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कहानी- फौजी की पत्नी 3 (Story Series- Fauji ki patni 3)

परम को ड्यूटी पर गए आठ दिन हो गए. उसके साथ छुट्टी पर बिताए पंद्रह दिन तनु को सपने जैसे लग रहे थे. जीवन में फिर वही सन्नाटा, खालीपन और इंतज़ार कि कब दुबारा मिलन हो. ये सब तो शायद फौजी की पत्नी को विवाह के गठबंधन में ही बांध देता है विधाता. फौजी तो एक ही सरहद पर ड्यूटी देता है, लेकिन फौजी की पत्नी रात-दिन डर, आशंकाओं, अकेलेपन, असुरक्षा, खालीपन की न जाने कितनी ही सरहदों पर रोज़ अनगिनत जंग लड़ती है और तब भी अपने अंदर चल रही सारी जंग को छुपाकर अपने पति को ढा़ंढस बंधाती रहती है, ताकि वह देश के प्रति अपने कर्त्तव्य को भलीभांति निभा सके. इधर परम की बस सड़क पर आगे बढ़ती जा रही थी और उसके दिल में तनु से दूर होने का एहसास भी बड़ी तेज़ी से गहराता जा रहा था. हर पल उसका मन कर रहा था कि उतरकर वापस चला जाए. बेचैनी में उसका हाथ दिल पर चला गया. देखा टी-शर्ट की जेब पर तनु की लिपस्टिक का निशान था. आते हुए जब तनु को गले लगाया था शायद तब लग गया होगा. बहुत रोकने पर भी उसकी आंखों से आंसू बह निकले. उसने जल्दी से खिड़की के बाहर देखने के बहाने अपने आंसू पोंछे. मन में एक बार फिर ख़्याल आया कि बस रुकवाकर उतर जाए. जाकर अपने घर में, अपने पलंग पर सो जाए तनु के साथ, लेकिन पिछले ग्यारह-बारह सालों की नौकरी में उसके रिकॉर्ड में एक भी लाल निशान नहीं था. अब भी वह नहीं चाहता था कि ऐसा कुछ हो. उसके अंदर के पति और एक फौजी के बीच ज़बर्दस्त जंग चल रही थी. एक तरफ़ पत्नी का प्यार था और एक तरफ़ देश के प्रति कर्त्तव्य भावना. इस समय दोनों ही भावनाएं पल-पल में एक-दूसरे पर हावी हो रही थीं. दोनों का ही आवेग उससे संभाला नहीं जा रहा था. उसने अपनी जेब से मोबाइल फोन बाहर निकाला. उसके कवर पर तनु के होंठ छपे थे. परम ने उस पर अपने होंठ रख दिए. बस शहर से बाहर निकल चुकी थी. उसने सोचा तनु अब घर पहुंच गई होगी. परम ने उसे फोन लगाया. तनु पलंग से पीठ टिकाकर बैठी थी. उसका पलंग पर लेटने का भी मन नहीं कर रहा था. तभी परम का फोन आया. तनु ने फोन उठाया. परम की आवाज़ सुनते ही तनु को ज़ोर की रुलाई आ गई. “ऐ मेरी जान!” परम विचलित होकर बोला, “तुम ऐसी कमज़ोर पड़ जाओगी, तो मुझे कौन हिम्मत बंधाएगा. ये दिन भी निकल जाएंगे. तुम तो इतनी हिम्मती हो. हमेशा ही तुमने मेरा साथ दिया है, मुझे सहारा दिया है. तुम्हारे मनोबल के कारण ही मैं देश के प्रति अपने कर्त्तव्य को पूरी निष्ठा से निभा पाता हूं.” तनु हमेशा ही मज़बूत और ख़ुश रहकर परम को अपनी चिंता से मुक्त रखती थी. अंदर वह चाहे कितने भी तनाव में रहती हो, लेकिन वह कभी इस बात का साया या भनक भी परम को लगने नहीं देती थी, ताकि वह उसकी तरफ़ से पूरी तरह से निश्‍चिंत रहकर स़िर्फ और स़िर्फ देश के प्रति अपने कर्त्तव्य को निष्ठापूर्वक निभा सके. वह जानती थी, उसका पति एक कमांडो है. उसकी ज़िम्मेदारियां अत्यंत कठिन और महत्वपूर्ण हैं. वह ख़ुद को कमज़ोर करके परम को भावनात्मक स्तर पर कमज़ोर नहीं करना चाहती थी, इसलिए हर अच्छी-बुरी परिस्थिति में वह अपने को स्थिर रखती थी. वह सच्चे और कर्मठ फौजी की पत्नी थी, लेकिन अब हालात ऐसे हो गए थे कि हर पल तनु के मन को एक डर सताता रहता था. यह भी पढ़ें: मास्टरपीस हैं आप आजकल उसका मन बड़ा कच्चा-सा हो गया था. हर समय मन में एक आशंका सिर उठाए रहती थी. फिर भी जैसे-तैसे अपने को संयत करके बोली, “आप मेरी चिंता मत करिए जी, मैं ठीक हूं.” “चल लाइट बंद करके सो जा. मैं पूरी रात तुझसे बातें करता रहूंगा. यही समझना कि तेरे साथ ही हूं.” परम प्यार से बात करता रहा. दोनों के पास स़िर्फ एक-दूसरे की आवाज़ का ही तो सहारा था अब. दिल को थोड़ी तसल्ली रही. अब अगली बार मिलने तक बस एक-दूसरे की आवाज़ सुनकर ही ख़ुद को बहलाए रखना होगा. परम को ड्यूटी पर गए आठ दिन हो गए. उसके साथ छुट्टी पर बिताए पंद्रह दिन तनु को सपने जैसे लग रहे थे. जीवन में फिर वही सन्नाटा, खालीपन और इंतज़ार कि कब दुबारा मिलन हो. ये सब तो शायद फौजी की पत्नी को विवाह के गठबंधन में ही बांध देता है विधाता. फौजी तो एक ही सरहद पर ड्यूटी देता है, लेकिन फौजी की पत्नी रात-दिन डर, आशंकाओं, अकेलेपन, असुरक्षा, खालीपन की न जाने कितनी ही सरहदों पर रोज़ अनगिनत जंग लड़ती है और तब भी अपने अंदर चल रही सारी जंग को छुपाकर अपने पति को ढा़ंढस बंधाती रहती है, ताकि वह देश के प्रति अपने कर्त्तव्य को भलीभांति निभा सके. तनु भी परम से फोन पर बात हो जाती, तो चैन की सांस लेती और फोन रखते ही फिर से बात होने तक भावनाओं के न जाने कितने सागरों में डूबती-उतराती रहती. आज सुबह ही परम ने बताया था कि ज़रूरी काम से बाहर जा रहा हूं. दिन में फोन नहीं कर पाऊंगा. शाम को वापस आते ही बात करूंगा. दिन तो जैसे-तैसे कट गया, लेकिन चार बजे के बाद से साढ़े छह बजे तक तनु की सांस सीने में अटकी रही. गले में कुछ फंसा हुआ था. अंतर में एक अकुलाहट रही. पचासों बार फोन उठाकर देखा, लगाया, हर बार स्विच ऑफ. सात बजे तक वह क्षणभर भी चैन से बैठ नहीं पाई. छाती में सांस घुट-सी रही थी. यह हर दूसरे रोज़ की कहानी थी. तभी मोबाइल फोन की रिंग बजी. परम का फोन था. उसकी आवाज़ सुनते ही तनु की आंखें छलछला आईं और उसे लगा न जाने कितने दिनों बाद उसने चैन की सांस ली है. यह चैन अभी तो है, कितने घंटों तक बरक़रार रह पाएगा, अगले ही पल क्या होगा, वह फौजी की पत्नी नहीं जानती. Dr. Vinita Rahurikar   डॉ. विनिता राहुरीकर

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