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कहानी- अजूबा 4 (Story Series- Ajooba 4)

"तुम्हें लगता है तुम्हारा फिल्मी प्लान सफल होगा?" रास्ते में मैंने पूजा से पूछा था. प्लान की सफलता को लेकर मैं अब भी संदेह में था. "शत प्रतिशत! चूंकि हमारे दोनों पूज्य पिताजी बच्चों की तरह बचकाना हरकतें कर रहे हैं, तो हमें भी उन्हें उसी तरह हैंडल करना होगा. बच्चे मां-बाप की उपस्थिति में ज़्यादा लड़ते-झगड़ते हैं, नखरे दिखाते हैं, एक-दूसरे की चुगली करते हैं, चिढ़ाते हैं, क्योंकि उन्हें पता होता है मां-बाप बीच-बचाव करेगें और इस तरह वे उनका ध्यान आकर्षित कर पाएंगे. पर जब पैरेंट्स बाहर गए हुए होते हैं, तो वे मिलकर रहते हैं, परस्पर मदद भी करते हैं.

            ... "मिल गया!" "क्या?" मैंने हैरानी से पूछा. "दोनों सिंहों को मिलाने का आइडिया! जो मुझे इस मूवी से सूझा है." पूजा ने धीमे स्वर में मुझे सारा प्लान समझा दिया. अगले दिन नाश्ते की टेबल पर योजनानुसार मैंने बात छेड़ी. "डॉक्टर ने पूजा को हवा-पानी बदलने को कहा है, तो हम कुछ दिनों के लिए कहीं बाहर हो आने की सोच रहे हैं." "मेरे साथ गांव चलो. बहू सबसे मिल भी लेगी और गांव के शुद्ध हवा-पानी से उसकी सेहत को भी लाभ होगा."बाबूजी तुरंत बोल उठे. "वहां के मच्छर, कीचड़, गंदगी से तो तुम और बीमार हो जाओगी पूजा! वैसे भी अभी तुम्हारी हालत ज़्यादा ट्रैवल करने की नहीं है. मैं किसी हिल स्टेशन के फ्लाइट टिकट बुक करवा देता हूं." डैडीजी बोले.     यह भी पढ़ें: पति-पत्नी का रिश्ता दोस्ती का हो या शिष्टाचार का? क्या पार्टनर को आपका बेस्ट फ्रेंड होना ज़रूरी है? (Should Husband And Wife Be Friends? The Difference Between Marriage And Friendship)     मैंने निराशा से पूजा की ओर देखा. हमारा पहला ही दांव उल्टा पड़ गया था. "अभी तो हम लोग किसी हिल स्टेशन पर ही चले जाते हैं. फिर बच्चे को लेकर गांव जाएंगे. उसे भी तो दादा का घर देखना होगा न!" पूजा ने बात संभाली, तो मेरी आंखें फिर आशा से चमकने लगीं. आख़िर यही फाइनल हुआ. हम अगले ही दिन रवाना हो गए. विदाई के वक़्त मैंने गौर किया दोनों सिंहों के चेहरे लटके हुए थे. एकबारगी तो रूक जाने का मन हुआ. पर फिर लगा भविष्य में सब ठीक हो जाए इसके लिए अभी इतनी जुदाई तो सहनी ही होगी. "तुम्हें लगता है तुम्हारा फिल्मी प्लान सफल होगा?" रास्ते में मैंने पूजा से पूछा था. प्लान की सफलता को लेकर मैं अब भी संदेह में था. "शत प्रतिशत! चूंकि हमारे दोनों पूज्य पिताजी बच्चों की तरह बचकाना हरकतें कर रहे हैं, तो हमें भी उन्हें उसी तरह हैंडल करना होगा. बच्चे मां-बाप की उपस्थिति में ज़्यादा लड़ते-झगड़ते हैं, नखरे दिखाते हैं, एक-दूसरे की चुगली करते हैं, चिढ़ाते हैं, क्योंकि उन्हें पता होता है मां-बाप बीच-बचाव करेगें और इस तरह वे उनका ध्यान आकर्षित कर पाएंगे. पर जब पैरेंट्स बाहर गए हुए होते हैं, तो वे मिलकर रहते हैं, परस्पर मदद भी करते हैं. उन्हें डर रहता है कि हमारी परवाह करनेवाले तो चले गए. अब स्वयं ही सब परिस्थितियों से निबटना है." कश्मीर की वादियों में स्वास्थ्य लाभ करते, आनंद उठाते भी हमारा मन घर में ही अटका हुआ था. दोनों सिंह अपनी-अपनी मांद से बाहर निकले होगें या नहीं, उन्होंने परस्पर मैत्री का हाथ बढ़ाया होगा या नहीं? 'काश पूजा का प्लान फलीभूत हो जाए’ ईश्वर ने शायद हमारी सुन ली थी. हमारी अनुपस्थिति ने दोनों को अकेले में आत्मचिंतन के लिए बाध्य कर दिया था. डैडीजी बिस्तर पर विचारमग्न लेटे थे.   यह भी पढ़ें: स्पिरिचुअल पैरेंटिंग: आज के मॉडर्न पैरेंट्स ऐसे बना सकते हैं अपने बच्चों को उत्तम संतान (How Modern Parents Can Connect With The Concept Of Spiritual Parenting)     ‘घर आए मेहमान वो भी समधीजी की अवहेलना कर मैं ग़लत तो नहीं कर रहा. बच्चे शायद मेरे ही व्यवहार से खिन्न होकर दूर चले गए हैं. मुझसे उनकी दो दिन की जुदाई बर्दाश्त नहीं हो रही और समधीजी से तो मैंने उन्हें हमेशा के लिए जुदा कर दिया था. माना शिव के भले के लिए किया, पर उससे ज़्यादा मैंने अपना भला देखा. चौधरीजी भले ही ग्रामीण परिवेश से हों मेरी ही तरह सेल्फमेड इंसान हैं और हर हाल में सम्मानीय हैं.’

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[caption id="attachment_182852" align="alignnone" width="246"] संगीता माथुर[/caption]           अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES         डाउनलोड करें हमारा मोबाइल एप्लीकेशन https://merisaheli1.page.link/pb5Z और रु. 999 में हमारे सब्सक्रिप्शन प्लान का लाभ उठाएं व पाएं रु. 2600 का फ्री गिफ्ट.

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