कहानी- पराए घर की बेटियां 3 (Story Series- Paraye Ghar Ki Betiyaan 3)
“मीरा और नीरा को देख लिया न. फिर मैं उन्हें भी दोष नहीं देता. अपनी गृहस्थी बसाने के बाद वे तुम्हारी गृहस्थी का बोझ अपने ऊपर नहीं लादेंगी. काम गोपी ही आएगी, पर तुमने कभी उसे महत्व नहीं दिया. उसे स्नेह और महत्व दो, तो वह तुम्हारी सेवा मन से करेगी. देखो, मशीन के कलपुर्ज़ों की देखभाल न करो तो एक दिन वे काम करना बंद कर देते हैं. गोपी तो इंसान है. उसकी संवेदनाएं हैं, इच्छाएं हैं, अधिकार हैं.”
गोपी जाती है तो मीरा और नीरा के स्वागत में भारी कमी होगी, नहीं जाती है तो सुमति की सास-ननद सुमति के घर के ठाट का आनंद लेंगी. उसकी मदद तो एक न करेंगी. गोपी को भेजना ही पड़ा.
गृहस्थी की थकान उतारने आई मीरा लटपटा गई, “हम आए और विमल व गोपी ग़ायब. यह क्या है अम्मा?”
बाबूजी ने स्पष्ट किया, “गोपी सुमति की मदद के लिए गई है मीरा. यहां का काम
तुम, नीरा और तुम्हारी अम्मा मिलकर संभाल लोगी.”
दोनों बहनों के चेहरे दुखी हो गए. नीरा को बेइ़ज़्ज़ती जैसा कुछ महसूस हुआ, “यहां भी चूल्हा फूंकूं? सुमति को अभी बीमार पड़ना था.”
गृहस्थी का अपार काम और गोपी नदारद. अम्मा को तत्काल समझ में आ गया कि गोपी के बिना वे घर नहीं चला सकतीं. काम करने की आदत नहीं तो जोड़ों में पीड़ा हो गई. मीरा और नीरा रसोई में घुसी खाना कम बनातीं, सुमति और गोपी को अधिक कोसतीं. जल्दी ही मीरा ने ऐलान किया, “अम्मा, हम लोगों की दक्षिण भारत घूमने की योजना है. यहां का देख-सुन लिया. अब जाना है.”
अम्मा उदास हुईं, “रुको न.”
“फिर छुट्टियां ख़त्म हो जाएंगी और दक्षिण भारत जाना नहीं हो पाएगा.”
नीरा जान गई कि मीरा चतुराई दिखाते हुए भाग रही है. उसे अपनी बेटी का क्रैश कोर्स याद आ गया, “अम्मा, जाना पड़ेगा. नीली को एक क्रैश कोर्स करना है.”
“नीरा, तुम भी! मुझसे तो दो आदमी का खाना नहीं बनाया जाता. आदत छूट गई है.”
“तो गोपी को बुलाओ. वहां जम कर बैठ गई.”
गोपी की भर्त्सना पर अम्मा पुत्रियों के साथ सुर में सुर न मिला पाईं. कुछ कहते न बनता था. बाबूजी ने कहा, “तुम लोग जाना चाहती हो, जाओ. तुम्हारी ज़िम्मेदारियां हैं, व्यस्तताएं हैं. यहां का हम दोनों संभाल लेंगे. बरस हुए, अकेले नहीं रहे. अब देखें अकेले रहने का क्या मज़ा और क्या परेशानियां होती हैं.”
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परिस्थिति में भारी उलट-फेर हुआ. न सैर-सपाटा, न पुत्रियों के लेन-देन को लेकर अम्मा ने हड़कंप मचाया. और अब खाली घर. दो प्राणी. अम्मा सामर्थ्य भर काम करतीं, पर काम पूरा न हो पाता. बाबूजी ने अलग हौसले तोड़नेवाली बात कर दी, “तुम जिन लड़कियों का यशोगान करती हो, लो, वे पीठ दिखा गईं. चाहती तो हो भीतर की भड़ास निकालकर तबियत हल्की कर लो, पर झिझक हो रही है. है न? होती हैं कुछ स्त्रियां. सेवा बहू से लेती हैं, श्रेय बेटियों को देती हैं. मैंने बार-बार तुम्हे कहा कि जो विमल और गोपी हमारा इतना काम करती हैं उन्हें न सराहो तो कोई बात नहीं, पर परेशान भी न करो. बाहर वाले मदद को नहीं आएंगे, यही लोग काम देंगे. तो क्या हम उन्हें थोड़ा-सा प्रेम और महत्व नहीं दे सकते? अमरबेल का स्वभाव जानती हो? जिस पेड़ पर चढ़ती है, उससे अपना पोषण लेती है और उसे सुखा देती है. फिर कहता हूं गोपी से सहारा लो, पर उसे ठूंठ न बना दो. वह विद्रोह कर दे तो हम इस बुढ़ापे में क्या करेंगे? उसके हाथ-पैर मज़बूत हैं, हमारे थक रहे हैं. विमल और गोपी अलग हो जाएं, तो वे अपना काम चला लेंगे, हम अकेले नहीं चला सकेंगे. मीरा और नीरा को देख लिया न. फिर मैं उन्हें भी दोष नहीं देता. अपनी गृहस्थी बसाने के बाद वे तुम्हारी गृहस्थी का बोझ अपने ऊपर नहीं लादेंगी. काम गोपी ही आएगी, पर तुमने कभी उसे महत्व नहीं दिया. उसे स्नेह और महत्व दो तो वह तुम्हारी सेवा मन से करेगी. देखो, मशीन के कलपुर्ज़ों की देखभाल न करो तो एक दिन वे काम करना बंद कर देते हैं. गोपी तो इंसान है. उसकी संवेदनाएं हैं, इच्छाएं हैं, अधिकार हैं.”
अम्मा सुनती रही बाबूजी की बातें. शायद वे पहली बार चित्त देकर सुन रही हैं, वरना पुत्रियों को अपना बल माननेवाली वे धीरज से किसी की नहीं सुनती हैं. मनमानी करती हैं. इस व़क़्त ख़ुद को दुर्बल पा रही हैं और बाबूजी की बातों में उन्हें सार दिखाई दे रहा है. यही वजह रही वापस आए बेटे-बहू से पूछने की. उन्होंने पूछा, “कोई तकलीफ़ तो नहीं हुई?”
आवाज़ नम है, लहजा नरम. गोपी ने सोचा था अम्मा एकदम दंगा कर देंगी कि यहां लड़कियां तंग हुईं और यह आनंद लूटने गई थी. लेकिन तस्वीर बहुत भिन्न. गोपी ने बताया, “सुमति ने बिल्कुल तकलीफ़ नहीं होने दी.”
“कैसी है उसकी तबियत?”
यह बताना कठिन था. कैसे बताए कि सुमति बेहद तंदुरुस्त है. घर उसे सौंप परिमार्जन के साथ शिमला निकल गई कि ‘भाभी तुम लोग कुछ दिन यहां एकदम फ्री होकर रहो. अम्मा जान लें, तुम्हारे बिना घर नहीं चल सकता. मीरा जीजी और नीरा जीजी एक दिन अम्मा की सेवा नहीं कर सकतीं.’
सुमति की धारणा का सत्यापन यहां हो चुका है.
अम्मा ने दुहराया, “विमल सुमति ठीक है न?”
विमल हंसा, “ठीक है. अम्मा तुम कैसी हो? दुबला गई हो.”
अचरज. अम्मा हंस दी, “बुढ़ापा है. दुबलाएंगे ही न. मैं तुम लोगों के लिए
चाय बना दूं.”
“चाय मैं बनाऊंगी अम्मा, तुम इनसे सुमति के हाल-समाचार पूछो.”
गोपी हाथ-मुंह धोने के लिए स्नानघर की तरफ़ चली गई. अम्मा जाती हुई बहू को देख रही हैं- हां थोड़ा स्नेह, थोड़ा विश्वास दो, तो ये पराए घर की बेटियां, पेटजायी बेटियों से अधिक अपनी हो जाती हैं.
सुषमा मुनीन्द्र
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