पंचतंत्र की कहानी: लोमड़ी और सारस की दावत (Panchatantra Story: The Fox And The Stork)

एक जंगल में एक चालाक लोमड़ी और सारस रहते थे. दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे. साथ घूमते, साथ ही खाते-पीते…

January 1, 2022

कविता- हैलो न्यू ईयर… (Kavita- Hello New Year…)

हैलो न्यू ईयर तुम फिर आ गए बड़े अजीब शख़्स हो यार हर साल टपक पड़ते हो कुछ साल पहले…

December 31, 2021

कविता- तुम्हें छूने की इजाज़त… (Poetry- Tumhe Chhune Ki Ijazat…)

कई बार तुम्हें दिल के बेहद क़रीब पाता हूं लेकिन ख़्यालों में भी तुम्हें छूने से डर जाता हूं दिल…

December 29, 2021

रंग-तरंग- बही खाता: फिर भी सब ख़ैरियत है… (Rang-Tarang- Bahi Khata: Phir Bhi Sab Khairiyat Hai…)

आनेवाले साल को लेकर मेरे अंदर कोई जोश नहीं है (जो था कोरोना और केजरीवाल को दे चुका हूं) अन्दर…

December 27, 2021

कविता- आईने में ख़ुद को देखना मेरी नज़र से… (Poem- Aaina Mein Khud Ko Dekhna Meri Nazron Se…)

अब अपनी आंखें खोल देना और आईने में ख़ुद को देखना मेरी नज़र से जैसे तुम्हें आईना नहीं मैं देख…

December 26, 2021

कहानी- अनोखी ख़ुशी… (Short Story- Anokhi Khushi…)

"मीनू वाक़ई में तेरी मां तो साक्षात देवी है देवी. सचमुच कितनी नि:स्वार्थ हैं! पता है हमारी नानी की कितनी…

December 26, 2021

कविता: …फिर याद आए फुर्सत के वो लम्हे और चंद दोस्त! (Poetry: Phir Yaad Aaye Fursat Ke Wo Lamhe Aur Chand Dost)

आज फिर याद आने लगे हैं फ़ुर्सत के वो लम्हे, जिन्हें बड़ी मसरूफ़ियत से जिया था हमने…  चंद दोस्त थे और बीच में एक टेबल, एक ही ग्लास से जाम पिया था हमने…  न पीनेवालों ने कटिंग चाय और बन से काम चलाया था, यारों की महफ़िल ने खूब रंग जमाया था…  हंसते-खिलखिलाते चेहरों ने कई ज़ख्मों को प्यार से सहलाया था…  जेब ख़ाली हुआ करती थी तब, पर दिल बड़े थे… शरारतें और मस्तियां तब ज़्यादा हुआ करती थीं, जब नियम कड़े थे…  आज पत्थर हो चले हैं दिल सबके, झूठी है लबों पर मुस्कान भी…  चंद पैसों के लिए अपनी नियत बेचते देखा है हमने उनको भी, जिनकी अंगूठियों में हीरे जड़े थे…  माना कि लौटकर नहीं आते हैं वो पुराने दिन, पर सच कहें तो ये ज़िंदगी कोई ज़िंदगी नहीं दोस्तों तुम्हारे बिन…  जेब में पैसा है पर ज़िंदगी में प्यार नहीं है… कहने को हमसफ़र तो है पर तुम्हारे जैसा यार नहीं… वक़्त आगे बढ़ गया पर ज़िंदगी पीछे छूट गई, लगता है मानो सारी ख़ुशियां जैसे रूठ गई… कामयाबी की झूठी शान और नक़ली मुस्कान होंठों पर लिए फिरते हैं अब हम… अपनी फटिचरी के उन अमीर दिनों को नम आंखों से खूब याद किया करते हैं हम…  गीता शर्मा

December 24, 2021

व्यंग्य- भाग्य विधाता और भगवान (Satire- Bhagya Vidhata Aur Bhagwan)

कोरोना काल में जब आत्मनिर्भर होने का मॉनसून आया, तो कई ऐसे भगवान अपने अस्पताल को दिल, फेफड़ा और किडनी…

December 23, 2021

कविता- अपनी सी दुनिया… (Poetry- Apni Si Duniya…)

अब भी आती होगी गौरैया चोंच में तिनके दबाए बरामदे की जाली से अंदर तार पर सूख रहे कपड़ों पर…

December 22, 2021

लघुकथा- थोड़ा तुम बदलो, थोड़ा हम… (Short Story- Thoda Tum Badlo, Thoda Hum…)

"अरे, आपको ही चाहिए थी बेहद स्मार्ट, ख़ूब पढ़ी-लिखी, नौकरीवाली बहू! लो देख लो अब, आपकी छोटी स्मार्ट बहू चार…

December 18, 2021
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