ग़ज़ल- इक दुआ बनती गई मेरे लिए… (Gazal- Ek Dua Banti Gai Mere Liye…)

काग़जी फूलों की हैं यह बस्तियां
ढूंढ़ते फिरते हैं बच्चे तितलियां
और बढ़ती जा रही हैं लौ मेरी
तेज़ जितनी हो रही है आंधिया
अब भी लहरों में हैं देखो तैरती
याद के सागर में कितनी मछलियां?
आस्मां से काले बादल छट गए
घोंसले फूकेंगी कैसे बिजलियां?
यह मिली हम को निशानी प्यार में
फासले और सिसकती मजबूरियां
रोशनी को आज़माने के लिए
फिर पतंगों ने मिटा ली हस्तियां
चांद तक तुम को ले जा सकती नहीं
कश्तियां यह चांदनी की कश्तियां
कल्पना हो या हक़ीक़त हो मगर
दूरियां होती हैं फिर भी दूरियां
इक दुआ बनती गई मेरे लिए
जब भी गैरों ने उड़ाई फब्तियां
बिछुड़ते लम्हों में जो तुम ने भरी
याद हैं अब भी मुझे वो सुबकियां
रात काली है तो ‘बालम’ क्या हुआ?
इसके आंचल में सुबह की पंक्तियां

– बलविन्दर ‘बालम’

यह भी पढ़े: Shayeri

Photo Courtesy: Freepik

Usha Gupta

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