकिन कुछ भी जवाब देने से पहले थोड़े वक़्त की मांग की. मैंने उसे आराम से सोचकर जवाब देने का कहा और उठकर वापस आ गया. कई दिनों तक मायरा का कोई जवाब नहीं आया. न कोई कॉल, न कोई मिलने आने की इच्छा. मैंने मान लिया था कि मायरा एक बार फिर मेरी ज़िंदगी से जा चुकी है और वापस अपनी लाइफ में जीना सीखने लगा था.
एक दोपहर मायरा का कॉल आया. उसने मुझे फिर से मिलने बुलाया था, लेकिन किसी कॉफी शॉप में नहीं बल्कि अपने घर में, ताकि मैं उसके मम्मी-पापा से हमारी शादी की बात कर सकूं.

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