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कहानी- तुम्हारी थोड़ी-सी बेसफ़ाई 7 (Story Series-Tumahri Thodi Si Besafai 7)

मुझे अपना घर याद आने लगा था, चिंटू और उसके दोस्तों का चार तकिए मिलाकर हाउस-हाउस खेलना, या सारी गाड़ियां एक के पीछे एक खड़ा करके ट्रैफिक जाम वाला खेल खेलना. बचपन के ये रंग मेरे घर में पूरी तरह फैले हुए थे और इन्हीं से मेरी दुनिया भी रंगीन थी. और भी बहुत से रंग थे, जो नीलू की ख़ुशमिज़ाजी से फैले हुए था.

        ... मैं थोड़ा-बहुत खाकर उठ गया था. मुझे कुछ याद आने लगा था. कितने ही बार मैंने बना हुआ खाना देखकर भी नए खाने की फ़रमाइश की थी और नीलू ने पूरी कर दी थी बिना शिकायत! मुझे कभी लगा ही नहीं कि इसमें कुछ ख़ास था. दीदी के यहां आए मुझे दो दिन हो चुके थे. एक अजीब-सा सन्नाटा घर में पसरा रहता था या मैं उदास था, इसलिए मुझे ऐसा लगता था. दीदी और जीजाजी के बीच भी एक अजीब तनातनी-सी महसूस होती थी. “क्या हुआ जीजाजी, कोई ऑफिस की टेंशन है?” एक दिन जीजाजी से मैंने पूछ लिया था, वो हल्का-सा मुस्कुराकर अचानक गंभीर हो गए. “जानते हो राघव, ज़िन्दगी में कायदे-क़ानून होने चाहिए, अच्छी बात है. लेकिन उन्ही कायदे-क़ानूनों में अगर ज़िन्दगी उलझकर रह जाए, तब ठीक नहीं होता.” “कोई बात हो गई क्या?” मैंने पूछा तो वो झुंझला गए. “कोई एक बात नहीं यार. ये हर बात पर रोता-चीखता, परेशान होता लाइफ पार्टनर किसी को अच्छा नहीं लगता. सब कुछ कसा कसा, दम घुटने लगता है. ठीक से सांस लेनी हो ना, तो ज़िंदगी में थोड़ी-सी जगह लापरवाही को भी देनी चाहिए. अरे मेरी छोड़ो, बच्चों के दोस्त घर आकर खिलौने नहीं छू सकते, खिलौने सजे रहते हैं बस.” यह भी पढ़ें: 35 छोटी-छोटी बातें, जो रिश्तों में लाएंगी बड़ा बदलाव (35 Secrets To Successful And Happy Relationship)   मुझे अपना घर याद आने लगा था, चिंटू और उसके दोस्तों का चार तकिए मिलाकर हाउस-हाउस खेलना, या सारी गाड़ियां एक के पीछे एक खड़ा करके ट्रैफिक जाम वाला खेल खेलना. बचपन के ये रंग मेरे घर में पूरी तरह फैले हुए थे और इन्हीं से मेरी दुनिया भी रंगीन थी. और भी बहुत से रंग थे, जो नीलू की ख़ुशमिज़ाजी से फैले हुए था. वो तैयार होकर रहती थी, सच कहूं तो मुझे कितना अच्छा लगता था उसको ऐसे देखकर. अपनी बेवकूफ़ी पर मैं हैरान था. अपनी ज़िंदगी के स्वाद ख़ुद मैं ख़त्म करना चाहता था. “तुमको मैंने कितना मिस किया. आइंदा इस तरह ग़ुस्सा होकर मत जाना.” नीलू के आने पर मैंने संजीदा होकर कहा, वो मुस्कुराने लगी. “पहले सूटकेस खोलो, तुम्हारे लिए एक सरप्राइज़ है.” ओफ्फो! सूटकेस खोलते ही बदबू का एक भभका तेज़ी से मेरी नाक में घुसा. एक बैग में गीले कपड़े रखे थे, ये बदबू शायद वहीं से आ रही थी. दिमाग़ ख़राब हुआ, लेकिन इस बार मैंने अपने को संभाल लिया. “क्या हुआ, पसंद नहीं आई शर्ट?” नीलू मासूमियत से पूछ रही थी. मैंने सूटकेस बंद करते हुए नीलू को शरारत से देखा, “बहुत अच्छी लगी. चलो, अब पहना भी दो.” [caption id="attachment_153269" align="alignnone" width="196"]Lucky Rajiv लकी राजीव[/caption]         अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करें – SHORT STORIES  

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