मैं जब भी अकेला होता हूं
क्यों ज़ख़्म हरे हो जाते हैं
क्यों याद मुझे आ जाती हैं
वो बातें सारी दर्द भरी
मैं जिनको भूल नहीं पाता
वो घाव कितने गहरे हैं
किस-किसने दिए हैं ग़म कितने
किस-किसका नाम मैं लूं हमदम
जिस-जिसने मुझपे वार किए
वो सारे अपने थे हमदम
एक बात समझ में आई है
है चलन यही इस दुनिया का
जिस पेड़ ने धूप में छांव दी
उस पेड़ को जड़ से काट दिया...
वेद प्रकाश पाहवा ‘कंवल’
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