अचानक मिले इस ऑफ़र से मिस के. वाई. सकते में आ गई. जब उसने पूरे घटनाक्रम पर विचार किया तो उसे अपनी ग़लती का एहसास हुआ. वह सोचने लगी यदि मैं चाय के लिए न कहती तो मोहनजी भी मुझे घर न बुलाते. यदि मैं घर नहीं जाती हूं तो फिर मुसीबत है. पता नहीं घर पर मोहनजी का व्यवहार कैसा रहे?
एक दिन मिस के. वाई. बोली, “सर, कभी मेरे घर आइए, साथ चाय पीएंगे.”
मोहनजी मुस्कुराए, “मिस के. वाई. मैंने सोचा ही नहीं कि आपको कभी घर भी बुलाना चाहिए. माफ़ कीजिएगा, पर मेरी एक प्रॉब्लम है कि मैं अकेला रहता हूं.”
“ओह!”
मोहनजी ने कुछ सोचा और बोले, “देखो मिस के. वाई. इस संडे तुम मेरे घर आ रही हो और हम लोग मिलकर वीक एंड मनाएंगे.”
अचानक मिले इस ऑफ़र से मिस के. वाई. सकते में आ गई. जब उसने पूरे घटनाक्रम पर विचार किया तो उसे अपनी ग़लती का एहसास हुआ. वह सोचने लगी यदि मैं चाय के लिए न कहती तो मोहनजी भी मुझे घर न बुलाते. यदि मैं घर नहीं जाती हूं तो फिर मुसीबत है. पता नहीं घर पर मोहनजी का व्यवहार कैसा रहे?
अभी तक तो ठीक ही लगे, पर अकेले आदमी का क्या भरोसा? ऑफ़िस में तो सभी से बेबा़क़ी से बात करते हैं. कई बार तो मज़ाक की सीमा तक पार कर जाते हैं. बॉस होने के नाते सब हंसते रहते हैं, कोई कुछ नहीं कहता.
आज शनिवार की शाम थी और उसका मन उचाट था. उसे उलझन में देख मां ने पूछा, “क्या हुआ, सब ठीक तो है?”
“कुछ नहीं मां, बस ऐसे ही.”
मां बोली, “मैं समझती हूं बेटी, ऑफ़िस का काम, इतनी भागदौड़ और नया माहौल. चल मैं कॉफी बनाती हूं.”
के. वाई. अपने हर क़दम पर विचार करती रही. उसने कहीं पढ़ा था कि बॉस से अच्छे संबंध करियर बनाने में सहायक होते हैं. पर कहीं मोहनजी चरित्रहीन हुए तो?... और इसके आगे वह कुछ नहीं सोच पाई.
इस उधेड़बुन में कब उसकी आंख लग गई, पता ही नहीं चला और जब सुबह उठी तो सात बज रहे थे. जैसे ही वह फ्री होकर नाश्ते के लिए टेबल पर बैठी वैसे ही मोबाइल बज उठा.
मोहनजी का फ़ोन था, “हैलो के. वाई. नींद खुल गई? तुम मेरे घर आ रही हो न आज? और हां, नाश्ता मेरे साथ ही करना.”
“वो सर...”
“कोई बहाना नहीं चलेगा. मैं तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूं.” और इसी के साथ फ़ोन कट गया.
“किसका फ़ोन था?” मां ने पूछा.
“सहेली का. कुछ ज़रूरी काम है, मैं होकर आती हूं. हां, यदि देर हो जाए तो तुम फ़ोन कर देना.” वह कुछ सोचते हुए बोली.
मुरली मनोहर श्रीवास्तव
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