"बड़ी जल्दी थी तुम्हें जाने की… एक बार नीला से मिलकर तो जाते. भले तुम दिल ना लगाते, मगर मुझे यूं रुसवा तो न करते. कम से कम एक मुलाक़ात का हक़ तो देते. मैंने कब कहा कि तुम मुझे दस्तक दो, लेकिन मेरे मन की खिड़की तो खुली रहने देते..."
कुछ कहानियां अल्पायु लेकर आती है. यह कहानी भी कुछ पल की थी, पर इसके एहसास बहुत गहरे थे. एक निराकार प्रेम जिसकी कोई मंज़िल नहीं थी, फिर भी वो पनपा, पला और मिट गया.
नील और नीला में सिर्फ़ आ की मात्रा का अंतर नही था, बल्कि होने या न होने का था. मैं सोचती हूं इस कहानी के अलावा भी बहुत सी कहानियां मेरे ज़ेहन में दर्ज़ हैं, मगर जाने क्यों यह कहानी मुझे अपनी ओर खींचती है.
नीला और नील कॉलेज में पढ़ने वाले सहपाठी थे. इस बात का पता उनके अटेंडेंस रजिस्टर्ड से चलता था. नीला की कभी उससे मुलाक़ात नहीं हुई. वह कॉलेज आता भी था या नहीं… कोई नहीं जानता था. हम नाम देखकर अक्सर नीला को उत्सुकता होती, एक बार वह नील से बात करें मगर कब? वह तो कभी नील से मिली नहीं. यह सवाल उसके दिल में अटका रहता. उसने कॉलेज में बहुत लोगों से पूछा, मगर नील को कोई नहीं जानता था.
प्रेम कितनी बार अपने आपको पलटता है यह उसे ख़ुद कहां पता होता है. नील की तलाश अब नीला का जुनून थी. उसकी आंखें हर जगह नील को ढूंढ़ा करतीं. एक ऐसा शख़्स जिसे न देखा, न सुना, न जाना फिर भी उसकी लगन लग गई. अक्सर वह ख़्वाबों में उसकी तस्वीर बनाया करती. उससे प्रेम का इज़हार करती. ख़ुद को उसकी बांहों में क़ैद करती. मन ही मन गुदगुदाती, फिर अपनी नादानी पर हंस देती. वह अब चुप-चुप रहने लगी थी.
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हद से ज़्यादा बोलने वाली अपनी शरारती बिटिया को गुमसुम देखकर उसकी मां को चिंता हुई. नीला से इस बारे में पूछा, “क्या हुआ नीला? सब ठीक है न.”
मां के सामने नीला बिखर गई. अपने दिल का सब हाल सुना दिया. मां मन ही मन समझ गई. पहले प्यार की यह अनुभूति ठीक वैसे ही है जैसे किसी किताब के शीर्षक को पढ़कर पढ़ने की ललक जगी हो… मगर यह नहीं जानती कि अंदर से किताब पढ़ने लायक है भी या नहीं… बेटी को अनजान रास्ते पर चलने से रोकना भी ज़रूरी था.
कुछ दिन बाद मां ने नीला के हाथ में एक तस्वीर थमाई. तस्वीर देखकर नीला का दिल ज़ोर से धड़क उठा था. एक हमउम्र युवक उसके चेहरे पर मासूमियत थी और आंखें नीली थी. उसकी आंखों में कशिश थी जैसे कह रही हो तुम मेरी हो.
वह कुछ कहती इससे पहले ही मां बोल पड़ीं, “नील अब इस दुनिया का हिस्सा नहीं है, एक हादसे में वह…” नीला के कानों ने सुनना बंद कर दिया. तस्वीर को सीने से लगाकर वह वही बैठ गई.
"बड़ी जल्दी थी तुम्हें जाने की… एक बार नीला से मिलकर तो जाते. भले तुम दिल ना लगाते, मगर मुझे यूं रुसवा तो न करते. कम से कम एक मुलाक़ात का हक़ तो देते. मैंने कब कहा कि तुम मुझे दस्तक दो, लेकिन मेरे मन की खिड़की तो खुली रहने देते...
वक़्त के हर लम्हे में तुम्हारी याद बसी हुई है. बहती हवा मुझे ऐसे छूती है जैसे मानो तुम आकर धीरे से मुझे गले लगा रहे हो. तुम्हारे जाने से सब कुछ ठहर सा गया है. काश! तुम भी ठहर जाते…इस जन्म न सही अगले जन्म मुझसे बचकर कहां जाओगे?.."
नीला जानती थी उसके जीवन में बहुत से ज़िम्मेदारियां हैं, जिन्हें चाहें-अनचाहे पूरा करना है.
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"प्यार के अलावा और भी ज़रूरी काम है इस दुनिया में… फिर भी तुमसे दिल का नहीं रुह का रिश्ता है. तुम मेरा पहला प्यार हो और यह प्रेम मेरे दिल में भीनी-भीनी ख़ुशबू की तरह हमेशा महकता रहेगा.
- शोभा रानी गोयल

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