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कहानी- घुटन 2 (Story Series- Ghutan 2)

जहां मां एक ओर भीड़ से घिरी ठहाके लगा रही थीं, वहीं दूसरी ओर निशा अपनी कुछेक सहेलियों के साथ अलग खड़ी थी. “एक बात पूछूं निशा, यह तुम्हारी मां ही हैं न? भई, बुरा मत मानना, मैंने तो यूं ही पूछ लिया. वैसे लगती तुम्हारी बड़ी बहन जैसी ही हैं.” जब से निशा ने होश संभाला, मां के इसी रूप से परिचित थी वह. चाहे परिस्थितियां कैसी भी हों, मां के व्यक्तित्व पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता था. परिस्थितियों के अनुरूप स्वयं को ढाल लेने के उनके व्यक्तित्व के कारण ही पापा के देहांत के बाद भी उन्होंने उनकी कमी हमें कभी महसूस नहीं होने दी. लेकिन मां के यही गुण निशा के मन में उपजी कुण्ठा का कारण थे. मां के सामने वह स्वयं को अजनबी-सा महसूस करती. शायद यही कारण था कि मां तो आज भी निशा की उम्र की ही लगती थीं, परंतु निशा शायद उम्र से पहले ही बूढ़ी हो रही थी. “हैलो, कहां खो गयी निशा?” अचानक अमित ने निशा को अतीत से वर्तमान के धरातल पर ला खड़ा किया. “तुम भी अजीब हो. तुम्हारी मां आई है और तुम आज भी उसी तरह उदास, ग़मगीन चेहरा लिए बैठी हो. यह देखो, मॉम ने कितनी बढ़िया साड़ी ख़रीदी है तुम्हारे लिए, मेरे लिए यह शर्ट, बच्चों के लिए ढेर सारे खिलौने....” “अमित मां इस समय कहां हैं?” अमित की बात बीच में ही काटकर निशा ने पूछा. अमित एक पल के लिए चुप हो गया और फिर कपड़े अलमारी में रखने लगा. “वो हमारी पड़ोसन मिसेज़ वर्मा आयी हैं, शायद उन्हीं के साथ होंगी. वो सब छोड़ो, देखो यह शाम की पार्टी की लिस्ट है. तुम्हें कुछ और मंगवाना हो तो बता देना.” निशा ने लिस्ट को देखा और देखती ही चली गयी. इतनी लंबी लिस्ट, शायद पूरी बिल्डिंग को न्यौता दिया गया था. एक पल को लगा कि वह अमित से पूछे कि क्या कभी उसके लिए इतनी बड़ी पार्टी दी है उसने. लेकिन पूछने से भी क्या फ़ायदा, अमित के लिए वह केवल एक पत्नी ही थी. ऐसी पत्नी, जो स़िर्फ अपनी गृहस्थी और बच्चों में ही उलझी रहे. वह ख़ुद क्या चाहती है, यह जानने की कभी कोशिश नहीं की अमित ने. यह भी पढ़ें: सीखें ग़लतियां स्वीकारना ख़ैर, दिनभर तो मां से उसका आमना-सामना कम ही हुआ, लेकिन फिर वही घड़ी आ गयी जिसका सामना करने से वह हमेशा कतराती थी. पार्टी शुरू हो गयी थी और आज भी वह महसूस कर रही थी कि मां के सामने उसका व्यक्तित्व दबा-दबा-सा ही है. उनका पहनावा, उनके गहने, उनकी बातचीत का हर अंदाज़, हर तरी़के से वे उस पर भारी पड़ रही थीं. जहां मां एक ओर भीड़ से घिरी ठहाके लगा रही थीं, वहीं दूसरी ओर निशा अपनी कुछेक सहेलियों के साथ अलग खड़ी थी. “एक बात पूछूं निशा, यह तुम्हारी मां ही हैं न? भई, बुरा मत मानना, मैंने तो यूं ही पूछ लिया. वैसे लगती तुम्हारी बड़ी बहन जैसी ही हैं.” “क्या ड्रेसिंग सेंस है तुम्हारी मां का. भई, मैंने तो सोच लिया है कल मैं पूरे दिन तुम्हारी मां के साथ ही शॉपिंग करूंगी. तुम्हारे पतिदेव कहां हैं निशा? ओह, मैं तो भूल ही गयी थी, अभी तो तुम्हारी मां के साथ देखा था उन्हें, गप्पे लड़ाते हुए. भई कमाल है, पत्नी यहां अकेली है और वह वहां अपनी सास के साथ.....”

- अंकुर सक्सेना

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