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फिल्म समीक्षा: ये ‘आंखों की गुस्ताखियां’ शायद ही माफ़ हो… (Movie Review: Aankhon Ki Gustaakhiyan)

प्रेम कहानी में एक लड़का होता है, एक लड़की होती है, कभी दोनों हंसते हैं कभी दोनों रोते हैं... विक्रांत मैसी और शनाया कपूर की पहली फिल्म 'आंखों की गस्ताखियां' कुछ ऐसे ही ख़ूबसूरत ग़लतियां करती हैं. निर्देशक संतोष सिंह ने तो बहुत कोशिश की फिल्म को एक सुंदर संगीतमय प्रेम कहानी बनाने की, पर अफ़सोस अपने इस प्रयास में वे सफल न हो पाए.

जहान, विक्रांत मैसी एक दृष्टिहीन गायक-गीतकार-संगीतकार हैं, जो देहरादून की ट्रेन से मसूरी जा रहे हैं. इस ट्रेन में सबा, शनाया कपूर से मुलाक़ात होती है, जो फिल्म में अंधी लड़की की भूमिका निभाने के लिए गांधारी की तरह आंखों पर पट्टी बांधकर पूरा सफ़र करने की ख़्वाहिश रखती है. जिससे वो भूमिका और दृष्टिहीन होने के अनुभव को शिद्दत से महसूस कर सके. उनके इस ट्रेन जर्नी में जहान मदद करते हैं. दोनों एक दूसरे के प्यार में गिरफ़्त हो जाते हैं. लेकिन दिलचस्प बात यह होती है कि ना विक्रांत शनाया को बता पाते हैं कि वह देख नहीं सकते और न ही शनाया ही जान पाती है कि उनका हमसफ़र इस दुनिया को नहीं देख सकता.

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मुलाक़ात, दोस्ती, प्यार, फिर बिछड़ना... फिर एक बार विदेश में मिलना, एक नए नाम व नए अंदाज़ में. पर अब सबा के जीवन में कोई और आ गया है. लेकिन क्या वे अपने सच्चे प्यार को समझ पाती हैं?.. जहान से कबीर बने विक्रांत को पहचान पाती हैं?.. इन आंखों की गुस्ताखियां क्या-क्या रंग दिखाती हैं, वह तो फिल्म देखने पर ही समझ पाएंगे.

अपनी पहली ही फिल्म में एक्टर संजय कपूर की बेटी शनाया ने ठीक-ठाक काम किया है. लेकिन विक्रांत के साथ उनकी जोड़ी वह कमाल नहीं दिखा पाती, जितना एक प्रेम कहानी में कपल के साथ फ्रेशनेस की उम्मीद की जाती है.

रस्किन बॉन्ड की कहानी 'द आइज़ हैव इट' पर आधारित 'आंखों की गुस्ताखियां' के पटकथा और संवाद निर्देशक ने मानसी बागला व निरंजन अय्यर के साथ मिलकर लिखे हैं.

विक्रांत मैसी, शनाया कपूर, जैन खान दुर्रानी, भारती शर्मा व सानंद वर्मा सभी ने ठीक-ठाक अभिनय किया है.

तनवीर मीर की सिनेमैटोग्राफी बढ़िया है. ज़ी म्यूज़िक कंपनी के तले विशाल मिश्रा के गीत-संगीत में पहली बार इश्क़ हुआ... गाना और जुबिन नौटियाल का गाया टाइटल ट्रैक अच्छा बन पड़ा है. जोएल जो क्रैस्टो का बैकग्राउंड प्रभावित करता है. संपादक उन्नीकृष्णन पीपी यदि चाहते तो इस करीब ढ़ाई घंटे की फिल्म को थोड़ी और छोटी कर सकते थे.

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ज़ी स्टूडियोज़, मिनी फिल्म्स व ओपन विंडो फिल्म्स के बैनर तले बनी 'आंखों की गुस्ताखियां' के लिए निर्माता मानसी और वरुण बागला ने बहुत उम्मीद रखी होगी, जो खरी नहीं उतर पाई.

- ऊषा गुप्ता

Photo Courtesy: Social Media

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