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कहानी- माइक्रो रिटायरमेंट (Short Story- Micro Retirement)

“हम महिलाओं की यही तो प्रॉब्लम है. सबका सोचेंगी, पर ख़ुद का नहीं. अरे, हमारे लिए भी ब्रेक ज़रूरी है, ताकि फिर से तरोताज़ा होकर अपनी ज़िम्मेदारियां पूरी कर सकें. जिस दिन हम महिलाएं अपने श्रम का हिसाब मांगेंगी, उस दिन मानव इतिहास की सबसे बड़ी और सबसे पुरानी चोरी पकड़ी जाएगी. भगवान ने हम स्त्रियों को फ़ुर्सत में बनाया ज़रूर है, पर फ़ुर्सत देना भूल गया.”

“रजनी, तुझे चलना ही होगा. मैंने टूर ऑपरेटर को मेरे साथ-साथ तेरी भी सहमति दे दी है. सोच तो सही, हम सभी फ्रेंड्स को साथ-साथ घूमने में कितना मज़ा आएगा! अयोध्या, लखनऊ, कच्छ, सोमनाथ सब एक से बढ़कर एक दर्शनीय स्थल हैं. यह टूर आध्यात्मिक, ज्ञानवर्द्धक होने के साथ-साथ बेहद मनोरंजक भी होगा. मैंने पूरी आइटनरी देखी है.”

“सुधा, मुझे टूर की गुणवत्ता पर कोई संदेह नहीं है. सब सहेलियों का साथ भी एंजॉय करना चाहती हूं. पर कभी इतने लंबे समय के लिए घर-परिवार को अकेला छोड़ा...”

“अरे लंबा कहां है? एक महीना ही तो है. पलक झपकते बीत जाएगा.”

“अभी तो सौरभ भी यहीं है. नहीं, नहीं हो पाएगा. अब मैं फोन रखती हूं. बहुत काम पड़ा है.”

“हम महिलाओं की यही तो प्रॉब्लम है. सबका सोचेंगी, पर ख़ुद का नहीं. अरे, हमारे लिए भी ब्रेक ज़रूरी है, ताकि फिर से तरोताज़ा होकर अपनी ज़िम्मेदारियां पूरी कर सकें. जिस दिन हम महिलाएं अपने श्रम का हिसाब मांगेंगी, उस दिन मानव इतिहास की सबसे बड़ी और सबसे पुरानी चोरी पकड़ी जाएगी. भगवान ने हम स्त्रियों को ़फुर्सत में बनाया ज़रूर है, पर ़फुर्सत देना भूल गया.”

“... मैं सोचकर बताती हूं.” टालने के इरादे से रजनीजी ने अंततः फोन रख ही दिया.

तभी गुनगुनाता सौरभ घर में प्रविष्ट हुआ और लॉबी में ही मोबाइल लेकर बैठ गया. रजनीजी ने रसोई से ही उसे ताका, ‘हूं... उंगलियां ही निभा रही हैं रिश्ते आजकल, ज़ुबां से निभाने का व़क्त कहां है? सब टच में व्यस्त हैं, पर टच में कोई नहीं है.’ सोचते हुए उन्होंने बेटे को पुकारा, “कभी समय निकालकर मेरा मोबाइल देखना बेटा! बात करते व़क्त अपने आप ही इसका स्पीकर ऑन हो जाता है.”

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“तो यहां कौन सुन रहा है आपकी बातें? और कौन सी आपकी कोई कॉन्फिडेंशियल टॉक चल रही होती है? चलो, देख लूंगा कभी.” सौरभ के पीछे-पीछे रोहितजी भी आ पहुंचे और बेटे के पास बैठकर टीवी देखने लगे. रजनी जी ने गैस पर चाय चढ़ा दी. बेटे से पूछने पर उसने ब्लैक कॉफी की मांग की.

“आज तो चेस की चारों बाजियां मैं ही जीत गया. उधर क्लब में बैडमिंटन, टेनिस वगैरह भी है बेटा. तू भी शाम को खेल आया कर.”

“देखता हूं, थोड़े दिनों बाद शुरू करूंगा. अभी मैं यहीं हूं. माइक्रो रिटायरमेंट लेकर आया हूं.”

“हैं एं...” पति-पत्नी एक साथ चिहुंके.

“रिटायरमेंट ले लिया तूने? अभी 30 साल की उम्र में?” रजनी जी हैरान थीं.

“नहीं मां! माइक्रो रिटायरमेंट मतलब करियर के दौरान छोटे-छोटे ब्रेक. यह 6 महीने से लेकर 2 साल तक का भी हो सकता है. दरअसल, हम जेन जी पर काम का इतना प्रेशर है कि हम बर्नआउट हो रहे हैं. अत्यधिक काम से परेशान होकर हमारा शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य गड़बड़ा रहा है. पूरी ज़िंदगी काम में खपाना और फिर बुढ़ापे में रिटायरमेंट के बाद अपने शौक पूरे करने की आपके जनरेशन की रणनीति हमें नहीं सुहा रही. इसलिए माइक्रो रिटायरमेंट लेकर हम अपनी ज़िंदगी को संतुलित करना चाह रहे हैं.”

“और इस ब्रेक में तुम लोग करोगे क्या?” रोहित जी से रहा नहीं गया.

“अपने शौक पूरे करेंगे. ट्रैवेल या फिर कोई नई स्किल सीखेंगे. ख़ुद का बिज़नेस भी प्लान कर सकते हैं. यह 9 से 5 की नौकरी शरीर, दिमाग़ सबका तेल निकाल कर रख देती है. ऊपर से तीन-चार घंटे कम्यूटिंग में बर्बाद हो जाते हैं. सेहत पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने से हमारी प्रोडक्टिविटी  घट रही है. बोरिंग रूटीन से हमारी एक्सप्लोर करने की क्षमता प्रभावित हो रही है. संक्षेप में कहूं तो हम काम के लिए नहीं जीना चाहते, बल्कि जीने के लिए काम करना चाहते हैं. ब्रेक लेने से मेंटल हेल्थ तरोताज़ा हो जाती है और करियर लंबे समय तक स्थिर बना रहता है. ब्रेक हमें गहराई से रिचार्ज करता है. अपने करियर के लक्ष्यों पर हम पुनर्विचार कर पाते हैं. और एक नए दृष्टिकोण के साथ वापसी करते हैं.”

दोनों पति-पत्नी सोच में डूब गए थे. रोहित जी सोच रहे थे, ‘बात तो सही है. पूरी ज़िंदगी पैसा कमाने में लगाने की बजाय युवावस्था में ही अपने शौक पूरे कर लेना ज़्यादा समझदारी है. जब अच्छा स्वास्थ्य हो, युवा ऊर्जा हो तभी दुनिया देखनी चाहिए. इस हिसाब से तो माइक्रो रिटायरमेंट एक स्ट्रैटेजिक ब्रेक है. वैसे भी रिटायरमेंट की उम्र तो आजकल बढ़ती जा रही है. अपने शौक पूरे करने के लिए रिटायरमेंट तक इंतज़ार करना है तो बेवकूफ़ी ही. बीच में ब्रेक लेकर संतुलन बनाए रखने की स्ट्रैटेजी है तो कारगर.’ उधर रजनी जी मन ही मन बेटे की शादी के मंसूबे बांधने लगी थीं. अब आएगा ऊंट पहाड़ के नीचे. कब से लड़की फाइनल करने का कह रहे हैं. कितने फोटो, बायोडाटा भेज चुकी हूं. इतना तक कह दिया है कि तुझे कोई पसंद है तो बता दे. जाति, उम्र किसी बंधन में नहीं बांध रहे उसे. पर फिर भी पकड़ में नहीं आ रहा है. अब तो उसे एक से दो करके ही भेजेंगे.

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“तेरा माइक्रो रिटायरमेंट कितने टाइम का है?” रजनी जी ने उत्सुकता से पूछा. मन ही मन वे गणना कर रही थीं. छह महीने में सगाई, शादी सब करवा देंगे. लेकिन सौरभ ने तुरंत मां की मंशा भाप ली.

“हा... हा... आप मेरी शादी के सपने तो नहीं सजाने लगीं? मां, मैं बंधनों से आज़ादी के लिए आया हूं. किसी बंधन में बंधने के लिए नहीं.”

“पर बेटा, तेरी शादी की उम्र हो चली है. 30 की उम्र में हमारे दो बच्चे हो जाया करते थे. हर उम्र की अपनी ज़रूरतें होती हैं, जिन्हें समय रहते पूरा करने में ही समझदारी है. उम्र बढ़ने के साथ-साथ लड़का-लड़की की संतान उत्पत्ति क्षमता क्षीण होती जाती है.’

“मां, आजकल हर चीज़ का तोड़ मौजूद है. लड़के ज़रूरत होने पर स्पर्म और लड़कियां एग फ्रीज करवा लेती हैं. पहले करियर बना लो और फिर जब इच्छा हो बच्चे पैदा कर लो.” सब कुछ विदित होते हुए भी बेटे के मुंह से यह सब सुन पति-पत्नी हैरान थे. आज की पीढ़ी हर बात को कितने हल्के में लेने लगी है. उनके लिए जो महत्वपूर्ण है, उस ओर हमारा ध्यान ही नहीं जाता. और हमारे लिए जो महत्वपूर्ण है, वह उनकी नज़रों में बेहद मामूली बात है. एक गहरी निःश्‍वास छोड़ रजनी जी खाना बनाने उठ गईं, तो रोहित जी भी टीवी पर समाचार देखने लगे.

सौरभ अधिकांश समय मोबाइल या लैपटॉप खोले बैठा रहता था या फिर बाहर निकल जाता था. उसे आए सप्ताह भर होने को हो रहा था, लेकिन अभी तक रोहित जी और रजनी जी नहीं समझ पा रहे थे कि वह कर क्या रहा है? उसके फ्यूचर प्लांस क्या हैं? पूछने पर उसका एक ही जवाब होता था, “अभी मुझे ख़ुद ही नहीं पता.”

रोहित जी आज चेस खेलकर लौटे, तो बहुत प्रसन्न थे. रजनी जी ने हमेशा की तरह गैस पर दोनों के लिए चाय और बेटे के लिए ब्लैक कॉफी चढ़ा दी.

“लगता है आप फिर मैच जीत गए?” रजनी जी ने कहा.

“अरे मैच क्या चीज़ है, हमने तो लोगों के दिल जीत लिए हैं. क्लब में मौजूद हर शख़्स मेरी खेल प्रतिभा का दीवाना हो गया है. कहने लगे अगले महीने होने वाले राज्य स्तरीय टूर्नामेंट में मुझे अवश्य ही भाग लेना होगा. वैसे कहते तो हर बार ही हैं. लेकिन मैं आज तक टालता ही आया हूं. पर इस बार तो सब पीछे ही पड़ गए हैं. ज़बरदस्ती मेरा नाम लिस्ट में लिख लिया है. अब तो लगता है जाना ही पड़ेगा.”

“कहां? कब है?” सौरभ ने पूछा.

“फरवरी में. गोवा में.”

“अरे वाह! गोवा तो बहुत बढ़िया जगह है.” रजनी जी चहकीं.

“मां को भी साथ ले जाओ पापा! मैं यहां अकेला चैन की बंसी बजाऊंगा. सही मायने में माइक्रो रिटायरमेंट का लुत्फ़ तो तभी आएगा.”

“मेरा दिमाग़ ख़राब हुआ है क्या जो तुम्हारी मां को साथ ले जाऊंगा? चेस एकाग्रता का पर्याय है और पत्नी एकाग्रता का विलोम. क्रिकेट टूर्नामेंट में इसीलिए तो खिलाड़ियों पर फैमिली को साथ ले जाने पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है. तो बेटे जी, मुझे यदि हारते हुए ही देखना चाहते हो, तो अवश्य अपनी मां का भी मेरे साथ टिकट करवा देना. वैसे साथ ले जाकर हार कर आऊं, इससे तो बेहतर है मैं भी यहीं रह जाऊं.” इसके साथ ही बाप-बेटे का सम्मिलित ठहाका गूंज उठा, जो रजनी जी के सीने को क्रूरता से बेधता हुआ उनकी आंखों से बह निकला. जो कह दिए गए थे वे शब्द थे. पति-बेटे के प्रति प्यार के वशीभूत जो वे आज तक नहीं कह और कर पाईं वह अनुभूति थी. और अब जो कहना चाह रही हैं और नहीं कह पा रही हैं, वह मर्यादा है. सच है, कब्र से भी गहरा है स्त्री का सब्र. वरना जो सुन सकती है, वो सुना भी सकती है. रोक देते हैं उसके संस्कार.

तभी उनका मोबाइल बज उठा. फुर्ती से आंसू पोंछ कर अपने मनोभाव नियंत्रित करते हुए रजनी जी ने मोबाइल उठा लिया.

“रजनी, सुधा बोल रही हूं. अगले हफ़्ते का अपना ट्रिप फाइनल हो गया है. सारिका, नैना, चांदनी, ऋतु... एक तरह से समझ ले अपने पूरे फ्रेंड सर्कल की सहमति आ गई है. दो लग्जरी बसें की हैं. बमुश्किल एक-दो सीट बची है. मैं अपने साथ-साथ तेरा भी एडवांस अमाउंट जमा करवा रही हूं. यह मत कहना कि नहीं चल सकती, क्योंकि अकेले कभी गई नहीं. एकमात्र असंभव यात्रा वह है, जिसे इंसान कभी शुरू ही नहीं करता. सुन रही है ना?” रजनी जी को ध्यान ही नहीं था. हमेशा की तरह फिर उनके मोबाइल का स्पीकर न जाने कब ऑन हो गया था. पति और बेटे की उत्सुक नज़रें अपने पर टिकी देख उन्हें वास्तविकता का बोध हुआ. किंतु हमेशा की तरह झेंपते हुए उन्होंने स्पीकर ऑफ करने का कोई प्रयास नहीं किया.

“हां मैं सुन रही हूं और समझ भी रही हूं.” उधर से आत्मविश्‍वासपूर्ण जवाब आया तो सुधाजी ने अविश्‍वास से अपनी मोबाइल स्क्रीन को घूरा. कहीं उन्होंने किसी ग़लत आदमी को तो फोन नहीं लगा दिया. नहीं, है तो रजनी ही. उनकी आवाज़ उत्साह से भर उठी.

“थोड़ी देर बाद मान्या टूर ऑपरेटर को लेकर मेरे घर आएगी. मैंने सबको बता दिया है. जो भी उस व़क्त आना चाहे, आकर अपने सुझाव दे दे. कोई क्वेरी हो तो सुलझा ले. कई की तो सहमति भी आ गई है. वे सब आ रही हैं. हम लोग सब मिल बैठकर होटल, दर्शनीय स्थल आदि फाइनल कर रही हैं. तू भी समय निकालकर आ जाना.”

“हां, अभी आती हूं.” रजनी जी ख़ुद आश्‍चर्यचकित थीं. क्या वाकई यह सहमति सूचक हां उनके ही मुंह से निकला था? उधर सुधा जी का उत्साह सातवें आसमान पर पहुंच चुका था.

“मैं तो सोच रही हूं चलने से पूर्व हम सब सखियां एक दिन साथ शॉपिंग पर चलें. नई ड्रेसेज़, शूज़, कॉस्मेटिक, खाने-पीने का सामान आदि साथ ही मिलकर ख़रीदेंगे, तो अच्छा रहेगा और मज़ा भी आएगा. एक दूसरे के सुझाव से शॉपिंग करेंगे तो आसानी भी रहेगी और जल्दी भी हो जाएगा.”

“हां, यह तो है.” रजनी जी गैस बंद कर ट्रे में कप सजाने लगी थीं. चूंकि स्पीकर ऑन था, उन्होंने मोबाइल स्लेब पर रख दिया था.

“ढेर सारी पिक्स और सेल्फीज भी तो लेनी है हमें वहां.” सुधा जी चहक रही थीं.

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“बिल्कुल! रील्स भी बनानी हैं.” बोलते हुए रजनी जी चाय कपों में छान चुकी थीं.

“तो तू आ रही है ना? या फिर वही अभी तो खाना बनाना है, यह करना है, वह करना है. समझ ले, ज़िम्मेदारी वह पिंजरा है, जहां इंसान आज़ाद होकर भी ़कैद है. थोड़ा सुकून भी ढूंढ़िए जनाब! ये ज़रूरतें कभी ख़त्म नहीं होतीं. ज़िंदगी बर्फ़ की तरह है. इसे हंसते-मुस्कुराते सबसे प्रेम के साथ गुज़ारो. पिघल तो रही ही है. पता नहीं कब ख़त्म हो जाए.” उपयुक्त मौक़ा जान सुधाजी भी समझाइश का सारा कोटा आज ही पूरा कर लेना चाह रही थीं. मन में एक भय भी था. हमेशा की तरह रजनी जी एन मौ़के पर पीछे न हट जाएं.

“नहीं नहीं आ रही हूं. वैसे भी मेरे जाने के बाद सब इन्हें ख़ुद ही मैनेज करना है. तो क्यों ना आज से ही सही?” ब्लैक कॉफी का कप भी रजनी जी ने ट्रे में रख लिया था.

“बाय, सी यू सून.” कहते हुए उन्होंने फोन काट दिया. और ट्रे लेकर इत्मीनान से पति--बेटे के पास आ बैठी. दोनों का मुंह अभी

तक आश्‍चर्य से खुला था और वे हैरत से उन्हीं की ओर ताक रहे थे. रजनी जी ने दोनों को उनके कप पकड़ाए. फिर अपना कप उठाकर हौले से दोनों के कपों से छुआया.  

“चीयर्स! मेरे मिनी माइक्रो रिटायरमेंट की ख़ुशी में.”

संगीता माथुर

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