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कहानी- बेवफा 6 (Story Series- Bewafa 6)

  लेकिन मुझे उसकी बातों पर यक़ीन नहीं था. वह इस मामले में भावुकता और आदर्शवाद से बाहर ही नहीं निकल पा रहा था. शबाना के साथ दो साल रहकर स्वप्नजीवी हो गया. उसकी बौद्धिक परिपक्वता ग़ायब हो गई थी, उसकी जगह मूर्खतापूर्ण अपरिपक्वता ने ले ली थी. वह भावनात्मक दायरे से बाहर निकलने के लिए तैयार ही नहीं था. मामला हिंदू-मुसलमान का था, लिहाज़ा कुंडल को ज़मानत नहीं मिली. मुक़दमा भी जल्दी शुरू कर दिया गया. मैं कुंडल से मिलने के लिए अक्सर जौनपुर के ज़िला काराग़ार जाता था. वैसे मुझे पूर्वानुमान हो चला था कि कुंडल की अब खैर नहीं. एक बार वकील की सेवाएं लेने के संबंध में बात करने के लिए मैं ज़िला कारागार गया. मैं वकील करने की ज़िद कर रहा था. मगर कुंडल हरदम एक ही रट लगाए रहा, "तुम देखना, मैं बेदाग़ छूट जाऊंगा, क्योंकि मेरी शबाना मेरे साथ है. मेरी ज़िंदगी, मेरी लाइफ, मेरी सब कुछ." वह रोने लगा. बोलते-बोलते उसका रो देना मुझे हैरान करनेवाला लगा. शायद शबाना को लेकर उसका भरोसा क्या पहले से कुछ कम हो गया था? थोड़ी देर चुप रहने के बाद वह फिर बोला, "शाबाना नाबालिग नहीं है, वह बाइस साल की है. जिस दिन वह जज को पूरी घटना बताएगी. उसी दिन मैं छूट जाऊंगा. और देखना, वह बताएगी ज़रूर, क्योंकि मैं ही उसके बिना नहीं, बल्कि वह भी मेरे बिना ज़िंदा नहीं रह सकती." लेकिन मुझे उसकी बातों पर यक़ीन नहीं था. वह इस मामले में भावुकता और आदर्शवाद से बाहर ही नहीं निकल पा रहा था. शबाना के साथ दो साल रहकर स्वप्नजीवी हो गया. उसकी बौद्धिक परिपक्वता ग़ायब हो गई थी, उसकी जगह मूर्खतापूर्ण अपरिपक्वता ने ले ली थी. वह भावनात्मक दायरे से बाहर निकलने के लिए तैयार ही नहीं था. मुझे पता था- वह फंसेगा ज़रूर. फंसेगा क्या, फंस गया है, लेकिन ऊपर से मैं भी उसकी हां में हां मिलाता था. मुझे पता था, ज़्यादातर मामलों में जब लड़कियों को प्यार और परिवार में से किसी एक को चुनने का विकल्प होता है, तो वे अपना परिवार ही चुनती हैं. अपने मां की बातों में आ जाती है और अपने प्यार की बलि दे देती हैं. इस मामले का सबसे ज़ोरदार और टर्निंग पॉइंट यह था कि शबाना के घरवालों ने उसे नाबालिग बता दिया था, जबकि वह बालिग थी. एमएससी में दाख़िला लेने वाली लड़की नाबालिग कैसे हो सकती है? कुंडल के लिए वकील तो नहीं किया गया, परंतु अपने एक वकील मित्र की सलाह पर मैं उस स्कूल में भी गया, जहां से शाबाना ने हाईस्कूल पास किया था. स्कूल किसी मुस्लिम नेता का था, जिसे शबाना के घरवालों ने पहले ही कोई सूचना न देने के लिए कह रखा था. लिहाज़ा, मुझे स्कूल से खाली हाथ वापस लौटना पड़ा. इसके बावजूद मैं उम्मीद कर रहा था कि ख़ुद कुंडल इस मुददे को उठाएगा और शबाना के हाईस्कूल का प्रमाण पत्र पेश करने की मांग करेगा, लेकिन उसने तो चुप्पी ओढ़ रखी थी. दरअसल, शबाना के बयान ने उसकी सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया. सारे सपने को बिखेर कर रख दिया था. "मिस्टर कुंडल, आपको अपनी सफ़ाई में कुछ कहना है." अदालत ने कुंडल से अंतिम बार पूछा. "नहीं…" उसका फिर वहीं संक्षिप्त सा उत्तर. मैं भी एक झटके से वर्तमान में आ गया. खड़ा होकर कुंडल से बोलने का इशारा किया, मगर अर्दली ने इशारे से डांटकर मुझे बैठ जाने को कहा. कुंडल इस बार भी कुछ नहीं बोला. सिर्फ़ आखें ही डबडबा रहा था. घनघोर निराशा थी उसकी आखों में. फिर वह नीचे देखने लगा. पराजित सिपाही की तरह. उसने शायद हार स्वीकार कर ली थी. शायद नहीं, निश्चित रूप से. इसे हार भी नहीं कहा जा सकता. जब लड़ाई ही नहीं हुई, तो हार कैसा? उसके लिए आत्मसमर्पण सबसे सही शब्द है. उसने आत्मसमर्पण कर दिया था. मुझसे थोड़ी दूरी पर शबाना कमाबेश कुंडल की-सी ही मुद्रा में बैठी थी. वह भी चुप थी. मुझे उस ऊपर बहुत अधिक क्रोध आ रहा था. मन हुआ जाकर पूछूं, "अब कैसे जीओगी कुंडल के बिना. उस दिन तो ख़ूब लंबी-चौड़ी हांक रही थी. इसी तरह पराजय स्वीकार करनी थी, तो क्यों उठाया ऐसा कदम क्यों नष्ट किया मेरे दोस्त का जीवन? लेकिन मैं चुपचाप बैठा रह गया. बहरहाल, उस दिन की सुनवाई अधूरी रही. यह भी पढ़ें: पेन रिलीफ रेमेडीज़ और हेल्थ आइडियाज से लेकर होम व किचन टिप्स तक- ये 50+ कारगर ट्रिक्स बनाएंगे आपकी लाइफ को बेहद आसान (From Pain to Safely, Home To Kitchen Tips, These 50+ Super Amazing Trick Will Make Your Life Easier) दूसरे दिन सुनवाई के दौरान अदालत में पेश किए गए साक्ष्यों के आधार पर कुंडल को नाबालिग शबाना को अपहृत करने और ज़बर्दस्ती उसके साथ शारीरिक संबंध करने के ज़ुर्म में दोषी पाया गया. लिहाज़ा अदालत ने मुज़रिम को आईपीसी की धारा 359-363 और 376 के तहत छह साल की सश्रम कारावास की सज़ा सुनाई. अदालत बर्खास्त हो गई. पुलिस ने कुंडल को फिर से हिरासत में ले लिया. प्रेस फोटोग्राफर कुंडल की ओर टूट पड़े. भीड़ चुपचाप बाहर जा रही थी. मैं वहीं दर्शक-दीर्घा में बैठा पता नहीं क्या सोच रहा था. थोड़ी देर में अदालत खाली हो गई. "चलिए." गांव के मेरे एक परिचित ने मुझे चौंका दिया. मैं अदालत के बाहर आ गया. बाहर कुंडल की मां रो रही थी, जबकि शबाना की मां चहक रही थी. मैं चुपचाप चल दिया. अपने घर की ओर. Harigovind हरिगोविंद विश्वकर्मा अधिक कहानी/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां पर क्लिक करें – SHORT STORIES

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