... ऐसे ना जाने कितने काश थे, पर काश.. तो काश ही है... सोचा था अब वापस यहां नही आऊंगा.. पर नियति और समय के आगे किसी की कहां चलती है.
वही वादियां, वही फ़िज़ा, वही देवदार और चीड़ के लंबे-लंबे घने पेड़, वही बेमौसम का मौसम, वही सड़क, वही मॉल रोड और वही मॉल रोड पर बना वो कैफे, जिसमें हमारे प्रेम की ना जाने कितनी यादें समाई थीं. इतने सालों बाद भी शिमला कुछ नही बदला था बिल्कुल वैसे का वैसा, जैसा मैं छोड़ कर गया था. हां, अगर कुछ बदला था तो वो थी मेरी ज़िंदगी... तुम्हारे बिना मेरी अधूरी ज़िंदगी...
मेरे जीवन में तुम्हारे जाने के बाद जो ख़लिश आई थी, वो आज तक भी नही भरी थी नंदिनी. तुम क्या गई, मेरी आत्मा ही चली गई तुम्हारे साथ... शिमला की फ़िज़ा में, मॉल रोड में, हर पगडंडी पर, हर कोने में हमारे बचपन, स्कूल-कॉलेज के वो सुनहरे दिनों से तुम्हारी शादी तक की सभी यादें गहराई से समाई हुई हैं.
काश! मैंने तुमसे इतना अटूट प्रेम ना किया होता... काश मैं तुमसे थोड़ा इंतज़ार करने को कहता... काश मैं उस समय अपने पैरों पर खड़ा होता तो गर्व से तुम्हारे पापा से तुम्हारा हाथ मांग लेता.
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काश... तुम्हारे पापा का स्वास्थ्य बिल्कुल ठीक होता तो वे इतनी जल्दी तुम्हारा विवाह नही करते. काश... और ऐसे ना जाने कितने काश थे, पर काश.. तो काश ही है... सोचा था अब वापस यहां नही आऊंगा.. पर नियति और समय के आगे किसी की कहां चलती है.
मॉल रोड पर चलते-चलते मैं उसी कैफे के सामने आ खड़ा हुआ, जहां हम अक्सर अपना समय बिताते थे. स्कूल-कॉलेज के नोट्स से लेकर अपना भविष्य और सपने भी हम यही डिस्कस करते थे. ये कैफे हमारे प्रेम का साक्षात साक्ष्य है. पता नही कैसे कदम ख़ुद-ब-ख़ुद उस कैफे में चले गए.
मैं जा कर उसी टेबल पर बैठ गया जहां हम हमेशा बैठते थे. पूरे कैफे में हमारी तरह युगल बैठे अपनी ही धुन में खोए हुए थे. उन सभी में मुझे अपना और तुम्हारा अक्स नज़र आ रहा था. बाहर अब रिमझिम-रिमझिम बारिश शुरू हो गई थी. बारिश की हर फुहार तुम्हारी याद लेकर आई थी...
तुम्हें शिमला की बारिश अत्यंत प्रिय थी ना. मुझे आज भी वो दिन याद है जब हम कॉलेज से घर आ रहे थे कि अचानक बारिश शुरू हो गई थी और मेरे लाख मना करने पर भी तुम बारिश में भीगने चली गई. तुम्हारी हिरणी जैसी ये चंचलता मुझे भीतर तक भिगो गई थी. मैं अपलक तुम्हें निहार रहा था. सच में कितनी मासूम लग रही थी तुम.
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तुम्हें ठंड ना लग जाए इसलिए मैं ज़बरदस्ती तुम्हें इसी कैफे में कॉफी पिलाने ले गया था. मैं तुम्हें और तुम मुझे देखे जा रही थी. ऐसा लग रहा था मानो तुम मुझसे कुछ कहना चाहती थी... और तभी अपने प्रेम का इज़हार भी कर दिया था. तुम्हारी झुकी पलकों ने मुझे उत्तर देकर मेरा जीवन ख़ुशियों से भर दिया था.
जब वैलेंटाइन डे वाले दिन हर थोड़ी-थोड़ी देर में मैंने तुम्हें गुलाब के फूल दिए थे तो तुम कितनी ख़ुश हो गई थी. सच, कितने ख़ूबसूरत दिन थे वे... समय की फ़ितरत ना बड़ी ख़राब है, अच्छा समय तो पलक झपकते ही बीत जाता है और कठिन समय युगों के समान लगता है. तुम्हारे साथ मेरा सारा समय पलक झपकते ही बीत गया और तुम्हारे विवाह के बाद मेरे लिए एक-एक पल काटना युगों के समान था.
नंदिनी मेरे हृदय पटल पर तो आज भी तुम्हारा एकछत्र राज है. मां मुझे अक्सर विवाह करने के लिए कहती है. जीवन में अतीत भूल कर आगे बढ़ने के लिए कहती है, पर क्या करूं मैं तुम्हारे सिवा किसी और से प्रेम नही कर सकता. काश मैं ऐसा कर पाता...
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काश मैं तुम्हें भूल कर जीवन में आगे बढ़ पाता नंदिनी...
काश ऐसा हो सकता!..
- कीर्ति जैन

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