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कहानी- समझौता एक्सप्रेस 2 (Story Series- Samjhota Express 2)

मौसी अपनी ही धुन में बोले चली जा रही थीं, मगर उनके अंतिम दो वाक्यों पर नैना ठिठक गई, लगा जैसे मौसी ने बात पकड़ ली हो. “एक हंसमुख होगा, तो दूसरा मुंहचढ़ा, बात-बात पर धुआं छोड़नेवाला...” कहते हुए मौसी ने नैना को कनखियों से ऐसे देखा जैसे बुढ़ापेवाली बात का बदला उतार लिया हो. “अच्छा, आपके और मौसाजी के बीच तो ऐसा कुछ नहीं है. दोनों दो जिस्म एक जान बने घूमते हो.” “अपनी मौसी से लड़ने की सोचना भी मत बिट्टो, शुरू में ही हार जाओगी. अनुभव से बोल रहे हैं.” मौसाजी ने चुटकी ली, तो मौसी ने आंखें बड़ी कर उन्हें चुप करा दिया. खैर, ऐसी ही हंसी-ठिठोली और लज़ीज़ खाने के साथ नैना का स्वागत हुआ और फिर वह सुस्ताने लगी. मौसी उसके पास आकर बैठीं, तो उनकी गोद में सिर रख आंखें मूंद लीं. “और सुनाओ बिट्टो, क्या हाल हैं? सब कुशल-मंगल तो है ना? कोई ख़ुशख़बरी...” बड़े-बुज़ुर्गों का दूसरा सेट डायलॉग, जिसे सुन नैना और चिढ़ गई. “क्या मौसी, आपकी सोच भी आपकी तरह बुढ़ा गई है.” “बुड्ढी और मैं, उहं... मैं तो अभी जवान हूं. बुढ़ापेवाले लक्षण तो तेरे चेहरे पर डोल रहे हैं. ना जवानी की रंगत, ना ब्याहतावाली चमक... हीरा लड़का खोजकर दिया तुझे, फिर भी ये हाल... कुछ नाराज़गी चल रही है क्या आपस में? तुम्हारी सास बता रही थी कि वह यूएस जानेवाला था, गया क्या? ” “नहीं दो दिन बाद जाएगा.” “तो फिर तू यहां कैसे...?” मौसी किसी अनुभवी हकीम की तरह मर्ज़ खंगालने में लग गईं. “क्यों, नहीं आ सकती क्या? मेरा यहां आने का हक़ नहीं? या मैं उसकी ग़ुलाम हो गई कि हर व़क्त उसकी सेवा में तैनात खड़ी रहूं.” नैना बिफरकर उठ खड़ी हुई. “मैंने ये कब कहा, मगर उसको विदा करके आ जाती, क्या सोचता होगा वो?” कहते हुए धाकड़ व्यक्तित्ववाली मौसी का स्वर लड़खड़ा-सा गया. “वह क्या सोचेगा, इसकी बड़ी चिंता है आपको. मैं क्या सोचती हूं, मुझ पर क्या गुज़र रही है, इससे आपको कोई मतलब नहीं... सच तो यह है मौसी, आपने मुझे हीरा लड़का खोजकर नहीं दिया, बल्कि अपनी सहेली के नालायक लड़के को मेरे पल्ले बांध दिया... आप खून के रिश्तों के आगे दोस्ती निभा गईं.” मौसी ऐसा आक्रमण सहने को तैयार न थीं, उन्हें संभलने में कुछ पल लगे, मगर वो इतना ज़रूर समझ गईं कि नैना से बात उगलवाने के लिए फूंक-फूंककर कदम रखने प़ड़ेंगे. “क्या कहती है बिट्टो, मेरे लिए तू पहले है, मुझे तेरी ज़्यादा चिंता है... उसका क्या है, मर्द जात है... रिश्ते में ग़लती किसी की भी हो, पिसती हमेशा औरत ही है.” अब मौसी ने इमोशन कार्ड खेलना शुरू किया, पर उधर चुप्पी बरकरार रही, “पर हुआ क्या, बता तो... क्या हाल कर दिया मेरी फूल-सी बच्ची का. मिले तो ज़रा, टांगें तोड़कर रख दूंगी उसकी.” मौसी नैना के गाल सहलाते बोलीं. यह भी पढ़ेशादी से पहले ज़रूरी है इन 17 बातों पर सहमति (17 Things Every Couple Must Talk About Before Getting Marriage) “बस... बस... अब इतना भी ड्रामा मत करो. तुम दोनों बहनें सच में ड्रामा क्वीन हो.” मौसी चुप हो गईं, ‘अजीब मुसीबत है. ना इधर से बोलने दे रही है, ना उधर से. करूं तो क्या करूं.’ उन्होंने मन-ही-मन ईश्‍वर को याद किया और आगे की रणनीति तैयार करने लगीं. नैना को वापस खींचकर अपनी गोद में लिटा लिया और उसके बालों में हाथ घुमाने लगीं. “अच्छा खुलकर बता. कसम से किसी से नहीं कहूंगी. तेरी मां से भी नहीं... तेरा ध्यान नहीं रखता? तुझे प्यार नहीं करता? तुझसे लड़ता है या तेरी बात नहीं सुनता...? कुछ तो बता...?” लेटे-लेटे नैना सोच रही थी कि मौसी को क्या बताऊं... ध्यान तो रखता है, प्यार भी करता है और कितना भी उकसा लो, लड़ता तो बिल्कुल नहीं... उल्टा दो-चार जोक मारकर खी-खी करता हुआ पतली गली से निकल जाता है. “ऐसी कोई बात नहीं मौसी... बस लगता है जैसे हम दो विपरीत ध्रुव शादी के नाम पर एक साथ बांध दिए गए... हम में कुछ भी एक-सा नहीं... ना आदतें, ना व्यवहार, ना पसंद...” “हां, तो सही बात है ना बिट्टो, तुम दोनों पति-पत्नी हो, कोई दोस्त नहीं... अलग तो होंगे ही...” नैना ने मौसी को सवालिया नज़रों से घूरा... “देख बिट्टो, हम दोस्त ऐसे बनाते हैं, जो आदतों में, व्यवहार में हमारे जैसे हों, मगर ऊपरवाला पति-पत्नी की ऐसी जोड़ियां बनाता है, जिसमें दोनों बिल्कुल उलट हों, ताकि एक की कमी दूसरा पूरी कर दे और फिर दोनों मिलकर संपूर्ण हो जाएं. सर्वगुण संपन्न हो जाएं. यक़ीन नहीं आता, तो किसी भी जोड़े से पूछ ले. एक को गर्मी ज़्यादा लगेगी, तो दूसरे को सर्दी. एक को मीठा पसंद होगा, तो दूसरे को नमकीन. एक जल्दी उठेगा, तो दूसरा देर तक सोने की ज़िद करेगा. एक पसारा फैलाएगा, तो दूसरा उसे समेटता रहेगा. एक लेटलतीफ़ होगा, तो दूसरा घड़ी से आगे दौड़ेगा...” मौसी अपनी ही धुन में बोले चली जा रही थीं, मगर उनके अंतिम दो वाक्यों पर नैना ठिठक गई, लगा जैसे मौसी ने बात पकड़ ली हो. “एक हंसमुख होगा, तो दूसरा मुंहचढ़ा, बात-बात पर धुआं छोड़नेवाला...” कहते हुए मौसी ने नैना को कनखियों से ऐसे देखा जैसे बुढ़ापेवाली बात का बदला उतार लिया हो. “अच्छा, आपके और मौसाजी के बीच तो ऐसा कुछ नहीं है. दोनों दो जिस्म एक जान बने घूमते हो.” “यह सब ऊपर से दिखता है बिट्टो, अब तुम्हें क्या बताएं कि शुरू में हमने कितना बर्दाश्त किया... पता है, जब हमारी शादी हुई थी, तुम्हारे मौसाजी को तो एसी के बिना नींद ही नहीं आती थी और हमको घंटेभर में ठंड के मारे कुड़की बंधने लगती थी. पहले अकेले रहते थे, तो दूसरे कमरे में आकर सो जाते थे. फिर हमारी सासू मां साथ रहने आ गईं, तो कमरे से बाहर भी नहीं निकल सकते थे वरना जाने क्या-क्या कहानियां बनातीं. तो हम उनके सोते ही चुपचाप एसी बंद कर देते. फिर वे बौखलाए उठते और नींद में ही हमको दस बातें सुनाकर वापस एसी चला देते. हमसे कहा करते थे, ‘सुन लो रज्जो, अगर कभी हमारा तलाक़ होगा तो इसी एसी की वजह से होगा.” मौसी हंसते हुए पुरानी यादों में खो गईं. “फिर क्या हुआ?” नैना को मौसी की बातों में रस आया. दीप्ति मित्तल

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