उसे चाहिए एक ऐसा साथी, जो उसे पल्लू में बांधकर न चले, बल्कि साथ चले. स्वयं भी स्वतंत्र रहे और उसके क़दमों को भी स्वतंत्रता से चलने की अनुमति दे. अनन्या स्पेस के लिए अमोल की इस छटपटाहट को नहीं समझती. शंभवी स्पेस के महत्व को समझती है. तभी वह अमोल की छटपटाहट को भी समझ गई थी. वह अमोल को पूरा स्पेस देती है. वह अमोल को सुनती है, जब वह बताना चाहता है. वह कभी भी उसकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ उसे किसी बात के लिए कुरेदती नहीं है.शंभवी के अपने रिश्ते को लेकर जो सपने थे, वे भी कहां पूरे हो पाए. अमोल और शंभवी दोनों ही तो रिश्तों में अपनी अपेक्षाओं के पूरे न हो पाने की वजह से दुखी थे.अमोल की अपने रिश्ते से ‘स्पेस’ की जो अपेक्षा थी, वो उसे कभी नहीं मिला. अमोल सांस लेने के लिए थोड़ा-सा स्पेस चाहता था. उसके लिए रिश्ते में थोड़ा स्पेस का होना बहुत ज़रूरी था. स्पेस मिलने पर वह रिश्तों को बेहतर ढंग से निभाने के बारे में सोच सकता था. अनन्या रिश्तों में स्पेस के महत्व को बिल्कुल भी नहीं समझती. वह हर समय अमोल के गले में अपने बांहों का घेरा डालकर उसे अपने साथ जकड़कर रखना चाहती है.
अमोल की हर सांस पर अनन्या की नज़र रहती है. वह सामनेवाले को अपने साथ कसकर बांधे रखने को ही रिश्ते की मज़बूती मानती है. वह समझती है कि रिश्ता तभी सफल व प्रगाढ़ होता है जब दोनों को एक-दूसरे की हर सांस की ख़बर हो, एक-दूसरे से कुछ भी छुपाने को वह बेवफ़ाई मानती है. अनन्या का ऐसा साथ ख़ुशनुमा न रहकर दमघोंटू हो गया है अमोल के लिए. हरदम वह अनन्या के पल्लू से बंधकर उसके पीछे-पीछे नहीं चल सकता. उसके क़दम अपना रास्ता नापना चाहते हैं. उसका अपना स्वतंत्र व्यक्तित्व है, विचार है और उनके विकास के लिए उसे स्पेस चाहिए.
उसे चाहिए एक ऐसा साथी, जो उसे पल्लू में बांधकर न चले, बल्कि साथ चले. स्वयं भी स्वतंत्र रहे और उसके क़दमों को भी स्वतंत्रता से चलने की अनुमति दे. अनन्या स्पेस के लिए अमोल की इस छटपटाहट को नहीं समझती. शंभवी स्पेस के महत्व को समझती है. तभी वह अमोल की छटपटाहट को भी समझ गई थी. वह अमोल को पूरा स्पेस देती है. वह अमोल को सुनती है, जब वह बताना चाहता है. वह कभी भी उसकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ उसे किसी बात के लिए कुरेदती नहीं है.
शंभवी के अपने रिश्ते को लेकर जो सपने थे, वे भी कहां पूरे हो पाए. अमोल और शंभवी दोनों ही तो रिश्तों में अपनी अपेक्षाओं के पूरे न हो पाने की वजह से दुखी थे.
शंभवी को अपने रिश्ते में बहुत ज़्यादा स्पेस मिली है, इतनी ़ज़्यादा कि दोनों के बीच बहुत जगह खाली पड़ी है. और दूर-दूर तक फैली इस जगह में ढेर सारी इग्नोरेंस है. इतनी ज़्यादा कि शंभवी को अपने अस्तित्व के होने में ही संदेह होने लगता है. उसे लगता है कि अमर जहां खड़ा है, उस ओर से कोई भी डोर शंभवी तक नहीं पहुंचती है. बहुत ढूंढ़ने पर भी इस स्पेस में वह आज तक अपना रिश्ता खोज नहीं पाई है. बस, इस स्पेस में वह तिनका-तिनका बिखरती जा रही थी. अमर की ज़िंदगी में उसकी कोई जगह है भी या नहीं, वह आज तक समझ नहीं पाई. उसके साथ एक अजनबी की तरह रहती आ रही है.
इस एहसास से खीझकर एक दिन शंभवी बिफर पड़ी थी. “आख़िर तुम चाहते क्या हो अमर? तुम्हारी ज़िंदगी में मेरी कोई अहमियत, कोई जगह है भी या नहीं? एक ही घर में रहते हुए तुम इस तरह से मुझे नज़रअंदाज़ करते हो, जैसे कि मैं यहां हूं ही नहीं. पति-पत्नी का रिश्ता स़िर्फ बिस्तर तक ही नहीं होता, उसके आगे भी बहुत कुछ होता है.”
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अमर ने तब उसकी ओर ऐसे देखा था जैसे कि वह किसी दूसरी ही दुनिया से आई हो और दूसरी भाषा में बोल रही हो. फिर होंठों पर एक तिरछी हंसी लाकर बोला, “कब किस बात के लिए टोका है तुम्हें मैंने? कैसी अजीब बातें कर रही हो. किस दुनिया में रहती हो? मैं बच्चा नहीं हूं और न ही तुम छोटी बच्ची हो, जो किसी की उंगली पकड़कर चलते रहें. बी बोल्ड. अपने ़फैसले, अपनी लाइफ़ को ख़ुद हैंडल करना सीखो. मैं उस टिपिकल मैंटेलिटी वाला हसबेंड नहीं हूं, जो शाम को घर आते ही बीवी को दिनभर का पुराण सुनाने बैठ जाए. मैं जो तुम्हें बताना ज़रूरी समझूंगा, वही बताऊंगा.”
और शंभवी को बताने लायक ज़रूरी बातों में ‘शाम को खाना नहीं खाऊंगा’ और ‘आठ बजे तैयार रहना, फलाने के साथ डिनर पर जाना है’ के अलावा कुछ नहीं होता. रिश्ते के बीच का सहज वार्तालाप और पूछ-परख अमर को हमेशा ही बेवजह दख़लअंदाज़ी करना लगता और आख़िरकार शंभवी ने भी बेवजह का दख़ल देना बंद कर दिया.
अमर ऑफ़िस के अलावा कहां आता-जाता है, किससे मिलता-जुलता है, शंभवी को कोई ख़बर नहीं होती. कई बार अमर के बारे में उसे दूसरों से पता चलता है. तब वह ख़ुद को कितना पराया महसूस करने लगती है. तब कितनी सोचनीय स्थिति हो जाती है उसकी, जब कोई अमर के बारे में कोई बात पूछता है और उसे पता ही नहीं होता.
अमर के सारे फैसले अकेले के होते हैं, शायद शंभवी से पूछने या उसकी राय लेने की ज़रूरत महसूस ही नहीं हुई कभी. जब मकान तैयार हो गया, तब बेजान फ़र्नीचर और बाकी सामान के साथ ही उसे भी उठाकर नए मकान में श़िफ़्ट कर दिया गया.
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