रेटिंग: ** 2
'सुखी' फिल्म शिल्पा शेट्टी के लिए नवजीवन साबित हुई है. इसे उनके करियर के सेकंड इनिंग की शानदार वापसी कह सकते हैं. निर्देशक सोनल जोशी ने एक स्त्री की मनोव्था को बड़ी ख़ूबसूरती से दर्शाया है. कहानी बस इतनी सी है सुखी, शिल्पा शेट्टी अपने पति, बेटी और बीमार ससुर के साथ सुखी वैवाहिक जीवन जी रही है. इसी बीच उसकी स्कूल के रीयूनियन में जाने की उसकी इच्छा पर पति की नाराज़गी और बवाल मच जाता है.
पति गुरु का यह कहना कि तुम दिनभर सुबह से शाम तक करती क्या हो?.. यह हर गृहिणी के लिए चुभता हुआ सवाल है, जो उनके पति उनसे अक्सर कहते हैं.
सुखी का शानदार बचपन और कॉलेज गुज़रा था. वह!बिंदास और एक साहसी लड़की थी.
लेकिन माता-पिता के ख़िलाफ़ गुरु से शादी करने के बाद ससुराल में ही सिमट कर रह जाती है उसकी अपनी ज़िंदगी. पर रीयूनियन में पति के मना करने के बावजूद वह शामिल होती है. तब उसकी ज़िंदगी को एक नया ठहराव मिलता है और एक नई सोच भी.
सुखी एक अच्छे विषय पर ख़ूबसूरत फिल्म बनाई गई है, जिसमें सभी कलाकारों ने शानदार अभिनय किया है. प्रेमी के रूप में अमित साध भी जंचे हैं, तो पति के रूप में चैतन्य चौधरी ने भी अपना काम ठीक-ठाक किया है.
सहेली के रूप में कुशा कपिला प्रभावित करती हैं.
रुपिंदर इंद्रजीत, राधिका आनंद व पॉलोमी दत्ता मैं कहानी तो अच्छी लिखी है, लेकिन पटकथा और मज़बूत होनी चाहिए थी. पत्नी, मां और बहू के रूप में हर भूमिका में सुखी प्रभावित करती है. कह सकते हैं कि करीना कपूर की जाने जान भरी पड़ी है सुखी और वही अभिनय के मामले में भी शिल्पा करीना से बाजी मार ले जाती हैं.
फिल्म के कई दृश्य बेहतरीन बन पड़े हैं, जैसे- सुखी का अपने पति-ससुर के साथ व्यवहार, बेटी को मेडिकल में लेकर जाकर सैनेटरी नैपकिन ख़रीदने वाला सीन…
सिनेमैटोग्राफर आर. डी. ने दिल्ली के दृश्यों को बेमिसाल तरीक़े से फिल्माया है. संगीत ठीक-ठाक है. बादशाह के गाए गाने पसंद और दर्शकों को पसंद आ रहे हैंदिलनाज ईरानी, किरण कुमार, विनोद नागपाल, सेजल गुप्ता, कमल सचदेवा पूर्णिमा राठौड़ व पवलीन गुजराल ने भी बढ़िया एक्टिंग की है. विनी एन राज की एडिटिंग औसत है. उन्हें थोड़ी और एडिट करनी चाहिए थी फिल्म.
फिल्म के निर्माता भूषण कुमार और कृष्ण कुमार हैं.
ढाई घंटे की यह फैमिली ड्रामा फिल्म कहीं पर हंसाती है, कहीं गुदगुदाती है, तो कहीं पर ग़मगीन भी करती है,!लेकिन सभी का भरपूर मनोरंजन करती है.
रेटिंग: ** 2
एकता कपूर की 'जाने जान' कीगो हिगासीनो की उपन्यास 'द डिवोशन ऑफ सस्पेक्ट एक्स' से प्रेरित है. माया, करीना कपूर अपनी 13 साल की बेटी के साथ खुशहाल जीवन जी रही है. इसी बीच एक क़त्ल हो जाता है और उसका शक करीना पर आ जाता है. फिर कहानी में कई ट्विस्ट आते हैं. निर्देशक सुजाॅय घोष ने सस्पेंस और रोमांच बनाए रखने की भरसक कोशिश की है. फिर भी फिल्म उम्मीद पर खरी नहीं उतरती. करीना का अभिनय प्रभाहित नहीं करता. उनसे बेहतर शिल्पा ने सुखी में अपने जलवे दिखाए हैं. इससे करीना ने ओटीटी पर डेब्यू किया है. विजय वर्मा, जयदीप अहलावत, लीन लेशराम व सौरभ सचदेवा की उम्दा अदाकारी प्रभावित करती है. इसमें कोई दो राय नहीं कि एकता-शोभा कपूर, अक्षय पुरी व जय शवकर्माणि ने एक अच्छी फिल्म बनाने की कोशिश की है. अविक मुखोपाध्याय ज़ी सिनेमा सिनेमैटोग्राफी बेमिसाल है. उर्वशी सक्सेना का संपादन सामान्य है. अज्ञात का म्यूज़िक मधुर है.
सुखी और जाने जान दोनों ही फिल्में अच्छे विषय व डायरेक्शन के बावजूद 2 स्टार से अधिक डिजर्व नहीं करती हैं.
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