काव्य- बहुत ख़ूबसूरत मेरा इंतज़ार...

काव्य- बहुत ख़ूबसूरत मेरा इंतज़ार हो गया… (Poetry- Bahut Khoobsurat Mera Intezar Ho Gaya…)

कश्मकश में थी कि कहूं कैसे मैं मन के जज़्बात को
पढ़ा तुमको जब, कि मन मेरा भी बेनकाब हो गया

नहीं पता था कि असर होता है इतना जज़्बातों में
लिखा तुमको तो हर एक शब्द बहकी शराब हो गया

संजोए रखा था जिसको कहीं ख़ुद से भी छिपाकर
हर्फ़-दर-हर्फ़ वो बेइंतहां.. बेसबब.. बेहिसाब हो गया

हां, कहीं कोई कुछ तो कमी थी इस भरे-पूरे आंगन में
बस एक तेरे ही आ जाने से घर मेरा आबाद हो गया

मुद्दतों से एक ख़्वाहिश थी कि कहना है बहुत कुछ
तुम सामने जो आए, क्यों ये दिल चुपचाप हो गया

सोचती थी मैं जिसको सिर्फ़ ख़्यालों में ही अब तलक
मिला वो, तो बहुत ख़ूबसूरत मेरा इंतज़ार हो गया

ये वक़्त के लेखे मिटाए कब मिटे ‘मनसी’
जो था नहीं लकीरों में, आज राज़ वो सरेआम हो गया…

नमिता गुप्ता ‘मनसी’

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Photo Courtesy: Freepik

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