
जिस किसी ने राजकुमार गुप्ता की सात साल पहले आई फिल्म ‘रेड’ देखी होगी उन्हें ‘रेड २’ यक़ीनन पसंद आएगी. पूरी फिल्म उसी तरह पूरे फ्लो में आगे बढ़ती है. कैसे एक ईमानदार आयकर अधिकारी भ्रष्ट नेता को उसी की चाल से चारो खाने चित्त कर देता है, वो बेहद दिलचस्प है.
अजय देवगन एक बार फिर अमय पटनायक की भूमिका में पूरी फिल्म में छाए हुए हैं. यह सुपरहिट रही फिल्म ‘रेड’ का सीक्वल है. रितेश देशमुख पहली बार विलेन की भूमिका में प्रभावित करते हैं. वे भोज नगरी का एक आम व्यक्ति थे, जो हमेशा जन कल्याण में लगे रहते हैं. वो लोगों की ज़रूरत के लिए अपना सब कुछ लुटा देते हैं. उन्हीं के लिए राजनेता भी बन जाते हैं. आम से ख़ास बनने की दादा भाई, रितेश देशमुख की कहानी अनोखे ढंग से फिल्माई गई है.

शुरू से रेड यानी छापेमारी का सिलसिला जो चलता है वह अंत तक ज़ारी रहता है. ऊपर से नीचे तक भ्रष्टाचार किस तरह अपना जाल बिछाए हुए है, वो देख कहीं-कहीं पर बेहद ताज्जुब होता है. अमय और दादा के बीच चूहे-बिल्ली का खेल शुरू हो जाता है. दोनों अपने-अपने ढंग से शह-मात देते रहते हैं. अंत में दादा की अच्छाइयों के पीछे के काले करतूतों का पर्दाफाश करके ही रहता है अमय.
दादा भाई अपनी मां सुषमा, सुप्रिया पाठक को भगवान से भी बड़ा दर्जा देते हैं. उनकी पूजा करते हैं. वहीं मां को जब अपने अच्छे बेटे के बुरे रूप का पता चलता है तो वे बर्दाश्त नहीं कर पातीं. बेटे को थप्पड़ मारने के साथ मां के दर्दभरे मनोभावों को लाजवाब अंदाज़ में प्रस्तुत किया है सुप्रिया पाठक ने.
यूं तो पूरी फिल्म कसी हुई है, लेकिन अंत के दांव-पेंच मज़ेदार है. निर्देशक राजकुमार गुप्ता ने सभी कलाकारों से बढ़िया काम लिया है, फिर चाहे वो अमित सियाल हो या यशपाल शर्मा. अजय देवगन, रितेश देशमुख, वाणी कपूर, रजत कपूर, सौरभ शुक्ला, श्रुति पांडे, बृजेंद्र काला, गोविंद नामदेव हर कलाकार ने अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया है.
फिल्म की कहानी राजकुमार गुप्ता ने रितेश शाह, करण व्यास और जयदीप यादव के साथ मिलकर लिखी है. भूषण कुमार, कृष्ण कुमार, कुमार मंगत व अभिषेक पाठक निर्मित ‘रेड २’ को राजनीति व क़ानूनी दांव-पेंच देखनेवाले ख़ूब एंजॉय करेंगे.

तमन्ना भाटिया का आइटम सांग कहानी में रुकावट पैदा करता है, पर देखने में भी अच्छा लगता है. अमित त्रिवेदी का बैकग्राउंड म्यूज़िक लाजवाब है. टी सीरीज़ के बैनर तले संगीत ठीक है. आर. पी. यादव की स्टंट कोरियोग्राफी ठीक है. सुधीर चौधरी की सिनेमैटोग्राफी बढ़िया है. संदीप फ्रांसिस की एडिटिंग सटीक है, जिससे क़रीब सवा दो घंटे की फिल्म पूरे समय तक बांधे रखती है.
जिस तरह अंत में जेल में दादा भाई से ताऊजी, सौरभ शुक्ला हाथ मिलाते हैं उससे इस बात का अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि इसका तीसरा पार्ट भी यक़ीनन बनेगा. हमें भी ‘रेड ३’ का इंतज़ार रहेगा.

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