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कहानी- एहसास तुम्हारे प्यार का… 2 (Story Series- Ehsas Tumhare Pyar Ka 2)

उनका निश्छल प्यार और अपनापन देखकर उसका मन भीग उठा. न जाने क्यूं दादी मां की यादें ताज़ा होने लगीं, तभी तेज़ बारिश के कारण गाड़ी ने एक ज़ोर का हिचकोला खाया और वह गौतम की बांहों में जा गिरी. गौतम उसे मुस्कानभरी नज़रों से देखते हुए बोला, “मैडम, सीट बेल्ट लगाओ. बारिश का फ़ायदा मत उठाओ. कहीं किसी ट्रैफिक पुलिसवाले की नज़र पड़ गई कि आपने बेल्ट नहीं लगाई है, तो हम दोनों की रात हवालात में गुज़रेगी.”
जब भी दादी मां गांव से आतीं मम्मी के परायों जैसे व्यवहार से दुखी भले ही उनके मुख पर अनाधिकार का बोझ नज़र आता, पर उनका शालीन व्यवहार और शीतल ममत्वभरी दृष्टि उनके प्रति श्रद्धा और आत्मीयता की भावना जगाता था. उन्हें भी अपने बेटे और पोती से बेहद प्यार था, फिर भी उनकी ख़ुशी और घर की सुख-शांति के लिए वे गांव के एक मामूली-से मकान में रहती थीं. उसके पापा एक प्रशासानिक अधिकारी थे और मां एक कॉलेज में पढ़ाती थीं. नेहा उन दोनों की इकलौती संतान थी.
उसके पापा एक अतिसाधारण परिवार से थे. उन्होंने बचपन में ही अपने पिता को खो दिया था. बहुत कठिनाइयों का सामना करके उनकी मां ने उन्हें पढ़ाया था. नेहा की मम्मी ने उच्च पद पर देखकर उनसे शादी ज़रूर की थी, पर पति के विपन्न और गंवई परिवार को कभी अपना नहीं पाई थीं, जिसकी वजह से उसके पापा चाहकर भी अपनी मां तक को भी अपने साथ नहीं रख पाते थे.
उसने जब से होश संभाला, यही देखा था कि मम्मी हमेशा पापा से असंतुष्ट रहतीं. एक तो पुरुष वर्चस्व को स्वीकारना उनके स्वभाव में नहीं था. दूसरे, उन्हें लगता कि पापा के अतिसाधारण परिवार के साथ उनके उच्चवर्गीय परिवार का कोई मेल ही नहीं. नेहा को संभालने के लिए उन्होंने एक आया को रखा था, पर उसकी मां दादी मां को अपने घर में टिकने नहीं देती थीं. जबकि नेहा, दादी मां के रहने से अपने को ज़्यादा सुरक्षित महसूस करती और ज़्यादा ख़ुश रहती, पर जब भी दादी मां आतीं एक हफ़्ते में ही, उसकी मम्मी किसी-न-किसी बहाने से उन्हें गांव भेज देतीं. वह अंदर से तिलमिला उठती. चाहती तो थी कि मम्मी के इस फैसले के विरुद्ध आवाज़ उठाए, पर उसके मन का विरोध मन में ही घुटकर रह जाता.
एक डर, तनाव और असुरक्षा की भावना हमेशा उसके दिलो-दिमाग़ में बनी रहती. जड़ता से भरी घुटन, उसके अंदर एक अनजानी-सी छटपटाहट भर रही थी. हालात से मर्माहत और टूटी हुई नेहा ने एक ख़ामोशी का आवरण ओढ़ लिया था. धीरे-धीरे वही ख़ामोशी उसके वजूद का हिस्सा बन गया. अचानक उसे लगा कि उसकी आंखें भीगने लगी हैं. वह अपनी हथेलियों से अपनी आंखें सुखाती हुई सोने की कोशिश करने लगी.
दूसरे दिन ऑफिस गई, तो सुबह से ही बारिश हो रही थी. नेहा को ऑफिस से लौटने के लिए कोई टैक्सी नहीं मिल रही थी. गौतम ने लिफ्ट देने की पेशकश की, तो वह झट से मान गई. पहले गौतम का घर पड़ता था, फिर नेहा का. रास्ते में गौतम ने अपने घर के सामने कार रोकते हुए उसे घर में चलकर एक कप चाय पीने के लिए आमंत्रित किया, तो वह मना न कर सकी.
गौतम के पापा नहीं थे. घर में उसकी मां गायत्री देवी और एक छोटी बहन गौरी थी. दोनों ने उसका स्वागत बड़े प्यार से किया. घर का वातावरण तो साधारण ही था, पर उसकी सीधी-सादी और धीर-गंभीर मां के चेहरे पर झलकनेवाले प्यार और ममता में ऐसा आकर्षण था कि नेहा को वह अत्यंत आत्मीय लगीं. चाय पीने के बाद वह चलने लगी, तो बड़े प्यार से गायत्रीजी ने गौतम को घर तक छोड़ आने की हिदायत देकर भेजा.
उनका निश्छल प्यार और अपनापन देखकर उसका मन भीग उठा. न जाने क्यूं दादी मां की यादें ताज़ा होने लगीं, तभी तेज़ बारिश के कारण गाड़ी ने एक ज़ोर का हिचकोला खाया और वह गौतम की बांहों में जा गिरी. गौतम उसे मुस्कानभरी नज़रों से देखते हुए बोला, “मैडम, सीट बेल्ट लगाओ. बारिश का फ़ायदा मत उठाओ. कहीं किसी ट्रैफिक पुलिसवाले की नज़र पड़ गई कि आपने बेल्ट नहीं लगाई है, तो हम दोनों की रात हवालात में गुज़रेगी.”
उसकी बातों से नेहा तो जैसे पानी-पानी हो गई. “नहीं… वो गाड़ी के हिचकोले…” उसकी ज़बान न जाने क्यों लड़खड़ा गई. गौतम ने प्यारभरी मुस्कान से नेहा को देखा, तो वह और भी नर्वस हो गई. बारिश तेज़ होती जा रही थी. गौतम की सतर्क नज़रें अब सड़क पर जम-सी गई थीं और नेहा की चोर नज़रें गौतम के चेहरे पर. एक अनजानी-सी अनुभूति उसे मोहित करने लगी थी. तभी गौतम द्वारा अपनी चोरी पकड़े जाने का ख़्याल मन में आते ही उसके गाल सुर्ख हो गए और उसने नज़रें घुमा लीं, पर दिल चाह रहा था कि वे दोनों उम्रभर ऐसे ही चलते रहें, लेकिन मंजिल आ ही गई. उसके फ्लैट के कैंपस में काफ़ी पानी भर गया था. कहीं ऐसा न हो कि नेहा पानी में चलते हुए गिर जाए. यह सोचकर गौतम बेझिझक उसकी बांह पकड़कर उसे लिफ्ट तक छोड़ आया.
रीता कुमारी
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