आलिया भट्ट की अभी तक की बेहतरीन परफॉर्मेंस का नज़ारा देखने मिला फिल्म 'गंगूबाई काठियावाड़ी में. एक महिला के सेक्स वर्कर से सोशल वर्कर बनने के संघर्षमय सफ़र की कहानी है यह, जो हुसैन ज़ैदी की किताब 'माफिया क्वींस ऑफ मुंबई' पर आधारित है. निर्देशक संजय लीला भंसाली ने अपनी हर फिल्म की तरह इस फिल्म में भी भव्य सेट, लाजवाब डायलॉग, गीत-संगीत और ख़ूबसूरत सिनेमाटोग्राफी प्रस्तुत की है.
गुजरात के काठियावाड़ के बैरिस्टर की बेटी गंगा (आलिया भट्ट) हरजीवन दास हीरोइन बनना चाहती है. 16 साल की उम्र में परिवार के विरोध के बावजूद चुपके से अपने प्रेमी के साथ मुंबई भाग कर चली आती है. वे दोनों शादी कर लेते हैं, पर लालची प्रेमी मात्र एक हज़ार रुपए में गंगा को रेड लाइट एरिया कमाठीपुरा में मौसी शीला (सीमा पाहवा) को बेच देता है और भाग जाता है. आलिया बहुत रोती-गिड़गिड़ाती है, पर उसे वेश्यावृत्ति में धकेल दिया जाता है.
डॉन रहीम लाला जो अजय देवगन बने हैं का आदमी गंगा के साथ ज़बरदस्ती बेदर्दी से बलात्कार करता है. इसका प्रतिशोध लेने और न्याय के लिए गंगा रहीम से मदद की गुहार करती है. तब रहीम न केवल उस व्यक्ति को कठोर सजा देते हुए कमाठीपुरा की बस्ती में आकर मारता है, बल्कि गंगा को अपनी बहन भी बना लेता है.
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गंगा देह व्यापार के दलदल में फंसी महिलाओं की मदद करना चाहती है. मौसी के देहांत के बाद उनकी गद्दी संभालती है और गंगा से गंगू बन जाती है. लेकिन उसके बाद कमाठीपुरा के प्रेसिडेंट बनने के लिए तमाम विरोध का सामना करना पड़ता है, पर वह हार नहीं मानती. वह कमाठीपुरा की चार हज़ार वेश्याओं और उनके बच्चों का जीवन संवारने के लिए लड़ाई लड़ती है. इसमें गंगू की कई जगह पर सहायता करते हैं पत्रकार फैज़ी, जिसकी भूमिका जिम सर्भ ने निभाई है.
गंगू रजिया बाई, जो विजय राज ट्रांसजेंडर की भूमिका में है को हराकर कमाठीपुरा की प्रेसिडेंट बनती है. तब कमाठीपुरा के स्त्रियों और बच्चों के जीवन स्तर को सुधारने के लिए उस समय के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से भी मिलती है.
फिल्म की कहानी में दिखाया गया कि एक गुजरात के काठियावाड़ से आई एक सीधी-सादी गंगा किस तरह से गंगू और फिर गंगूबाई बनती है. वह न केवल अपने जीवन स्तर को सुधारती है, बल्कि अपने साथ की सभी महिलाओं के दर्द उनके बच्चों की तकलीफ़ को समझते हुए उन्हें भी बेहतर ज़िंदगी देने में मदद करती है.
इसी बीच गंगू को टेलर के बेटे अफ़शान जो शांतनु माहेश्वरी बने हैं, से प्यार हो जाता है. दोनों की लव केमिस्ट्री भी मज़ेदार है और उन पर फिल्माए गए गाने आते मोरा सैंया… मेरी जान… भी खूबसूरत बन पड़े हैं. सारेगामा म्यूज़िक की ढोलिड़ा… झूमे रे गोरी… गाना तो पहले से हिट हो गया है.
इसमें आलिया भट्ट के डांस और भाव-भंगिमाएं देखते ही बनती है.
कुमार के और ए एम तुराज के गीत अर्थपूर्ण है. कृति महेश के डांस ज़बरदस्त हैं. संचित बल्हारा और अंकित बल्हारा का पार्श्व संगीत लाजवाब है.
गंगूबाई की भूमिका में आलिया भट्ट ने अब तक की अपनी बेस्ट परफॉर्मेंस दी है. उनकी अदाएं, चलने का अंदाज़ और ज़बरदस्त संवाद उनके क़िरदार को और भी ऊंचा उठा देते हैं. आलिया भट्ट ने भी अलग-अलग क़िरदारों को अपने लाजवाब अभिनय से ख़ास बनाने में महारत हासिल कर ली है. फिर चाहे राजी फिल्म की भूमिका हो या गंगूबाई की.
अजय देवगन ने रहीम लाला जो उस समय के डॉन करीम लाला का ही क़िरदार है, में प्रभावित किया है. हमेशा की तरह अपने दमदार अभिनय और संवाद से लोगों का दिल जीत लिया. ट्रांसजेंडर की भूमिका में विजय राज भी अपनी छोटी-सी भूमिका में जान फूंक देते हैं. उनके हावभाव और अभिनय देखते ही बनता है. वे सड़क फिल्म के सदाशिव अमरापुरकर और आशुतोष राणा की याद दिला देते हैं, जिन्होंने इस तरह की यादगार भूमिकाएं की थीं.
जिम सर्भ, शांतनु माहेश्वरी, सीमा पाहवा, इंदिरा तिवारी, अनमोल कजानी, हुमा कुरैशी आदि कलाकारों ने भी अपनी-अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया है.
संजय लीला भंसाली ने पटकथा लिखने के साथ संगीत और निर्देशन की बागडोर भी संभाली है. यह अलग बात है कि पटकथा में उन्हें उत्कर्षिनी वशिष्ठ ने सहयोग दिया है. उत्कर्षिनी ने प्रकाश कपाड़िया के साथ संवाद भी लिखा है, जो ज़बरदस्त हैं. कई डायलॉग्स तो दिल को छू जाते हैं. फिल्म की जान हैं इसके डायलॉग और इससे हर किसी ने अपने डायलॉग के साथ ज़बरदस्त छाप छोड़ी है, फिर चाहे वह आलिया भट्ट, अजय देवगन हो या विजय राज. कुछ प्रभावशाली संवाद की बानगी पेश है-
गंगूबाई चांद थी और चांद ही रहेगी…
कहते हैं, कमाठीपुरा में कभी अमावस की रात नहीं होती, क्योंकि वहां गंगू रहती है…
लिख देना कल के अख़बार में आज़ाद मैदान में गंगूबाई ने आंखें झुकाकर नहीं, आंखें मिलाकर हक़ की बात की है…
ये सभी डायलॉग्स फिल्म में बेहद दमदार लगे हैं.
ड्रेस डिज़ाइनर शीतल इकबाल शर्मा ने बहुत मेहनत की है. उन्हीं के कारण आलिया भट्ट की ख़ूबसूरती और भी आकर्षक लगती है. सुब्रत चक्रवर्ती व अमित रे के प्रॉडक्शन डिज़ाइन के साथ सुदीप चटर्जी की सिनेमाटोग्राफी का फिल्म को सुंदर बनाने में अहम् योगदान है. शाम कौशल के एक्शन सीन काबिल-ए-तारीफ़ है. इसमें कोई शक नहीं कि भंसाली प्रोडक्शन और पेन इंडिया लिमिटेड की प्रस्तुति 'गंगूबाई काठियावाड़ी' एक बेहतरीन कामयाब फिल्म बनी है.
लेकिन एक बात कह सकते हैं कि संजय लीला भंसाली जिस चीज के लिए जाने जाते हैं, वो है उनके संगीत और रियल से लगते भव्य सेट, उसकी कमी यहां पर थोड़ी खली है. हम दिल दे चुके सनम से लेकर रामलीला, पद्मावत, बाजीराव मस्तानी सब में उनकी बड़े-बड़े सेट और बेहतरीन कलाकारों के साथ लाजवाब संगीत मुख्य रहे हैं. गंगूबाई काठियावाड़ी में वे यही चूक जाते हैं. बेचारी अकेली आलिया पूरी फिल्म को अपने कंधे पर उठाए नज़र आती हैं. आलिया भट्ट को इस फिल्म में उनके उत्कृष्ट अभिनय के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार या कई अवॉर्ड मिल जाएंगे इसमें कोई दो राय नहीं.
फिल्म में 50-60 के दशक के समय व विषयों को बख़ूबी दिखाया गया है. कमाठीपुरा के सेट भी दिलचस्प लगे हैं, खासकर चौदहवी का चांद फिल्मी के पोस्टर के आगे एक व्यक्ति द्वारा सांप के साथ खेल दिखानेवाला सीन दिलचस्प है. जाननेवाली बात यह है कि एक तरह से भंसाली ने अभिनेता-फिल्मकार गुरुदत्त को भी याद किया. गुरुदत्त ने भी इस खेल को सीखा और किया था.
महिलाओं को यह फिल्म ख़ासतौर पर पसंद आएगी, क्योंकि इसमें किस तरह से कमाठीपुरा जैसे रेड लाइट एरिया की हज़ारों महिलाओं के जीवन स्तर को सुधारने की कोशिश गंगूबाई द्वारा की जाती है और उनके संघर्षमय जीवन को क़रीब से दिखाया गया है. इससे महिलाएं भी बहुत कुछ सोचने पर मजबूर होंगी. अक्सर समाज इस तरह के लोगों से दूरी बनाए रखता है और इन्हें काफी हेय दृष्टि से भी देखा जाता है. इस दृष्टिकोण से भी फिल्म बेहतर बनी है. आलिया भट्ट के फैंस तो यह फिल्म देखेंगे ही, लेकिन सभी कलाकारों और भंसाली के फिल्मों को पसंद करनेवाले भी इसे ज़रूर देखना चाहेंगे.
फिल्म- गंगूबाई काठियावाड़ी
निर्देशक- संजय लीला भंसाली
कलाकार- आलिया भट्ट, अजय देवगन, विजय राज, सीमा पाहवा, जिम सरभ, शांतनु माहेश्वरी.
रेटिंग- *** 3/5
Photo Courtesy: Instagram