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फिल्म समीक्षा: ‘मस्त में रहने का’ में दिखी जैकी श्रॉफ और नीना गुप्ता की लाजवाब जुगलबंदी (Movie Review- Mast Mein Rahne Ka)

रेटिंग: 3 ***

निर्देशक विजय मौर्य ने मुंबई महानगर में फैले बुज़ुर्गों के एकाकीपन को बहुत ही ख़ूबसूरती से प्रस्तुत किया है 'मस्त में रहने का' फिल्म में. इस कहानी को अपने सशक्त अभिनय से शिखर पर ले जाते हैं जैकी श्रॉफ और नीना गुप्ता.
बुज़ुर्ग विदुर कामथ, जैकी श्रॉफ अपने अकेलेपन से बेजार रहते हैं. अपने आप में रहना उन्हें ज़्यादा पसंद रहता है. उनके एकाकीपन की इंतहा इस कदर हो जाती कि जब नन्हे, अभिषेक चौहान उनके घर में चोरी करने आता है, तो उसे कहते हैं कि वह उन्हें मार दें. यह एक अलग पहलू पेश करता है शहर में रह रहे बुज़ुर्गों की मानसिक स्थिति को.


प्रकाश कौर, नीना गुप्ता अपने बेटे-बहू के व्यवहार से व्यथित होकर कनाडा से मुंबई लौट आई हैं. वे अपनी ज़िंदगी अपने हिसाब से ज़िंदादिली के साथ मस्त में रहते हुए जी रही हैं. उनके जीने के अंदाज़ से कामथ बेहद प्रभावित होते हैं और उन्हें भी अपने ज़िंदगी को एक नए सिरे से जीने का नज़रिया मिलता है. लेकिन कामथ आश्चर्य में भी डाल देते हैं, जब वे अपने एक ऐसे मिशन कहें या सर्वेक्षण, जिसमें वे अकेले रह रहे लोगों के घरों में जाकर उनकी स्थिति को समझते हुए उनको जानने की कोशिश करते रहते हैं. इसी उद्देश्य से वे प्रकाश कौर का भी पीछा करते हैं. ऐसे में कई स्थितियां हास्य के साथ दर्द भी पैदा करती हैं एक अकेले व्यक्ति की मनःस्थिति को लेकर.


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नन्हे जो दर्जी का काम करता था, मगर कर्ज़ के तले दबते हुए पैसों की ख़ातिर चोरी के काम करने से भी नहीं हिचकता. उसकी मुलाक़ात भीख मांगने से लेकर छोटा-मोटा काम करनेवाली रानी, मोनिका पंवार से होती है. दोनों एक-दूसरे के प्रति आकर्षित होते हैं. कामथ-प्रकाश के साथ नन्हे-रानी की भी एक अलग कहानी चलती रहती है. राखी सावंत कैमियो में कोरियोग्राफी की भूमिका में अपने अंदाज़ में नज़र आती हैं.
दो घंटे से अधिक की यह फिल्म हमें शहर में रहते अकेले व्यक्ति, संघर्ष करते लोगों की मानवीय स्थिति से दो-चार कराती है. एक अलग नज़रिया पेश करते हैं कि मानव जीवन में उतार-चढ़ाव, संघर्ष होने के बावजूद अपनी ज़िंदगी को मस्त में रहने के अंदाज़ को नहीं छोड़ना चाहिए.


जैकी श्रॉफ, नीना गुप्ता, अभिषेक, मोनिका ने लाजवाब एक्टिंग की है. वे कहानी के साथ बहते हुए नज़र आते हैं और फिल्म को बांधे रखते हैं. फैसल मलिक ने अपनी छोटी भूमिका में प्रभावित किया है. निर्देशक विजय मौर्य ने लेखक, निर्माता, निर्देशक की तिहरी भूमिका निभाई है और इसमें सफल भी रहे हैं. लेखनी-निर्माता के तौर में उनका साथ पायल अरोड़ा ने भी दिया है.


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नागराज रथिनम की सिनेमैटोग्राफी कसी हुई है. अंतरा लहरी ने फिल्म के एडिटिंग अच्छी की है. शैलेंद्र बर्वे और अनुराग सैकिया के गीत तर्कपूर्ण हैं, वहीं अरविंद नियोग का संगीत कर्णप्रिय है. ओटीटी के  अमेज़न प्राइम पर रिलीज़ 'मस्त में रहने का' वाकई में ज़िंदगी का मस्त नज़रिया प्रस्तुत करते हैं, जिसे हर किसी को देखना और समझना चाहिए.

Photo Courtesy: Social Media

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