रक्षाबंधन के शुभ पर्व को यदि सही तरीके से मनाया जाए तो उसका फल भी शुभकारी और मनोकामना पूरी करने वाला होता है. विधि-विधान से रक्षाबंधन किया जाए, तो इससे भाई की रक्षा होती है और भाई अपने जीवन में यश-कीर्ति प्राप्त करता है. इस साल राखी बांधने का शुभ मूहुर्त-पूजा विधि-तिथि और महत्व क्या है, ये बता रहे हैं ज्योतिष व वास्तु एक्सपर्ट पंडित राजेंद्र जी.

रक्षाबंधन 2020 के ज्योतिष शुभ मुहूर्त
- रक्षाबंधन अनुष्ठान का समय- सुबह 09 बजकर 28 मिनट से रात 09 बजकर 14 मिनट तक
- अपराह्न मुहूर्त- दोपहर 01 बजकर 46 मिनट से शाम 04 बजकर 26 मिनट तक
- प्रदोष काल मुहूर्त- शाम 07 बजकर 06 मिनट से रात 09 बजकर 14 मिनट तक
- पूर्णिमा तिथि आरंभ – 02 अगस्त की रात 09 बजकर 28 मिनट से प्रारंभ होगा
- पूर्णिमा तिथि समाप्त- 03 अगस्त की रात 09 बजकर 27 मिनट पर
रक्षाबंधन के ज्योतिष मुहूर्त को ऐसे समझें
रक्षाबंधन का पर्व श्रावण मास में उस दिन मनाया जाता है, जिस दिन पूर्णिमा अपराह्ण काल में पड़ रही वहीं इस दौरान अन्य कुछ नियमों को भी ध्यान में रखना आवश्यक है:
- यदि पूर्णिमा के दौरान अपराह्ण काल में भद्रा हो तो रक्षाबंधन नहीं मनाना चाहिए. ऐसे में यदि पूर्णिमा अगले दिन के शुरुआती तीन मुहूर्तों में हो, तो पर्व के सारे विधि-विधान अगले दिन के अपराह्ण काल में करने चाहिए.
- लेकिन यदि पूर्णिमा अगले दिन के शुरुआती 3 मुहूर्तों में न हो तो रक्षाबंधन को पहले ही दिन भद्रा के बाद प्रदोष काल के उत्तरार्ध में मना सकते हैं.
दरअसल शास्त्रों के अनुसार भद्रा होने पर रक्षाबंधन मनाना पूरी तरह निषेध है, चाहे कोई भी स्थिति क्यों न हो.
ग्रहण सूतक या संक्रान्ति होने पर यह पर्व बिना किसी निषेध के मनाया जाता है.
रक्षाबंधन के बारे में जरूरी बातें
रक्षाबंधन हिन्दू पंचाग के अनुसार हर वर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाना वाला यह त्यौहार भाई-बहन के प्यार को जताने का प्रतीक है. इस दिन बहन अपने भाईयों की कलाई में राखी बांधती है और उनकी दीर्घायु व प्रसन्नता के लिये प्रार्थना करती है. और भाई अपनी बहन की हर विपत्ति पर रक्षा करने का वचन देते हैं. इन राखियों के मध्य भावनात्मक प्रेम भी छिपा होता है.
रक्षाबंधन के बारे में पौराणिक कथा
पुराणों मे वर्णन है कि एक बार देव व दानवों में जब युद्ध शुरू हुआ तब दानव हावी होते नजर आने लगे. भगवान इन्द्र घबराकर गुरू बृहस्पति के पास गये और अपनी व्यथा सुनाने लगे. वहां पैर बैठी इन्द्र की पत्नी इन्द्राणी यह सब सुन रही थी. उन्होंने एक रेशम का धागा मन्त्रों की शक्ति से पवित्र कर अपने पति की कलाई पर बांध दिया. वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था. इन्द्र को इस युद्ध में विजयी प्राप्ति हुयी. तभी से लोगों का विश्वास है कि इन्द्र को विजय इस रेशमी धागा पहनने से मिली थी. उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन यह धागा बांधने की प्रथा चली आ रही है. यह धागा ऐश्वर्य, धन, शक्ति, प्रसन्नता और विजय देने में पूरी तरह सक्षम माना जाता है.
ये है रक्षाबंधन का सही तरीका
- रक्षाबंधन के दिन सबसे पहले भाई-बहन उठकर स्नान आदि कार्य निपटा लें. फिर नए या साफ-सुथरे कपड़े पहनकर सूर्य देव को जल चढ़ाएं. फिर घर के मंदिर में जाकर पूजा-अर्चना करें. ईश्वर की अराधना करने के बाद राखी बांधने से संबंधित सामान एकत्रित कर लें. इसके लिए चांदी, पीतल, तांबे या स्टील की कोई भी साफ थाली लें. उसमें एक सुंदर कपड़ा बिछा लें. उसमें एक कलश, नारियल, सुपारी, कलावा, रोली, चंदन, अक्षत, दही, राखी और मिठाई रख लें. थाली में भाई की आरती उतारने के लिए घी का दीपक भी रखें. अब यह थाल पहले भगवान को समर्पित करें, कृष्ण भगवान और गणेश जी को राखी अर्पित करें. भगवान को राखी अर्पित करने के बाद शुभ मुहूर्त देख भाई को पूर्व या उत्तर की तरफ मुंह करवाकर बिठाएं. फिर भाई को पहले तिलक लगाएं, फिर राखी यानी रक्षा सूत्र बांधें और भाई की आरती करें. इस बात का ध्यान रखें कि राखी बांधते समय भाई का सिर किसी कपड़े से ढका होना चाहिए.
राखी बांधते समय बहन भाई की लंबी उम्र के लिए इस मंत्र का उच्चारण कर सकती हैं :
येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबल: ।
तेन त्वां मनुबध्नामि, रक्षे मा चल मा चल ।।
इसके बाद भाई को मुंह मिठा करें. रक्षा सूत्र बंधवाने के बाद बड़ों का आशीर्वाद लें. इसके बाद भाई अपनी बहन को अपनी श्रद्धा अनुसार उपहार दें.