तन्हा रातभर रोने के बाद भी सुबह बच्चों की ख़ातिर वे उनके सामने मुस्कुराते हुए आतीं. उन्होंने अपने दर्द को अपने तक ही रखा. उनके अनुसार, यदि समय रहते वे डॉक्टर के पास चली जातीं, तो शायद और जल्दी कैंसर से रिकवर कर लेतीं. वे ख़ुद को ख़ुशनसीब समझती हैं कि उनके ब्रेस्ट कैंसर का इनिशियल स्टेज पर पता चल गया और समय पर ट्रीटमेंट हुआ.
ताहिरा का पहले यह मानना था कि शारीरिक स्वास्थ्य ही सेहतमंद ज़िंदगी के लिए काफ़ी है, पर बाद में उन्हें यह एहसास हुआ कि कैंसर जैसी बीमारी में मानसिक और भावनात्मक चीज़ें भी बहुत मायने रखती हैं. फिर उन्होंने बौद्धिक जाप करना शुरू किया, जिससे उन्हें काफ़ी फ़ायदा हुआ.
ताहिरा कश्यप के केस में हमें यह जानने को मिलता है कि कैंसर जैसी बीमारी में दवाइयों और थेरेपी के साथ-साथ हमारी मानसिक और भावनात्मक स्थिति भी काफ़ी मायने रखती है. ऐसे में परिवार का, अपनों का, ख़ासकर पति का साथ काफ़ी सकारात्मक परिणाम लाता है. इसलिए जिस किसी को भी कैंसर हुआ हो, तब कोशिश करनी चाहिए कि वह अपनों के क़रीब रहे. कैंसर के मरीज को ढेर सारा प्यार अपनापन दें. उन्हें सकारात्मक सोच के लिए प्रेरित करें और हर कदम पर उनका साथ दें.
जैसा कि आप सभी जानते हैं सोनाली बेंद्रे के केस में उनकी कैंसर की बीमारी इन सभी से ही जल्दी ठीक हुई. इसलिए हर किसी का फर्ज बनता है कि अगर उनके भाई-बंधु में या परिवार में जिस किसी को भी कैंसर हो, वे उनका भरपूर साथ दें. उन्हें फिजिकली और मेंटली मदद करें. ताहिरा ने अपने इंटरव्यू में इसी बात पर अधिक ज़ोर दिया और वे सभी को यही संदेश देना चाहती थीं कि कैंसर से डरे नहीं, उसका डटकर सामना करें और सकारात्मक सोच के साथ रहें.
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