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कहानी- चरित्रहीन (Short Story- Charitrheen)

“सर, कभी मेरे घर आइए, साथ चाय पीएंगे.” मोहनजी मुस्कुराए, “मिस के. वाई. मैंने सोचा ही नहीं कि आपको कभी घर भी बुलाना चाहिए. माफ़ कीजिएगा, पर मेरी एक प्रॉब्लम है कि मैं अकेला रहता हूं.”
“ओह!” मोहनजी ने कुछ सोचा और बोले, “देखो मिस के. वाई. इस संडे तुम मेरे घर आ रही हो और हम लोग मिलकर वीकेंड मनाएंगे.” अचानक मिले इस ऑफर से मिस के. वाई. सकते में आ गई.

आर. के. मोहन अपने केबिन से निकले और मुस्कुराते हुए बोले, “आइए मिस के. वाई., आपके आते ही ऑफ़िस में ख़ुशबू फैल गई. देखिए, ज़रा जल्दी आएंगी तो स्टाफ़ थोड़ा और पहले आने लगेगा और हम लोगों को भीनी-भीनी सुगंध का एहसास भी होता रहेगा.” यह सुनकर सारा स्टाफ़ ज़ोर से हंसने लगा.
“प्लीज़ बैठिए मिस के. वाई. वैसे आज देर कैसे हो गई? बस छूट गई, लंच रह गया या फिर कोई मिल गया था?”
“सर, आई एम सॉरी. अब कभी देर नहीं होगी.” तभी आर. के. मोहन ने रामू को पूरे स्टाफ के लिए समोसे लाने के लिए कहा. अभी तक सीरियस लग रहा ऑफिस का माहौल काफ़ी हल्का हो गया था.
के. के. बोला, “सर, पार्टी किस ख़ुशी में?” के. वाई. भी चौंकी, “वैसे सर, आज पार्टी किस ख़ुशी में हो रही है?”
“अब आप भी पूछेंगी तो कैसे काम चलेगा? अरे, आपके लेट आने की ख़ुशी में.”
“बस, सर और शर्मिंदा मत कीजिए.”
“लो भई, मैंने कुछ कहा क्या किसी को? एक तो पार्टी दी और ऊपर से बात भी सुनो. आप रोज़ लेट आया करिए, हमारी पार्टी हो जाएगी.” और फिर एक ज़ोरदार ठहाके की आवाज़ गूंज उठी. इस बीच रामू गरम-गरम समोसे ले आया और सभी मज़े से खाने लगे. ऑफिस में ऐसा ख़ुशनुमा माहौल देख मिस के . वाई. के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई.
मिस के. वाई. को आर. के. मोहन ने बुलाया और बोले, “सारे अकाउंट्स पिछले पांच साल के रिकॉर्ड के साथ तैयार रखना. पता नहीं किस डेटा की ज़रूरत पड़ जाए. मैं आपकी मदद के लिए यहां हूं और आप मुझसे कुछ भी पूछ सकती हैं.” उनकी बात सुन मिस के. वाई. मुस्कुरा दी. सचमुच बहुत काम था उस दिन और जब मिस के. वाई. ने काम ख़त्म कर सिर उठाया, तो होश आया कि शाम के साढ़े छह बज गए हैं. चार्टर्ड बस तो अब तक जा चुकी होगी.


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इससे पहले कि वह कुछ समझ पाती, आर. के. मोहन बोले, “मिस डोंट वरी. मैं आपको रास्ते में घर छोड़ता हुआ निकल जाऊंगा.” आर. के. मोहन ने गाड़ी पार्किंग से निकाली और मिस के. वाई. के साथ चल पड़े. आर. के. मोहन ने एक फ़ास्टफूड रेस्तरां के आगे गाड़ी रोकी और कुछ पैक कराया. भीतर बैठते ही एक पैकेट के. वाई. को देते हुए कहा, “ये लीजिए मिस, यह हमारी तरफ़ से. आज आपने सचमुच बहुत काम किया है.” पैकेट से आ रही ख़ुशबू से के. वाई. को एहसास हुआ कि भूख लगी है और वह बिना संकोच के पैकेट से बर्गर निकाल कर खाने लगी.
थोड़ी ही देर में गाड़ी उसके घर के पास आकर रुक गई. के. वाई. उतरते हुए थैंक्स कहने लगी तो मोहनजी मुस्कुराते हुए बोले, “यह तो हमारा फ़र्ज़ है मैडमजी.” और ‘जी’ पर कुछ ऐसा ज़ोर दिया कि हंसी आए बिना न रह सकी. घर पहुंचने के बाद भी के. वाई. दिनभर के घटनाक्रम को याद कर हंसती रही. आर. के. मोहन अब बस मोहनजी रह गए थे. मोहनजी सभी के साथ ऐसा ही व्यवहार करते थे, पर कभी-कभी के. वाई. को लगता कि मोहनजी उसकी तरफ़ आकर्षित हैं. वह भी उनके क़रीब होने का प्रयास करने लगी. लेकिन हर बार उसके ऐसे प्रयास पर मोहनजी मुस्कुरा देते.
एक दिन मिस के. वाई. बोली, “सर, कभी मेरे घर आइए, साथ चाय पीएंगे.” मोहनजी मुस्कुराए, “मिस के. वाई. मैंने सोचा ही नहीं कि आपको कभी घर भी बुलाना चाहिए. माफ़ कीजिएगा, पर मेरी एक प्रॉब्लम है कि मैं अकेला रहता हूं.”
“ओह!” मोहनजी ने कुछ सोचा और बोले, “देखो मिस के. वाई. इस संडे तुम मेरे घर आ रही हो और हम लोग मिलकर वीकेंड मनाएंगे.” अचानक मिले इस ऑफर से मिस के. वाई. सकते में आ गई. जब उसने पूरे घटनाक्रम पर विचार किया तो उसे अपनी ग़लती का एहसास हुआ. वह सोचने लगी यदि मैं चाय के लिए न कहती तो मोहनजी भी मुझे घर न बुलाते. यदि मैं घर नहीं जाती हूं तो फिर मुसीबत है. पता नहीं घर पर मोहनजी का व्यवहार कैसा रहे? अभी तक तो ठीक ही लगे, पर अकेले आदमी का क्या भरोसा? ऑफिस में तो सभी से बेबा़क़ी से बात करते हैं. कई बार तो मज़ाक की सीमा तक पार कर जाते हैं. बॉस होने के नाते सब हंसते रहते हैं, कोई कुछ नहीं कहता. आज शनिवार की शाम थी और उसका मन उचाट था. उसे उलझन में देख मां ने पूछा, “क्या हुआ, सब ठीक तो है?”
“कुछ नहीं मां, बस ऐसे ही.”
मां बोली, “मैं समझती हूं बेटी, ऑफिस का काम, इतनी भागदौड़ और नया माहौल. चल मैं कॉफी बनाती हूं.” के. वाई. अपने हर क़दम पर विचार करती रही. उसने कहीं पढ़ा था कि बॉस से अच्छे संबंध करियर बनाने में सहायक होते हैं. पर कहीं मोहनजी चरित्रहीन हुए तो?.. और इसके आगे वह कुछ नहीं सोच पाई. इस उधेड़बुन में कब उसकी आंख लग गई, पता ही नहीं चला और जब सुबह उठी, तो सात बज रहे थे. जैसे ही वह फ्री होकर नाश्ते के लिए टेबल पर बैठी वैसे ही मोबाइल बज उठा. मोहनजी का फ़ोन था, “हैलो के. वाई. नींद खुल गई? तुम मेरे घर आ रही हो न आज? और हां, नाश्ता मेरे साथ ही करना.”
“वो सर...”

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“कोई बहाना नहीं चलेगा. मैं तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूं.” और इसी के साथ फोन कट गया.
“किसका फ़ोन था?” मां ने पूछा.
“सहेली का. कुछ ज़रूरी काम है, मैं होकर आती हूं. हां, यदि देर हो जाए तो तुम फोन कर देना.” वह कुछ सोचते हुए बोली.
वह ऑटो लेकर मोहनजी के घर पहुंच गई. घर के बाहर छोटा-सा लॉन था. उसने ऑटोवाले को पैसे दिए और कॉलबेल बजा दी. तभी उसकी नज़र लॉन में पौधों को पानी दे रहे एक अधेड़ आदमी पर पड़ी. उसे देखकर के. वाई. की जान में जान आई. इतने में भीतर से आती हुई एक महिला मुस्कुराते हुए बोली, “तुम यामिनी हो न. अंदर आओ, बाहर क्यों खड़ी हो?” उसके आश्‍चर्य का ठिकाना न रहा.
इन्हें मेरा नाम कैसे मालूम है? “मोहनजी यहीं रहते हैं?”
‘हां भाई, यह मोहनजी का ही घर है. तुम अंदर तो आओ.” महिला ने कहा.
“और आप?”
“मैं उनकी धर्मपत्नी हूं.”
“पर मोहनजी ने बताया था कि वे अकेले रहते हैं.”
“मैं कल रात ही आई हूं पुणे से.” महिला मिस के. वाई. का हाथ पकड़ उसे ड्रॉइंगरूम में लाते हुए बोली. उनकी पत्नी को देख के. वाई. का सारा तनाव छू-मंतर हो गया. उनकी पत्नी ऐसे बातें कर रही थीं, जैसे बरसों से उसे जानती हों. तभी मिस के. वाई. ने पूछा, “सर नहीं हैं क्या?”
महिला बोली, “मुलाक़ात नहीं हुई क्या? वो लॉन में पौधों को पानी दे रहे थे. अभी बुलाती हूं. अरे मोहन...”
“अभी आया.” देखा तो पायजामा आधा घुटने के ऊपर उठाए, खादी का कुर्ता पहने वही अधेड़ आदमी घर के भीतर चला आ रहा है. वह चौंकी, ये मोहनजी हैं. वह तो जैसे आसमान से गिरी हो. कहां ऑफिस वाले स्मार्ट मोहनजी और कहां ये.
ड्रॉइंगरूम में घुसते ही मोहनजी बोले, “गुड मॉर्निंग मिस के. वाई.” पानी का ग्लास हाथ से छूटते-छूटते बचा मिस के. वाई. के हाथ से, “सर आप?”
“क्यों भाई, क्या मेरी कोई पर्सनल लाइफ़ नहीं हो सकती?” यामिनी को चौंकते देख मोहनजी बोले, “तुम बैठो, बस मैं अभी आया हाथ-मुंह धोकर.” और जब साफ़-सुथरे कपड़ों में मोहनजी ने कमरे में कदम रखा, तो चेहरे से गंभीरता टपक रही थी. मिस के. वाई. को लगा जैसे वह अपने किसी पिता तुल्य पुरुष से बात कर रही है. उसने सिर झुका लिया और बोली, “सर, मुझे माफ़ कर दीजिए.”
मोहनजी बोले, “क्यों? ऐसी क्या ग़लती की तुमने कि माफ़ी मांग रही हो?”
“सॉरी सर, मैंने आपके बारे में ग़लत सोचा.” मिस के. वाई. याचना करते हुए बोली.
“क्या हुआ यामिनी बेटा?” इस बार मिसेज़ मोहन बोलीं. मोहनजी मुस्कुराते हुए बोले, “किसी के बारे में सही-ग़लत सोचना इंसान का अपना नज़रिया है. ज़रूरी नहीं कि सबका नज़रिया एक-सा हो. मैं काफ़ी दिनों से तुम्हें घर बुलाने की सोच रहा था, पर मेरी पत्नी कल ही आई. इसीलिए घर बुलाने में समय लग गया.”
“ओह! बस इतनी-सी बात. मेरा मोहन कभी ग़लत काम नहीं करता. तुम्हें पता है जब हमारी शादी हुई तो मोहन कैसा था?” और इतना कहकर मिसेज़ मोहन एक पुराना एलबम ले आईं.
उसमें साइकिल पर पैर टेककर खड़े आदमी को देख यामिनी ज़ोर से हंसी, “सर, ये आप हैं?” मोहनजी ने झट से एलबम छीनते हुए पत्नी से कहा, “अब बस, इसे और मत दिखाना, वरना कल ऑफ़िस में मेरी इमेज ख़राब कर देगी.” मिस के. वाई. पति-पत्नी की ट्यूनिंग और अपनत्व देख हैरान थी. एक बात शुरू करता तो दूसरा पूरी कर देता. बातों-बातों में काफ़ी देर हो गई, तभी घर से मां का फ़ोन आ गया, “यामिनी, बड़ी देर कर दी. कहां है?”
“मां, मैं अपने सर की फैमिली के साथ हूं और लौटकर बताती हूं.”
“हूं... क्या बताकर आई थी मां को कि फ्रेंड के घर जा रही हूं?” मोहनजी ने पूछा.
“आपको कैसे पता?”
“क्यों भाई हम क्या तुम्हारी उम्र के नहीं थे?”
“देखो बेटा, किसी के बारे में भी ग़लतफ़हमी हो सकती है. हमको भी इस उम्र में ख़ुश और ऐक्टिव रहने का हक़ है. अगर हम ऑफिस में तनाव में काम करेंगे, तो बेस्ट परफॉर्मेंस नहीं दे पाएंगे. इसीलिए मैं ऑफिस का माहौल तनावरहित रखता हूं. और रही बात मेरी और मेरी पत्नी की, तो आज मैं जिस मुक़ाम पर हूं, इनकी ही बदौलत हूं. इनके बिना मैं एक कदम भी नहीं चल सकता.
आज की युवापीढ़ी बहुत जल्दी ग़लतफ़हमी पाल लेती है. पति-पत्नी का रिश्ता बहुत गहरा व प्यार भरा होता है. हमको अपनी ज़िम्मेदारी, उम्र, मान-मर्यादा और पद-प्रतिष्ठा का पूरा ख़याल है. यदि हम कोई भी ग़लत क़दम उठाएंगे तो एक-दूसरे को क्या मुंह दिखाएंगे और हमारी एक छोटी-सी ग़लती भी हमारे पूरे परिवार को बिखेर देगी.” मिस के. वाई. की झुकी हुई आंखें देख मोहनजी आगे बोले, “बेटा, आदमी को सफलता सिर्फ़ उसके काम और मेहनत से ही मिलती है.” तभी मिस के. वाई. की नज़र एक ग्रुप फ़ोटो पर पड़ी?
“सर, ये बीच में कौन है?” मिसेज़ मोहन बोलीं, “हमारा बेटा पीयूष.” अब मोहनजी हंसे, “वही‌ पी.सी." मिस के. वाई. को अब एहसास हुआ कि बात कुछ और ही है, अभी तक उसने यह तो बताया ही नहीं था कि उसका पूरा नाम क्या है और घर आते ही मिसेज़ मोहन ने उसे के. वाई. नहीं यामिनी कहा था.
मोहनजी ने पूछा, “साहबज़ादे हैं कहां?”
“आता ही होगा, आज सुबह-सुबह ही जिम चला गया. तुम्हारी ही तरह उसने भी कई शौक पाल रखे हैं.” मिसेज़ मोहन बोली. तभी मिस के. वाई. ने पूछा, “सर, आप यामिनी और पी. सी. को कैसे जानते हैं?” मोहनजी शरारती अंदाज़ में बोले, “तुम यामिनी ही हो न, इसमें तो कोई शक नहीं है और रहा पीयूष, तो वह मेरा बेटा है पी.सी. कुमार, सन ऑफ मोहन कुमार और तुम दोनों एक-दूसरे को पसंद करते हो.” के. वाई. को हैरान होते देख मोहनजी बोले, “देखो बेटा, हम तुम्हारे बाप हैं और सवाल मैं पूछूंगा, तुम बस जवाब देना.” तभी देखा तो सामने से पीयूष चला आ रहा था. घर में कदम रखते ही उसकी नज़र यामिनी पर पड़ी, तो वह चौंकते हुए बोला, “यामिनी तुम...” दोनों को ऐसे हैरान होते देख मोहनजी बोले, “कब से चल रहा है यह सब?” पीयूष बोला, “पापा, ऐसा कुछ नहीं है, लेकिन आप इसे कैसे जानते हैं.”


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“बेटा, जब मैं ब्लैक एंड व्हाइट के ज़माने में तुम्हारी मां को ढूंढ़ सकता हूं, तो फेसबुक और सोशल नेटवर्किंग के ज़माने में अपनी बहू को क्यों नहीं?” अब बात साफ़ हो गई थी कि मोहनजी ने फेसबुक खंगालकर बेटे की पसंद जान ली थी और अब यामिनी को भी मोहनजी का यह राज़ समझ में आ रहा था. मोहनजी ने पत्नी से कहा, “यदि तुम्हें यामिनी पसंद हो तो इनके घर चलकर रिश्ता पक्का कर देते हैं. तुमको कोई ऐतराज तो नहीं है न.”
पीयूष शरमा-सा गया, “पापा, यू आर सो स्वीट.” मोहनजी बोले, “बेटा, अब मुझे स्वीट मत बोल, नहीं तो बहू नाराज़ हो जाएगी.”

“अंकल प्लीज़.” अब पहली बार यामिनी को मोहनजी सर नहीं, घर के सदस्य की तरह लगे थे. यामिनी ने मिस्टर और मिसेज़ मोहन के पैर छुए और घर चली आई. अगले दिन जब यामिनी ऑफिस पहुंची, तोे देखा पार्टी की तैयारियां चल रही हैं और सब उसे देखकर मुस्कुरा रहे हैं. उसे समझ में नहीं आ रहा था. आज वह लेट भी नहीं थी. कोई ऑफिशियल प्रोग्राम भी नहीं था. उसने कलीग से पूछा, “आज कौन लेट हो गया?” वह मुस्कुराया बोला, “मैडम, आज अपने साहब ही लेट हैं.” उसने देखा सच में मोहनजी केबिन में नहीं थे. ऐसा पहली बार था कि मोहनजी के लेट होने पर स्टाफ स्नैक्स पार्टी दे रहा था. इससे पहले कि वह कुछ पूछती, देखा तो सामने से मोहनजी आ रहे थे. उनके ऑफिस में कदम रखते ही पूरा स्टाफ एक साथ बोला, “गुड मॉर्निंग सर.”
फिर मिसेज़ सरोज बोलीं, “सर, आज कौन फंसा जाल में?” वे मुस्कुराए, “इस बार तो मैं ही बकरा बन गया.” यह सुन पूरा स्टाफ हंसने लगा. तभी मिसेज़ शांति बोलीं, “सर के. वाई. तो आज यामिनी बन गई, पर इनका कपल कौन बना, यही जिज्ञासा है. आज जब तोता बाबू ने बताया कि सर लेट आएंगे और स्नैक्स पार्टी रखनी है, तभी हम समझ गए थे कि मिस के. वाई. का शिकार हो गया है.”
यामिनी चौंकी, “तो क्या ऑफिस में यह बात सभी को पता थी.” सभी कॉन्फ्रेंस टेबल के इर्दगिर्द बैठे स्नैक्स ले रहे थे. तभी मिसेज़ आरती बोलीं, “सर, मुझे याद है आपने कैसे मुझे और के. के. को मिलाया था.” तभी मिसेज़ सरोज बोलीं, “सर, अगर आप न होते तो मेरी और मिहिर की शादी तो इस जन्म में हो ही नहीं सकती थी.”
मोहनजी मुस्कुराए, “तुम लोग भी मज़ाक करते हो. शादी के जोड़े तो ऊपर से बनकर आते हैं, मैं तो बस उन्हें मिलाता हूं.” अब यामिनी को समझ में आया कि मोहनजी कितने आदरणीय हैं. उसकी निगाह में अपने होनेवाले ससुर के लिए श्रद्धा और बढ़ गई. उसे अफ़सोस हो रहा था कि कैसे अपनी ग़लत सोच के कारण एक भले आदमी को उसने चरित्रहीन समझ लिया था. तभी तोता बाबू बोले, “सर, मिस के. वाई. के होनेवाले पति का परिचय तो कराइए.”
इस बार मोहनजी गंभीर थे, “देखिए, आज से मिस के. वाई. यानी यामिनी हमारी होनेवाली बहू हैं और इस बारे में कोई मज़ाक नहीं.”
सभी चौंके, “क्या सर?” मोहनजी ने सिर झुकाया और बोले, “आज की पार्टी का ख़र्च मेरे पर्सनल अकाउंट में लिखना. आज मैं बकरा बन गया हूं.” सभी पार्टी का आनंद ले रहे थे और मोहनजी की बातों पर ठहाका भी लगा रहे थे. दस बजते ही मोहनजी घड़ी देखतेे हुए बोले, “प्लीज़ आप लोग भी फटाफट अपनी-अपनी टेबल पर पहुंचिए, मैं आज का टारगेट मेल करता हूं.” टेबल से उठते हुए आज यामिनी को महसूस हो रहा था कि एक सच्चे आदमी को समझने में उसने कितनी बड़ी भूल की.

मुरली मनोहर श्रीवास्तव

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