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कहानी- सती का सच 4 (Story Series- Sati Ka Sach 4)

“डॉक्टर को कौन लाएगा? अब क्या करूं? किसे भेजूं?” मैं चेतनाशून्य होने लगी. पास-पड़ोस तो क्या, गांव के प्रायः सभी पुरुष रत्ना के गांव गए हुए थे. अब क्या करती मैं? भाभी की दर्दभरी कराहें सुनी नहीं जा रही थीं. “जीजी, अब क्या होगा जीजी?... मैं क्या करूं...?” “धीरज रखो भाभी, सब ठीक हो जाएगा मैं डॉक्टर लेकर आती हूं.” “नहीं जीजी, मुझे छोड़ कर मत जाओ. मैं मर जाऊंगी.” वह सिसकने लगी. विधवा बहन के अपशकुनी चित्र को उतार फेंकनेवाली वह सास अपनी विधवा पुत्रवधू को निश्‍चय ही मेरी तरह अपने घर से बाहर निकाल फेंकने में कभी विलम्ब न करती... इसी भय के मारे ही तो रत्ना ने... “जीजी, पद्मा जीजी.. जल्दी आइये...” भाभी की कमज़ोर कराहें सुनकर चौंक पड़ी मैं. भाग कर उनके पास गयी तो देखा वे तड़प रही हैं. लगता है प्रसव पीड़ा शुरू हो गयी थी. घबराहट के कारण मेरे हाथ-पांव फूल गये. मां तो अभी सप्ताह भर आनेवाली नहीं थी. रत्ना की तेहरवीं पर होनेवाले महाउत्सव के आगे बहू की चिन्ता भला कौन-सी यशस्वी सास रखती है. पड़ोस की दाई को बुला लायी मैं. “पद्मा, बहू बहुत कमज़ोर है. तकलीफ़ भी बढ़ रही है. डॉक्टर को बुलाना होगा.” “डॉक्टर को कौन लाएगा? अब क्या करूं? किसे भेजूं?” मैं चेतनाशून्य होने लगी. पास-पड़ोस तो क्या, गांव के प्रायः सभी पुरुष रत्ना के गांव गए हुए थे. अब क्या करती मैं? भाभी की दर्दभरी कराहें सुनी नहीं जा रही थीं. “जीजी, अब क्या होगा जीजी?... मैं क्या करूं...?” “धीरज रखो भाभी, सब ठीक हो जाएगा मैं डॉक्टर लेकर आती हूं.” “नहीं जीजी, मुझे छोड़ कर मत जाओ. मैं मर जाऊंगी.” वह सिसकने लगी. यह भी पढ़ें: डिप्रेशन दूर भगाएंगे ये Top 10 ऐप्स “हिम्मत रखो... कुछ नहीं होगा तुम्हें.” दाई को भाभी के पास बिठाकर बद्हवास-सी मैं पास-पड़ोस में मदद की गुहार लगाने दौड़ पड़ी. कोई न दिखा तो ख़ुद ही टार्च लेकर डॉक्टर को लाने दौड़ी. डॉक्टर मेरी बद्हवास हालत देखकर सब कुछ समझ गया और तत्परता से निकल पड़ा. घर के दरवा़ज़े पर बद्हवास-सी खड़ी दाई को घेरे पड़ोस की औरतों को देख मेरा कलेजा बैठ गया. अनिष्ट की आशंका से मेरी रूह कांप उठी. दाई ने रोते हुए कहा, “अब कुछ नहीं बचा बेटी. बहू और बच्चा दोनों ही चल बसे.” धम्म से वहीं बैठ गयी मैं. चार दिन से भूखी-प्यासी, रोती-कलपती मेरी धड़कनें अब मेरा साथ छोड़ने लगी थीं और मैं चेतना शून्य-सी वहीं लुढ़क पड़ी.

- निर्मला डोसी

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