एक जंगल में एक चालाक लोमड़ी और सारस रहते थे. दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे. साथ घूमते, साथ ही खाते-पीते…
हैलो न्यू ईयर तुम फिर आ गए बड़े अजीब शख़्स हो यार हर साल टपक पड़ते हो कुछ साल पहले…
कई बार तुम्हें दिल के बेहद क़रीब पाता हूं लेकिन ख़्यालों में भी तुम्हें छूने से डर जाता हूं दिल…
आनेवाले साल को लेकर मेरे अंदर कोई जोश नहीं है (जो था कोरोना और केजरीवाल को दे चुका हूं) अन्दर…
अब अपनी आंखें खोल देना और आईने में ख़ुद को देखना मेरी नज़र से जैसे तुम्हें आईना नहीं मैं देख…
"मीनू वाक़ई में तेरी मां तो साक्षात देवी है देवी. सचमुच कितनी नि:स्वार्थ हैं! पता है हमारी नानी की कितनी…
आज फिर याद आने लगे हैं फ़ुर्सत के वो लम्हे, जिन्हें बड़ी मसरूफ़ियत से जिया था हमने… चंद दोस्त थे और बीच में एक टेबल, एक ही ग्लास से जाम पिया था हमने… न पीनेवालों ने कटिंग चाय और बन से काम चलाया था, यारों की महफ़िल ने खूब रंग जमाया था… हंसते-खिलखिलाते चेहरों ने कई ज़ख्मों को प्यार से सहलाया था… जेब ख़ाली हुआ करती थी तब, पर दिल बड़े थे… शरारतें और मस्तियां तब ज़्यादा हुआ करती थीं, जब नियम कड़े थे… आज पत्थर हो चले हैं दिल सबके, झूठी है लबों पर मुस्कान भी… चंद पैसों के लिए अपनी नियत बेचते देखा है हमने उनको भी, जिनकी अंगूठियों में हीरे जड़े थे… माना कि लौटकर नहीं आते हैं वो पुराने दिन, पर सच कहें तो ये ज़िंदगी कोई ज़िंदगी नहीं दोस्तों तुम्हारे बिन… जेब में पैसा है पर ज़िंदगी में प्यार नहीं है… कहने को हमसफ़र तो है पर तुम्हारे जैसा यार नहीं… वक़्त आगे बढ़ गया पर ज़िंदगी पीछे छूट गई, लगता है मानो सारी ख़ुशियां जैसे रूठ गई… कामयाबी की झूठी शान और नक़ली मुस्कान होंठों पर लिए फिरते हैं अब हम… अपनी फटिचरी के उन अमीर दिनों को नम आंखों से खूब याद किया करते हैं हम… गीता शर्मा
कोरोना काल में जब आत्मनिर्भर होने का मॉनसून आया, तो कई ऐसे भगवान अपने अस्पताल को दिल, फेफड़ा और किडनी…
अब भी आती होगी गौरैया चोंच में तिनके दबाए बरामदे की जाली से अंदर तार पर सूख रहे कपड़ों पर…
"अरे, आपको ही चाहिए थी बेहद स्मार्ट, ख़ूब पढ़ी-लिखी, नौकरीवाली बहू! लो देख लो अब, आपकी छोटी स्मार्ट बहू चार…